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Friday, 20 December, 2024
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भारत की जो औरतें घूंघट से बाहर नहीं निकलीं, वो टिक टॉक पर तांडव कर रही हैं

औरतों ने पहले फेसबुक पर आना शुरू किया, फिर इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर और अब टिक टॉक पर तो वो बूढ़ी दादियां भी आ गई हैं जो इंटरनेट को उंटरनेट या ‘मुझे नहीं पता क्या होता है’ कहती थीं.

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कोई 7-8 साल पहले जब गांव-देहात की लड़कियां फेसबुक की दुनिया में कदम रख रही थीं तब वो फेसबुक प्रोफाइल्स पर दुर्गा और गणेश की फोटो लगा रही थीं. उस वक्त लड़कियां भाई पिताजी से छुपकर सोशल मीडिया पर प्रोफाइल बनाती थीं. भाई सोशल मीडिया को किसी बार एंड रेस्टोरेंट की तरह समझते थे जहां ‘भले’ घर की लड़कियां नहीं जा सकती थीं. घूंघट में रहनेवाली भाभियां तो सोशल मीडिया को ऐसे देखतीं जैसे मर्दों से भरे हुए दालान में नज़र डाल रही हों और फिर सहम कर चौके में वापस चली जाती थीं.

पहले फेसबुक पर औरतों ने आना शुरू किया, फिर इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर और अब टिक टॉक पर तो वो बूढ़ी दादियां भी आ गई हैं जो इंटरनेट को उंटरनेट या ‘मुझे नहीं पता क्या होता है’ कहती थीं. ऐसा भी नहीं है कि ये बूढ़ी दादियां हर वक्त गाना ही गाती हैं टिक टॉक पर, बहुत बार स्वैग में बस बैंत लेकर हुक्का पीते बैठी भी नज़र आती हैं.

फेसबुक से अलग टिक टॉक जैसी ऐप्स ने बनाई है ये दुनिया

राजस्थान के चुरू की रहने वाली शर्मीला ने बताया कि एक वक्त था कि फेसबुक चलाने के लिए पिताजी के घर से बाहर जाने का इंतज़ार करना पड़ता था. किसी गांव की लड़की के लिए ये पाप करने की तरह था. पर वक्त के साथ पाप पुण्य की ये खाई ना सिर्फ कम हुई बल्कि गांव की औरतों ने सोशल मीडिया पर अपनी जगह क्लेम भी की. एक बात ध्यान देने लायक है. फेसबुक पर शिक्षित औरतें ज़्यादा हैं, वहीं टिक टॉक, यू ट्यूब पर ऐसा कोई अंतर नहीं है.


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टिक टॉक पर ऊपले बनाती, सिर पर मटका रख डांस करती औरतों को देखकर लगता है कि ग्रामीण औरतें डिजिटल हो गईं हैं. अपने मनोरंजन के लिए ही हुई हों लेकिन हो तो गई हैं. वहीं शहरों में चली गई बहुएं गांव आने पर व्लॉग बनाने लगी हैं और दोपहर को नीम तले बैठकर चुगलियां अब यूट्यूब का हिस्सा है. फेसबुक अब सिर्फ फोटो का माध्यम नहीं है, इस पर लिखना पड़ता है. जबकि टिक टॉक या यूट्यूब पर वीडियो, फोटो के माध्यम से खुद की पहचान बनाना आसान है.

चलते हैं ‘इंडियन गर्ल बबीताज विलेज’ के पास

यू ट्यूब की बात करें तो ग्रामीण औरतें अब इसके माध्यम से प्रोफेशनल भी हो गई हैं और पहचान के अलावा पैसे भी कमा रही हैं. इंडियन गर्ल बबीताज विलेज नाम के यूट्यूब चैनल पर आपको सिर पर पल्लू डाले बबीता परमार अपनी सास के सामने धीमी आवाज़ करके रिकॉर्ड कर लेती हैं. जब सास चटनी में बादाम को लेकर मुंह बनाती है तो बबीता अपने दर्शकों को धीमे से ये कहती हैं कि ड्राई फ्रूट्स के लिए मना कर दिया है. बबीता व्रत के दिन क्या खाएं, चूल्हे पर रोटी कैसे बनाएं से लेकर सास के साथ बैठकर चावल साफ करने की हर वीडियो लगाती हैं. दो साल पहले शुरू किए गए उनके यूट्यूब चैनल के लगभग ढाई लाख सबस्क्राइबर्स हैं.

सिद्धी मारवाड़ी की राजस्थानी ड्रेस और लापसी

कौशल्या चौधरी, सिद्धी मारवाड़ी के नाम से यूट्यूब चैनल चलाती हैं. सिर पर बोरला लगाए रंग-बिरंगी राजस्थानी ड्रेस पहने कौशल्या इंस्टाग्राम पर भी हैं. एक महीने पहले यूट्यूब पर आईं कौशल्या शहरी लोगों को लापसी बनाना सिखा रही हैं.  लापसी मीठा दलिया होता है जिसको गुड़ डाल कर बनाया जाता है.

ऊषा विलेज फूड की मज़ेदार और प्रेरक कहानी

ऊषा विलेज फूड नाम से इलाहाबाद की ऊषा नाम की महिला का चैनल है. ऊषा सीधे खेतों से टमाटर, धनिया, मिर्च तोड़कर लाती हैं. भैंस का दूध निकालने का तरीका भी बता रही हैं. वो कृषि क्राइसिस की तरफ भी आपका ध्यान खींचती हैं. उनकी कवर पिक है- नो फार्म्स, नो फूड, नो लाइफ.

ऊषा ने अपने यूट्यूब का बायो भी मज़ेदार लिखा है. उनकी वर्तनी थोड़ी अलग है, उसे हम ज्यों का त्यों लिख रहे हैं-

“मेरा नाम उषा देवी है, मैं घरेलु औरत हु. मुझे खाना बनाना अच्छा लगता है. मुझे लगा की क्यों न मेरा बनाया हुआ खाना आपके साथ साझा करू. इसलिए मैंने यूट्यूब के जरिये खाना ब्लॉग फ़ूड ब्लॉग्गिंग करू.. मै दूर गांव देहात की रहने वाली हु इसलिए मेरे पास बहुत सुविधा नहीं है, लेकिन मै कोशिस करुँगी की आप को, अपना बेस्ट तरीके से फ़ूड रेसिपी सिखाऊ. मै यूट्यूब में नई हु, मुझे यूट्यूब की कोई भी सेटिंग नहीं आती है इसके लिए मई ट्रेनिंग दे रही हु और मई धीरे धीरे सीख जाउंगी. अभी कृपया मेरे चैनल को सब्सक्राइब करे ताकि मेरा मनोबल आगे बढे.”

ऊषा के बड़े भाई ने दिप्रिंट को बताया कि ऊषा को जब उनके पति ने फोन लाकर दिया तो फोन में शहरी औरतों की वीडियो देखकर ऊषा ने अपने बड़े भाई से कहा कि वह भी यूट्यूब चैनल खोलना चाहती हैं. पढ़ाई लिखाई ढंग से नहीं हुई है तो शुरू में बोलने में हिचक हुई. पर बिना बोले वीडियो अच्छा बन नहीं रहा था.

शूट की अच्छी लोकेशन की चाह में वो 40 किलोमीटर दूर तक भी चली जाती हैं. कुछ वीडियोज़ में अपनी पड़ोसनों और सहेलियों को भी बुला लेती हैं. ब्यूटीफुल वुमन, लिटिल क्यूट वुमन नाम से अपलोड की हुई तमाम वीडियोज़ पर लाखों व्यूज़ हैं.

शुरुआत में यूट्यूब कमेंट्स में उनके देहाती होने का मज़ाक बना लेकिन अब सकारात्मक कमेंट्स आने लगे हैं तो ऊषा और वीडियो बनाने के लिए एक्साइटेड रहती हैं. पति का गांव में किराना स्टोर है. दोनों मिलकर खेती भी करते हैं. ऊषा ने अब एक और यूट्यूब चैनल भी खोल लिया है. एक चैनल से होने वाली कमाई को दान-पुण्य में लगाना चाहती हैं.

पूनम की लावनी की समस्या भी वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम से पता चल जाती है

हरियाणा के महेंद्रगढ़ से पूनम अपनी ताई चाचियों के साथ खेत में बैठकर फसल की कटाई की जानकारी अपने शहरी रिश्तेदारों को देती रहती हैं. पूनम की तरह उनकी साथ की लड़कियां भी व्हॉटसेप पर ऐसी स्टोरी लगाती रहती हैं. इंस्टाग्राम पर भी फोटो लगाती हैं कि फसल कट गई और अब सिर पर ले जाना पड़ेगा. हे भगवान! कितनी गर्मी है, लावनी आ गई सिर पे.


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कहने का मतलब है कि सोशल मीडिया के इन ऐप्स की वजह से ग्रामीण औरतें अब अपनी पहचान को लेकर सशंकित नहीं हैं. टिक-टॉक पर तो की औरतों के मिलियन फॉलोवर्स हैं. किसी सेलिब्रिटी की तरह. पहले सोशल मीडिया पर औरतों की फोटो को संभावित हैरेसमेंट के प्रेरक के तौर पर देखा जाता था. लेकिन जब से औरतों ने अपनी जगह लेनी शुरू की है, वो चीजें पीछे जा रही हैं. और औरतों को खुल के जीवन जीने का मौका मिल रहा है. (सभी फोटो यूट्यूब और टिक-टॉक वीडियो से लिए गए हैं.)

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