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Wednesday, 20 November, 2024
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सशस्त्र बलों में महिलाओं ने नई ऊंचाइयों को छुआ लेकिन असली लड़ाई अभी शुरू हुई है

सटीक शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और परफॉर्मेंस मानकों और सेवा की शर्तों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी महिलाओं पर है.

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सशस्त्र बलों में महिलाएं एक और फ्रंट पर विजय पाने को तैयार हैं – अपने पुरुष समकक्षों के बराबर यूनिट्स की कमान संभालेंगी. 1992 से 2006 बैच के 224 में से 108 महिला अधिकारियों की कर्नल के पद पर पदोन्नति के लिए 9 से 22 जनवरी के बीच आयोजित एक विशेष नंबर 3 चयन बोर्ड द्वारा स्क्रीनिंग की गई थी.

चयनित लोग निकट भविष्य में कमांड नियुक्तियां ग्रहण करेंगे. यह चयन बोर्ड अपने पुरुष समकक्षों के साथ स्थायी कमीशन और पदोन्नति के लिए समानता प्रदान करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिणामस्वरूप उत्पन्न बैकलॉग को खत्म करने के लिए एक बार के लिए उठाया गया कदम है. भविष्य में, जेंडर-न्यूट्रल चयन बोर्ड आयोजित किए जाएंगे.

इस बेंचमार्क को हासिल करने का रास्ता दो दशक लंबे संघर्ष से होकर जाता है, जिसकी परिणति 17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट के महत्त्वपूर्ण फैसले के रूप में हुई, जिसकी वजह से सशस्त्र बलों में जेंडर न्यूट्रल नियम एवं सेवा शर्तों को लागू किया गया.

इसके बाद सरकार और सशस्त्र बल सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को लागू करने में जुट गए हैं.

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के माध्यम से अधिकारियों के रूप में सीधे प्रवेश और मिलिट्री पुलिसअसम राइफल्स में सैनिकों के रूप में एनरोलमेंट के लिए एक क्रमिक शुरुआत भी की गई है. एक अन्य लड़ाकू शाखा – आर्टिलरी – में भी प्रवेश खोल दिया गया है.

छह महिला अधिकारियों ने प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कोर्स (डीएसएससी) और डिफेंस सर्विसेज टेक्निकल स्टाफ कोर्स (डीएसटीएससी) में सफलता हासिल की है. पहली महिला अधिकारी अब सियाचिन ग्लेशियर में सेवा कर रही हैं.

अग्निपथ योजना के तहत भी महिलाएं सशस्त्र बलों में शामिल होने लगी हैं. हालांकि, महिलाओं को अभी भी फाइटिंग आर्म्स – बख़्तरबंद टुकड़ी और इन्फैंट्री/मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री – और वर्तमान में तुलनात्मक रूप से छोटे वैकेंसी आधारित एंट्री के विपरीत पुरुषों के बराबर अधिकारियों और सैनिकों के रूप में योग्यता-आधारित कॉम्पटीटिव एंट्री में प्रवेश से वंचित रखा गया है.


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सशस्त्र बलों के लिए चुनौतियां

सशस्त्र बलों के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है उसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सबसे अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है – “औपनिवेशिक गुलामी से स्वतंत्रता से जन्मे एक राज्य के 70 साल के बाद, अभी भी संविधान के मूल्यों को लेकर प्रतिबद्धता को पहचानने के लिए दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है.

सशस्त्र बलों में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अवसर अब देश का कानून है. इस प्रकार, सभी रैंक के लोगों के लिए शिक्षा पहला कदम है ताकि वे परिवर्तन को स्वीकार कर सकें. सेना को सभी आधुनिक सेनाओं के अनुभव और बेहतर प्रक्रियाओं को शामिल करते हुए सशस्त्र बलों में महिलाओं के प्रवेश, प्रशिक्षण, नियम/शर्तों और प्रबंधन के लिए व्यापक अध्ययन करके एक नई पॉलिसी बनानी चाहिए.

अगला मुद्दा प्रवेश स्तर पर जेंडर कोटा बनाम ओपन मेरिट है. देर-सवेर सशस्त्र बलों में अधिकारियों के अलावा सैनिकों/नाविकों/एयर वॉरियर के लिए सीधी भर्ती शुरू करनी होगी. अंतिम लक्ष्य जेंडर-न्यूट्रल और योग्यता आधारित प्रवेश प्रणाली होना चाहिए.

हालांकि, शुरू में, प्रशासनिक कारणों से आवश्यक बुनियादी ढांचा बनाने और महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जेंडर कोटा तय करना पड़ सकता है.

एक मिलिट्री करियर के लिए महिलाओं के झुकाव को जानने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया जाना चाहिए. जो फाइटिंग आर्म्स और सेवाओं सहित सभी आर्म्स में एक योग्यता-आधारित एंट्री सेवा को फॉलो करने वाली अमेरिकी सेना में सभी पदों को मिलाकर 15-16 प्रतिशत महिलाएं सेवारत हैं.

अपेक्षित मानकों के कारण, मैं सैनिकों के रूप में नामांकन के लिए बहुत अधिक महिला स्वयंसेवकों की कल्पना नहीं करता.

हम उम्मीदवारों को तैयार करने, आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना और सशस्त्र बलों के भीतर वांछित मनोवैज्ञानिक वातावरण के निर्माण में सक्षम बनाने के लिए एक दशक में 5 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के साथ उत्तरोत्तर शुरुआत कर सकते हैं.

जेंडर-बेस्ड यूनिट्स/सब-यूनिट्स को बढ़ाना और बनाए रखना व्यावहारिक नहीं है. मिक्स्ड यूनिट्स/सब-यूनिट्स एक मजबूरी हैं.

सशस्त्र बलों को विशेष रूप से फील्ड एरिया में आवश्यक जेंडर-बेस्ड तैनाती के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा.

जैसे-जैसे भारत की युवतियां अंतिम लड़ाई को जीतने के लिए आगे बढ़ेंगी, सशस्त्र बलों को महिलाओं के यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न की समस्या का सामना करना पड़ेगा.

यह सामाजिक समस्या पुरुष “वॉरियर कल्चर” के कारण सशस्त्र बलों में अधिक तीखे तौर पर प्रकट होती है जो महिलाओं को पुरुषों के समान नहीं मानती है.

20-40 आयु वर्ग के स्त्री-पुरुषों का पास-पास रहना, ट्रेनिंग करना और युद्ध करना समस्या को बढ़ाएगा. जिन सेनाओं में महिलाओं की अपेक्षाकृत अधिक संख्या है उनका अनुभव है कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध का प्रतिशत सभी अपराधों को मिलाकर सबसे अधिक हैं.

अब तक, हमारा अनुभव अपेक्षाकृत कम संख्या में महिला अधिकारियों तक सीमित है. अधिकांश जेंडर संबंधी अपराध सीनियर्स या साथी अधिकारियों द्वारा किए गए थे. चूंकि भारतीय सेना में अभी महिलाओं के पास अथॉरिटी या अधिकार है इसलिए वे सैनिकों से सुरक्षित हैं.

इससे पहले कि हम घटनाओं का जिक्र करें, जब बड़ी संख्या में महिलाओं को सभी स्तर के पदों पर शामिल किया जाएगा, तो सरकार और सेना को नीति, नियम, विनियम और कानून बनाने के लिए अपने अनुभव और अन्य सेनाओं के आधार पर एक विस्तृत अध्ययन करना चाहिए.

महिलाओं के शारीरिक फिटनेस मानकों का मुद्दा एक और ग्रे-एरिया है. हमारे जैसे अमेरिकी सेना ने जेंडर-बेस्ड मानकों के साथ शुरुआत की.

ऑपरेशनल दक्षता को प्रभावित करने वाली महिलाओं के खराब प्रदर्शन के कारण, मानकों को जेंडर और आयु से मुक्त बनाया गया.

इसके कारण बड़ी संख्या में असफलताएं मिलीं और कॉम्पटीटिव करियर के मामले में तमाम महिलाओं को आगे बढ़ने लायक नहीं छोड़ा. हाल ही में रैंड द्वारा की गई स्टडी से दोबारा जेंडर और आयु संबंधी नीति लागू की गई है.

रैंड ने एक वैज्ञानिक अध्ययन किया, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अपने शारीरिक फिटनेस मानकों की समीक्षा करने के लिए सशस्त्र बलों को एक वैज्ञानिक अध्ययन करने की भी जरूरत है.


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महिलाओं के लिए चुनौतियां

कानूनी लड़ाई जीत ली गई है, सुप्रीम कोर्ट ने सेवा के लिए जेंडर-न्यूट्रल नियम और शर्तें लागू की हैं, और सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता को लेकर सुधार लाने के लिए न चाहते हुए भी सरकार और सशस्त्र बलों ने अंततः इसका पालन किया.

इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि पब्लिक डिबेट और कानूनी लड़ाई लैंगिक समानता और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के अधिकार से प्रेरित है.

नैतिक रूप से मूल्यांकित महिलाओं के प्रदर्शन को कभी भी मुद्दा नहीं बनाया गया. सशस्त्र बलों की मूल्यांकन प्रणाली, जो कुछ अधिकारियों के अपवादस्वरूप परफॉर्मेंस को छोड़कर अब तक महिलाओं को सेना में एक दिखावटी पार्ट के रूप में मानता था, वास्तविकता से काफी दूर है.

महिलाओं के लिए असली लड़ाई अभी शुरू हुई है. जेंडर-न्यूट्रल मानदंडों के आधार पर समान अवसर, समान परफॉर्मेंस की मांग करते हैं. कोई छूट नहीं दी जाएगी और न ही किसी तरह की मांग की जानी चाहिए.

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि जल्द ही सशस्त्र बलों के सभी क्षेत्र महिलाओं के लिए खुल जाएंगे. सशस्त्र बलों के लिए, ऑपरेशनल दक्षता सबसे ज्यादा जरूरी है.

अब महिलाओं पर सटीक शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और परफॉर्मेंस मानकों और सेवा की शर्तों को मापने का दायित्व है.

(लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा दी है. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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