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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतNEET-JEE ने विपक्ष को मोदी के पसंदीदा युवा वोटरों को अपने पाले में खींचने का अवसर दिया है

NEET-JEE ने विपक्ष को मोदी के पसंदीदा युवा वोटरों को अपने पाले में खींचने का अवसर दिया है

विरोध करने वाले छात्र भारतीय युवाओं के एक व्यापक दायरे– लिंग, जाति और वर्ग का एक मिश्रित समूह– से आते हैं और जेएनयू या जामिया के छात्रों के विपरीत, वे भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं.

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यदि मतदाताओं के किसी एक वर्ग ने नरेंद्र मोदी की व्यक्ति पूजा को मज़बूती से बढ़ाया है, तो वो हैं युवा और आमतौर पर नए वोटर. छात्रों के मुखर विरोध के बावजूद मोदी सरकार का संयुक्त प्रवेश परीक्षा (मुख्य) और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानि जेईई और नीट आयोजित कराने पर अड़ना, विपक्ष के लिए दूर हुए इन मतदाताओं में से कुछ को अपने पाले में खींचने और भारतीय जनता पार्टी के इस सर्वाधिक वफादार वोटर वर्ग में सेंध लगाने का मौका साबित हो सकता है.

यह तथ्य विपक्ष के लिए इस अवसर और भी अधिक लुभावना बना देता है कि ये छात्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) या जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे संस्थानों से नहीं आते हैं, जिनके छात्रों को भाजपा आसानी से राष्ट्र-विरोधी’ और ‘टुकड़े-टुकडे़ गैंग’ आदि करार देती है. जेएनयू टाइप छात्रों के गुस्से से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे वैसे भी इसके वोटर नहीं हैं.

जबकि इस समय परीक्षा कराए जाने का विरोध करने वाले छात्र, जोकि अभी तक कॉलेज की दहलीज पर भी नहीं पहुंचे हैं, किसी विचारधारा विशेष से बंधे नहीं हैं और इसलिए उन पर कोई ठप्पा लगाना मुश्किल है. एक साझा उद्देश्य से बंधे ये छात्र भारत के युवाओं के एक व्यापक दायरे– लिंग, जाति और वर्ग का एक मिश्रित समूह– से आते और दिल्ली के वामपंथी गढ़ जेएनयू के छात्रों के विपरीत वे भाजपा के चुनावी गणित के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं.


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छात्रों का गुस्सा – कुछ वास्तविक, कुछ दिखावटी- ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर साफ दिखाई पड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी के ‘मन की बात’ के नवीनतम अंक में छात्रों और उनकी चिंताओं की चर्चा नहीं करने के साथ ही उनके संबोधन को भाजपा के चैनल समेत विभिन्न यूट्यूब चैनलों पर बड़ी संख्या में ‘डिसलाइक‘ किया गया, और सोशल मीडिया पर #StudentsDislikeMMModi जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे.

मोदी और युवा वोटर

नरेंद्र मोदी 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर अपने उदय के समय से ही भारत के युवा मतदाताओं के बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं. इसके लिए उन्होंने युवा वोटरों को भाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया और उनकी आकांक्षाओं के अनुकूल संदेश देने की कोशिश की. इस तरह युवा वोटर मोदी की चुनावी महत्वाकांक्षाओं का एक महत्वपूर्ण आधार बन गए.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान मैंने चुनावों को कवर करने के लिए उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्यप्रदेश से लेकर असम और त्रिपुरा तक खूब यात्राएं की हैं और मैंने पाया कि नए/युवा मतदाताओं के बीच मोदी की भारी लोकप्रियता है और यह शहरी-ग्रामीण और लैंगिक विभाजन जैसी बातों से ऊपर है.

युवा वर्ग मोदी को विकास पुरुष के रूप में देखता है, उनकी बातों को पसंद करता है और विभाजन की राजनीति जैसी उनकी कमियों को खुशी-खुशी नजरअंदाज़ करता है. युवा वर्ग बुरी तरह नकाम रही नोटबंदी के सबसे बड़े समर्थकों में शामिल रहा है. मोदी मतदाताओं के इस वर्ग के महत्व को समझते हैं कि कैसे इसने चुनाव-दर-चुनाव उन्हें बढ़त दिलाने का काम किया है और क्यों इसे पूरी तरह अपने साथ रखने की ज़रूरत है.

वैसे ये ये कोई पहला मौका नहीं है जब मोदी सरकार ने युवा मतदाताओं को नाराज किया हो. हालांकि अंतर ये है कि पहले जिस युवा वर्ग को उसने चिढ़ा दिया था वो वैसे भी उसका वोट बैंक नहीं हैं. जेएनयू या जामिया में हुए विरोध प्रदर्शनों ने मोदी को उन पर ‘राष्ट्र विरोधी’ लेबल चस्पां करने में मदद ही की थी, और विपक्षी नेताओं ने जब उन छात्रों की बात उठाई तो भाजपा ने उन्हें भी उसी श्रेणी में खड़ा कर दिया था.


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पर, इस बार वैसी बात नहीं है और विपक्ष का इस छात्र संकट में अपने लिए एक अवसर देखना उचित ही है.

विपक्ष के लिए अवसर

विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस के लिए नरेंद्र मोदी के हाथों युवा वोट गंवाना एक बड़ा झटका साबित हुआ है.

वर्ष 2018 में भारत की औसत आयु 27.9 वर्ष थी. भारत एक युवा देश है, जहां युवा उत्तरोत्तर एक शक्तिशाली चुनावी वर्ग के रूप में उभर रहे हैं. भारतीय चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व बताया था कि लगभग 8.4 करोड़ मतदाता पहली बार अपना वोट डालेंगे, जिसके बाद तमाम राजनीतिक दल उन्हें लुभाने में जुट गए थे.

जेईई-नीट संकट के साथ ही विपक्ष अपने खोए आधार को कुछ हद तक दोबारा हासिल करने की उम्मीद कर सकता है, बशर्ते वह सावधानीपूर्वक अपनी चाल चले, मोदी सरकार पर हमले जारी रखे और साथ ही युवाओं से इस प्रकार जुड़ने का प्रयास करे कि जिससे युवा भी उससे लगाव महसूस कर सकें.

विपक्षी दल इस बात को महसूस कर रहे हैं और इसे लेकर अभी तक एकजुट भी हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस मुद्दे पर हमलावर रुख अपना रहे हैं और रविवार को उन्होंने परीक्षा पे चर्चा की बजाय खिलौने पे चर्चा का तंज कसते हुए प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाया.

क्या विपक्ष इस बार मोदी को मात दे पाएगा या मोदी-शाह की चतुर जोड़ी नाराज़गी को शांत कर स्थिति को संभाल लेगी? इसका चुनावी असर कितना होगा और गुस्सा कितना अधिक या वास्तविक है. ये तो अगले कुछ वर्षों के दौरान होने वाले विधानसभा चुनावों में ही पता चल पाएगा. यदि युवा सचमुच में मोदी से दूर हो गए हों तो भी दोबारा से मोदी प्रेम दिखाने के लिए उनके पास काफी वक्त होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव अभी चार साल दूर है.

हाथ आए इस मौके का फायदा उठाने के लिए विपक्ष को छात्रों के गुस्से को बनाए रखना होगा, छात्रों को शांत करने के भाजपा के प्रयासों के खिलाफ उनकी नाराज़गी को हवा देते रहना होगा और युवाओं का समर्थन हासिल करने के लिए उनके बाकी मुद्दों को भी उठाना होगा. जेईई-नीट संबंधी विरोध ने विपक्ष को नरेंद्र मोदी के पसंदीदा और सबसे वफादार वोट बैंक में सेंध लगाने का अवसर उपलब्ध करा दिया है. अब, बड़ी सेंधमारी के लिए उसे अपने प्रयास तेज़ करने होंगे.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

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