scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतआर्थिक उतार-चढ़ाव के साथ यह है भारत का उभरता हुआ क्षेत्र

आर्थिक उतार-चढ़ाव के साथ यह है भारत का उभरता हुआ क्षेत्र

Text Size:

इस क्षेत्र का सबसे बड़ा संभावित लाभ मेक इन इंडिया की और ज्यादा तरक्की होगी

कृषि क्षेत्र संकट से जूझ रहा है। विनिर्माण में गतिशीलता की कमी है। नितिन गडकरी के राजमार्ग निर्माण कार्यक्रम को छोड़ दिया जाए तो निर्माण कार्य भी शिथिल है। वित्तीय क्षेत्र बैंकिंग संकट से जूझ रहा है। तो अब सवाल यह उठता है कि ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां से उजाले की किरण आ रही है? इसका चौंका देने वाला जवाब है व्यापार क्षेत्र, और अगर थोड़ा और विशिष्ट तरीके से कहा जाए तो वह है संगठित खुदरा कारोबार।

हाल की घटनाओं पर विचार कीजिए। रिलायंस (जिसका इतिहास बिज़नेस टु बिज़नेस कारोबार का रहा है) ने कहा है कि कंपनी अब उपभोक्ता आधारित कारोबार के दम पर विकास करेगी। वॉलमार्ट फ्लिपकार्ट में 16 अरब डॉलर का निवेश कर रही है। आइकिया हैदराबाद में अपना पहला स्टोर खोलने की तैयारी कर रही है। स्टॉक मार्केट पर भी खुदरा कारोबार की खुमारी छाई हुई है। डीमार्ट, देश की 30 शीर्ष कंपनियों में से एक, खुदरा शृंखला चलाने वाली कंपनी ने गत वर्ष जिस दर पर प्रारंभिक निर्गम उतारा था, उससे कई गुना पर कारोबार कर रही है, कंपनी का बाजार पूंजीकरण करीब एक लाख करोड़ रुपये के आसपास है। इसके वैश्विक रुझान दर्शाते हैं कि खुदरा श्रृंखला कई देशों में एक प्रमुख खिलाड़ी और बड़े व्यक्तिगत भाग्य का निर्माता बन रहा है।

देश में बड़े खुदरा व्यापारियों का प्रभावी असर हो सकता है। वे बेहतर आपूर्ति शृंखला, भारी भरकम उत्पादन, वैश्विक कारोबार के साथ एकीकरण और उच्च कर संग्रह (अब कोई फर्जी बिल नहीं) के माध्यम से अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। ऑनलाइन और मुख्य धारा की बिक्री भी एक साथ आ सकती है। कम से कम रिलायंस चेयरमैन मुकेश अंबानी की बातों से और आइकिया से तो यही संकेत मिलते हैं, फ्लिपकार्ट में वॉलमार्ट का निवेश भी ऐसी ही जानकारी देता है। देश में अधिकतर खुदरा कारोबार अभी भी 1.2 करोड़ छोटे नुक्कड़ कारोबारियों के हाथ में है, ऐसे में बदलाव तो काफी समय से लंबित है। दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की बात करें तो संगठित खुदरा कारोबार में भारत की हिस्सेदारी सबसे कम है। एशियाई देशों में शायद दक्षिण कोरिया ही इकलौता ऐसा देश है जहां हिस्सेदारी 25 फीसदी से कुछ कम है। भारत की हिस्सेदारी 7 फीसदी ही है।

यह प्रतिशत दोगुना या तीन गुना हो जाए और शॉपिंग मॉल पनपते चले जाएं तो भी निकट भविष्य में खुदरा कारोबार में नुक्कड़ कारोबारियों की हिस्सेदारी कम होती नहीं नजर आती। ऐसा केवल उनकी ठोस विरासत की वजह से नहीं है बल्कि इसलिए भी क्योंकि बाजार के तेज विस्तार से हर किसी के लिए ज्यादा गुंजाइश बनेगी। यही वजह है कि देश में एक के बाद एक ऐसी खुदरा शृंखलाएं आईं जिन्होंने खाने, कपड़े, दवा, चश्मे, फर्नीचर, सोने के गहने, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, घरेलू उपकरण और जूते आदि हर सामान बेचना शुरू कर दिया। इसके बावजूद बाजार के स्वरूप में बदलाव की गति अपेक्षाकृत काफी सुस्त रही है। ऐसा भी हो सकता है कि भारतीय बाजार की जटिलताओं को देखते हुए शुरुआती कारोबारियों ने सतर्कता बरती हो। परंतु अब जबकि इस कारोबार में भारी निवेश हो रहा है तो बदलाव की गति तेज होनी तय है।

कुछ अन्य घटनाएं हैं जो ढांचागत बदलाव को अंजाम देंगी। राजमार्गों और फीडर सड़कों के तेज विकास के साथ ट्रकों की गति बढ़ेगी और आपूर्ति के केंद्र बड़े शहरों से दूर अधिक किफायती स्थानों पर स्थापित किए जा सकेंगे। आपूर्तिकर्ता भी कहीं अधिक दूरदराज जगहों पर उत्पादन और खपत केंद्र स्थापित कर सकेंगे। वस्तु एवं सेवा कर भी एकदम सही वक्त पर आया है। इससे बड़े कारोबारियों को फायदा है और नकदी कारोबार मुश्किल हो गया है। यह बात भी संगठित खुदरा कारोबार के पक्ष में जाएगी।

सबसे अधिक संभावित लाभ मेक इन इंडिया से संबंधित है। मारुति के वेंडर विकास कार्यक्रम ने देश में वाहन कलपुर्जा उद्योग को जन्म दिया, यह अब एक बड़े निर्यात क्षेत्र का रूप ले चुका है। संगठित खुदरा कारोबार की मदद से सफलता की इस कहानी को और भी कई क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है। सरकार ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के नियम काफी जटिल बना रखे हैं। उसका कहना है कि विदेशी खुदरा कंपनियों के माध्यम से बेची जाने वाली कम से कम 30 फीसदी वस्तुएं स्थानीय रूप से बनी होनी चाहिए। हालांकि इससे छुटकारा पाया जा सकता है। वॉलमार्ट का मौजूदा कारोबार पहले ही 90 प्रतिशत तक स्थानीय स्रोतों पर आधारित है। आइकिया को भी उम्मीद है कि उसके अपने स्टोरों में स्थानीय उत्पादों की हिस्सेदारी को 15 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी किया जा सकेगा। तैयार वस्त्र और साज सज्जा क्षेत्र की खुदरा कंपनी फैब इंडिया भी दूसरे देशों में अपने स्टोर खोलने की उम्मीद जता रही है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष व्यवस्था द्वारा।

Read in English : With all the economic gloom and doom, this is India’s sunrise sector

share & View comments