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Friday, 29 March, 2024
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विंग कमांडर अभिनंदन का पकड़ा जाना ही असली रफाल घोटाला है

पाकिस्तान एयरफोर्स ने भारत के सर्वश्रेष्ठ फाइटर प्लेन को पछाड़ा है, लेकिन भारतीय एयरफोर्स के प्रशिक्षण, जागरूकता और भाग्य का साथ होने के कारण पाकिस्तान का 27 फरवरी का मिशन विफल रहा.

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तब जब भारत के समझदार लोग इस बात पर बहस करने में लगे हैं कि राफेल डील एक घोटाल हो सकता है या फिर भारतीय रक्षा विभाग की सबसे अच्छी बात. लेकिन, इस बीच 26-27 फरवरी को हुए हवाई हमलों से निकलने वाले चार तथ्यों पर मैं बात करना चाहता हूं जिसे हम असली राफेल घोटाला कह सकते हैं.

बालाकोट में भारतीय वायुसेना के द्वारा किए गए हमले के सफल होने के महज एक दिन बाद राजौरी-मेंढर सेक्टर में पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) ने जिस तरह से तकनीकी और संख्यात्मक रूप में सफलता दिखाई इसने चौंका दिया.
पाकिस्तान वायु सेना ने यह हमला दिन में किया जब आप किसी दुश्मन देश से ऐसी उम्मीद नहीं करते हैं. उन्होंने ऐसा समय भी चुना जब भारतीय वायु सेना का गश्त दल ( एयर बोर्न अर्ली वार्निंग कंट्रोल )अपनी शिफ्ट बदल रही थी. पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) के जाल में भारतीय वायुसेना नहीं फंसी तब जब हमारे भारतीय वायुसेना के पायलटों (तीन बेहद अलग-अलग प्रकार के 12 विमान) ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और उनके जाल में नहीं फंसे. लेकिन पाकिस्तानी एयर फोर्स को कठोर सजा देने में भी विफल रहे.

चार सुखोई Su-30s,जो भारतीय वायुसेना का सबसे शक्तिशाली विमान है. जिनकी क्षमता विजुअल रेंज से आगे की मारक क्षमता वाले हैं ,वह भी शामिल थे. पाकिस्तान एयरफोर्स के एफ -16 द्वारा अमेरिकी ‘अमराम’ मिसाइलों से इतनी दूर से की गयी फायरिंग ने आश्चर्यचकित किया और सुखोई रडार / कंप्यूटर / मिसाइलें भी ‘फायरिंग समाधान’ देने में सक्षम नहीं थे. सुखोई भारतीय वायुसेना का सबसे अच्छा लड़ाकू विमान है , जो भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बल का आधा हिस्सा है , वह भी मात खा गया.

जिस समय पीएफ देश की सीमा में थे संयोग से उस दौरान दो अपग्रेडेड मिराज -2000 गश्त पर थे, जो नई फ्रेंच मिसाइलों (मीका मिसाइल ) से सुसज्जित था जो F-16, अमराम के बराबर की क्षमता रखता है. वे पाकिस्तान एयर फोर्स के कुछ विमानों को ट्रैक करने में सक्षम थे, जिससे परेशान होकर पाकिस्तान एयरफोर्स ने दक्षिण अफ्रीकी मूल के स्टैंड-ऑफ वेपन्स (एसओडब्ल्यू) को छोड़े , जिनमें से ज्यादातर टारगेट को मिस कर गए लेकिन उनमें से एक नौशेरा ब्रिगेड मुख्यालय परिसर के बीच में गिर गया. हम जितना सोच रहे हैं यह उससे कहीं ज्यादा खतरनाक था.


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भाग्यवश भारतीय वायुसेना ने श्रीनगर और अवंतिपुर से छह मिग -21 बाइसन ने छानबीन की, चूंकि ये पीर पंजाल रेंज के घने क्षेत्र में आते है, इसलिए पाकिस्तान एयरफोर्स (एडब्ल्यूएसी) उनका पता लगाने में विफल रहे. युद्ध के मैदान में उनकी अचानक उपस्थिति पाकिस्तान एयरफोर्स की योजना को परेशानी में डाल दिया. यह पूरी तरह से अप्रत्याशित था.

यह भारतीय वायुसेना के बेहतरीन प्रशिक्षण, जागरूकता और कुछ भाग्य था कि पाकिस्तान का यह दुस्साहसी मिशन सफल नहीं हो सका. वह कोई भी लक्ष्य को हिट नहीं कर सका. लेकिन पाकिस्तान वायुसेना की भी बड़ी विफलता इस मायने में थी कि वह जिस तरह से भारतीय वायुसेना को फंसाना चाहते थे. वह करने में नाकामयाब रहे.

यह हमें अपने मुख्य प्रश्न पर लाता है: क्या हमें आज भी इसबात पर बातचीत करनी चाहिए थी कि तब जब हमारी हमारी अर्थव्यवस्था (जो पाकिस्तान से आठ गुना ज्यादा है ) और रणनीतिक महत्वाकांक्षा से मेल खाने की सैन्य क्षमता है? 27 फरवरी (बालाकोट हमला ) हमें याद दिलाता रहेगा कि हम नहीं कर सके.

यदि हमारे पास एक बेहतर डिफेंस एक्विजिशन सिस्टम होती, तो अब तक हमने ऐसा अंतर बना लिया होता कि पाकिस्तान प्रतिशोध लेने की हिम्मत नहीं करता. 2002 में माछिल सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तानी घुसपैठ को रोकने के लिए उपयोग किए गए मिराज -2000 लेजर बम धमाके की जांच करें. जवाबी कार्रवाई को भूल जाओ पाकिस्तानियों ने नाटक किया कि कुछ भी नहीं हुआ था. मिराज -2000 और मिग -29 दोनों भारतीय एयर-टू-एयर मिसाइल पाकिस्तान एयरफोर्स से बेहतर रेंज की थीं, जिसने चुनौती को नाकाम कर दिया. कंप्यूटर, रडार और मिसाइल आधुनिक, ज्यादातर बीवीआर, पोस्ट-डॉगफाइट ऐरा एयर वारफेयर में परिणाम तय करते हैं.

भारत ने उस बढ़त को कैसे गंवाया?

यह सिलसिला वाजपेयी सरकार के दौरान शुरू हुआ. 2001 में भारतीय वायुसेना मिग को एक नए लड़ाकू विमान से बदलना चाहता था. उसकी पसंद मिराज-2000 था. डसॉल्ट भारत में अपनी उत्पादन लाइन को स्थानांतरित करने के लिए तैयार था, भारतीय वायुसेना विमान को पसंद करता था और उसे प्लेन की समझ थी. इस समय तक भारतीय वायुसेना के पास नई मिसाइलों के साथ अपग्रेडेड मेड-इन-इंडिया मिराज के 6-8 अधिक स्क्वाड्रन होने चाहिए थे. राफेल की शायद इतनी सख्त जरूरत भी नहीं होती पाकिस्तान एयरफोर्स ने 27 फरवरी की रेड अंजाम देने की हिम्मत नहीं करता और अगर ऐसा होता है, तो इसकी आलोचना होती. लेकिन तब जॉर्ज फर्नांडीस कॉफिनगेट और तहलका के मामले में फसें थे, उन्होंने एकल-विक्रेता सौदा करने से इनकार कर दिया. एक नए अधिग्रहण के लिए पूरी प्रक्रिया शुरू की गई थी.


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हम एक दशक तक सोते रहे. पाकिस्तानियों को 2010 के बाद अमेरिका से नई F-16s और आमरान मिसाइलें मिलीं. हवा का सामरिक संतुलन बदल गया. इस बीच में हमने 2012 तक एक नए लड़ाकू-राफेल को चुना सिवाय इसके कि तब के रक्षामंत्री एके एंटनी ने फूंक- फूंक के निर्णय नहीं लिए, उनकी 14 में से तीन वार्ता समिति भंग हो गई, इसलिए उन्होंने आगे की देरी सुनिश्चित करने के लिए उसके ऊपर एक समिति गठित की उन्होंने इस समिति की निगरानी के लिए तीन अन्य ‘मॉनिटर’ समिति गठित की. जैसे सनी देओल के डायलॉग तारीख पे तारीख, वैसे ही एंटनी का तरीका भी ‘कमेटी दर कमेटी’ जैसा था. निश्चित रूप से इस डील से एंटनी भी भाग निकले.

उन्होंने अलग-अलग समय पर तीन बातें कही हैं: रक्षा मंत्रालय में उन्होंने फिर कहा, लड़ाकू विमान के लिए फिर से बिड बुलाई गई. मीडिया को उन्होंने कहा कि उस वर्ष बजट में उनके हाथ में कुछ नहीं था. खुद को बचाते हुए उन्होंने मीडिया को तीन हफ़्ते पहले बताया था कि उन्होंने ‘राष्ट्रीय हित’ में सौदा बंद कर दिया था. क्योंकि, दो प्रमुख व्यक्तियों सुब्रमण्यम स्वामी और यशवंत सिन्हा ने समस्याओं की ओर इशारा करते हुए पत्र लिखा था. सौदा और जांच का आदेश दिया था. जब रिपोर्टर ने पीछा किया तो उन्होंने इन पत्रों के बारे में बात करने से इनकार कर दिया उन्होंने रिपोर्टर से कहा यह मुद्दा बहुत संवेदनशील है. संभावना यह भी थी कि उनकी पार्टी उन्हें इस मामले पर घेर सकती थी इसलिए उन्होंने खुद की गर्दन को बचाने के लिए ऐसा जवाब दिया था. अगर वह इस मामले में फिर से बात करते तो मुझे जरूर आश्चर्य होता.

मध्यम श्रेणी के बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों (एमएमआरसीए) का 126-विमान सौदा एनडीए सरकार के आते ही ख़त्म हो गया था. पठानकोट में रेड के साथ पहली बार वेक-अप कॉल की शुरुआत हुई थी. हमेशा की तरह वायु सेना पहले ब्लॉकों से दूर थी और आक्रामक गश्त के दौरान भारतीय एयरफोर्स को पाकिस्तान एयरफोर्स की श्रेष्ठता का एहसास हुआ. यह भी अभी तक एक अलिखित कहानी है, लेकिन मिराज को लटका कर रात भर में मीका मिसाइलें खरीदी गईं, जो पाकिस्तान एयर फोर्स के पास जाकर उनपर नजर रख सकें. तब से अब तक महज चार वर्षों में हमारे 40 से ज्यादा मिराज में से कितने उस मिसाइल को ले जा सके ? मुझसे इसके सच के बारे में मत पूछिए, क्योंकि जैक निकोलसन, कर्नल नाथन, आर जेसीप ने ‘ए फ्यू गुड मेन’ में कहा, ‘आप सच्चाई का सामना नहीं कर सकते’ आप उन दोनों के आभारी रहें , जो 27 फरवरी की सुबह गश्त पर थे.

जैसा कि मैंने वादा किया था, मैं आपको सच्चे राफेल सौदे का उल्लेख किए बिना असली राफेल घोटाले के बारे में बता रहा हूं. वाजपेयी सरकार एकल-विक्रेता के आदेश को छूने से डरते हुए अतिरिक्त मिराज नहीं ख़रीदा. मीका मिसाइल पहली बार 2001 में मंगाई गई थी, पहली बार यह मामला 2015 में आया जब पठानकोट में फ़ाइल को ‘ऑर्बिट’ से नीचे दबाने के लिए रक्षा मंत्रालय को झटका दिया तो मौजूदा मिराज को फिर अपग्रेड किया जाना था, दो को डसॉल्ट द्वारा अपग्रेड किया जाना था. बाकी काम एचएएल को करना था इसने अभी तक कितने काम किए हैं? मैंने आपको चेतावनी दी, आप सच्चाई का सामना नहीं कर सकते.

यह और भी अपमानपूर्ण होगा ?

विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने एलओसी को कैसे पार किया? निश्चित रूप से वह पाकिस्तान एयर फोर्स के खोजबीन में थे लेकिन उनका नियंत्रक उन्हें वापस लौटने की चेतावनी दे रहा था. लेकिन वह वापस नहीं आया क्योंकि वह सुन नहीं सकता था. जैसा कि आप 2019 में उम्मीद करते हैं, युद्ध क्षेत्र में पूर्ण रूप से रेडियो जैमिंग थी. इसीलिए आधुनिक सेनानियों के पास सुरक्षित डेटा लिंक होंगे. मिग के पास ऐसा क्यों नहीं था? रक्षा मंत्रालय के बहादुर सर हम्फ्रे से पूछें जिन्होंने तीन साल के लिए खरीद पर रोक लगा दी थी और दावा किया था कि एक रक्षा सार्वजनिक उपक्रम इसे बनाएगा. मुझसे उनका नाम मत पूछो, पता करो. आप एक और सच्चाई जान सकते हैं जिसका आप सामना नहीं करना चाहते हैं.

इज़राइल के साथ इस आदेश को अंत में लाया गया. जल्द ही सभी भारतीय एयर फोर्स सेनानियों के पास यह सुरक्षित डेटा लिंक होगा. शायद यमुना के बदबूदार पानी में कूद कर आप शर्म से मर जायेंगे, मैं आपको बताता हूं कि यह 630 करोड़ रुपये की खरीद है, जो एक राफेल की आधी कीमत से भी कम है. हम भाग्यशाली हैं कि हमने उस दिन सिर्फ एक मिग खोया है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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