कोरोना काल में भले ही उच्चतम न्यायालय से लेकर निचली अदालतें न्यायिक कार्यवाही के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग की प्रक्रिया अपना रहे हैं लेकिन इसी दौरान गुजरात उच्च न्यायालय ने प्रयोग के तौर पर ही सही लेकिन न्यायिक कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू करके एक मिसाल पेश कर दी है.
न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता लाने और जनता को इससे सीधे जोड़ने के लिये लंबे समय से न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण या इसकी आडियो-वीडियो रिकार्डिंग के प्रसारण की मांग की जा रही थी. उच्चतम न्यायालय ने भी सितंबर 2018 में अपने फैसले में न्यायिक कार्यवाही में पारदर्शिता की आवश्यकता महसूस करते हुये इसकी सहमति भी दी थी लेकिन शीर्ष अदालत में महत्वपूर्ण मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की योजना मूर्तरूप नहीं ले सकी.
उच्चतम न्यायालय में मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की योजना मूर्तरूप नहीं ले पाने की वजह से देशवासी 2019 में बहुचर्चित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सीधे सुनवाई के अवसर से वंचित रह गये थे. हालांकि, इस प्रकरण के सीधे प्रसारण के लिये राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व प्रचारक-विचारक गोविन्दाचार्य ने न्यायालय में आवेदन भी दायर किया था.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में संविधान पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई के सीधे प्रसारण का अनुरोध किया गया था लेकिन शुरू में न्यायालय ने इस पर विचार नहीं किया. बाद में संविधान पीठ ने 16 सितंबर 2019 को अपनी रजिस्ट्री से जानना चाहा था कि क्या इस मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण हो सकता है लेकिन उस समय तक इस प्रकरण की सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी.
इसके बाद, पूर्व अतिरिक्त सालिसीटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने महत्वपूर्ण मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के बारे में एक आवेदन न्यायालय में दायर किया था. यह आवेदन अभी भी विचाराधीन है.
बहरहाल, गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ में होने वाली न्यायिक कार्यवाही का यूट्यूब पर सीधा प्रसारण शुरू हो गया. उच्च न्यायालय की इस पहल ने शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले में की गयी परिकल्पना को मूर्त रूप दे दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने स्वपनिल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले में 26 सितंबर 2018 को अपने फैसले में न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसरण पर अपनी सहमति व्यक्त करते हुये कहा था कि इस तरह का खुलापन ‘सूरज की रौशनी जैसा होगा जो सर्वश्रेष्ठ कीटनाशक है.’ न्यायालय का विचार था कि सांविधानिक या राष्ट्रीय महत्व के मामलों की संविधान पीठ के समक्ष होने वाली सुनवाई के सीधे प्रसारण की अनुमति दी जा सकती है.
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तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि महत्वूपर्ण मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की दिशा में पहला कदम बढ़ाते हुये एक पायलट परियोजना शुरू की जा सकती है. पीठ ने इसकी एक रूपरेखा बनाने के साथ ही इसके लिये विस्तृत दिशानिर्देश बनाने पर भी जोर दिया था. इसके बावजूद, न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय सबसे आगे निकल गया.
वैसे किसी मुकदमे के सीधे प्रसारण की अनुमति देने के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इसी साल फरवरी में पहल की थी. न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी और न्यायमूति कौशिक चंदा की पीठ ने पारसी समुदाय की एक महिला की याचिका की अंतिम सुनवाई का यूट्यूब पर सीधा प्रसारण करने का अनुरोध स्वीकार कर लिया था.
शीर्ष अदालत ने न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण के दौरान आने वाली कठिनाई को ध्यान में रखते हुये शुरू में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने पर जोर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि कार्यवाही की रिकार्डिंग और इसके प्रसारण के बीच चंद क्षणों का अंतराल रखा जा सकता है ताकि अगर सुनवाई के दौरान कोई ऐसी टिप्पणी या बात कही गयी हो जिसे नहीं दिखाया जाना चाहिए तो उसे संपादित करके प्रसारण से पहले ही हटाया जा सके.
न्यायालय ने कहा था कि सीधे प्रसारण की पूरी व्यवस्था होने तक प्रथम चरण पर अमल के लिये इंटरनेट के माध्यम से न्यायालय परिसर में ही एक निर्धारित क्षेत्र में सीधे प्रसारण की संभावना तलाशी जा सकती है. इस निर्धारित क्षेत्र के अंतर्गत मीडिया कक्ष, जो वादकारियों, वकीलों, उनके क्लर्कों और इंटर्न के लिये उपलब्ध कराया जा सकता है. इसके अलावा, ऐसे क्षेत्र में उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन-लाउन्ज, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड का कक्ष-लाउन्ज, अटार्नी जनरल, सालिसीटर जनरल और अतिरिक्त सालिसीटर जनरल के न्यायालय परिसर में स्थित आधिकारिक चैंबर, अधिवक्ताओं के चैंबर ब्लाक और प्रेस संवाददाताओं के कक्ष को शामिल किया गया था.
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में किसी मुकदमे के सीधे प्रसारण या वीडियो रिकार्डिंग की अनुमति या इससे इंकार करने का मुद्दा संबंधित न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया था और यह भी कहा था कि संबंधित पक्षों की सहमति के बाद दी गयी अनुमति न्यायालय वापस भी ले सकता है.
शीर्ष अदालत ने महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई के सीधे प्रसारण की सहमति देने वाले सितंबर 2018 के फैसले पर अमल का न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष को निर्देश देने से इस साल फरवरी में इंकार कर दिया था. हालांकि, न्यायालय की रजिस्ट्री ने पीठ को सूचित किया था कि शीर्ष अदालत के फैसले पर उचित कार्रवाई की जा रही है.
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा था कि इस संबंध में न्यायिक पक्ष की ओर से कोई आदेश नहीं दिया जा सकता और इस बारे में प्रधान न्यायाधीश को ही प्रशासनिक निर्णय लेना है.
कोविड-19 के कारण मार्च में शुरू हुये लॉकडाउन के बाद से उच्चतम न्यायालय से लेकर निचली अदालतों में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई हो रही है.
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक ई कमेटी भी न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण संभावनाओं पर विचार कर रही है. इस समिति ने अप्रैल महीने में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सभी उच्च न्यायालयों के ई कमेटी के अध्यक्ष न्यायाधीशों के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की थी.
पिछले महीने ही संसद की वर्चुअल कोर्ट्स के कामकाज पर संसदीय समिति ने अपनी 103वीं रिपोर्ट में भी राष्ट्रीय और संवैधानिक मामलों में न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण की सिफारिश करते हुये कहा है कि इससे न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता और खुलापन आयेगा.
इससे भी पहले, 2017 और 2018 में शीर्ष अदालत ने प्रद्युम्न बिष्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया प्रकरण में न्यायिक कामकाज में पारदर्शिता लाने के इरादे से देश की सभी निचली अदालतों और अधिकरणों में आडियो सुविधायुक्त सीसीटीवी कैमरे लगाने के आदेश दिये थे.
गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के बाद ऐसा लगता है कि देशवासी शायद ज्यादा दिन राष्ट्रीय और सांविधानिक महत्व के मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण का लाभ उठाने से वंचित नहीं रह सकेंगे.
बहुत संभव है कि वीडियो कांफ्रेंस से सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान ही शीर्ष अदालत इस दिशा में कोई कदम उठा ले और देशवासियों को विभिन्न धार्मिक स्थलों और धार्मिक परंपराओं में किसी न किसी आधार पर महिलाओं के प्रवेश को वर्जित करने संबंधी मामले या फिर जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान और अनुच्छेद 35ए खत्म करने या फिर नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सीधे प्रसारण का लाभ मिल जाये.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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