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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतसुप्रीम कोर्ट में होने वाले अहम मुकदमों की सुनवाई को प्रभावित कर सकता है कोरोनावायरस

सुप्रीम कोर्ट में होने वाले अहम मुकदमों की सुनवाई को प्रभावित कर सकता है कोरोनावायरस

शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों के चैंबर में सूचीबद्ध सारे मामले स्थगित कर दिये गये हैं. जबकि रजिस्ट्रार के समक्ष 16 से 20 मार्च के दौरान सूचीबद्ध मामले भी स्थगित कर दिये गये हैं.

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पहले स्वाइन फ्लू और अब कोरोनावायरस की दहशत ने न्यायपालिका, विशेषकर उच्चतम न्यायालय में अनेक महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का कार्यक्रम गड़बड़ा दिया है. ऐसा लगता है कि कोरोनावायरस के कारण उठाये जा रहे कदमों की वजह से अनेक महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का कार्यक्रम प्रभावित होगा.

ऐसा लगता है अब महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई या तो ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद हो सकेगी या फिर न्यायालय को ऐसे मामलों के लिये ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान ही सुनवाई की विशेष व्यवस्था करनी पड़ सकती है.

कोरोनावायरस के संकट के मद्देनजर केन्द्र के परामर्श के आलोक में शीर्ष अदालत द्वारा उठाये जा रहे एहतियाती कदमों की वजह से धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश और इससे जुड़ी धार्मिक परंपराओं से संबंधित प्रकरण की सुनवाई का कार्यक्रम बाधित होने की संभावना है.

इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं, नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं के साथ ही इस कानून के विरोध में शाहीन बाग में सड़क अवरूद्ध करने से संबंधित याचिकायें और इसी कानून के विरोध के दौरान हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों के नाम और चित्र चौराहों पर लगाने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई से संबंधित मामले की सुनवाई के कार्यक्रम पर भी असर पड़ने की संभावना है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 17 फरवरी को सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश के साथ ही दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना करने की परंपरा और पारसी समुदाय से बाहर विवाह करने वाली स्त्री को किसी परिजन के अंतिम संस्कार से संबंधित पवित्र अग्नि के अज्ञारी कार्यक्रम में शामिल होने से वंचित करने सहित कई धार्मिक मुद्दों से संबंधित सात सवालों पर सुनवाई शुरू की थी, लेकिन अचानक ही इस पीठ के कुछ सदस्यों के अस्वस्थ हो जाने की वजह से इन मुद्दों की सुनवाई अधर में लटक गयी.


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इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौडर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल हैं.

फरवरी महीने के आखिरी सप्ताह में इस संविधान पीठ के दो न्यायाधीशों सहित शीर्ष अदालत के कम से कम छह न्यायाधीश स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गये. संविधान पीठ के दो न्यायाधीशों के अस्वस्थ हो जाने की वजह से धार्मिक परंपराओं और अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई अधर में अटक गयी.

प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने पांच मार्च को स्पष्ट किया था कि धार्मिक मुद्दों से संबंधित मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानकि वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की जायेगी.

दूसरी ओर न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी. लेकिन इस पीठ के कुछ सदस्यों की अनुपलब्धता के कारण यह मामला भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है.

न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल हैं.

अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए खत्म करने सरकार के फैसले की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही संविधान पीठ के तीन सदस्य- न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत- नौ सदस्यीय संविधान पीठ के भी सदस्य हैं. शाहीन बाग में सीएए के विरोध में प्रदर्शनकारियों द्वारा सार्वजनिक सड़क अवरूद्ध करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 23 मार्च को सुनवाई होनी है. जबकि उत्तर प्रदेश में चौराहों पर लगाये गये पोस्टर हटाने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष 16 मार्च से शुरू हो रहे सप्ताह के दौरान सूचीबद्ध होनी है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने स्वाइन फ्लू से न्यायाधीशों के प्रभावित होने से उत्पन्न स्थिति पर विचार विमर्श के बाद निर्णय लिया गया कि शीर्ष अदालत वकीलों और न्यायालय के कर्मचारियों के टीकाकरण के लिये आवश्यक वैक्सीन उपलबध करायेगी. इसके बाद स्वास्थ स्वास्थ्य मंत्रालय और सीजीएचएस भी सक्रिय हुआ और उसने न्यायालय परिसर में फ्लू के टीके लगाने के लिये अस्थाई डिस्पेंसरी भी स्थापित की थी.


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न्यायालय में 16 मार्च से फिर से सामान्य कामकाज शुरू होना था. लेकिन, अचानक ही अब कोरोनावायरस की दहशत ने सारी व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया. स्थिति यह हो गयी कि कोरोना के बारे में केन्द्र सरकार के परामर्श के आलोक में प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने न्यायाधीशों, अटार्नी जनरल, सालिसीटर जनरल और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन तथा स्वास्थ मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक की. इस बैठक में निर्णय लिया गया कि सीमित संख्या में न्यायाधीशों की पीठ सिर्फ आवश्यक मुकदमों की सुनवाई करेंगी और संबंधित मामले के वकीलों को ही न्यायालय कक्ष में प्रवेश की अनुमति होगी.

शीर्ष अदालत के सक्षम प्राधिकारी ने सोमवार को आवश्यक मुकदमों की सुनवाई के लिये दो-दो न्यायाधीशों की छह पीठ गठित की हैं. न्यायालय कक्ष के ज्यादा वकीलों और दूसरे लोगों के एकत्र होने की संभावना कम करते हुये फिलहाल न्यायालय कक्षों के बीच पर्याप्त दूरी रखी गयी है. मसलन न्यायालय कक्ष दो और तीन के बाद न्यायालय कक्ष छह और आठ तथा न्यायालय कक्ष 11 और 14 में न्यायाधीशों की पीठ मुकदमों की सुनवाई करेगी.

पहली पीठ में न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूति एम आर शाह, दूसरी पीठ में न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूति विनीत सरन, तीसरी पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूति दिनेश माहेश्वरी, चौथी पीठ में न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता, पांचवी पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट तथा छठी पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सदस्य हैं.

यही नहीं, न्यायालय की नियमित कार्य सूची में भी बदलाव किया जा रहा है. ताकि सिर्फ आवश्यक मुकदमे ही सूचीबद्ध हों. फिलहाल इन छह पीठों के समक्ष सोमवार के लिये 12-12 मामले ही सूचीबद्ध हैं.

स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों के चैंबर में सूचीबद्ध सारे मामले स्थगित कर दिये गये हैं. जबकि रजिस्ट्रार के समक्ष 16 से 20 मार्च के दौरान सूचीबद्ध मामले भी स्थगित कर दिये गये हैं. इस बीच, ऐतिहायत के तौर पर न्यायालय परिसर में स्थित विभागीय कैंटीन सहित सभी कैंटीन अगले आदेश तक के लिये बंद कर दी गयी हैं. शीर्ष अदालत के कर्मचारियों को अपने खाने पीने का बंदोबस्त फिलहाल खुद ही करना होगा.

शीर्ष अदालत के सक्षम प्राधिकारी के इन कदमों से यही संकेत मिलता है कि कम से कम इस सप्ताह तो स्थिति सामान्य होने की संभावना कम है और इसलिए ऐसे कई महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई प्रभावित होने की आशंका है, जो संविधान पीठ या किसी अन्य वृहद पीठ के विचारार्थ सूचीबद्ध हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)

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