अमेरिका ने पिछले सप्ताह टैरिफों की जो बौछार की उसने दुनिया भर के बाज़ारों में खलबली मचा दी. नए टैरिफ तोपों से की गई उस गोलाबारी के समान हैं जो ‘दुश्मन’ को घुटने टेकने पर मजबूर कर देती है और जिसके बाद थल सेना अंतिम चढ़ाई करती है. केवल इस मामले में, सफाई करने के लिए फैन्सी ब्रीफकेस रखने वाले चतुर किस्म के लोग ही आएंगे.
कुछ देशों ने इंतज़ार करने और स्थिति पर नज़र रखने का सही फैसला किया. चीन ने जवाबी टैरिफों की घोषणा की, जिसके बाद अमेरिका ने टैरिफों में और वृद्धि कर दी और इस तरह उनमें कुल 104 फीसदी की वृद्धि कर दी. 9 अप्रैल को अमेरिका ने ‘मुक्ति दिवस’ पर चीन को छोड़ बाकी सभी देशों के लिए टैरिफों में वृद्धि पर 90 दिनों के लिए विराम की घोषणा कर दी.
चीन जबकि इस टैरिफ धमकी के आगे हथियार डालने के कोई संकेत नहीं दे रहा, तब सवाल उठता है कि क्या यह व्यापार युद्ध वार्ता की मेज तक ही सीमित रहेगा या यह और तेज़ हो सकता है? क्या ये आक्रामक कदम दुश्मन को कमजोर करने तक, सूचना युद्ध और साइबर हमलों तक ही सीमित रहेंगे या वास्तव में मिसाइलों की भी बौछार में बदल जाएंगे? यह तो भविष्य ही बताएगा.
थुसिडाइड ट्रैप
व्यापार युद्ध अक्सर दो देशों के बीच तनाव में बदलता रहा है. वास्तव में, यह सीधी सैन्य युद्ध की जगह कूटनीतिक युद्ध जैसे होते हैं, लेकिन व्यापार युद्ध अगर तीखा हुआ तो ऐसे कई कारण हो सकते हैं जो इसे वास्तविक युद्ध में बदल सकते हैं. विशेष तौर पर, घरेलू आर्थिक परेशानियां अक्सर राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारती हैं और तब देश अपने हितों की रक्षा के लिए या उन्हें आगे बढ़ाने के लिए रक्षात्मक या आक्रामक रुख अपनाते हैं. व्यापारिक विवाद भू-राजनीतिक तनावों को जन्म देता है, जो सैन्य युद्ध भड़का सकता है. यह बात खासकर तब लागू होती है जब व्यापार असंतुलन, बाज़ार तक पहुंच, रणनीतिक संसाधनों, खासकर मूल्यवान खनिजों (जिनके निर्यात पर चीन ने पूर्ण रोक लगाने की घोषणा कर दी है) और टेक्नोलॉजी जैसे मसलों को लेकर टकराव पैदा होता है.
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध व्यापक भू-राजनीतिक होड़ से भी गहराई से जुड़ा है. चीन के उभार को अमेरिका दुनिया में अपने वर्चस्व के लिए एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देखता है. खासकर ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ (बीआरआई) जैसे कार्यक्रमों के जरिए चीन जिस तरह तकनीक और आर्थिक शक्ति बनने की कोशिश कर रहा है उसने स्थिति को और जटिल बना दिया है. अमेरिका को चिंता है कि आर्थिक रूप से मजबूत चीन एक सैन्य शक्ति भी बन जाएगा, उधर चीन को लगता है कि अमेरिका उसके विकास को रोकना चाहता है. यह ‘थुसिडाइड ट्रैप’ का निर्माण करता है.
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध उन्हें अपने आर्थिक हितों या क्षेत्रीय दावों की रक्षा के लिए अपनी सैन्य तैनाती मजबूत करने को प्रेरित कर सकता है. दक्षिण चीन सागर और ताइवान क्षेत्र में सैन्य तनाव के कारण दोनों के रणनीतिक हित टकराते हैं. अकेले टैरिफ वॉर के कारण सीधी लड़ाई शुरू होने की संभावना कम है, लेकिन आर्थिक प्रतियोगिता ऐसे छद्म युद्ध के लिए आधार तैयार कर सकती है, जो कभी भी छिड़ सकता है. जब चीन जैसी उभरती शक्ति अमेरिका जैसी स्थापित शक्ति की जगह लेने की चुनौती दे रही है तब, जैसा कि अमेरिकी राजनीतिशास्त्री ग्राहम टी. एल्लिसन कहते हैं, इससे उत्पन्न तनावों के कारण हिंसक टकराव अपरिहार्य है. इतिहास क्या कहता है?
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इतिहास की आवाज़
अमेरिका-चीन टकराव, और जापान-अमेरिका युद्ध के कारणों के बीच कुछ समानता है. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले के दशकों में जापान एशिया में अपनी जिन साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा था उसके कारण इस क्षेत्र में अमेरिका के हितों से उसका टकराव हो रहा था. दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान के आक्रामक विस्तार और तेल, रबर, खनिजों आदि के लिए बढ़ती उसकी ख़्वाहिशों के कारण अमेरिका से उसका तनाव बढ़ता जा रहा था. अमेरिका ने जापान की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के जवाबी कदम उठाते हुए उस पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए थे और साथ में तेल तथा स्टील पर भी रोक लगा दी थी.
अमेरिकी प्रतिबंधों और प्रतिबंधात्मक व्यापारिक नीतियों से खतरा महसूस करते हुए जापान ने संसाधनों तक अपनी पहुंच सुरक्षित करने के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना विस्तार करने की कोशिश की. इसके कारण उसने पहल करते हुए दिसंबर 1941 में पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया.
जापान की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की तरह, चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति को भी दुनिया में अमेरिका के वर्चस्व के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. चीन जिस तरह टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बढ़त ले रहा है, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है, और उसकी जो क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं (खासकर ताइवान को लेकर) वह द्वितीय विश्वयुद्ध वाले दौर में जापान के विस्तारवादी लक्ष्यों को प्रतिबिंबित करती हैं.
अमेरिका-चीन का व्यापार युद्ध टेक्नोलॉजी हस्तांतरण, बौद्धिक संपदा, और बाजार में हिस्सेदारी जैसे मसलों के इर्द-गिर्द केंद्रित है. ये मसले जापान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों से, जिनका मकसद रणनीतिक संसाधनों और टेक्नोलॉजी को निशाना बनाना था, जुड़े मसलों के समान ही हैं. जैसे जापान ने अमेरिकी प्रतिबंधों को अपने विस्तार के लिए खतरा माना था, वैसे ही चीन मानता है कि वैश्विक वर्चस्व की उसकी दीर्घकालिक योजना के लिए अमेरिकी नीतियां खतरा हैं क्योंकि वह आधुनिक टेक्नोलॉजी और बाज़ार तक उसकी पहुंच में रणनीतिक बाधाएं हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान के सैन्य विस्तार की तरह, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दावेदारी को अमेरिका और उसके ‘क्वाड’ सहयोगियों के साथ चीन के तनाव की बड़ी वजह माना जा रहा है.
चीनी नौसेना पीएलए ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को अलग करने वाले तस्मान सागर में फरवरी 2025 में असली युद्ध जैसा नौसैनिक युद्धाभ्यास किया. इसे “असामान्य और उकसाऊ” कार्रवाई बताया गया. हालांकि, इस तरह के उकसावों से सीधी लड़ाई नहीं छिड़ी है, लेकिन इनके कारण बड़े टकराव की आशंका बनी हुई है, खासकर इसलिए कि अमेरिका इन्हें अपने सहयोगियों और अपने हितों के खिलाफ चुनौती के रूप में देखता है.
तो अब आगे क्या होगा? अमेरिका ने टैरिफों के मामले में जो रियायत बरती है वह क्या निर्णायक हो सकती है, क्योंकि आधुनिक काल में आर्थिक युद्ध के बाद प्रायः वास्तविक युद्ध होता ही रहा है? फिलहाल दोनों देशों ने जो सख्त रुख अपना रखा है उसमें व्यापार से संबंधित रियायतें चीन का हौसला और बढ़ा ही सकती हैं. चीन का उत्कर्ष मुख्यतः उसकी दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति की देन है, जिसका लक्ष्य प्रमुख सेक्टरों में अपना वर्चस्व कायम करना है. अगर अमेरिका चीन को टैरिफ खत्म करने या बाज़ार में प्रमुखता से हिस्सेदारी देने की पेशकश करता है तो ज्यादा संभावना यह है कि चीन इसे उसकी कमजोरी माने. यह उसे ताइवान, टेक्नोलॉजी आदि के मसलों पर ज्यादा आक्रामक रुख अपनाने और अपनी सैन्य शक्ति जताने तक को भी प्रेरित कर सकता है, जैसा कि उसने तस्मान सागर में किया था. अब देखना यह है कि पहले कौन झुकता है, ताकि दो देश उस लड़ाई में न उलझें जिसे कोई नहीं चाहता.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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