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Tuesday, 7 May, 2024
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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव तक केसरिया गठबंधन टिकेगा या टूटेगा

मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और बीजेपी में लंबे समय से मनमुटाव है. राज्य में इसी साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले है. दोनों पार्टियां यहां अपना-अपना मुख्यमंत्री चाहती हैं.

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सिर मुंडाते ही ओले पड़े-कुछ ऐसा ही हुआ है. जबरदस्त बहुमत पाने वाली मोदी सरकार के साथ. जिस दिन मोदी मंत्रिमंडल ने शपथ ली, उसी दिन बिहार की उसकी सहयोगी पार्टी जनता दल ने फैसला किया कि वह केंद्र सरकार में शामिल नहीं होगी. उत्तर प्रदेश का अपना दल भी शामिल नहीं हुआ. उसके बाद राजग की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना ने फिर पुराना विवाद उछाल दिया कि विधानसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री किसका होगा शिवसेना या भाजपा का. मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और बीजेपी में लंबे समय से मनमुटाव है. राज्य में इसी साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले है. दोनों पार्टियां यहां अपना-अपना मुख्यमंत्री चाहती हैं. शिवसेना ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला चाहती है, वहीं अमित शाह महाराष्ट्र में बीजेपी का मुख्यमंत्री चाहते हैं.

फरवरी में लोकसभा चुनाव से पहले हुए समझौते के बाद सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था था. दरअसल भाजपा और शिवसेना दोनों ही हिन्दुत्ववादी पार्टियां है. इसलिए वे एक दूसरे को वैचारिक साथी मानते हैं. मगर पिछले काफी समय से उनमें भारी मनमुटाव चल रहा है. इस कारण शिवसेना केंद्र और राज्य में सत्ता में भागीदार रहने के बावजूद भाजपा का विपक्षी पार्टियों से ज्यादा विरोध करती रही. यहां तक कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को नहीं बख्शा. उसने यह भी फैसला किया था कि वह आगे के चुनाव अपने बल पर लड़ेगी. भाजपा के काफी मानमनौव्वल के बाद वह तैयार हुई.

इसका नतीजा भी अच्छा हुआ. भाजपा शिवसेना के केसरिया गठबंधन को राज्य में जबरदस्त सफलता मिली. उसे राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर विजय मिली. इनमें से 23 पर भाजपा और 18 पर शिवसेना जीती. इसके बाद से शिवसेना के सुर बदले हुए है. हर मुद्दे पर भाजपा नेताओं का विरोध करनेवाली शिवसेना अब तारीफ भी करने लगी है. इसका यह मतलब नहीं है कि शिवसेना की शिकायतें खत्म हो गई हैं. वह शिवसेना को केंद्र सरकार में भारी अद्योग मंत्रालय दिए जाने से नाराज है. उसका मानना है कि इस मंत्रालय में करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. वह कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय चाहती है. इसके अलावा कुछ और मंत्री पद चाहती है. शिवसेना की एक मांग यह भी थी उसे लोकसभा का उपसभापति का पद दिया जाए. जबकि भाजपा यह पद वायएसआर कांग्रेस को देना चाहती है.


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शिवसेना को केंद्र सरकार में ज्यादा मंत्री और महत्वपूर्ण मंत्रालय चाहिए. मगर शिवसेना की मुख्य शिकायत राज्य को लेकर है. वही मनमुटाव का सबसे बड़ा मुद्दा है और भाजपा के एक मंत्री के बयान के बाद ऐन विधानसभा चुनाव से पहले वह मुद्दा उभर कर आया है. यह बता दे कि महाराष्ट्र में अक्टूबर में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे समय मंत्री ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया. हाल ही में महाराष्ट्र के वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुंगंटीवार ने दावा किया है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री उनकी पार्टी का होगा. उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा और गठबंधन सहयोगी शिवसेना इस साल के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के लिए जल्द ही सीटों के बंटवारे के लिये एक समझौते पर पहुंचेगी. मुंगंटीवार ने कहा, ‘अगला मुख्यमंत्री भाजपा से होगा. इसे लेकर भाजपा-शिवसेना गठबंधन में कोई असंतोष नहीं है. इस बार हम 288 सदस्यीय विधानसभा में 220 से अधिक सीटें जीतेंगे.’ उन्होंने कहा कि भाजपा और शिवसेना के नेता राज्य विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे के लिए एक समझौता पर काम कर रहे हैं. ‘सीटों के बंटवारे को लेकर अंतिम निर्णय जल्द लिया जाएगा. हम अपने गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे.’

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इस बयान के बाद पुराना विवाद फिर उभर आया है. शिवसेना मेंस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है मगर उसने सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा है. क्योंकि अब तक वह मान रही थी कि विवाद सुलझ चुका है. शिवसेना के नेता फरवरी में दोनों दलों के बीच गठबंधन की घोषणा करते हुए भाजपा अधयक्ष अमित शाह की उपस्थिति में राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने घोषणा की थी कि विधानसभा चुनाव के बाद हम सत्ता और पदों में समान भागीदारी करेंगे. इसका मतलब शिवसेना ने यह लगाया कि दोनों दलों के बीच मुख्यमंत्री का भी बंटवारा होगा. ढाई साल शिवसेना और ढाई साल भाजपा का मुख्यमंत्री रहेगा.

मगर भाजपा मंत्री के बयान ने शिवसेना की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. वैसे शिवसेना के नेता अपने आप को धीरज बंधाने के लिए कह रहे हैं कि वे किसी के बयान को क्यों माने देवेंद्र फडनवीस ने अमित शाह के सामनें जो बयान दिया था उस पर ही विश्वास करते हैं.

मगर राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते है कि भाजपा चुनाव की भारी सफलता के बाद बदल गई है. वह अपने वायदे से मुकर रही है. भाजपा को 2014 में लोकसभा में 282 सीटें मिली थी जो 2019 में बढकर 303 हो गई है. इससे भाजपा कार्यकर्ता बल्ले-बल्ले है और चाहते है कि महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी पार्टी के साथ सत्ता क्यों शेअर की जाए. इस बार भाजपा अपने बूते बहुमत हासिल कर सकती है तो अकेले लढ़ कर सत्ता हासिल करे. मुंगंटीवार का बयान भाजपा की बदली सोच को बताता है. यू भी भाजपा हमेशा महाराष्ट्र में शतप्रतिशत भाजपा का लक्ष्य लेकर चलती रही है. उसे यह लक्ष्य पूरा होने के आसार लग रहे हैं. वैसे शिवसेना भी अपने बूते सरकार बनाने की बात करती है. मुख्यमंत्री पद का पेंच फंस जाने से सवाल पैदा हो गया है. केसरिया गठबंधन विधानसभा चुनाव तक टिकेगा या टूट जाएगा.

कोल्हापुर के शिवाजी विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर प्रकाश पवार कहते हैं. विधानसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना का गठबंधन बने रहने की संभावना कम है. भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र में विशाल जनादेश मिला है और उसकी जैसी विस्तारवादी आकांक्षाएं है उसे देखते हुए गठबंधन की संभावनाएं कम ही हैं. भाजपा को शिवसेना की जरूरत नहीं होगी . इसलिए भाजपा विधानसभा चुनाव में शिवसेना से गठबंधन नहीं करना चाहेगी. अकेली ही लड़ना चाहेगी ताकि 2019 लोकसभा चुनाव की सुनामी विधानसभा में भी लाभ दे सके और वह अपने बल पर चुनाव जीत जाए.

भाजपा की इस बदली हुई सोच के कारण विधानसभा चुनाव में केसरिया गठबंधन खतरे में पड़ता लग रहा है, और यह फिल्मी गाना सही साबित हो रहा है मिलते है दल यहां मिल के बिछुड़ने को.


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वैसे मुख्यमंत्री की मांग के पीछे शिवसेना का अपना तर्क है. कभी बाल ठाकरे के जमाने में महाराष्ट्र में वह गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में थी. उसने भाजपा के साथ गठबंधन इसलिए किया था कि शिवसेना क्षेत्रीय पार्टी थी तो भाजपा राष्ट्रीय तो शिवसेना का लगता था कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करेगी और क्षेत्रीय स्तर की राजनीति उसके जिम्मे होगी. राष्ट्रीय स्तर पर बड़े भाई की भूमिका भाजपा निभाएगी तो महाराष्ट्र के स्तर पर वह, बाद में भाजपा राज्य में भी हाथ पांव फैलाने लगी और धीरे-धीरे बड़े भाई की भूमिका निभाने लगी. शिवसेना चाहती है कि महाराष्ट्र के स्तर पर बड़े भाई की भूमिका निभाने का हक उसको ही है. शिवसेना इस हकीकत को मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि भाजपा की ताकत उसकी तुलना में बहुत बढ़ गई है. वह उसका मुकाबला नहीं कर सकती. वैसे पिछले पिछले विधानसभा चुनाव में ही हकीकत साफ हो गई थी.भाजपा शिवसेना अलग-अलग लड़े तो भाजपा को 120 सीटे मिली तो शिवसेना को 60. मगर शिवसेना इस हकीकत को पचा नहीं पा रही. यदि मुख्यमंत्री पद पर कोई फैसला नहीं हुआ तो विधानसभा चुनाव में केसरिया गठबंधन के दोनो दलों की राहे अलग हो सकती हैं. तब महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव महाभारत दिलचस्प हो जाएगा.

राष्ट्रवादी कांग्रेस में शिवसेना पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया है कि पहले शिवसेना सरकार के लिए लाचार थी अब मुख्यमंत्री पद के लिए लाचार है. इसके साथ एक कार्टून भी दिया है.

(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं। पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं.)

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