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Wednesday, 18 December, 2024
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मोदी मणिपुर के CM को क्यों नहीं हटाएंगे? ऐसा करने की 4 वजहें और 5 कारण कि उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए

मणिपुर में हिंसा भी इसी तरह भुला दी जाएगी जैसे कोविड की दूसरी लहर गुज़र गई और हर कोई बीरेन सिंह की गलतियों को भी भूल जाएगा. ऐसा ही बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता होगा, लेकिन वह गलत हैं.

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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह में ऐसा क्या है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें हटाने से कतरा रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पूर्व कांग्रेस मंत्री के प्रति अभी तक काफी उदार रही है. वे अक्टूबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे और छह महीने बाद – मार्च 2017 में सीएम बने. उससे बमुश्किल आठ हफ्ते पहले, जनवरी में सिंह के बेटे को 2011 के रोड रेज मामले में 21-वर्षीय व्यक्ति की हत्या के मामले में पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी.

2020 में बीजेपी के चार विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके गठबंधन सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने सरकार की “एक-व्यक्ति की कार्यशैली” पर सवाल उठाते हुए, सरकार से समर्थन वापस ले लिया. भाजपा आलाकमान ने सीएम का समर्थन किया और दोनों पक्षों में मध्यथता की.

मई से अब तक राज्य में हिंसा में 140 से अधिक लोगों की मौत के बाद भी पीएम मोदी बीरेन सिंह का समर्थन कर रहे हैं. 20 जुलाई को संसद के बाहर बोलते हुए, जब उन्होंने मणिपुर में दो कुकी महिलाओं को नग्न घुमाने और उनके साथ बलात्कार की बर्बर घटना के बारे में बात की तो वे गुस्से में दिखे. उन्होंने इससे देश के शर्मसार होने की बात कही, लेकिन उनके बयान में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के बारे में कुछ भी नहीं था – न सलाह और न चेतावनी का एक शब्द . लगा जैसे वे विपक्षी दलों से ज्यादा खफा हैं. क्या विपक्षी दलों तो लगता था कि वह मणिपुर के मुख्यमंत्री को ‘राज धर्म’ की याद दिलाएंगे? द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर पुलिस ने ही महिलाओं को भीड़ को सौंप दिया था, जिन्होंने उन्हें नग्न करके घुमाया और उनके साथ बलात्कार किया.

लेकिन, भाजपा नेताओं के तर्क से लगता है, मणिपुर के मुख्यमंत्री को अन्य राज्यों में अपने समकक्षों की तुलना में नैतिक रूप से शर्मिंदा होने की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि, जैसा कि पीएम ने गुरुवार को सुझाव दिया, कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं.

यह हमें इस सवाल पर लाता है कि आखिर क्यों पीएम मोदी सीएम बीरेन सिंह का बचाव इतनी दृढ़ता से कर रहे हैं.

इसके चार कारण हैं.


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पीएम मोदी बीरेन सिंह को बर्खास्त क्यों नहीं करेंगे?

सबसे पहले कोई भी पीएम मोदी को कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. यदि विपक्षी दल सिंह के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, तो वे केवल उनकी मदद कर रहे हैं. ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने ओडिशा ट्रेन त्रासदी के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा मांग कर मदद की थी.

दूसरा कारण यह है कि भाजपा के लिए कुशासन, सीएम बदलने की वजह नहीं है. चुनाव से पहले राजनीतिक फायदे के लिए उन्हें इच्छानुसार बदल दिया जाता है – गुजरात में आनंदीबेन पटेल और विजय रूपाणी, उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और त्रिपुरा में बिप्लब देब.

तीसरा कारण: मणिपुर में अगला विधानसभा चुनाव चार साल दूर है और बीजेपी को पता है कि जनता की याददाश्त कमज़ोर होती है. केंद्र और राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान जैसे गायब हो गई थी और इस पर पार्टी के सांसद और विधायक तक सार्वजनिक रूप से बयान दे रहे थे कि वो जनता के बीच नहीं जा पा रहे हैं.

एक बार जब दूसरी लहर की भयावहता कम हो गई हज़ारों लोगों की मौत हो गई, तो लोग टीकाकरण और मुफ्त अनाज के लिए पीएम मोदी की सराहना करने लगे. तो, मणिपुर में हिंसा भी गुज़र जाएगी और हर कोई बीरेन सिंह की गलतियों को भूल जाएगा. कम से कम बीजेपी के रणनीतिकारों को यही लगता होगा.

चौथा कारण: बीरेन सिंह इतने कीमती हैं कि उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता. उन्होंने 2022 में राज्य विधानसभा में पहली बार बीजेपी को अपने दम पर बहुमत दिलाई. उन्हें भाजपा के मुख्य वोटबैंक हिंदू मैतेई का समर्थन प्राप्त है, जो आबादी का 53 प्रतिशत है. इसके अलावा, मणिपुर में इस अराजकता के बीच, ऐसे भाजपा विधायक को चुनना आसान नहीं है जो सिंह की जगह ले सकें और चीज़ों को जल्दी से ठीक कर सकें. नेतृत्व परिवर्तन से स्थिति और बिगड़ सकती है.

भाजपा में इस बात का एहसास भी है कि अगर स्थिति बिगड़ रही है तो इसमें पूरी तरह से उनकी गलती नहीं है. केंद्र ने हकीकत में चीजों को अपने हाथ में ले लिया है, हालांकि, वह अनुच्छेद 355 को लागू करने के बारे में स्पष्टता नहीं दिखा रहे. 5 मई को तत्कालीन मणिपुर के डीजीपी पी डौंगेल ने संवाददाताओं से कहा कि केंद्र ने अनुच्छेद-355 को लागू करके राज्य की सुरक्षा अपने हाथ में ले ली है, जो केंद्र को किसी राज्य को बाहरी आक्रमण या आंतरिक गड़बड़ी से बचाने का कर्तव्य सौंपता है. अन्य राज्य अधिकारियों ने बाद में इसका खंडन किया. केंद्रीय गृह मंत्रालय अभी तक इसको स्पष्ट नहीं कर रहा.

इसके अलावा यह केंद्र ही था जिसने राज्य सरकार को पश्चिम बंगाल कैडर के सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी कुलदीप सिंह को सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त करने के लिए कहा. कुलदीप सिंह पहले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक के रूप में कार्यरत थे. ऐसा कहा जाता है कि वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विश्वास पात्र हैं.

त्रिपुरा कैडर के आईपीएस अधिकारी राजीव सिंह को डौंगल, जो कि एक कुकी हैं, के स्थान पर मणिपुर का डीजीपी नियुक्त किया गया. इन दोनों अधिकारियों में से कोई भी मणिपुर से नहीं है और उनके पास पहले से किसी राज्य में कार्य का अनुभव नहीं है. समझा जाता है कि ये शीर्ष अधिकारी सीधे नई दिल्ली के संपर्क में हैं. यदि वे अब तक परिणाम देने में विफल रहे हैं, तो बीरेन सिंह को दोष नहीं दिया जा सकता. राष्ट्रपति शासन लगाना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा है क्योंकि यदि केंद्र शीघ्र सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल रहता है, तो यह सीधे तौर पर मोदी सरकार की क्षमता और योग्यता पर प्रश्नचिह्न लगाएगा.


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पीएम मोदी को बीरेन सिंह को क्यों बर्खास्त करना चाहिए?

हालांकि, पांच कारण ऐसे भी हैं जिनकी वजह से पीएम मोदी को मणिपुर के सीएम को बर्खास्त कर देना चाहिए. सबसे पहले, अगर 40-45 प्रतिशत आबादी – कुकी और अन्य जनजातियां – सीएम पर भरोसा नहीं करती हैं, तो उनके जाने तक स्थिति में बदलाव की संभावना नहीं है. केंद्र को इस खूनी संघर्ष को कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं मानना चाहिए. इसके लिए राजनीतिक हल की ज़रूरत है. एक मुख्यमंत्री जिसे पक्षपात करने वाला माना जाता है, वह इसे प्रदान नहीं कर सकता. स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व में विश्वास के संकट को देखते हुए, केंद्र के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना और युद्धरत पक्षों के साथ सीधी बातचीत करना बेहतर है. कहा जाता है कि जब अमित शाह ने चूड़ाचांदपुर का दौरा किया तो उन्हें कुकी-ज़ोमी आदिवासियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी. पीएम मोदी को मणिपुर में आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों का भरोसा हासिल है. उन्हें और अधिक सक्रिय सीधे तौर पर शामिल होने और जुड़ने की ज़रूरत है.

दूसरा, जबकि केंद्र समय के साथ संकट दूर होने का इंतजार कर रहा है, 11 सप्ताह बाद भी इसके कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं. बल्कि इससे पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों को भी इसके चपेट में लेने का खतरा बढ़ रहा है. जबकि मिज़ोरम सरकार मणिपुर के 12,000 से अधिक कुकी-ज़ोमी प्रवासियों से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में रहने वाले मैतेई लोगों ने पूर्व मिज़ो उग्रवादियों के एक संगठन पीस एकॉर्ड एमएनएफ एसोसिएशन द्वारा एक बयान जारी कर उन्हें “अपनी सुरक्षा के लिए” छोड़ने के लिए कहने के बाद पलायन करना शुरू कर दिया है .

इनमें से कई मैतेई कथित तौर पर असम की बराक घाटी से हैं. जैसे वे घर की तरफ जा रहे हैं, असम सरकार को चिंता होगी. असम में अनुमानित रूप से पांच लाख मणिपुरी मूल के लोग रहते हैं.

मई में मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद मेघालय के शिलांग में कुकी-मैतेई विवाद देखा गया था.

पूर्वोत्तर राज्यों में जैसे जनजाति समुदाय फैला हुआ है, एक स्थान पर कोई भी संघर्ष पूरे क्षेत्र में विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकता है.

तीसरा कारण जिसके लिए पीएम मोदी को अपनी मणिपुर सरकार को जाने देना चाहिए, वह प्रतिकूल राजनीतिक और चुनावी निहितार्थ है – जो कि बीजेपी के लिए एक सीएम को हटाने का एक आदर्श कारण है. जबकि सत्तारूढ़ दल ने मणिपुर सामूहिक बलात्कार की घटना पर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए व्हाटअबाउटरी या आरोप-प्रत्यारोप का सहारा लिया है, ऐसा लगता है कि उसे अपनी महिला निर्वाचन क्षेत्र की कोई परवाह नहीं है. हालांकि महिला-केंद्रित योजनाओं और कार्यक्रमों की एक श्रृंखला- एलपीजी कनेक्शन, शौचालय सुविधाएं, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, कोविड के दौरान मुफ्त आनाज और नल से जल योजना सहित अन्य ने पीएम मोदी को अपना प्रिय बना लिया है, लेकिन इसका असर कम होता दिख रहा है. पिछले हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मतदान के बाद और एग्जिट पोल सर्वेक्षणों से पता चलता है कि महिलाओं के बीच भाजपा का समर्थन आधार कैसे सिकुड़ रहा है और कांग्रेस का समर्थन बढ़ रहा है, जिसने दोनों राज्यों में कांग्रेस की जीत में बड़ा योगदान दिया है.

भाजपा यह तर्क दे सकती है कि लोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं, लेकिन सत्तारूढ़ दल को महिला मतदाताओं तक अपने संदेश की चिंता करनी चाहिए. इसने हरियाणा के मंत्री संदीप सिंह को बर्खास्त करने से इनकार कर दिया है, जबकि चंडीगढ़ पुलिस पिछले सात महीनों से उनके खिलाफ एक महिला एथलीट कोच के यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर रही है.

महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में सांसद बृजभूषण शरण सिंह का भाजपा द्वारा जोरदार बचाव अभी लोगों की स्मृति में था जब मणिपुर का भयावह वीडियो सामने आया. इस घटना पर भाजपा की आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति असंवेदनशील और निंदनीय लगती है. पार्टी को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या वह पीएम मोदी की महिला मतदाताओं को हल्के में ले रही है.

बीरेन सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने का चौथा कारण फिर से राजनीतिक है, जैसे आदिवासी वोटबैंक पर इसका प्रभाव. आदिवासी भारत की आबादी का 8.9 प्रतिशत हिस्सा हैं और चार चुनावी राज्यों जहां, बीजेपी का बड़ा दांव है- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना – उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है. आने वाले चुनावों में विपक्ष मणिपुर में आदिवासियों की रक्षा करने में भाजपा की विफलता के बारे में बात करेगा. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहले ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उनका ध्यान मणिपुर की घटना की ओर आकर्षित किया है और कहा है, “हम अपने साथी आदिवासी भाइयों और बहनों के साथ इस भयावह बर्बर तरीके से व्यवहार नहीं कर सकते और हमें ऐसा नहीं करने देना चाहिए.” गुजरात में आदिवासी संगठनों ने मणिपुर में हिंसा पर रविवार को बंद का आह्वान दिया था. बेशक, कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया. भाजपा को सोचना चाहिए कि विपक्ष इन मुद्दों को चुनावों में भरपूर इस्तेमाल करेगा.

अंतिम, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएम मोदी को बीरेन सिंह सरकार को बर्खास्त करना चाहिए क्योंकि वह अभी उस मजबूत और निर्णायक नेता की तरह नहीं दिख रहे हैं जिसके लिए लोगों ने 2014 में वोट करना शुरू किया था. वह मणिपुर में संकट को हल करने में ढुलमुल, असहाय और अनभिज्ञ नजर आ रहे हैं.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : पूजा मेहरोत्रा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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