प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने ताजा संबोधन में एक बार फिर से विकास का नारा दिया है. इस बार वह नारा जम्मू-कश्मीर के लिए है. कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में विभाजित करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में कहा कि ये क़दम विकास के लिए उठाया गया है.
40 मिनट के संबोधन में उन्होंने लगभग चालीस बार विकास का ज़िक्र किया. उन्होंने कश्मीर के लोगों से सुशासन और केंद्र की ओर से ज्यादा मदद देने का वादा किया. उन्होंने इस क्रम में अनुच्छेद 370 को विकास के मार्ग की बड़ी बाधा करार दिया और ये समझाने की कोशिश की कि इस बाधा के हटने के बाद वहां का विकास होगा.
विकास का वादा और हकीकत
ऐसा ही वादा उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश से किया था. हमेशा से देश के विकसित राज्यों में रहे गुजरात को एक मॉडल की तरह पेश करते हुए उन्होंने भविष्य की एक गुलाबी तस्वीर पेश की. देश की एक बड़ी आबादी ने उनके वादे पर यक़ीन करते हुए उनके पक्ष में वोट कर दिया था. वह वादा जमीन पर किस हद तक उतर पाया, इसकी समीक्षा 2019 के चुनाव से पहले नहीं की गई और एक बार फिर से विकास का स्लोगन दे दिया गया.
भारत की अर्थव्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है. सरकार, आरबीआई और कारपोरेट जगत के अंदर से लगातार चिंता के स्वर सुनाई दे रहे हैं. पांच ट्रिलियन इकॉनॉमी के ख्वाब को झुठलाते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर दो पायदान नीचे खिसक चुकी है. पहले से ही संदिग्ध विकास दर नीचे जा रही है. निर्माण क्षेत्र पिछड़ चुका है, निर्यात में गिरावट आई है. रोज़गार की दर में भारी कमी हुई है. अर्थव्यवस्था के जानकारों के बीच बहस चल पड़ी है कि क्या देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है.
देश की जनता को तो समझाया जा सकता है कि विकास हो रहा है. लेकिन आंकड़े उसकी पुष्टि करने से इनकार कर रहे हैं.
यह भी पढ़ेंः राज्य के रूप में जम्मू कश्मीर के अंत से उठते संवैधानिक सवाल
बाकी राज्यों के मुकाबले जम्मू-कश्मीर नहीं है पिछड़ा राज्य
नरेंद्र मोदी के कश्मीर पर दिए गए भाषण से एक सवाल ये भी पैदा होता है कि क्या सचमुच अनुच्छेद 370 ही किसी राज्य या इलाके के विकास की प्रमुख बाधा है. इस तर्क के आधार पर तो बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों (बीमारू राज्य की संज्ञा इन्हें दी गई है) को विकसित होना चाहिए. इन राज्यों में तो कभी अनुच्छेद 370 नहीं रहा. इनमें से ज्यादातर राज्यों में बार-बार बीजेपी की सरकार बनी है या बीजेपी शासन में रही है.
दिप्रिंट में रुक्मिणी एस. ने एक शोधपूर्ण लेख में बताया है कि तमाम उथल-पुथल के बावजूद जम्मू-कश्मीर ने विकास और मानव विकास दोनों मानकों पर औसत या औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है. मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स, जो लोगों की गरीबी मापने का बेहतर पैमाना है, में जम्मू-कश्मीर देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 15वें नंबर पर था. शिशु मृत्यु दर के मामले में वह 21वें नंबर पर था. स्कूलों में हाजिरी के मामले में जम्मू-कश्मीर देश के 21 बाकी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बेहतर था. सिर्फ पेयजल की उपलब्धता के मामले में वह देश के सबसे पीछे के राज्यों में है.
जम्मू कश्मीर में शिशु जन्म दर देश में न्यूनतम है और वहां लोग औसतन 73.5 साल जीते हैं. औसत उम्र का आंकड़ा यूपी के लिए सिर्फ 64.8 साल है. प्रति व्यक्ति स्टेट जीडीपी 62 हजार रुपए से ज्यादा है जो बिहार से ढाई गुना ज्यादा है. मानव विकास के मानकों पर तो जम्मू-कश्मीर का स्थान गुजरात से भी बेहतर है.
ये तमाम आंकड़े यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि विकास और अनुच्छेद 370 का वैसा कोई सीधा संबंध नहीं है, जैसा कि नरेंद्र मोदी बताना चाहते हैं. जम्मू कश्मीर बुनियादी ढांचे और रोजगार के सृजन में पीछे हैं. लेकिन अनुच्छेद 370 हट जाने से ये समस्याएं कैसे दूर होंगी, इसका तर्क समझना मुश्किल है. साथ ही ये सवाल भी है कि क्या सरकार ने पिछले वर्षों में इस दिशा में कोई पहल की है? जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास करने के लिए आगे भी सही नीतियों और निवेश की जरूरत होगी. अनुच्छेद 370 हटने भर से वहां विकास नहीं होने लगेगा.
कश्मीर और विकास का वादा
ऐसे में जब नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि अब वहां विकास होगा, तो क्या लोगों को उनकी बातों पर भरोसा नहीं कर लेना चाहिए? इसमें समस्या है. कश्मीरियों ने पिछले पांच साल में देख लिया है कि उनके राज्य के विकास के प्रति केंद्र का रवैया क्या रहा है. एक आर्थिक पैकेज की चर्चा बार-बार की जाती रही है. नरेंद्र मोदी ने 2015 में राज्य के विकास के लिए 80,000 करोड़ रुपए देने की घोषणा भी की थी. उसके बाद बीजेपी राज्य सरकार का हिस्सा भी बनी. लेकिन उसका पूरा ध्यान अपने वोट बैंक को मज़बूत करने पर रहा, न कि वादी में अमन-चैन कायम करके तरक्की की राह खोलने में.
और तो और कश्मीर में भीषण बाढ़ के बाद जब लोग राहत के लिए केंद्र सरकार की तरफ देख रहे थे, तब भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. केंद्र की बीजेपी सरकार और कश्मीरी अवाम के बीच अविश्वास की गहरी खाई मौजूद है. कट्टर हिंदुत्व की लहर पर सवार मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के प्रति क्या रुख़ अख्तियार कर रखा है, इससे वे वाकिफ़ हैं. बीजेपी और उससे जुड़े संगठन देशभर में कश्मीरियों के ख़िलाफ़ जो माहौल बना रहे हैं, वह उनके दिमाग़ पर हावी है.
मोदी ये सब भलीभांति जानते हैं, इसीलिए उन्होंने अपने 40 मिनट के संबोधन में कम से कम 30 बार विश्वास और भरोसे की बात की. उन्हें पता है कि लोग उन पर भरोसा नहीं करते. बल्कि जिस तरह से उन्होंने धारा 370 को ख़त्म किया उससे दूरियां और बढ़ गई हैं, विश्वास के पुल टूट गए हैं.
यह भी पढ़ेंः पीएम के संबोधन से गायब होने पर कश्मीरी पंडित नाराज़, दोहराई घाटी में केंद्र शासित प्रदेश की मांग
सच तो ये है कि मोदी और उनके सिपहसलार कश्मीरियों की मनोदशा को समझ ही नहीं रहे या जान-बूझकर नासमझ बनने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें बची-खुची स्वायत्तता से भी वंचित कर दिया गया है. यहां तक कि राज्य का दर्जा भी छीन लिया गया है. ज़ाहिर है कि वे और भी ज़्यादा आहत और अपमानित महसूस कर रहे होंगे. मोदी ने कुछ समय बाद राज्य का दर्ज़ा बहाल कर देने की बात कही है. राज्य का दर्ज़ा उनके लिए कोई मायने नहीं रखता. इसलिए वे मोदी के इस झुनझने के बारे में सोचेंगे भी नहीं.
अब सोचिए कि इस मनोस्थिति में कश्मीरी विकास के झांसे में भला क्यों आएंगे? फिर इतना तर्क तो सामान्य बुद्धि वाला आदमी भी समझता ही है कि अगर अनुच्छेद 370 ही विकास में बाधा थी तो उन राज्यों का विकास क्यों नहीं हुआ, जहां वह लागू नहीं था. बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों के 70 साल बाद भी क्यों पिछड़े हुए हैं?
(लेखक पत्रकारिता के प्रोफेसर हैं)
क्यूंकि दूसरे राज्यों में अतंकवादी और पत्थरबाज नहीं है