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Thursday, 31 October, 2024
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संसद में क्यों जरूरी है प्रश्नकाल और इसे अनदेखा क्यों नहीं किया जा सकता

प्रश्न काल संसद की कार्यवाही का वह हिस्सा है जिसको इलेक्ट्रॉनिक और प्रिन्ट मीडिया द्वारा सबसे अधिक महत्व और कवरेज दिया जाता है. सरकार केवल चुनाव के समय ही जनता के प्रति जवाबदेह नही होती अपितु उसे व्यवस्थापिका के द्वारा दो चुनावों के बीच के अंतराल में भी उत्तरदायी बनाया जाता है. इसलिए सदन में प्रश्नकाल जरूरी हैं.

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संसद में प्रश्नों और प्रश्नकाल का अत्यधिक महत्व है क्योंकि ये प्रशासन से संबंधित मुद्दों पर होते हैं और सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करते हैं. प्रश्न पूछने का उद्देश्य ही है सरकार के द्वारा लिए गए निर्णयों पर जानकारी प्राप्त करना और उस पर समुचित कार्यवाही के लिए दबाव डालना. संसद में पूछे गए प्रश्नों और उन पर होने वाली चर्चा, वाद – विवाद पर पूरे देश की निगाहें रहती हैं.

संसद का अल्पकालीन मॉनसून सत्र 14 सितंबर 2020 से प्रारंभ हो गया. सत्र शुरू होने से पहले ही यह प्रश्न काल को स्थगित रखने पर अनेक विवादों में घिर गया. क्या है ये संसदीय प्रश्न और प्रश्न काल.

संसदीय शासन प्रणाली में प्रश्न वह सबसे महत्वपूर्ण और प्रत्यक्ष साधन है जिसके माध्यम से व्यवस्थापिका या संसद कार्यपालिका अथवा सरकार को उत्तरदायी ठहराती है. शायद यही कारण है कि प्रश्न काल संसद की कार्यवाही का वह हिस्सा है जिसको इलेक्ट्रॉनिक और प्रिन्ट मीडिया द्वारा सबसे अधिक महत्व और कवरेज दिया जाता है. संसदीय शासन प्रणाली का यह उपकरण यानि प्रश्न ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था की देन है और भारत ने संसदीय शासन को ब्रिटेन से अपनाया है. ब्रिटेन की संसद के उच्च सदन हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहला प्रश्न सन 1721 में अर्ल कूपर के द्वारा पूछा गया जो साउथ सी कंपनी के लेखाकार रॉबर्ट नाइट द्वारा अपनी कंपनी के लेखों में किये जाने वाले गबन और झूठे आंकड़ों के बारे में था. चूंकि ब्रिटेन की संसद नें इस कंपनी को 1720 में एक अध्यादेश द्वारा व्यापारिक अधिकार प्रदान किये थे. अतः अर्ल कूपर नें इस संबंध में एक नोटिस देकर हाउस ऑफ लॉर्ड्स से इस पूरे प्रकरण पर जानकारी मांगी.

यह ब्रिटेन के इतिहास में ऐसा मामला था जिसमें छानबीन करने के लिए संसदीय समिति की स्थापना करनी पड़ी. संभवतः उस समय तक संसदीय प्रश्नों की किसी व्यवस्था का उल्लेख ब्रिटिश संसद के नियमों में नहीं था परंतु धीरे- धीरे संसद में सरकार से प्रश्न पूछने की परंपरा प्रारंभ हो गई. ये प्रश्न जो प्रारम्भिक दौर में सामान्य मुद्दों पर पूछे जाते थे उनमें 1760 के बाद एक बड़ा परिवर्तन आया कि विपक्ष ने बड़े राजनीतिक मुद्दों पर भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया.

संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न संसद के हाथों में प्रभावशाली अस्त्र बन गए जिनके माध्यम से विपक्ष द्वारा सरकार को जवाबदेह बनाया जाने लगा. हाउस ऑफ कॉमन्ज़ में प्रश्न सबसे पहले केवल मौखिक रूप में पूछे जाते थे लेकिन सन 1902 से लिखित प्रश्न भी पूछे जाने लगे. वर्ष 1902 में ही प्रश्न काल का समय 40 मिनट निश्चित किया गया. वर्तमान समय में हाउस ऑफ कॉमन्ज़ में प्रश्न काल की अवधि एक घंटा है तो हाउस ऑफ लॉर्ड्स में आधे घंटे का प्रश्न काल होता है. ब्रिटिश संसद में प्रश्नों और उनसे संबंधित नियमों और प्रक्रियाओं का विकास होने में दो सौ वर्षों से भी अधिक का समय लगा.


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भारत में संसदीय प्रश्न और उनके प्रकार

संसदीय शासन प्रणाली में संसद का कोई भी सदस्य मंत्रि परिषद से प्रशासन के किसी भी मामले पर प्रश्न पूछ सकता है. प्रश्न चार प्रकार के होते है, तारांकित, अतारांकित, अल्प सूचना प्रश्न और निजी सदस्यों के लिए प्रश्न. तारांकित प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप में दिया जाता है और इनमें अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं. अतारांकित प्रश्नों का जवाब लिखित रूप में दिया जाता है और इन्हें सभा पटल पर रख दिया जाता है. सदस्य अविलम्बनीय लोक महत्व से संबंधित विषयों पर 10 दिन से कम की पूर्व सूचना पर भी प्रश्न पूछ सकते हैं जिन्हें अल्प सूचना प्रश्न कहते हैं. अल्प सूचना प्रश्नों को तभी ग्रहण किया जाता है जब वे अविलम्बनीय लोक महत्व के हों और संबंधित मंत्री इसका उत्तर देने के लिए सहमत हों. अल्प सूचना प्रश्न पर चर्चा साधारणतया प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद होती है. संसद में प्रश्न निजी सदस्यों को भी संबोधित किये जा सकते हैं. उस प्रश्न का संबंध किसी विधेयक, संकल्प या सभा में कार्य संचालन से संबंधित अन्य ऐसे मामलों से संबंधित होना चाहिए जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी है.

किस प्रकार के प्रश्नों को संसद में पूछा जा सकता है इस विषय में लोक सभा और राज्य सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली में विस्तृत नियम हैं. जैसे कि प्रश्न संक्षिप्त और सटीक हो, उसमें कोई तर्क या अनुमान ना हो, किसी शब्द में व्यंग्य ना हो, किसी के चरित्र या आचरण पर कोई आक्षेप ना हो. प्रश्न किसी अमूर्त विषय पर ना पूछे जाएं, ना ही उनमें किसी प्रकार की राय प्रकट की जाए. विस्तृत नीति संबंधी लंबे प्रश्न नहीं पूछे जाएं इत्यादि. उन विषयों पर भी प्रश्न नहीं पूछे जा सकते जहां मामला न्यायपालिका में विचाराधीन है अथवा प्रश्न का उत्तर देना राष्ट्रीय हित में नहीं है आदि. जब कोई प्रश्न स्वीकार कर लिया जाता है तो संबंधित मंत्री को उसका उत्तर देना पड़ता है. किसी प्रश्न का उत्तर ना दिए जाने की स्थिति में मंत्रियों को उसका कारण भी स्पष्ट करना पड़ता है. संसद में पूछे गए सभी प्रश्नों और उनके उत्तरों को संसद की कार्यवाही में रिकार्ड किया जाता है.

प्रश्न काल

प्रश्नों का उत्तर देने के लिए व्यवस्थापिका या संसद में प्रश्न काल की व्यवस्था होती है. प्रश्न काल संसद की कार्यवाही में एक निश्चित समय होता है जिसमें केवल प्रश्न पूछे जाते हैं. भारत की संसद के दोनों सदनों लोक सभा और राज्य सभा में जब सत्र चल रहा होता है तो हर दिन बैठक के प्रारंभ में एक घंटे तक प्रश्न काल चलता है. प्रश्न काल में पूछे जाने वाले प्रश्नों पर सदस्यों द्वारा पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं जो कि किसी तथ्य के स्पष्टीकरण के लिए अध्यक्ष या सभापति की अनुमति से पूछे जा सकते हैं. भारत की संसद में सभी मंत्रालयों द्वारा उत्तर देने के लिए अलग -अलग दिवस निर्धारित किये गए हैं.

ब्रिटिश संसद की एक विशिष्ट परंपरा ‘प्राइम मिनिस्टर क्वेशचन टाइम’ है जो भारत में नहीं है. ब्रिटेन में जब संसद की बैठकें चल रही होती हैं तो प्रत्येक बुधवार को 12 से 12.30 अपराह्न के बीच स्वयं प्रधान मंत्री संसद सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हैं. इसमें अधिकतर सामयिक राजनीतिक विषयों पर प्रश्न पूछे जाते हैं और विपक्ष के नेता को कम से कम 6 अनुपूरक प्रश्न पूछने का अधिकार होता है. सैद्धांतिक रूप से प्रधान मंत्री को पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में पूर्व जानकारी नहीं होती लेकिन व्यवहार में उन्हें सरकार के विभागों द्वारा अपेक्षित विषयों पर पहले से जानकारी दे दी जाती है. यह ब्रिटेन की संसदीय कार्यवाही का सबसे लोकप्रिय और जीवंत भाग है.

संसदीय प्रश्नों के कार्य और उद्देश्य

संसद के सदस्य पूरे देश से निर्वाचित होकर आते हैं. प्रश्नों के माध्यम से वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं को सामने लाते हैं, वहां के विकास कार्यों के बारे में सरकार से जानकारी लेते हैं. प्रश्नों के माध्यम से ही वे सरकार की प्रशासनिक मशीनरी की विफलता या भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करते हैं, देश के सामने व्याप्त राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं, मुद्दों को सामने लाते हैं. कई बार ऐसे प्रश्न भी पूछे जाते हैं जिनके माध्यम से कोई बड़ा घोटाला सामने आता है और सरकार को जांच आयोग आदि नियुक्त करने को विवश होना पड़ता है.

ब्रिटेन में डी.एन.चेस्टर और नोना बोरिंग नें संसदीय प्रश्नों पर सन 1962 में लिखी गई अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘क्वेशचनस इन पार्लियामेंट’ में संसदीय प्रश्नों के दो प्रमुख उद्देश्य बताए थे. प्रश्नों का पहला उद्देश्य है सरकार से किसी विषय पर जानकारी प्राप्त करना और दूसरा उद्देश्य है सरकार पर कोई कार्यवाही करने के लिए दबाव डालना. उन्होंने यह तर्क दिया कि संसदीय प्रश्न कम से कम संसद के भीतर सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करते हैं.

जब भारतीय संविधान में शासन के स्वरूप को लेकर संविधान सभा में इस बात पर बहस चल रही थी कि भारत के लिए अमेरिका जैसा अध्यक्षात्मक शासन ठीक रहेगा जो स्थायी होता है या फिर ब्रिटेन जैसा संसदीय शासन जो उत्तरदायी होता है. तो उस समय संविधानवेत्ता डॉक्टर अंबेडकर ने अपने तर्क देते हुए कहा था कि हम संसदीय शासन को इसलिए अपनाना चाहते है कि इसमें सरकार का उत्तरदायित्व प्रतिदिन भी है और एक निश्चित समय पर भी. इसमें सरकार केवल चुनाव के समय ही जनता के प्रति जवाबदेह नही होती अपितु उसे व्यवस्थापिका के द्वारा दो चुनावों के बीच के अंतराल में भी उत्तरदायी बनाया जाता है. व्यवस्थापिका ये कार्य उन संसदीय उपकरणों के माध्यम से बखूबी कर सकती है जो उसे संविधान द्वारा प्रदान किये जाते हैं जिनमें अनेक प्रकार के प्रस्ताव पारित करना है जैसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव, अविश्वाश प्रस्ताव आदि, समिति व्यवस्था और सबसे बढ़कर प्रश्न पूछने का अधिकार है.

निःसंदेह कई अन्य स्थानों पर भी सरकार को जवाब देना पड़ता है, उनमें प्रमुख हैं, सार्वजनिक सभाएं, टेलिविज़न, समाचारपत्र, सोशल मीडिया आदि परंतु हमें ये याद रखना होगा कि संसदीय शासन में संसद ही वह स्थान है जहां जनता के प्रतिनिधि स्वयं विराजमान होते हैं. लोकतंत्र शासन की अप्रत्यक्ष प्रणाली में जनता संसद के लोकप्रिय सदन लोक सभा को चुनती है और सरकार उसके माध्यम से जनता के प्रति सीधे सीधे जवाबदेह है. सैद्धांतिक रूप में उसे शासन की शक्ति जनता से ही प्राप्त होती है. राज्यसभा के सदस्य भी राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके भी गुरुत्तर दायित्व हैं.

इसलिए संसद के सदस्यों द्वारा सरकार से पूछे गए प्रश्नों का बहुत महत्व है. एक संस्था के रूप में संसद अपनी उपयोगिता और महत्ता को स्पष्ट करती है संसदीय शासन के प्रमुख उपकरणों जैसे प्रश्न काल, संसदीय समितियों आदि का सम्यक उपयोग करके. संसदीय शासन प्रणाली में संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों और प्रश्न काल के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता.


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(लेखिका डॉक्टर सुमन मिश्रा ने भारत और ऑस्ट्रेलिया में व्यवस्थापिका के संसदीय उपकरणों प्रश्न काल और समिति व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड से पीएचडी उपाधि प्राप्त की है)

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