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Friday, 29 March, 2024
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प्रियंका गांधी को क्यों मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ना चाहिए

प्रियंका गांधी चुनाव नहीं जीतेंगी, लेकिन कम से कम ऐसा लगेगा कि देश में विपक्ष है.

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दुविधा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हमेशा जवाब देने के लिए इस्तेमाल करते हैं कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी.

दुविधा ही ऐसी चीज है, जो कांग्रेस के पास है. कांग्रेस द्वारा वर्षों, महीनों और सालों से ऐसा माहौल बनाया जाता है लेकिन, यह दिवाली के दगे पटाखों कि तरह है जो फ़ुस्स हो जाता है.

इसका एक ताजा उदाहरण दिल्ली में कांग्रेस-आम आदमी पार्टी (आप) के साथ प्रस्तावित गठबंधन था. दूसरा, यह है कि प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश करने की अफवाह इतने सालों तक चली आ रही है जिसका कोई मतलब नहीं है.

कांग्रेस ने मोदी के पहले कार्यकाल के अंत में प्रियंका को लॉन्च किया लेकिन ये किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं डालेगा. प्रियंका गांधी और उनके भाई ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव पर नज़र गड़ाए हुए हैं. जिसका मतलब यह है कि उन्हें यह पता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसी तरह से कांग्रेस हर समय खुद को कमतर आंकती है.

कांग्रेस पार्टी के फ़िज़ूल बातों की सूची लंबी है. लेकिन कुछ चीजें हैं जो समय के साथ उतनी ही खराब हैं. जब लोहा गर्म होता है, तो कांग्रेस पार्टी नींद में चली जाती है.

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घबराइए मत

वाराणसी से चुनाव लड़ने के बारे में पिछले महीने रायबरेली में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इत्तफ़ाक़ से कहा था. सस्पेंस बनाने के बाद उन्हें अब घबराना नहीं चाहिए. पहले से ही भाजपा के प्रवक्ता खुद कहते हैं कि न्यूज चैनल प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव लड़ने के विचार को छुपा रहे हैं. वे बाद में यह कह सकते हैं कि उन्होंने अपना उत्साह खो दिया है.

अगर, अब प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला नहीं करती हैं, तो इससे वाराणसी और भारत के अलग जगहों पर मोदी को और भी मजबूत मिलेगी. लेकिन, यह संदेश जायेगा कि कांग्रेस के पास मोदी के करिश्मे से लड़ने के लिए कोई नहीं है.

यह संभावना बहुत कम है कि अगर प्रियंका मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़तीं हैं तो जीत पाएंगी. लेकिन, वह नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर जरूर देंगी. कांग्रेस के चहेते स्थानीय नेता अजय राय कहते हैं ‘अगर प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं तो लड़ाई जरूर होगी.’ वह जीत के अंतर को कम जरूर कर सकती हैं. यह चुनाव लड़ाई के अंतर को लेकर होगा. ऐसा कोई कारण नहीं है कि वाराणसी के लोग दूसरे कार्यकाल के लिए संभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनना नहीं चाहेंगे.

प्रियंका गांधी का नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने से यह लाभ होगा कि यह चुनाव एक वर्चस्व की लड़ाई की तरह दिखाई देगा. यह न केवल कांग्रेस बल्कि पूरे देश में विपक्षी ताकतों को उजागर करेगा. देश में विपक्ष की अनुपस्थिति की प्रचलित भावना बदल जाएगी.

प्रियंका गांधी से कौन डरता है?

यह कहना ही नहीं है कि प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जाना चाहिए या नहीं. लेकिन कम से कम एक हाई-प्रोफाइल प्रियंका गांधी वाड्रा बनाम नमो अभियान कांग्रेस की स्थिति को बेहतर बनाने में मदद करेगा. वो भी ऐसे समय में जब भाजपा ने जनसंवाद और राजनीतिक प्रचार के साधनों पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है. वाराणसी से प्रियंका गांधी द्वारा चुनाव लड़ने से कांग्रेस को मदद मिलेगी वह कांग्रेस पार्टी को सुर्खियों में लाने, मीडिया कवरेज प्राप्त करने और लोगों के दिमाग में जगह बनाने में मदद करेंगी.

23 मई को हमें यह सुनने के लिए तैयार होना चाहिए कि प्रियंका गांधी भी फ्लॉप हो गई हैं, क्योंकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में क्रांति देखने को नहीं मिली. वाराणसी से चुनाव लड़कर वह अपना करिअर बचा सकती हैं. वह एक राजनेता के रूप में अपनी छवि स्थापित कर सकती हैं, जो कम से कम एक लड़ाई को खड़ा करने के लिए तैयार है.

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 2014 में भले ही वाराणसी से हार गए हों, लेकिन वहां के लोगों को अब भी याद है कि उन्होंने क्या चुनौती दी थी. ‘एक स्थानीय पत्रकार ने मुझे बताया कि वाराणसी के लोग किसी को निराश नहीं करते हैं. यहां के लोग हमेशा बाहरी लोगों का स्वागत करते हैं. वाराणसी संभावनाओं का शहर है. कौन जानता है कि असंभव संभव हो सकता है? वाराणसी भाजपा का मजबूत गढ़ है, लेकिन कांग्रेस ने 2004 के लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक जीत हासिल की थी.


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22 से 29 अप्रैल के बीच नामांकन दाखिल किया जायेगा. वाराणसी में आखिरी चरण में 19 मई को मतदान होना है. अगर प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव लड़ने का विचार कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा देने वाला है, तो पहले ही देर हो चुकी है. सात में से दो चरण के चुनाव खत्म हो चुके हैं. समय ख़त्म हो रहा है लेकिन, कांग्रेस अभी भी जल्दबाजी में नहीं है. अगर इस चुनाव में नहीं हुआ तो अगले चुनाव में जरूर हो सकता है.

राहुल गांधी कहते हैं कि सस्पेंस कोई बुरी बात नहीं है. यह हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की प्रसिद्ध पंक्ति में से एक की याद दिलाता है कि निर्णय न लेना भी एक निर्णय है. प्रियंका गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इसके लिए तैयार हैं. लेकिन पार्टी अध्यक्ष और प्रिय भाई राहुल गांधी विचार को दबाए हुए हैं.

सबसे ज्यादा संभावना यह है कि वह प्रियंका से कहेंगे कि मोदी को वाराणसी में बिना किसी परेशानी के जीतने दिया जाये. आखिरकार, राहुल गांधी को प्रियंका गांधी की सफलता से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा.

 (इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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