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Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतक्यों विपक्षी अलाप रहे हैं ईवीएम का राग, जबकि वे भी जानते हैं कि सच कुछ और है

क्यों विपक्षी अलाप रहे हैं ईवीएम का राग, जबकि वे भी जानते हैं कि सच कुछ और है

पार्टियों के शीर्ष नेताओं की कई तरह की मजबूरियां हैं, जिनमें से एक पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बनाए रखना भी है.

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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को, गालिब ये खयाल अच्छा है- मिर्जा गालिब

पश्चिम बंगाल युवा कांग्रेस की यूनिट ने 21 जुलाई 1993 को कोलकाता के राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की घेराबंदी कर रखी थी और प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शन करने वालों की मांग यह थी कि केवल उन्हीं मतदाताओं को मतदान की अनुमति दी जाए, जिनके पास भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए गए फोटो वाले पहचान पत्र हों. युवा कांग्रेस यह तर्क दे रहा था कि वाम मोर्चे की सरकार द्वारा ‘वैज्ञानिक धांधली’ को रोकने के लिए यही एक रास्ता है.

विरोध कर रहे युवा कांग्रेसियों पर पुलिस ने गोलियां बरसाईं और इसमें 13 लोगों की मौत हो गई, कई अन्य घायल हो गए. इस गोलीबारी के दौरान युवा कांग्रेस नेताओं ने अपने प्रमुख को घेर लिया, उन्हें कवर किया और हिंसा से बचाया, जिन्हें बचाया गया उनका नाम ‘ममता बनर्जी’ था.

बाद में ममता ने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई. वह आज भी 21 जुलाई को एक विशाल रैली करती हैं और इसे शहीदी दिवस के रूप में मनाती हैं. रविवार को कोलकाता में शहीदी दिवस की रैली के दौरान एक बार फिर ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी पर कई सवाल दागे और पूछा कि क्या इस बार का चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष था. उन्होंने भाजपा पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में हेर-फेर सहित कई चीजों का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘मैं अब भी विश्वास करती हूं कि चुनाव (लोकसभा) के परिणाम एक रहस्य है. हम चाहते हैं कि चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाएं और ईवीएम से नहीं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी और यहां तक ​​कि यूरोपीय देशों में ईवीएम का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है?’


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अगर ईवीएम में जोड़-तोड़ के बाद पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 18 सीटें जीती हैं तो क्या सड़क पर लड़ाई लड़ने वाली ममता बनर्जी अपना गुस्सा स्टेज के भाषण और रैली तक सिमित रखतीं? फिर वो रैली को दिल्ली तक ले आतीं, वह धरना प्रदर्शन करतीं, पूरे पश्चिम बंगाल में वह कैंपेन चलातीं. वह स्वर्ग से नर्क तक हंगामा कर देतीं.

यह सच है कि हर विपक्षी पार्टी ने ईवीएम साजिश की बात उड़ाई है. अगर वह सचमुच मानते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ियां की जा रही हैं तो क्या सचमुच चुप बैठते? मायावती आरोप लगाती रही हैं कि भाजपा ने ईवीएम में गड़बड़ी कर उत्तर प्रदेश में जीत हासिल की है. अरविंद केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 में हार का ठीकरा भी ईवीएम की गड़बड़ी पर ही फोड़ा था. कांग्रेस पार्टी भी कई बार ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ती रही है.

ईवीएम पर लगाया जाने वाला यह बहुत बड़ा आरोप है. अगर यह सही भी है तो क्या विपक्षी दल सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर और रैली में भाषण देकर इस मामले को छोड़ देंगे. नहीं, फिर यह चुप नहीं बैठेंगे बल्कि वह वैसा ही करेंगे जैसा की ममता बनर्जी ने 21 जुलाई 1993 में किया था.

इसीलिए, विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम साजिश के सिद्धांतों का मामला उत्सुकता जगाता है. सच है कि जनता को इस तरह बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि यह जनता है जिसने भाजपा को वोट दिया है. कौन कह सकता है कि बंगाल में इस बार भाजपा ने बड़ी छलांग नहीं लगाई है.

पार्टियों के शीर्ष नेताओं की कई तरह की मजबूरियां हैं, जिनमें से एक पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बनाए रखना भी है. वे साजिश के सिद्धांतों पर विश्वास करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं, क्योंकि उनके पास पहले से ही राजनीति का एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण है. यदि किसी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता आशा खो देते हैं तो पार्टी खत्म हो जाती है, उन्हें मतदाताओं को रिझाने और उन्हें मनाने के लिए अपने उत्साह के स्तर को बढ़ाए रखने की जरूरत होती है.

रविवार को हुई रैली में ममता बनर्जी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से यही कहा कि तृणमूल कांग्रेस अपने मतदाताओं को भाजपा के लिए खोने नहीं जा रही है. लोग हमारे साथ हैं इसलिए निराश होने की जरूरत नहीं है. यह कहानी पार्टी कार्यकर्ताओं को खरीदे जाने की कहानी है अगर ऐसा नहीं होता है तो वह भाजपा को नुकसान पहुंचाएंगे.

2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती एक भी सीट नहीं जीतीं थी. जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 19 सीटों पर ही जीत हासिल की थी. ऐसे में उनके प्रशंसक कैडर के प्रभाव की कल्पना करना मुश्किल है. उन्होंने भी कहा कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई है. वहीं उनकी पार्टी नियमित रूप से मतदाताओं को बताती है कि भाजपा आरक्षण को समाप्त कर देगी. जब सच्चाई बहुत असुविधाजनक होती है, तो आपको बेहतर महसूस करने के लिए झूठ की आवश्यकता होती है. यह एक प्लेसबो है.


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आम आदमी पार्टी ने 2017 का पंजाब विधानसभा चुनाव अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में लड़ा था. यह वही चुनाव है जब आम आदमी पार्टी चुनाव जीतने वाली थी लेकिन कुछ गलतियों की वजह से वह यह चुनाव हार गई और सारा ठीकरा केजरीवाल पर फूटा. पंजाब के कार्यकर्ता, दिल्ली और देशभर के कार्यकर्ता केजरीवाल पर उंगली उठाने लगे, लेकिन वे ऐसा कर पाते उससे पहले केजरीवाल ने उनके दिमाग में कई सारे डाउट डाल दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं इंजीनियर हूं और मैं यह जानता हूं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई है.

यह चाल इतनी सफल रही है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग ईवीएम षड्यंत्र के सिद्धांतों पर विश्वास करने लगे हैं. वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर भाजपा विरोधी मतदाता तक, ईवीएम पर शक करने वालों की बड़ी संख्या मिल सकती है. हर कोई इसको संदिग्ध नजरों से देख रहा है, वैसे चुनाव में विश्वास खोने के लिए लिए यह काफी नहीं है. घबराहट चिंता को नियंत्रित करने में भी मदद करती है.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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