महिलाओं के मध्य छिपी है
सौ-सौ डाके डाले उसने
एक-एक की नाक तराशी
एक-एक की कुतर गई है कान
दसियों की तो आंखे फोड़ीं
बदल-बदलकर घोड़े उड़ती
जिला बदलती ही रहती
फूलन देवी दुर्गामाता की बेटी है
कौन सामना कर सकता है !
दाएं-बांए बीसों को ठंडा करती है
कारतूसों की मालाओं से हमने उसको पहचाना था
मैनपुरी के एक गांव में
ठाकुर के घर डटी हुई थी फूलन देवी
लगता था, हां, सिंहवाहिनी
प्रकट हुई है
मैनपुरी के एक गांव में !
(नागार्जुन की कविता फूलन देवी)
श्रेष्ठ विद्रोहिणी और पूर्व सांसद फूलन देवी (10 अगस्त, 1963 – 25 जुलाई, 2001) की 18वीं बरसी पर हमें उन्हें नारीवादी आंदोलन और जाति मुक्ति के प्रतीक रूप में याद करना चाहिए, जिससे समाज में खासकर पीड़ित महिलाओं के बीच उनको लेकर सकारात्मक संदेश दिया जा सके. टाइम मैगजीन ने जब दुनिया की सबसे महान महिला विद्रोहियों की लिस्ट बनाई, तो उसमें चौथे नंबर पर फूलन देवी को शामिल करके इस व्यक्तित्व को वैश्विक स्वीकृति दी. भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने जिस स्वाभिमान और आत्मसम्मान की परंपरा शुरू की थी, उसका ही एक रूप फूलन देवी के व्यक्तित्व में देखा जा सकता है.
फूलन देवी के इसी स्वाभिमानी व्यक्तित्व को याद करते हुए हम नागार्जुन द्वारा लिखित कविताओं के माध्यम से उनके संघर्ष का अवलोकन करेंगे, जिससे यह पता चल सके कि साहित्यकार की नज़र में फूलने देवी का चरित्र कैसा था?
हिन्दी साहित्य में नागार्जुन का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. वे कविता में प्रगतिशील धारा के कवियों की श्रेणी में अग्रणी स्थान पाते हैं. उन्होंने अपनी कविताओं का संसार सामान्य जनता के संघर्ष और जिजीविषा से रचा है. उनकी कविता के संसार में फूलन देवी को भी स्थान प्राप्त है. उन्होंने फूलन देवी के हवाले से समाज के विकृत रूप को अपनी कविता में दर्ज़ किया है. उनकी संवेदनाओं को अपनी काव्यनुभूति के माध्यम से व्यक्त किया है. सामंतों, पूंजीपतियों और नेताओं के शोषण-दमन को देखते हुए उनका खुलकर विरोध किया है. इन तीनों वर्गों के खिलाफ जनता का पक्ष लेते हुए उनके खिलाफ मोर्चा खोला है और अपने नेह से सामाजिकता बनाए रखी है.
नागार्जुन ने अपनी संवेदना के धरातल पर विद्रोही नायिका फूलन देवी पर दो कविताएं लिखी है. पहली कविता ‘फूलन देवी’ और दूसरी कविता ‘फूलन-कथा’ है. ‘फूलन देवी’ कविता में नागार्जुन ने फूलन देवी का संघर्ष की भावना को दिखाया है, जिसमें फूलन देवी अपने ऊपर किए गए अत्याचारों का बदला लेती हैं. यह कविता 1980 में लिखी गई है. नागार्जुन ने ‘फूलन देवी’ कविता में फूलन देवी के चरित्र को दुर्गा की बेटी के रूप में दिखाया है.
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लेकिन एक बात यहां गौर करने वाली बात यह है कि दुर्गा की बेटी कहने से धार्मिकता का संबंध नहीं बल्कि स्त्री के संघर्षशील प्रचंड रूप से है. फूलन देवी का यह चरित्र तब का है जब वह सामाजिक उत्पीड़न का बदला लेने के लिए डकैत बनी थी. इस कविता में कवि ने तब के जीवन की व्याख्या की है. फूलन देवी अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैनपुरी जिले के एक गांव में ठाकुरों के बस्ती में बदले की भावना को लेकर डटी हुई हैं, सिंहवाहिनी के रूप में.
असल में इस कविता के अंतर्वस्तु में सामाजिक प्रताड़ना का विरोध दर्ज है. स्वाभिमान तथा स्त्री अस्मिता की चेतना निहित है, जिसे कवि फूलन देवी को सिंहवाहिनी की उपमा देकर बुराई का अंत करने वाली के रूप में देखते हैं. गौर करने वाली बात यह है कि चेतनाशील और स्वाभिमानी होना सबाल्टर्न समाज की मौखिक परंपरा में निहित है. इसलिए स्वाभाविक है कि फूलन देवी ने अपने आत्मसम्मान के साथ-साथ अपने समाज के आत्मसम्मान के लिए भी लड़ाई लड़ी.
दूसरी कविता ‘फूलन-कथा’ में नागार्जुन ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि समाज का नज़रिया फूलन देवी के प्रति किस तरह है. यह कविता नागार्जुन ने तब लिखी थी जब फूलन देवी लोकसभा की सांसद थी. बावजूद इसके फूलन देवी के प्रति समाज का नज़रिया काफी हद तक बदला नहीं. जिस समय फूलन देवी सांसद चुनी गई थीं, उस समय नारीवादी आंदोलन अपने लय में था लेकिन फूलन देवी का उसमें कोई जिक्र नहीं था और न आज है.
यह सामाजिक गैर-बराबरी सबाल्टर्न समाज के लिए कोई नई बात नहीं है. लेकिन साहित्यिक गैर-बराबरी ने तथाकथित नारीवादियों को किस दायरे में जकड़ रखा है, यह चिंतनीय विषय है? बहरहाल नागार्जुन ने फूलन देवी के सामाजिक-राजनीतिक जीवन की गाथा कही है. ‘फूलन-कथा’ में उनके राजनीतिक जीवन का पूरा सफर पेश किया गया है. नागार्जुन की पूर्व कविता (फूलन देवी) को अगर देखा जाए तो फूलन देवी के समानान्तर जीवन का ज़िक्र करते हुए आत्मपरिवर्तन का पूरा सार है ‘फूलन-कथा’ कविता में.
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मुख्य रूप से इस कविता में कवि ने फूलन देवी के राजनीतिक जीवन की व्याख्या की है. उन्हें स्त्री चेतना के रूप में दिखाया है, जो फूलन देवी का असल रूप है. बावजूद इसके समाज के कुछ लोग अभी भी उनको डकैत के रूप में देखते हैं और दहशत में रहते हैं. फूलन देवी कहती हैं-
अब मैं किसी की नाक
नहीं काटूंगी
अब मैं किसी के कान नहीं
कुतरूंगी-अब मैं
पार्लमेंट की आनरेबल
मेम्बर हूं ना !!
नागार्जुन ने फूलन देवी के राजनीतिक जीवन की महागाथा का सजीव चित्रण किया है. उनके सशक्त राजनीतिक चरित्र को बेहतरी के साथ दिखाया है. भाषा का ख्याल रखते हुए उनके कृतित्व का वर्णन किया है. राजनीतिक रूप से फूलन देवी कितनी मजबूत हैं. उसको कवि ने कविता में बहुत ही मार्मिक रूप से उकेरा है. कवि ने इस तरह की कविता लिखकर सबाल्टर्न समाज की महिलाओं के आत्म सम्मान को बढ़ावा दिया है.
(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के शोधार्थी हैं.)
(यह लेख उनका निजी विचार हैं.)