यह एक अपवाद ही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी चुनाव परिणाम से जुड़ी हुई घटनाओं के बारे में कोई वक्तव्य जारी करे. लेकिन पश्चिम बंगाल में 2 मई को विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने के पांच दिन बाद 7 मई को संघ ने इस संबंध में एक आधिकरिक वक्तव्य जारी किया.
इस वक्त्व्य को जारी करने का कारण चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद राज्य में जमीनी स्तर पर हुई अभूतपूर्व हिंसा थी. संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले ने इस हिंसा की व्यापकता और सघनता के चलते यह वक्तव्य जारी किया. उन्होंने कहा, ‘चुनाव परिणाम के तुरंत बाद उन्मुक्त होकर अनियंत्रित तरीक़े से हुई राज्यव्यापी हिंसा न केवल निंदनीय है, बल्कि पूर्व नियोजित भी है. समाज-विघातक शक्तियों ने महिलाओं के साथ घृणास्पद बर्बर व्यवहार किया, निर्दोष लोगों की क्रूरतापूर्ण हत्याएं कीं, घरों को जलाया, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों-दुकानों को लूटा एवं हिंसा के फलस्वरूप अनुसूचित जाति-जनजाति समाज के बंधुओं सहित हज़ारों लोग अपने घरों से बेघर होकर प्राण-मान रक्षा के लिए सुरक्षित स्थानों पर शरण के लिए मजबूर हुए हैं. कूच-बिहार से लेकर सुंदरबन तक सर्वत्र जन सामान्य में भय का वातावरण बना हुआ है.’
संघ ने इस विषय पर ऐसा मुखर स्टैंड क्यों लिया और पश्चिम बंगाल को लेकर संघ की सोच क्या है?
इस संबंध में संघ में विभिन्न स्तरों पर चर्चा होने के बाद कुछ प्रमुख बिंदु उभर कर सामने आए हैं.
पहला, संघ की चिंता इस बात को लेकर है कि इस प्रकार की हिंसा लोकतंत्र के लिए घातक है और इस प्रवृत्ति का समाप्त होना आवश्यक है.
संघ का मानना है कि राजनीतिक विरोध की जगह हर लोकतंत्र में होनी चाहिए, पर राजनीति के नाम पर हिंसा की नहीं. कड़ी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद हमने एक परिपक्व लोकतंत्र का विकास किया है. लेकिन पश्चिम बंगाल में जो घटनाएं हुईं, वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे का संकेत हैं. संघ का मानना है कि इन घटनाओं का संज्ञान पूरे देश को लेने की जरूरत है. इसीलिए होसाबले ने कहा, ‘लोकतंत्र में चुनावों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. चुनावों के इसी क्रम में पश्चिम बंगाल का चुनाव अभी-अभी सम्पन्न हुआ है. बंगाल के सम्पूर्ण समाज ने इसमें बढ़-चढ़ कर सहभाग लिया है. चुनावों में स्वाभाविक ही पक्ष-विपक्ष, आरोप-प्रत्यारोप कभी-कभी भावावेश में मर्यादाओं को भी पार कर देता है. पर, हमें यह सदैव स्मरण रखना होगा कि सभी दल अपने ही देश के दल हैं और चुनावों की प्रक्रिया में भाग लेने वाले प्रत्याशी, समर्थक, मतदाता सभी अपने ही देश के नागरिक हैं.’
दूसरा, जमीनी स्तर पर संघ को अपने स्वयंसेवकों से मिली जानकारी के अनुसार, पश्चिम बंगाल में जो हुआ वह विशुद्ध रूप से राजनीतिक हिंसा नहीं थी बल्कि उसमें जेहादी मानसिकता की भी एक बड़ी भूमिका थी. संघ के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह केवल एक पार्टी के कार्यकर्ताओं का दूसरी पार्टी के खिलाफ हिंसात्मक व्यवहार नहीं था बल्कि सुनियोजित ढंग से हिंदुओं के मनोबल को तोड़ने के प्रयासों की ओर भी संकेत देता है.
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ऐसे में इन सब संकेतों की उचित जांच होनी चाहिए, जिन्होंने हिंसा को अंजाम दिया उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, राज्य में पुलिस व प्रशासन की निष्पक्षता व विश्वसनीयता को कैसे दोबारा कायम करें यह सोचना होगा, हिंसा के शिकार लोगों को उचित मुआवजा तो मिले ही उनकी शिकायतें दर्ज कर उसकी पूरी जांच तय समयसीमा में होनी चाहिए, साथ ही उन्हें पूरी सुरक्षा भी मिलनी चाहिए.
संघ का मानना है कि इस हिंसा के मामले में पुलिस सहित राज्य प्रशासन की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगा है.
होसाबले ने स्पष्ट कहा, ‘इस पाशविक हिंसा का सर्वाधिक दुखद पक्ष यह है कि शासन और प्रशासन की भूमिका केवल मूक दर्शक की ही दिखाई दे रही है. दंगाइयों को ना ही कोई डर दिखाई दे रहा है और ना ही शासन-प्रशासन की ओर से नियंत्रण की कोई प्रभावी पहल दिखाई दे रही है.’
उन्होंने कहा, ‘शासन-व्यवस्था कोई भी हो, किसी भी दल की हो, उस का सर्वप्रथम दायित्व समाज में क़ानून-व्यवस्था के द्वारा शांति और सुरक्षा का वातावरण बनाना, अपराधी और समाज-विरोधी तत्वों के मन में शासन का भय पैदा करना और हिंसक गतिविधियां करने वालों को दंड सुनिश्चित करना होता है. चुनाव को दल जीतते हैं, पर, निर्वाचित सरकार पूरे समाज के प्रति जवाबदेह होती है.’
इस मामले में संघ ने केंद्र सरकार से भी आग्रह किया है कि वह बंगाल में शान्ति क़ायम करने हेतु आवश्यक हर सम्भव कदम उठाए एवं यह सुनिश्चित करे कि राज्य सरकार भी इसी दिशा में कार्रवाई करे.
कुल मिलाकर संघ का मानना है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणामों के बाद हुई हिंसा के संकंत भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं हैं और इसे किसी राज्य में चुनावी हिंसा के तौर पर दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए. इसीलिए होसाबले ने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज के सभी प्रबुद्ध जनों, सामाजिक-धार्मिक-राजनैतिक नेतृत्व का भी आह्वान करता है कि इस संकट की घड़ी में वे पीड़ित परिवारों के साथ खड़े हो कर विश्वास का वातावरण बनाएं, हिंसा की कठोर शब्दों में निंदा करें एवं समाज में सद्भाव और शांति व भाईचारे का वातावरण खड़ा करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायें.’
(लेखक दिल्ली स्थित थिंक टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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