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Friday, 19 April, 2024
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भारत का मिडिल क्लास मोदी के लिए ‘मुसलमान’ क्यों है

प्रधानमंत्री मोदी मध्यवर्ग से पैसा लेकर गरीबों को दे रहे हैं क्योंकि उन्हें भरोसा है कि यह वर्ग राष्ट्रवाद और मुसलमानों के प्रति अपनी नापसंदगी के कारण वैसे भी उन्हें वोट देगा ही.

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नरेंद्र मोदी सरकार के ताज़ा बजट की एक अहम बात यह है कि सालाना 2 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई करने वाले अमीरों के लिए टैक्स की दरें बढ़ा दी गई हैं. सालाना 5 करोड़ से ज्यादा की आमदनी वाले सुपर अमीरों के लिए टैक्स की दरों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी की गई है. अब यह टॉप टैक्स रेट 42.3 प्रतिशत कर दी गई है.

हमारे जैसे लोगों के लिए यह इंदिरा गांधी वाली ‘अमीरों को निचोड़ो’ मार्का राजनीति की अति का ही एक उदाहरण है. कई लोग, जो गहरी ‘गुलाबी’ राजनीति में आस्था रखते हैं, इसे इस बात का उत्साहवर्धक प्रमाण मानेंगे कि मोदी ने भी समाजवाद के उन सिद्धांतों को अपना लिया है, जिसे इमरजेंसी के बाद संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था. यह और बात है कि वे भारत की सबसे घोर दक्षिणपंथी सरकार के दूसरे कार्यकाल का नेतृत्व कर रहे हैं.

लेकिन उपरोक्त दोनों तरह के लोग गलत हैं. मोदी सरकार वास्तव में अमीरों को नहीं बल्कि मध्यवर्ग को निचोड़ रही है, जो उसका सबसे वफादार वोटबैंक है. अब सवाल उठ सकता है कि क्या उस वर्ग की निर्विवाद वफादारी के कारण ही सरकार उसके साथ इस तरह का बर्ताव करने का जोखिम उठा सकती है?

पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सम्पदा को बेहद बड़े पैमाने पर काफ़ी कुशलता से गरीबों के बीच बांटने का काम किया है. इस सम्पदा का एकदम सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है मगर आवास, शौचालय, रसोई गैस, मुद्रा ऋण आदि के मदों में करीब 9 से 11 लाख करोड़ रुपये की राशि गरीबों के बीच बांटी गई. यह कबूल किया गया है कि यह न्यूनतम घपले और जाति-धर्म के भेदभाव से लगभग मुक्त होकर किया गया. इसने मोदी को दूसरी बार कहीं ज्यादा बड़ा बहुमत देकर मदद की. और, यह पैसा आया कहां से?

हमारा स्वाभाविक जवाब होगा कि यह पैसा अमीरों से आया. लेकिन ऐसा है नहीं. कच्चे तेल की कीमत गिरती रही फिर भी सरकार ईंधन पर टैक्स बढ़ाती रही और अपनी झोली भरती रही. यह ज़्यादातर पैसा वाहन रखने वाले मध्यवर्ग की जेब से निकाला गया. इसलिए आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि गरीबों के बीच सम्पदा का यह भारी वितरण सचमुच हुआ. लेकिन यह पैसा अमीरों से नहीं बल्कि हर तबके के मध्यवर्ग से आया. इसने एहसानमंद गरीबों के इतने वोट भी मोदी को दिलवाए कि उन्होंने चुनाव में विपक्ष को साफ कर दिया.

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बड़े शहरों से लेकर शहरीकरण की ओर बढ़ रहे राज्यों तक सभी जगहों के एक्जिट पोल के आंकड़े यही बताते हैं कि मध्यवर्ग ने भाजपा को झोली भर-भर के वोट दिए. तेजी से शहरीकरण की राह पर चल रहा हरियाणा, जो भारत में सबसे अमीर राज्य है और जहां निर्धनतम मानी जाने वाली आबादी नगण्य है, इसकी अच्छी मिसाल है. 2014 तक भाजपा यहां हाशिये पर थी मगर इस बार उसने वहां 58 प्रतिशत वोट बटोरे.

मोदी अर्थव्यवस्था को जिस तरह चला रहे हैं उसकी यह सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि है. उन्होंने बीच वालों से लिया और सबसे नीचे वालों में बांटा, और चमत्कार देखिए कि दोनों उन्हें एक जैसे जोश से वोट दे रहे हैं. मध्यवर्ग उनके सबसे ठोस वोट बैंक के तौर पर उभरा है और वह इसकी कीमत भी खुशी-खुशी अदा कर रहा है.

अब जरा ताज़ा बजट के बारे में बात कर लें. एक बार फिर अमीरों को निचोड़ने का दिखावा भर किया गया है. क्या इससे अमीरों को कोई फर्क पड़ेगा? सीबीडीटी के आंकड़े बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष में केवल 6,351 व्यक्तियों ने 5 करोड़ से ज्यादा की आय का रिटर्न भरा, जिनकी औसत आय 13 करोड़ रुपये थी. इससे कितना अतिरिक्त राजस्व आएगा? मात्र 5,000 करोड़ रु., जो कि आईपीएल के सालाना टर्नओवर से बहुत ज्यादा नहीं है. गरीबों को यह सोचकर मजा आएगा कि अमीरों को निचोड़ा जा रहा. और जो सचमुच अमीर हैं वे बस कानाफूसियों में अपनी शिकायतें जाहिर करते रहेंगे मगर अनाम चुनावी बॉन्ड खरीदकर एक ही लेटर बॉक्स में डालते रहेंगे. और वह लेटर बॉक्स कौन-सा होगा यह आप आसानी से समझ सकते हैं. क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो टैक्स वाले उनके यहां दस्तक दे सकते हैं.

सस्ते जोश और मनोरंजन से खुश होने वाले गरीबों को शायद आसानी से धोखे में रखा जा सकता है, लेकिन असली मज़ाक तो मध्यवर्ग के साथ किया जा रहा है. क्योंकि, 2014-19 की तरह आगे भी यही वर्ग गरीबों में वितरण के लिए पैसे जुटाएगा. सो, शुरुआत के लिए वित्त मंत्री ने बजट में पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त टैक्स का उपहार दे दिया है ताकि कच्चे तेल की कीमत में कमी की ‘भरपाई’ की जा सके.

इसके साथ ही कई ऐसी नीतियां घोषित की गई हैं जिन्हें अमीरों को नहीं बल्कि ‘मध्यवर्ग को निचोड़ने वाली’ ही कहा जा सकता है. मोदी के राज में इक्विटीज पर दीर्घकालिक कैपिटल गेन टैक्स (एलटीसीजी) लगाया गया, डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) को बढ़ा दिया गया, सालाना 10 लाख के डिविडेंड पर अतिरिक्त टैक्स लगाया गया, 50 लाख से एक करोड़ की कमाई करने वालों (आज अगर आप उन्हें सुपर अमीर न कहें तो) की आय पर सरचार्ज लगाया गया, सोने के आयात पर शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी किया गया, सब्सिडीज में कटौती की गई और मध्यवर्ग को इनसे वंचित किया गया, यहां तक कि रसोई गैस पर से भी इसे खत्म किया गया. हम गैरज़रूरी सब्सिडीज को खत्म करने का स्वागत करेंगे मगर यह तो देखिए कि इसकी चपत किसे लग रही है.


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मोदी और भाजपा इस फैलते-फूलते मध्यवर्ग के साथ इस तरह का बर्ताव कर सकती है, तो इससे यही जाहिर होता है कि इसने इस वर्ग के मानस पर पूरा अधिकार जमा लिया है. इसके प्रति इस वर्ग की वफादारी आर्थिक से ज्यादा कहीं और गहरी बात से तय हो रही है. वह गहरी बात यह है कि इस वर्ग ने भारतीय राष्ट्रवाद की उग्र हिंदुत्ववादी परिभाषा को आत्मसात कर लिया है. इसके साथ मुसलमानों के प्रति इसकी नापसंदगी को भी जोड़ लीजिए. इस वर्ग के कई लोगों को ‘लिंचिंग’ वगैरह वीभत्स लगता है लेकिन उन्हें इस बात की खुशी है कि सत्तातंत्र— मंत्रिमंडल, आला सरकारी पदों— से मुसलमान पूरी तरह बाहर हो गए हैं और संसद में भी उनकी संख्या बहुत घट गई है.

भाजपा के वित्त मंत्रियों ने अपने बजट भाषणों में मध्यवर्ग का कितनी बार जिक्र किया है इसका एक उल्लेखनीय आंकड़ा मेरे साथी और राजनीतिक संपादक डी.के. सिंह ने हमें बताया है. भाजपा के तमाम वित्त मंत्रियों ने अपने बजट भाषण में औसतन कितनी बार मध्यवर्ग का जिक्र किया इसका हिसाब उन्होंने लगाया तो यह आंकड़ा पांच का निकला. पीयूष गोयल के अन्तरिम बजट भाषण में अचानक यह आंकड़ा 13 पर पहुंच गया था. आखिर वे चुनावी दौर में बजट पेश कर रहे थे! अब निर्मला सीतारामन के बजट भाषण में यह तीन की संख्या पर आ गिरा है. जाहिर है, वे इस वर्ग से गोयल द्वारा फरवरी में किए गए ये वादे भूल गईं— स्टैण्डर्ड डिडक्सन में बढ़ोत्तरी की जाएगी, टीडीएस की सीमा तय की जाएगी, टैक्स स्लैब में छूट दी जाएगी. लेकिन जब आप हमारी मोहब्बत में हमें वोट दे ही रहे हैं तो हम आपकी फिक्र क्यों करें? और गरीब लोग तो एहसान मानते हुए हमें वोट देंगे ही.

दशकों तक भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ ‘सेकुलर’ पार्टियों ने यही खेल खेला. वे जानती थीं कि आरएसएस/भाजपा के डर से मुस्लिम लोग उन्हें वोट देते ही रहेंगे. इसलिए उन्हें मुस्लिमों के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं महसूस नहीं हुई. उनका वोट उनकी सुरक्षा की फिरौती जैसा था. अब भाजपा ने ताड़ लिया है कि मध्यवर्ग इसी तरह की मजबूरी में उसे वोट देने को प्रतिबद्ध हो गया है. इसीलिए हम मध्यवर्ग वालों को ‘मोदी के मुसलमान’ कहते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्ल्कि करें)

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