राष्ट्रपति चुनाव के वास्ते उम्मीदवार तय करने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की 2007-08 की प्राइमरी के दौरान तत्कालीन सीनेटर बराक ओबामा ने अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन की आलोचना करते हुए उन्हें ‘सीनेटर फ्रॉम पंजाब’ कहा था. उनका आशय भारतीय-अमेरिकी समुदाय के कतिपय लोगों के साथ हिलेरी की नजदीकियों से था.
राष्ट्रपति पद के लिए 2012 के ओबामा-मिट रोमनी मुकाबले में भारतीय अमेरिकियों के वोट पर उतना ध्यान नहीं दिया गया था, और ओबामा ने नौकरियों को ‘बफेलो से बैंगलोर’ भेजने के लिए रोमनी पर निरंतर हमले किए थे. जहां तक 2016 की बात है, तो हिलेरी क्लिंटन और डेमोक्रेटिक पार्टी भारतीय अमेरिकी समुदाय के करीब 80 प्रतिशत मतदाताओं के अपेक्षित समर्थन को लेकर संतुष्ट थीं, लेकिन समुदाय के एक वर्ग ने आगे बढ़कर डोनल्ड ट्रंप से संपर्क किया और ऐसे वक्त उनके लिए चंदा इकट्ठा किया जब उन्हें मुख्यधारा के रिपब्लिकनों का अधिक समर्थन नहीं मिल रहा था. ट्रंप ने उस साल अक्टूबर में भारतीय अमेरिकियों की एक रैली को भी संबोधित किया था तथा उनके बेटे और बहू हिंदू मंदिरों में गए थे. इस साल के चुनाव में भारतीय मूल के मतदाताओं और उसके वित्तीय सहयोग पर सबका ध्यान है और दोनों ही उम्मीदवार – डोनल्ड ट्रंप और जो बाइडेन – उनका समर्थन हासिल करने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहे हैं.
इस बार ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ह्यूस्टन (सितंबर 2019) और अहमदाबाद (फरवरी 2020) में बड़ी रैलियों में अपनी भागीदारी को प्रचारित करने के लिए एक वीडियो जारी किया है. दूसरी ओर बाइडेन ने भी भारतीय अमेरिकी समुदाय पर लक्षित एक वीडियो जारी किया है, और अगस्त में भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्होंने एक विशेष संदेश भी जारी किया था.
जाहिर है, भारतीय अमेरिकियों के वोट और उनसे प्राप्त फंडिंग अब मायने रखती है.
पैसा और वोट
अमेरिका में भारतीय समुदाय के अनुमानित 41 लाख लोग रहते हैं, जिनमें से 18 लाख को वोट डालने की पात्रता है. यह संख्या 2000 के बाद से दोगुनी हुई है, जिसमें आईटी के क्षेत्र में भारतीय प्रतिभाओं के वर्चस्व तथा भारतीय और अमेरिकी कंपनियों के बीच निकट सहयोग की बड़ी भूमिका है. 1960 में, भारतीय अमेरिकियों की कुल संख्या 13,000 ही थी, क्योंकि पहले अमेरिकी कानून में दक्षिण एशियाई लोगों को नागरिकता की अनुमति नहीं दी गई थी. एक एएपीआई डेटा सर्वे के अनुसार, चीनी और फिलिपीनी समुदायों (भारतीय समुदाय के लगभग बराबर की आबादी) की उपस्थिति जहां अमेरिका के पश्चिमी तटों में केंद्रित है, वहीं भारतीय समुदाय की अब उन राज्यों में भी उपस्थिति है जहां कि दोनों दलों के बीच कड़ा मुकाबला रहता है: फ्लोरिडा (87,000), पेंसिलवेनिया (61,000), जॉर्जिया (57,000), मिशिगन (45,000), नॉर्थ कैरोलाइना (36,000), और टेक्सस (161,000) में जो परंपरागत रूप से रिपब्लिकन गढ़ था, लेकिन प्रवासियों की बढ़ती संख्या के कारण उसका स्वरूप बदल रहा है. ये संख्याएं महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 2016 में इन राज्यों में जीत-हार का फासला बहुत कम रहा था, और आमतौर पर राज्य का पूरा निर्वाचक मंडल विजेता पार्टी की झोली में जाता है.
भारतीय अमेरिकी मतदाता सामान्यतया डेमोक्रेटिक रुझान वाले रहे हैं, क्योंकि उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी की समावेशी और बहुलवादी राजनीति से संबल मिलता है. समुदाय के मतदाताओं में से करीब 77 प्रतिशत ने 2016 में हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था. हालांकि एएपीआई के सर्वेक्षणों के अनुसार, ट्रंप ने मोदी के साथ नजदीकियां बढ़ाकर भारतीय समुदाय के बीच अपना प्रभाव बढ़ाया है. अभी की स्थिति की बात करें, तो समुदाय के बीच बाइडेन को 66 प्रतिशत और ट्रंप को 28 प्रतिशत समर्थन प्राप्त है.
विगत के चुनाव अभियानों के लिए भारतीय अमेरिकी समुदाय ने चंदा संग्रह की कोशिशें की थीं, लेकिन उसका योगदान ज़्यादा उल्लेखनीय नहीं रहा था. इस साल जुलाई तक भारतीय अमेरिकी 30 लाख डॉलर जुटा चुके थे, जिनमें से दो तिहाई बाइडेन के अभियान के लिए था. ऐसा कहा जा रहा है कि गत सप्ताह समुदाय द्वारा फंड जुटाने के लिए आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम में बाइडेन और कमला हैरिस के चुनाव अभियान के लिए अतिरिक्त 30 लाख डॉलर जुटाए गए हैं.
वर्तमान में बुनियादी मुद्दे
अमेरिकी राजनेता भारतीय समुदाय की चिंताओं को दो व्यापक मुद्दों से जोड़कर देखते हैं: अमेरिका-भारत संबंध, तथा आव्रजन, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अमेरिका की घरेलू नीतियां. प्रतिनिधि सभा और सीनेट में जनप्रतिनिधियों के भारत समर्थक गुट देश आधारित सबसे बड़े गुट हैं, जो कांग्रेस और सीनेट के सदस्यों की ओर से भारतीय अमेरिकी मतदाताओं के महत्व को लेकर स्पष्ट संदेश है. इसी तरह भारतीय राजदूत और भारतीय नेताओं के साथ वार्ताओं, और अमेरिका-भारत संबंधों की हिमायत को मतदाताओं के इस वर्ग के बीच प्रचारित किया जाता है.
यह भी पढ़ें: ट्रंप या बाइडेन– भारत के लिए कौन बेहतर है, इसका जवाब एक 14 वर्ष पुराने सपने में है
हालांकि, भारत से आए पहली पीढ़ी के प्रवासियों और अमेरिका में पैदा दूसरी पीढ़ी के भारतीय प्रवासियों के नज़रिए में थोड़ा अंतर है. एएपीआई के सर्वे ने इस बात को भी उजागर किया है कि शिक्षा, आव्रजन, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा को लेकर भारतीय समुदाय की चिंताएं (लगभग 90 प्रतिशत), अमेरिका की दक्षिण एशियाई नीति संबंधी चिंताओं (70 प्रतिशत के करीब) के मुकाबले कहीं अधिक हैं. यह अंतर दूसरी पीढ़ी में अधिक झलकता है, जो अमेरिकी राजनीति में अधिक रचे-बसे हैं. हाल ही में एक परिचर्चा में, समुदाय के दूसरी पीढ़ी के एक एक्टिविस्ट ने कहा कि ‘यह चुनाव अमेरिका और अमेरिका में हमारे भविष्य के बारे में है’.
अमेरिका में भारतीय समुदाय का आकार और प्रभाव आगे और बढ़ना तय है. यह अब सर्वाधिक औसत आय और शिक्षा के उच्चतम स्तर वाला जातीय समूह बन चुका है. और 2009 के बाद से अमेरिकी प्रशासन में इसकी उपस्थिति बढ़ी है, जिसमें ओबामा प्रशासन में उप-कैबिनेट स्तर (यूएसएड के प्रशासक के रूप में राज शाह) और ट्रंप प्रशासन में कैबिनेट स्तर (संयुक्तराष्ट्र में अमेरिका की स्थाई प्रतिनिधि के रूप में निकी हेली) के पद शामिल रहे हैं. 2016 तक, अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय समुदाय के मात्र तीन सदस्य निर्वाचित हुए थे, लेकिन उसके बाद से दो चुनाव चक्रों के ज़रिए अब सदन में इसके एक साथ पांच प्रतिनिधि हैं, और इस वर्ष ये संख्या बढ़ भी सकती है.
आइरिश, ग्रीक और यहूदी जैसे अन्य प्रवासी समुदाय शुरू में हाशिए पर थे और उनके साथ भेदभाव होता था, लेकिन बाद में वे पूरी तरह से मुख्यधारा में आ गए. भारतीय अमेरिकी, गैर-यूरोपीय होने के बावजूद, किस हद तक इस पैटर्न को अपनाते हैं, ये अमेरिकी ‘मेल्टिंग पॉट’ के सिद्धांत के लिए बड़ी कसौटियों में से एक होगी. भारत तथा भारत-अमेरिका संबंधों के पक्ष में यह एक महत्वपूर्ण मिसाल होगी, साथ ही एक चुनौती भी. भारत के भीतर के राजनीतिक मतभेद कई बार अमेरिका में भी उभर आते हैं. समुदाय के कुछ वर्ग कांग्रेस के समक्ष धार्मिक और जातीय भेदभाव की बात उठा चुके हैं. अपने हितों से प्रेरित भारतीय अमेरिकी समुदाय ये उम्मीद भी करता है कि भारत अमेरिका से संबंधों को प्रगाढ़ करने, तथा अमेरिकी नीतियों और रुखों को समझने का प्रयास करे, जोकि ज़रूरी नहीं कि भारत के अपने हितों और सामरिक स्वायत्तता के आकलन के अनुरूप हो.
(लेखक अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके हैं. वह 9/11 के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ हुई वार्ताओं में शामिल रहे थे. ये उनके निजी विचार हैं.)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)