भारत में कोविड 19 की कोई बड़ी दूसरी लहर नहीं होगी.
पिछले अगस्त में एक अतिशय आशावादी कच्चे (कोबोट) हिसाब के आधार पर मैंने अनुमान लगाया था कि भारत में कोविड-19 का महामारी वाला रूप जनवरी 2021 तक समाप्त हो जाएगा. मेरे सहयोगी कार्तिक शशिधर ने एक कर्व-फिटिंग तकनीक का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया था कि फरवरी 2021 तक देश में महामारी खत्म हो जाएगी. ऐसा प्रतीत होता है कि ये भविष्यवाणियां असलियत से ज़्यादा दूर नहीं थीं.
उसी कोबोट विधि के अनुसार लगता नहीं कि पूरे देश भर में महामारी की कोई बड़ी ‘दूसरी लहर’ आएगी, हालांकि कई शहरों और जिलों में छोटे स्तर पर दूसरी लहरें आएंगी. इसका मतलब ये नहीं है कि हम सतर्कता छोड़ दें और महामारी से पहले के भीड़भाड़ वाले माहौल में शामिल हो जाएं; इसके बजाय, इसका मतलब ये है कि अगर हम ऐहतियात बरतना जारी रखें, तो अगले कुछ महीनों में हम सभी सुरक्षित स्थिति में होंगे.
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आइए इसको विस्तार से समझते हैं.
भारत में संक्रमितों की असल संख्या क्या है?
वैसे तो मैंने इसे मज़ाकिया तौर पर एक भारी-भरकम नाम दिया है, पर मेरा अनुमान इस तथ्य पर आधारित है कि देश में वास्तविक मामले आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में बहुत अधिक हैं. कितने अधिक? यह आपके संशय के स्तर पर निर्भर करता है: मेरे सिनिकोमीटर का डायल 10x से शुरू होता है और इसमें डिफ़ॉल्ट स्तर 20x है. इसलिए, यदि भारत भर में मामलों की आधिकारिक संख्या सिर्फ एक करोड़ के करीब है, तो वास्तविक संख्या 20 करोड़ या आबादी के लगभग 15 प्रतिशत के बराबर होने की संभावना है.
हालांकि, खुद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अगस्त-सितंबर 2020 के सीरो सर्वेक्षणों से पता चला था कि देश में रिपोर्ट किए गए प्रत्येक मामले की तुलना में 26 से 32 तक वास्तविक मामले हैं. यदि हम सिनिकोमीटर को 32x पर सेट करें, तो हमारे यहां संक्रमण के लगभग 32 करोड़ मामले हैं यानि देश की 25 प्रतिशत आबादी के बराबर. इससे भी पहले के एक अध्ययन में, आईसीएमआर ने प्रिपोर्ट किए गए प्रत्येक मामले पर 80-100 असल मामले मानने का सुझाव दिया था, जो हमें सिनिकोमीटर के कांटे को 100x तक ले जाने की अनुमति देता है, यानि एक अरब लोग या आबादी का करीब 75 प्रतिशत.
क्या ये सही हो सकता है? चूंकि पूरे देश में नए मामलों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है, और हर्ड इम्युनिटी की सीमा लगभग 67 प्रतिशत से शुरू होने का अनुमान है, तो ऐसे में ये संभव है कि करीब एक अरब भारतीयों में कोविड-19 से संबंधित एंटीबॉडी होंगे. संभव तो है, लेकिन संभावना नहीं दिखती.
ऐसा इसलिए क्योंकि भारत-व्यापी आंकड़े भ्रामक हैं. जैसा कि मैंने पूर्व के कॉलम में लिखा था, हमारे यहां देश भर में स्थानीय स्तर पर सैकड़ों स्थानीय महामारियां हुईं; उनसे घनी आबादी वाले और शहरी इलाके बाकियों की तुलना में अधिक प्रभावित हुए. लॉकडाउन, लॉकडाउन बाद के नियंत्रण उपाय, और सार्वजनिक अनुपालन कहीं अधिक प्रभावी थे तो कहीं कम. लेकिन हम ये बात ज़रूर कह सकते हैं: जहां भी नए मामले घट रहे हैं, हमें पता है कि वहां ‘अरक्षित’ (एक्सपोज़्ड) आबादी के लगभग 67 प्रतिशत लोगों में संभवतः वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता है. एक्सपोज़्ड आबादी में वे लोग आते हैं जो खुद को पर्याप्त रूप से अलग-थलग नहीं रख पाए, और जो मास्क, हैंडवाशिंग और सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे थे. ये माना जाता है कि यदि किसी शहर या जिले में एक्सपोज़्ड आबादी बड़ी थी और संक्रमण के नए मामले कम आ रहे हैं और घट रहे हैं, तो वहां महामारी की दूसरी लहर आने की संभावना बहुत कम है. और ये माना जा सकता है कि भारत में यही हुआ है, क्योंकि यहां मास्क लगाए लोगों के भी नाक बाहर दिखना आम बात है.
और, इस तरह से ये आशावाद का आधार है. देश भर में अधिकांश जगह महामारी की दूसरी लहर का जोखिम बहुत कम है क्योंकि अधिकतर लोग पहले ही एक्सपोज़्ड हो चुके हैं. और इसी कारण से, हमें वायरस के नए स्ट्रेन को लेकर भी ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.
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ख़तरे मौजूद हैं
बेशक, इसका एक दूसरा पहलू भी है. यदि आप मास्क, हैंडवाशिंग और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर गंभीर रहे हैं, तो भी आपको वायरस पकड़ने का खतरा है. जोखिम कुछ महीनों पहले की तुलना में कम है, लेकिन अभी भी पूरी तरह टला नहीं है.
बीमारी संबंधी जटिलताओं और मौत का जोखिम पहले जितना ही है. इसलिए, यदि आप उन लोगों में शामिल हैं, जो कोविड-19 से संक्रमित नहीं हुए हैं, तो आपको पहले की तरह ही ऐहतियात बरतने और सतर्क रहने की ज़रूरत है.
यही तर्क उन शहरों और क्षेत्रों पर भी लागू होता है जो महामारी पर शुरुआती दौर में नियंत्रण करने में खासे सफल रहे थे: आवागमन संबंधी पाबंदियों के हटने तथा स्कूलों, कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थलों के खुलने के बाद वहां ‘दूसरी लहर’ का खतरा अधिक है. केरल, मुंबई और कुछ अन्य स्थानों पर शायद यही हो रहा है, जहां संक्रमण के मामलों में उछाल देखा गया है.
आप ये कैसे बता सकते हैं कि आपके शहर या इलाके में महामारी की दूसरी लहर आएगी? ये जानने का एक व्यावहारिक सिद्धांत है. अपने सिनिकोमीटर को 20x पर सेट करें. अपने इलाके में संक्रमण के आधिकारिक आंकड़े को 20 से गुणा करें; यदि यह आंकड़ा स्थानीय आबादी के 67 प्रतिशत से अधिक है, तो आप महामारी की दूसरी लहर से बच सकते हैं, बशर्ते पहले की तरह सतर्कता बरती जा रही हो. यदि नहीं, तो मामलों में उछाल का बहुत खतरा है.
वैसे, ये याद रहे कि यह सब अभी भी कच्चे हिसाब पर आधारित विश्लेषण ही है. इसमें हमारे पास मौजूद अपर्याप्त डेटा का उपयोग किया गया है, और उनकी अतिसरलीकृत व्याख्या की गई है. इस तरीके से हम महामारी की मौजूदा स्थिति का अनुमान तो लगा सकते हैं, लेकिन यह अनुमान इतना भी अचूक नहीं है कि हम अपनी सतर्कता कम कर दें. आम लोगों और सरकारों को सतर्कता बनाए रखने को प्राथमिकता देनी चाहिए. ‘ऑल क्लियर’ का संकेत कुछ महीनों बाद ही मिल पाएगा, जब संक्रमण के जोखिम वाली आबादी में से अधिकांश को टीके लगाए जा चुके होंगे.
(लेखक तक्षशिला संस्थान के निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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