उत्तर प्रदेश में कमलेश तिवारी की हत्या का मामला अभी भी जांच के दायरे में हैं, जिसमें कई थ्योरी पर काम चल रहा है. इस मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है जो मुसलमान हैं. शुरुआती ना नुकुर के बाद अब इसे सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है. कमलेश के परिवार ने उत्तर प्रदेश थाथेरी से भाजपा इकाई के नेता शिव कुमार गुप्ता पर उनकी हत्या का आरोप लगाया है. घटना के मद्देनज़र इस पूरे मामले को सांप्रदायिक करने की कोशिश की गई है.
किसी भी अवसर को न खोने की चाहत रखने वाले हिंदुत्व दक्षिणपंथी डिजिटल सेना तुरंत इस मामले में कूद गई. पहले दिन उन लोगों ने इस्लाम और मुहम्मद के खिलाफ़ डेरोगेटरी ट्वीट्स हैशटैग के साथ किए. फिर उन्होंने #मुस्लिम_का_संपूर्ण_बहिष्कार के साथ एक बार फिर ट्विटर पर अभियान चलाया.
इन पूरे ट्वीट्स का मकसद घृणा फैलाना, भड़काना और धार्मिक उन्माद फैलाना था. ये एक तरह से घोषणा करने जैसा था कि भारत में आप मुस्लिमों का अपमान कर सकते हैं, उन्हें नीचा दिखा सकते हैं और उनके विश्वास से बार-बार खेल सकते हैं फिर भी आप पर कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी. यहां तक कि कुछ हैंड्ल्स जहां से ये ट्वीट ट्रेंड और भद्दी बातें चलाईं जा रही थी उनको भाजपा के नेताओं और मंत्रियों द्वारा फॉलो किया जाता है. भारत में जिस तरह से हिंदू दक्षिणपंथी काम कर रहे हैं ऐसा लगता है उन्हें यह सब करने की खुली छूट मिली हुई है.
आने वाले समय में इस तरह की विभाजनकारी और घृणा फैलाने वाले संदेशों के और बढ़ने की संभावना है. विशेषकर तब जब अयोध्या विवाद पर बहुत जल्द ही फैसला आने की संभावना है. उत्तर प्रदेश के देवबंद से आने वाले भाजपा नेता गजराज राणा ने लोगों से अपील की है कि इस धनतेरस पर गहने और बर्तनों की जगह वे तलवारे खरीदें.
घृणा को इस तरह से मुख्यधारा का हिस्सा बनाने का काम सोशल मीडिया के ट्रोल्स तक सीमित नहीं है, अब ‘हेटरेड गेम्स’ की इस भाषा ने हमारे रोज़मर्रा की बातचीत में जगह बना ली है.
इस नफ़रत का आखिर क्या जवाब दिया जाए? इस नफ़रत के खेल को बेधड़क चलने से रोकने के लिए और पैगम्बर के खिलाफ़ ज़हरीली ट्वीट्स के जवाब में लोगों ने ट्विटर पर कैंपेन चलाया जिसे #ProphetOfCompassion का नाम दिया गया. ये ट्वीट्स मुहम्मद साहब द्वारा प्यार और मुहब्बत की जो बात कही थी उसकी वक़ालत करतीं है. फिर जल्द ही यह ट्वीट दुनियाभर में ट्रेंड करने लगा, लोग दया और सहिष्णुता की बाते कहने लगे. इस तरह से सोशल मीडिया पर जो भड़काऊ स्थिति पैदा हो रही थी- जिसमें लोग एक दूसरे के धर्म पर छींटाकशी कर रहे थे, उसे किसी तरह से टाला गया.
मैंनें भी इसमें भाग लिया. जैसा की मुझे उम्मीद थी कि इस थ्रेड पर मुझे भी ढेर सारे मिले-जुले रिस्पांस मिले जिसमें अधिकतर भद्दे थे और अधिकतर मुझे ही गालियां देने वाले थे.
मेरे इस पूरे रिस्पांस पर कुछ लोगों ने सवाल भी किए और पूछा भी कि कैसे मैं एक वामपंथी होकर पैगंबर की प्रशंसा करते हुए इस ट्विटर ट्रेंड में भाग लिया. वामपंथी तो ईश्वर को नहीं मानते? इनमें से कुछ ने यह भी कहा कि मैंने आखिरकार ‘अपना रंग, मेरे अंदर के इस्लाम’ को इस थ्रेड के माध्यम से दिखा दिया है. मेरी इस तरह की कोई जवाबदेही नहीं है कि मैं, अपने धर्म जिसमें मैं पैदा हुआ हूं, उसके बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोलूं. न तो भारत का संविधान और न ही इस्लाम धर्म के तौर पर यह कहता है कि मैं इसे सार्वजनिक करूं. लेकिन यहां कुछ और गहरी बातें हैं जिसपर हमलोगों को बात करने की ज़रूरत है.
2016 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में तीन छात्र गिरफ्तार किए गए थे लेकिन मैं अकेला था जिसे पाकिस्तान से जोड़ा गया. गालियां दी गईं और यहां तक आरोप लगाया गया कि मैं दो बार पाकिस्तान जा चुका हूं. एक वामपंथी के तौर पर मेरी राजनीतिक सोच मुझे इस तरह के रूढिवादी सोच से नहीं बचा पाईं. नजीब अहमद पिछले तीन सालों से जेएनयू से गायब है और उसे भी आईएसआईएस से जोड़ा गया. लेकिन किसी ने न तो मुझसे और न ही नजीब के परिवार से माफी मांगी जब और कोई नहीं, दिल्ली पुलिस ने इसे फेक न्यूज़ साबित किया. क्या कारण था, अगर हमारे नाम नहीं और खृुल्लमखुल्ला इस्लामोफोबिया, जिसने मुझे और नजीब को इस तरह की स्टिरियोटाइपिंग का शिकार बनाया?
एक मुसलमान से हमेशा यह अपेक्षा की जाती है कि वह खुद को अपने धर्म से दूर रखे, यदि वह ‘अच्छा मुसलमान’ और प्रगतिशील नागरिक माना जाना चाहता है. बहुसंख्यक धर्म को मानने वाले लोगों को, चाहे उनकी सोच कोई भी हो ऐसी कोई अपेक्षा नहीं की जाती. एक हिंदू यह कह सकता है कि वह भगवान में विश्वास नहीं करता, लेकिन वह हिंदुइज्म को बचाने के लिए कूद पड़ता है और अपनी हिंदू पहचान को सार्वजनिक रूप से आसानी से ओढ़ भी सकता है. वहीं दूसरी तरफ धर्म का पालन करने वाला कभी एक प्रोग्रेसिव नागरिक और ‘अच्छा मुसलमान’ नहीं हो सकता है. लेकिन यहां मुद्दा यह है कि आप पांच बार के नमाज़ी हों या फिर आप किसी एक समय पर अपने धर्म को मानते हों और नमाज़ कभी कभी पढ़ते हों या फिर आप बिलकुल ही नमाज़ न पढ़ते हों लेकिन अपनी पहचान और नाम की वजह से आप अंत में घृणा के पात्र ही रहेंगे.
लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया पर इस्लाम के खिलाफ ज़हर उगलने काम जारी है और मुसलमानों के बहिष्कार किए जाने की बात की जा रही है, मुसलमानों के खिलाफ़ सांप्रदायिक हिंसा फैलाई जा रही है और ऐसी हिंसा फैलाने वाले आरोपियों का भाजपा के मंत्रियों द्वारा स्वागत सत्कार किया जाता है, दोनो बाते एक दूसरे से अलग नहीं है.
यह भी पढ़ें: उमर खालिद का सवाल, आतिशी क्या आप भी मुसलमानों को मात्र एक डरा हुआ वोटबैंक मानती हैं
सोशल मीडिया पर चाहे एक साधारण व्यक्ति हो या फिर शीर्ष के मंत्री हो, इसतरह के सांप्रदायिक बयान दे सकते है, और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता, इसके पीछे एक मंशा नज़र आती है. दोनों का उद्गम वही नफरत है और बार बार मुसलमानों को ये बताने की कोशिश कि देश में उनकी क्या ‘औकात’ है. इस तरह के बयानबाज़ी की अनुमति और सड़क पर किसी आदमी को लिंच करने में बस इतनी सी दूरी भर है.
ऐसी कोशिश की जा रही है कि सारे धर्म को ही अपराधी बना दिया जाए और ये स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि इस धर्म का अनुपालन करने वालो को किसी भी तरह से बेइज्जत किया जा सकता है. जोकि हर नागरिक को अपने धर्म का खुलकर अनुपालन करने के संवैधानिक अधिकार का हनन है.
और तो और कुछ प्रगतिवादियों की भी यह अपेक्षा है कि मुसलमान अपनी पहचान को ज़ाहिर न करें, कम से कम अपने धर्म को जोकि हमारे संविधान के खिलाफ़ है. हमें हर किसी को यह याद दिलाने की ज़रूरत है कि भारत का संविधान भारत के नागरिकों को यह गारंटी देता है कि वह किसी भी धर्म के हों वह उसमें विश्वास कर सकते हैं और ये उनका हक है न कि किसी समुदाय द्वारा दी गई नेमत.देश के मुसलमान इस देश के उतने ही नागरिक हैं, जितना कोई और.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखक कार्यकर्ता हैं और जेएनयू के पूर्व छात्र हैं, यह लेख उनके निजी विचार हैं.)
(अनुवाद के दौरान पुरानी कॉपी में कुछ गलतियां रह गईं थीं, जिसे सही कर दिया गया है)
उमर पहले कुरान के सूरा 8 की 12वी आयत और 9वे सूरा की 5वी आयत का मतलब समझा तू कितना अच्छा है यह पता चल जाएगा