नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में राजनीति की दिशा और दशा बदलती जा रही हैं. केंद्र में यदि मोदी राष्ट्रवाद की धारा के बूते राज कर रहे हैं तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के लोगों के रोल माडल बनकर उभरे हैं. छत्तीसगढ़ की पौने तीन करोड़ आबादी को अब लग रहा हैं कि 18 साल में पहली बार छत्तीसगढ़ के लोगों की सरकार बनी हैं, जिसका नेतृत्व भूपेश बघेल कर रहे हैं.
यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की 32 फीसदी आदिवासी आबादी भारतीय जनता पार्टी से इतनी नाराज़ हो गई कि राज्य के दो बड़े संभाग बस्तर और सरगुजा से भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया. छत्तीसगढ़ की 90 में से 29 सीटें आदिवासी इलाकों से हैं. पिछले 15 साल से इन्हीं सीटों के भरोसे सत्ता में आती रही भाजपा को इस बार आदिवासियों ने सिरे से नकार दिया.
2013 के चुनाव में बस्तर की 12 में से 4 सीटें भाजपा के पास थी, जबकि सरगुजा संभाग की 14 में 7 सीटे भाजपा के पास थी. जबकि 2008 में बस्तर की 12 में से 11 सीटें भाजपा के पास थी.
2018 के विधानसभा चुनाव में सरगुजा में एक भी सीट भाजपा को नहीं मिली, जबकि बस्तर की 12 में से इकलौती दंतेवाड़ा सीट भाजपा को मिली थी. लेकिन, विधायक भीमा मंडावी की नक्सलियों द्वारा हत्या के बाद खाली हुई इस सीट पर पिछले महीने हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीत ली.
2019 के लोकसभा चुनाव में चित्रकूट से विधायक दीपक बैज के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा फिर एक बार मात खा गई. यह सीट कांग्रेस ने 17 हज़ार से अधिक वोटों के अंतर से बरकरार रखी और इस तरह बस्तर और सरगुजा संभाग जैसे बड़े आदिवासी क्षेत्रों से भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया.
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गौरतलब है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों की वह ज़मीने वापस की जिसे भाजपा की सरकार ने टाटा जैसे उद्योगपतियों के लिए अधिग्रहित की थी. बस्तर और सरगुजा में सैकड़ो आदिवासियों के खिलाफ सैकड़ो ऐसे प्रकरण थे जिसमें आदिवासी जेल में थे. जिसमें अधिकांश पर नक्सल समर्थक या नक्सली होने का आरोप था.
कांग्रेस की सरकार ने इन आदिवासियों के प्रकरणों की समीक्षा के लिए रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर तेज़ी से काम शुरू किया. सरकार बनते ही स्थानीय मुद्दो पर सक्रिय हुई कांग्रेस को अब इसका फायदा मिलता दिख रहा हैं.
बीजेपी का कष्ट यह है कि स्थानीय स्तर भाजपा के पास दमदार नेता नही हैं. फ्रन्टलाईन के नेताओं पर छत्तीसगढ़ी विरोधी होने के आरोप उन्हीं के पार्टी में लगते रहे हैं. राज्य में बीजेपी के 68 लाख सदस्य होने के बावजूद 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मात्र 45 लाख वोट और 15 सीटें मिली.
जबकि, राज्य मे कांग्रेस का संगठन कमज़ोर होने के बावजूद 68 सीटें मिली थी, 68 लाख वोट मिले थे. यानि भाजपा के सदस्यो ने भी कांग्रेस को केवल स्थानीयता के नाम पर वोट दिया था. हालांकि चार महिने बाद हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 11 में 9 लोकसभा सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी कांग्रेस को दो पर. लोकसभा चुनाव में लगभग 64 सीटों पर कांग्रेस पिछड़ी थी. लेकिन दोनों उपचुनावों में कांग्रेस की जीत से भाजपा में बेचैनी तो है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)