जाति और राजनीति के अंतर्संबंधों के बीच देश और प्रदेशों की राजनीति इस समय चल रही है. चुनावी मौसम में जाति का प्रश्न यूं भी अहम हो जाता है क्योंकि देश ने बेशक एक आधुनिक शासन प्रणाली लोकतंत्र को अपना लिया है, लेकिन राजनीतिक गोलबंदी का प्राथमिक आधार अब भी जाति, धर्म जैसी पहचान ही है. इस संदर्भ में अखिलेश यादव के ताजा बयान का काफी महत्व है.
वाराणसी और चंदौली के समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की घोषणा करते समय प्रेस कॉन्फ्रेंस में आमतौर पर प्रसन्नचित्त रहने वाले अखिलेश यादव एक पत्रकार पर बुरी तरह से भड़क गए. पत्रकारों के सवालों के जवाब हंस-हंसकर देने वाले अखिलेश यादव का यह एक नया रूप था.
आखिर अखिलेश को गुस्सा क्यों आ गया?
दरअसल प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने अखिलेश पर जातिवाद का वही आरोप लगा दिया जो उन पर अक्सर लगाया जाता था. यह अलग बात है कि पहले किसी ने उनसे आमने-सामने इस तरह का सवाल नहीं पूछा था और मोटे तौर पर सोशल मीडिया के जरिए अफवाहों के जरिए उनके शासन को जातिवादी कहा जाता था.
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समाजवादी पार्टी की तरफ से कभी ऐसे आरोपों और ऐसी अफवाहों का खंडन नहीं किया गया जिसका उन्हें चुनावों के समय भारी खामियाजा उठाना पड़ा. खासकर यूपी में एसडीएम की नियुक्तियों में यादव कैंडिडेट को तरजीह दिए जाने के अपुष्ट आरोपों की वजह से सपा पर जातिवाद का आरोप लगा. 2017 में सपा को इसका नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन अब अखिलेश ने बाजी पलट दी है.
क्या है पूरा मामला?
अखिलेश की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार ने आरोप लगाया कि सपा सरकार के दौरान यादवों को भारी अहमियत दी जाती थी. इसी बात पर अखिलेश यादव भड़क गए क्योंकि सपा के समर्थकों के अंदर यह बात भी उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सुननी पड़ती थी कि उनके शासन में उच्च पदों पर उच्च जातियों का ही वर्चस्व रहा.
यानी अखिलेश यादव एक साथ यादववादी और सवर्णवादी होने के आरोप झेलते हैं.
पत्रकार के सवाल के जवाब में अखिलेश यादव ने इस बात का भी हवाला दिया कि मीडिया ने उनके शासन में 86 में से 54 यादव एसडीएम भर्ती किए जाने की अफवाह फैलाई. पलटकर अखिलेश ने पूछा कि अभी की भाजपा सरकार में यूपीपीएससी का जो रिजल्ट आया है, उसमें किस जाति के लोग कितने भरे गए.
अखिलेश ने पत्रकार को चुनौती भी दी और गंगाजल की कसम खाकर बोलने को कहा कि ‘अगर तुम्हारे अंदर ईमान बाकी है तो यही सवाल भाजपा वालों से करके दिखाओ.’ उन्होंने बार-बार चुनौती दी और पूछा कि अभी जो रिजल्ट आया है, क्या उसके बारे में भी ऐसा सवाल किया जा सकता है, जो उनकी सरकार के समय के रिजल्ट पर किया जाता है.
यादववादी होने के आरोप पर किया पलटवार
यादवों को अहमियत दिए जाने के बारे में भी अखिलेश ने आक्रामक तरीके से जवाब देते हुए कहा कि इस समय यूपी में कितने डीएम यादव हैं, कितने एसएसपी यादव हैं. पत्रकार के जवाब न देने पर उन्होंने खुद बताया कि इस समय यूपी में एक भी यादव डीएम या एसएसपी नहीं है.
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अखिलेश यादव का इशारा राज्यपाल राम नाइक की तरफ भी था जिन्होंने उनकी सरकार के समय सपा सरकार पर एक ही जाति के अधिकारियों की तैनाती का मामला उठाया था. हालांकि तब सपा ने बाकायदा प्रेस नोट जारी करके साबित किया था कि यादव डीएम और उच्चाधिकारी गिने-चुने ही हैं.
यह अलग बात है कि तब सपा सरकार के मुखिया होने के नाते अखिलेश यादव ने जवाब देने में वह आक्रामकता नहीं दिखाई थी. उन्होंने तब सारे जिला कलेक्टरों की जातिवार सूची जारी कर दी होती तो राम नाइक को ही नहीं, भाजपा को भी मुंह छिपाने की जरूरत पड़ जाती.
अखिलेश यादव की सरकार पर यशभारती पुरस्कार भी केवल यादवों और मुसलमानों को बांटने के आरोप लगते रहे हैं. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसका जिक्र तो नहीं किया लेकिन वह मामला भी 86 में से 54 यादव एसडीएम होने की तर्ज पर फर्जी ही था, लेकिन सोशल मीडिया में इसे खूब उछाला गया था. जाहिर है, अखिलेश के अंदर इस बात की भी तल्खी थी.
मुख्यमंत्री आवास धुलवाए जाने का भी दर्द झलका
प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी सामने आया कि बहुत सारे मुद्दों पर अखिलेश यादव कभी बोलते नहीं रहे हैं, लेकिन उनकी पीड़ा भी उनके अंदर रही है. ऐसा ही एक मुद्दा उनके खाली किए मुख्यमंत्री निवास को योगी आदित्यनाथ द्वारा गंगा जल से धुलवाए जाने का भी रहा है.
अखिलेश ने पहली बार इस मुद्दे पर भी बोला और कहा कि ‘मेरे पिता मुख्यमंत्री रहे, मैं भी मुख्यमंत्री रहा, लेकिन फिर भी उस आवास को धुलवाकर ‘शुद्ध’ किया गया तो देश-प्रदेश के बाकी पिछड़ों और दलितों की क्या स्थिति होगी, ये समझना मुश्किल नहीं है.’
इसके अलावा उन्होंने योगी आदित्यनाथ के उस चुनावी बयान का भी संज्ञान लिया और अपनी नाराजगी जाहिर की, जिसमें योगी ने कहा था कि ‘अगर बाबा साहब का संविधान न होता तो अखिलेश किसी जमींदार के यहां भैंस चरा रहा होता.’
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पत्रकारों के बीच बहुत उदार माने जाने वाले अखिलेश यादव ने इस तरह से बता दिया कि वो और उनकी पार्टी भी जातिगत भेदभाव की शिकार है, और यही स्थिति रही तो अब वो चुप नहीं रहेंगे.
सामाजिक न्याय के पक्षधरों ने अखिलेश यादव के इस तीखे रवैये की खुलकर सराहना की है. कई लोगों ने लिखा है कि उन्हें लंबे समय से अखिलेश से ऐसा ही रवैया अपनाने की अपेक्षा थी. अखिलेश की वह बात भी सच सिद्ध होती दिख रही है जिसमें वे कहते हैं कि उन्हें पता नहीं था कि वे ओबीसी हैं, लेकिन भाजपा ने उन्हें बताया कि वे ओबीसी हैं. अब वे इसका श्रेय मीडिया को भी दे सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)