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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतलू, भारी बारिश या हर साल आने वाली उछाल, आखिर क्यों टमाटर की कीमतें आसमान छू रहीं

लू, भारी बारिश या हर साल आने वाली उछाल, आखिर क्यों टमाटर की कीमतें आसमान छू रहीं

प्याज और आलू की कीमतें भी बढ़ी हैं, लेकिन टमाटर जितनी तेजी से नहीं. और जबकि एक अलग मौसमी पैटर्न को समझना मुश्किल है, जून में कीमतें अस्थिर हो जाती हैं.

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भारत की खुदरा मुद्रास्फीति मई में 25 महीने के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर आ गई, जो उसके पिछले महीने में 4.7 प्रतिशत थी. खाद्य और पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति अप्रैल में 4.16 प्रतिशत से घटकर मई में 3.29 प्रतिशत हो गई. अन्य व्यापक श्रेणियों में भी मई में मुद्रास्फीति में नरमी देखी गई. हालांकि, पिछले कुछ हफ्तों में देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं.

हालांकि ये जून के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) डेटा में दिखाई देंगे, जो कि 12 जुलाई को जारी किया जाएगा, खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि के ड्राइवर्स के कुछ शुरुआती संकेत प्राप्त करने के लिए हाई फ्रीक्वेंसी डेटा को देखना उपयोगी होगा.

डेली रिटेल फूड प्राइस

भारत में कुल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में भोजन का हिस्सा लगभग 39 प्रतिशत है. सीपीआई में खाद्य समूह छह उप-समूहों में फैली 114 वस्तुओं को शामिल करता है.

उपभोक्ता मामले विभाग में प्राइस मॉनीटरिंग डिवीज़न (पीएमडी) 22 आवश्यक वस्तुओं की खुदरा और थोक कीमतों और स्पॉट व भविष्य की कीमतों की दैनिक आधार पर निगरानी करता है. यह डेटा देश भर में फैले 115 बाज़ार केंद्रों से एकत्र किया गया है.

हम “चाय” को विश्लेषण से बाहर रखते हैं क्योंकि फोकस ‘फूड’ ग्रुप पर है. इससे हमें 21 वस्तुओं का एक सेट मिलता है. ये 21 वस्तुएं कुल सीपीआई का लगभग 23 प्रतिशत और सीपीआई-खाद्य का लगभग 58 प्रतिशत हैं.

नीचे दी गई तालिका सीपीआई-फूड के तहत छह उप-समूहों में 21 वस्तुओं के वितरण को दर्शाती है. उदाहरण के लिए, ‘अनाज और उत्पाद’ श्रेणी की 20 वस्तुओं में से तीन वस्तुओं की निगरानी पीएमडी द्वारा दैनिक आधार पर की जाती है.

चित्रणः रमनदीप कौर | दिप्रिंट

जबकि 20 वस्तुओं का कुल सीपीआई में लगभग 10 प्रतिशत भार है, दैनिक आधार पर निगरानी की जाने वाली तीन वस्तुओं का भार लगभग 7.5 प्रतिशत है. इस प्रकार, वस्तुओं के ‘काउंट’ के संदर्भ में, हो सकता है कि रिप्रेजेंटेशन महत्वपूर्ण न हो, लेकिन दैनिक आधार पर ली गई इन 21 वस्तुओं की सीपीआई-फूड में भार के संदर्भ में महत्वपूर्ण उपस्थिति है.

टमाटर, प्याज और आलू के दाम बढ़ रहे हैं.

उपरोक्त आंकड़ा 1 अप्रैल, 2022 से इन 21 वस्तुओं की दैनिक कीमतों को दर्शाता है. यह दर्शाता है कि टमाटर की कीमतें 20 जून को 32 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 27 जून को 46 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं.


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मानसून के आने में देरी और ज्यादा गर्मी की वजह से टमाटर की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है. मार्च और अप्रैल की असामान्य गर्मी में कीटों का हमला हुआ जिससे फसल को नुकसान पहुंचा. हाल के कुछ दिनों में, दक्षिणी राज्यों में भारी वर्षा की वजह से फसलों के ट्रांसपोर्टेशन को प्रभावित किया जिससे जल्दी खराब हो जाने वाली वस्तुओं को नुकसान पहुंचा है. इसके अलावा टमाटर की बुआई भी पिछले साल के मुकाबले कम हुई है. पिछले साल बीन्स जैसी अन्य सब्जियों की कीमत बढ़ने के कारण, कई किसानों ने, विशेष रूप से कर्नाटक में, इस साल बीन्स उगाना शुरू कर दिया.

आंकड़े बताते हैं कि जून में प्याज और आलू की कीमतें भी बढ़ी हैं, हालांकि उस गति से नहीं जिस गति से टमाटर की कीमतों में बढ़ोत्तरी देखी गई है.

क्या हर साल इसी समय टमाटर की कीमतें बढ़ती हैं?

नीचे दिया गया आंकड़ा पिछले पांच वर्षों में टमाटर की खुदरा कीमतों को दर्शाता है. कीमतों में एक विशिष्ट मौसमी पैटर्न को समझना मुश्किल है, लेकिन निश्चित अनुमान यह है कि इस अवधि के दौरान कीमतें अस्थिर हो जाती हैं. उदाहरण के लिए, 2022 में टमाटर की कीमतें जून और फिर अक्टूबर में चरम पर थीं. 2020 में जुलाई और सितंबर में पीक देखने को मिला.

हाल के दिनों में कीमतों में वृद्धि रबी की फसल टमाटर के कारण हुई है – जो महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में उगाई जाती है. यह फसल मार्च से अगस्त के बीच बाजार में होती है. खरीफ की फसल अगस्त के बाद बाजार में पहुंचती है. आपूर्ति की कमी के परिणामस्वरूप वर्ष के विभिन्न महीनों में कीमतों में बढ़ोतरी होती है.

ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

सभी राज्यों में टमाटर की थोक कीमतें बढ़ीं

राज्यों के विभिन्न बाजारों में टमाटर की थोक आवक कीमतों में व्यापक वृद्धि दर्शाती है. टमाटर के लिए राज्य-वार थोक मासिक मूल्य विश्लेषण से पता चलता है कि महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में मई से जून 2023 तक कीमतों में अधिकतम वृद्धि देखी गई. यह ध्यान देने योग्य है कि सभी राज्यों में कीमतें अभी भी पिछले साल के इसी महीने की कीमतों से कम हैं. इसका मतलब यह है कि पिछले साल जून में भी कीमतें बढ़ी थीं.

ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

डेटा एगमार्कनेट पोर्टल से प्राप्त किया गया है, जो भारत में कृषि विपणन के बारे में स्थिर और गतिशील जानकारी प्रदान करता है. जबकि स्थैतिक जानकारी में बुनियादी ढांचे से संबंधित जानकारी जैसे भंडारण और बाजार से संबंधित जानकारी शामिल होती है, गतिशील जानकारी में विभिन्न किस्मों की कीमत, कुल आगमन और प्रेषण से संबंधित जानकारी शामिल होती है.

दालों के बढ़े दाम

पीएमडी के आवश्यक वस्तुओं की दैनिक कीमतों के आंकड़ों से पता चलता है कि दालों के बीच, तुअर और उड़द दाल की कीमतों में हाल के कुछ महीनों में तेजी देखी गई है. तुअर दाल की कीमतों को कम करने के लिए, सरकार ने भारतीय बाजार में आयातित स्टॉक आने तक इसे राष्ट्रीय बफर से जारी करने का निर्णय लिया है. जून की शुरुआत में, सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम लागू करके तुअर और उड़द पर स्टॉक सीमा लगा दी थी. थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं और मिलर्स जैसी स्टॉक-होल्डिंग संस्थाओं के साथ स्टॉक की स्थिति की निगरानी की जा रही है.

उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत तुअर, उड़द और मसूर के लिए 40 प्रतिशत की खरीद सीमा हटा दी है. यह कदम सरकार द्वारा इन दालों की खरीद सुनिश्चित करके किसानों को तुअर और उड़द के तहत बुआई क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रेरित करना है.

दूध की कीमतों में उछाल

2023 की शुरुआत से दूध की कीमतें निरंतर गति से बढ़ रही हैं. इसका एक बड़ा कारण लागत या उत्पादन में वृद्धि है. मक्का और मकई जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि के कारण फ़ीड की लागत बढ़ रही है. उत्पादन लागत में वृद्धि किसानों को अपने मवेशियों को पर्याप्त रूप से खिलाने से हतोत्साहित कर रही है जिसके परिणामस्वरूप कम पैदावार हो रही है.

श्रम लागत और परिवहन लागत में वृद्धि से भी उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है. आरबीआई ने अपने नवीनतम मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह भी कहा कि आपूर्ति में कमी और उच्च चारे की लागत के कारण दूध की कीमतें दबाव में रहने की संभावना है.

हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति के अन्य प्रमुख घटकों जैसे तेल और वसा की कीमतों में कमी देखी गई है. हाल के महीनों में गेहूं की कीमतों में भी नरमी देखी गई है. आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति ट्रैजेक्टरी इन गतिशीलता और सरकार के आपूर्ति हस्तक्षेप से आकार लेगा.

(राधिका पांडे एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं और प्रमोद सिन्हा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में फेलो हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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