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Thursday, 25 April, 2024
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क्यों दुर्घटनाग्रस्त होते हैं विमान- कुन्नूर हादसे की जांच का भारतीय वायुसेना के VVIP ऑपरेशन पर पड़ेगा असर

स्विस चीज़ मॉडल कुन्नूर हेलीकॉप्टर हादसे को बेहतर ढंग से समझा सकता है जिसमें जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 अन्य सैन्य कर्मियों ने जान गंवा दी है.

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एमआई-17 वी5 हेलीकॉप्टर हादसा, जिसमें भारत ने अपने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 अन्य सैन्य कर्मियों को गंवा दिया, एक ऐसी घटना है जिसे किसी भी देश के सशस्त्र बलों के लिए सबसे भयावह त्रासदी के तौर पर याद रखा जाएगा; कोई भी देश अपना शीर्ष सैन्य अधिकारी इस तरह नहीं खोता है. हालांकि, हादसे हैं, होते रहते हैं और अगर कोई इसी तरह के किसी गंभीर हादसे के बारे में सोचे तो दो दुर्घटनाएं सबसे पहले दिमाग में आती हैं. पहली 4 नवंबर 1977 को जोरहाट में हुई टीयू‑124 विमान दुर्घटना, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई यात्रा कर रहे थे.

कॉकपिट सेक्शन में मौजूद पांच वायुसैनिकों की मृत्यु हो गई, जबकि प्रधानमंत्री बाल-बाल बच गए और उन्हें सुरक्षित निकालकर नजदीकी गांव में पहुंचाया गया. उस दिन उन्हें शायद भगवान ने बचा लिया थादूसरी घटना 22 नवंबर 1963 को पुंछ के पास हुई जिसमें एक चेतक हेलीकॉप्टर हादसे में हमने पायलट के अलावा दो लेफ्टिनेंट जनरल, एक मेजर जनरल और एक एयर वाइस मार्शल को खो दिया. शीर्ष सैन्य अधिकारियों की जान लेने वाली यह भयावह दुर्घटना सभी अखबारों में मुख्य हेडलाइन वाली खबर होनी चाहिए थी, लेकिन उसी समय आधी रात को जॉन कैनेडी की हत्या कर दी गई. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन दो ‘त्रासद घटनाओं’ के बीच सभी संपादकों को रात भर अपनी लीड स्टोरी संशोधित करने में जुटे रहना पड़ा.

हादसे आखिर होते क्यों हैं, इसे ‘स्विस चीज़ मॉडल’ से समझ सकते हैं. किसी भी सिस्टम में कई परतें/डोमेन होते हैं और कुछ खामियां उनकी बनावट का हिस्सा होती हैं. अगर स्विस चीज़ के एक ब्लॉक को देखें तो इसकी हर स्लाइस पर छोटे-छोटे छेद नजर आएंगे लेकिन ये किसी एक सीध में नहीं होते, इससे कोई चीज सीधे अंदर तक पहुंचकर इसे खराब नहीं कर पाती. यही हाल छोटी-मोटी खामियों का भी होता है जो आमतौर पर तो कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं लेकिन जब एक-दूसरे जुड़ जाती हैं तो जोखिम बढ़ जाता है और नतीजा किसी हादसे के तौर पर भी सामने आ सकता है. हादसों की जांच करने वाले मानवीय त्रुटि और तकनीकी मुद्दों के अलावा प्रणालीगत और संगठनात्मक कमियों पर भी ध्यान देते हैं जो दुर्घटना की वजह हो सकती हैं. जांच रिपोर्ट बताती है कि दुर्घटना क्यों हुई और फिर ऐसी घटना न हो इसके लिए कुछ उपयुक्त कदम या उपाय सुझाती है. आइए हादसों के बाद की जाने वाली सिफारिशों के तीन उदाहरण देखें जिन्हें सामान्य संचालन का हिस्सा बनाया गया; मैं यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि तमाम घटनाओं के संदर्भ में इन्हें यहां पर मोटे-तौर पर ही लिया गया है.

प्रशासनिक

सुनने में यह बात भले ही थोड़ी अजीब लगे लेकिन पिछले कई हादसों से संबंधित एक सर्वे में पाया गया कि ये घटनाएं या तो तड़के हुईं या फिर ऐसे समय जब भोजन का समय होने वाला था. एक गहन अध्ययन बताता है कि सामान्यत: इनमें शामिल एयरक्रू ने उड़ान भरने से पहले ठीक से कुछ खाया नहीं था और नतीजा शुगर लेवल घटने के कारण उनकी उड़ान क्षमता प्रभावित होने के तौर पर सामने आया. साथ ही उनकी सक्रियता, सतर्कता और निर्णय लेने की क्षमता आदि में भी कमी नजर आई. इससे सबक लेते हुए सभी फ्लाइट कॉम्पलेक्स और एयरक्रू राशन परिसरों में कैफेटेरिया अनिवार्य कर दिया गया है. मुझे याद है कि 1976 में जब हम फाइट कैडेट थे, वायु सेना अकादमी में एयरक्रू राशन की व्यवस्था नहीं थी. हमारा नाश्ता कैडेटों के मेस से आता था और हमारे लिए उड़ान भरने से पहले थोड़ा-कुछ खाना अनिवार्य होता था. दरअसल, सॉर्टी से पहले हमारे ट्रेनर पूछते थे कि क्या हमने कुछ खाया है, बाद में खुद प्रशिक्षक बनने पर मैंने भी यह परंपरा जारी रखी.


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ऑपरेशनल

उड़ान भरने में कुछ समय का ब्रेक विमान उड़ाने की कुशलता में कमी लाता है. जब यह बात कुछ हादसों में सामने आई तो ‘ब्रेक इन फ्लाइंग’ की सीमा निर्धारित की गई थी. इसके बाद किसी भी पायलट के लिए विमान के कैप्टन के तौर पर उड़ान भरने से पहले चेकिंग के लिए किसी प्रशिक्षक के साथ एक चेक फ्लाइट अनिवार्य हो जाती है.

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22 नवंबर 1963 को पुंछ हादसे के बाद आदेश जारी किए गए कि दो जनरल एक ही हेलीकॉप्टर में उड़ान नहीं भरेंगे.
कई बार डिजाइन संबंधी विशेषताओं के कारण भी कुछ बदलाव करने की जरूरत पड़ती है. एएलएच ध्रुव में रोटोर्स काफी सख्त होते हैं और इसकी ‘रिट्रीटिंग ब्लेड स्टाल’ खासियत की वजह से विमान को जब एक खास स्पीड के साथ एक खास कोण पर तेजी से घुमाया जाता है तो ये बेकाबू होकर नीचे की तरफ जाता है. इसी को कुछ हादसों का कारण पाए जाने के बाद हेलीकॉप्टर में संचालन संबंधी कुछ पाबंदियां लगाई गईं. अगर कोई पुराने वीडियो में भारतीय वायुसेना की सारंग एरोबेटिक टीम की तेज और हैरतअंगेज कलाबाजियां देखे और उनकी तुलना नवीनतम वीडियो से करे तो अंतर साफ नजर आ सकता है. इसी तरह, सूर्यकिरण एरोबेटिक टीम के दो विमान भी कलाबाजी दिखाने के दौरान टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे जिसमें उल्टा होकर उड़ान भर रहा विमान दूसरे विमान से टकरा गया जो उसके नीचे सीधे उड़ान भर रहा था . बाद में ऐसी कलाबाजी को कुछ समय के लिए रोक दिया गया था और हाल ही में इसे दोनों के बीच अधिक सुरक्षित दूरी के साथ फिर शुरू किया गया है.

तकनीकी

मोटे तौर पर किसी तकनीकी कारण को दो श्रेणियों में रख सकते हैं, पहला, विमान की सर्विसिंग के दौरान किसी तरह की मानवीय चूक और दूसरा कोई तकनीकी खामी. मानवीय चूक वाला पहलू सुधारने का एक तरीका यह है कि सर्विसिंग शेड्यूल में सुपरविजन के स्तर पर अधिक गहन जांच की जाए, जबकि तकनीकी खामी सुधारने के लिए बुनियादी डिजाइन या सिस्टम में बदलाव जरूरी हो जाता है. इस मामले में सबसे उपयुक्त उदाहरण बोइंग 737 मैक्स का है, जिसके 2019 में दो घातक हादसों के बाद उड़ान बंद कर दी गयी थी, फिर सॉफ्टवेयर में बड़े बदलाव हुए, नए सिरे से सर्टिफिकेशन हुआ और इसके बाद ही 737 मैक्स को फिर से सेवा में शामिल किया गया.

ऐसे में, कुन्नूर में जनरल रावत का हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद क्या उम्मीद की जा सकती है? कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में सभी पहलुओं की विस्तार में जांच की जाएगी और यह तय है कि इसकी सिफारिशों का भारतीय वायुसेना के वीवीआईपी ऑपरेशन पर दूरगामी असर होगा. वास्तव में इस पूरे घटनाक्रम पर गहन मंथन किया जाएगा और ये भी तय है कि वायुसेना के बेड़े को ऐसे किसी हादसे की पुनरावृत्ति रोकने के लिए एक बड़ा सबक मिलेगा.

(लेखक भारतीय वायुसेना के पूर्व हेलीकॉप्टर उड़ान प्रशिक्षक और एक एक्पेरिमेंटल टेस्ट पायलट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @BahadurManmohan है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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