आखिर यह बांग्लादेश किसका है? उस भीड़ का बांग्लादेश जिसने देश के संस्थापक पिता शेख मुजीबुर रहमान के घर को आग के हवाले कर दिया? या वह गंभीर भीड़ जिसने हर साल 15 अगस्त 1975 को उनकी हत्या की सालगिरह मनाई है?
वह भीड़ जो बॉलीवुड के गानों पर थिरक रही थी, जब धानमंडी 32 — स्मारक — को आग के हवाले कर दिया गया था? या वह लोग जिन्होंने अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए एक राष्ट्र का निर्माण किया, जो शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बन गया जो राष्ट्रीय अवकाश के साथ एक भाषा का जश्न मनाता है?
आखिर यह बांग्लादेश किसका है?
वह लोग जिन्होंने अविजित रॉय जैसे ब्लॉगर्स की हत्या की? या शाहबाग के प्रदर्शनकारी जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता के लिए और जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के सदस्यों द्वारा 1971 के युद्ध अपराधों की सज़ा के लिए लड़ाई लड़ी, जिसने पाकिस्तान के विखंडन का विरोध किया?
वह लोग जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को लूटा और उसकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया? या वो लोग जिन्होंने 1971 में मुक्ति के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी?
आज के बांग्लादेश को भी हेमलेट की तरह उस सवाल का सामना करना होगा जो उसे परेशान करता रहा है.
क्या वह 1971 में 75 मिलियन सपनों से जन्मा बांग्लादेश बन पाएगा या नहीं?
या उसका व्यंग्य?
5 फरवरी
5 फरवरी को ढाका के धानमंडी 32 में जो कुछ हुआ, वह आज 170 मिलियन की आबादी वाले बांग्लादेश की आत्मा के लिए एक नई लड़ाई थी. उस शाम हज़ारों युवा — ज़्यादातर पुरुष और कुछ महिलाएं — उस घर पर उतरे जहां शेख मुजीब की उनकी पत्नी, दो बेटों और कई अन्य परिवार के सदस्यों के साथ हत्या कर दी गई थी. यह वही घर था जिसे उनकी बेटी शेख हसीना ने एक शोकपूर्ण स्मारक में बदल दिया था.
भीड़ ने पहले हथौड़ों और छड़ों से उस पर हमला किया, फिर उसमें आग लगा दी और अंत में बुलडोजर आ गया.
स्मारक को गिराने की धमकी 4 फरवरी को आई थी, जब अवामी लीग ने घोषणा की थी कि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना, जो वर्तमान में नई दिल्ली में शरण लिए हुए हैं, 5 फरवरी की शाम को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को लाइव संबोधित करेंगी. शेख हसीना को गिराने वाले भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक हसनत अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर लिखा: “शेख हसीना के लिए भाषण देने का अवसर बांग्लादेश के फासीवाद विरोधी लोगों के खिलाफ भारत का युद्ध है…भाषण बांग्लादेश के लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है.”
लेकिन सच्चाई यह है कि हसीना के बोलने से पहले ही उनके पिता के घर पर हमला हो चुका था और अगर कोई यह न देख पाए कि हमला पहले से ही योजनाबद्ध था तो वह अंधा ही होगा. धानमंडी 32 के आसपास बड़े स्पीकरों की मौजूदगी और सेना, पुलिस और यहां तक कि फायर ब्रिगेड की अनुपस्थिति को और कुछ नहीं समझा सकता.
शेख हसीना की उस दिन बोलने की योजना बांग्लादेश में कई लोगों के अनुसार शेख मुजीब के स्मारक पर हमला करने का एक सुविधाजनक बहाना लग रहा था. अगर उन्होंने न बोलने का फैसला किया होता तो शायद कोई और बहाना ढूंढ लिया जाता.
रात भर तोड़फोड़ जारी रही और तोड़फोड़ का यह उन्माद ढाका के अन्य स्थानों तथा देश भर में अवामी लीग से जुड़े स्थानों तक फैल गया.
भारत पर आरोप?
ढाका में सत्ता में बैठे लोगों — अंतरिम सरकार की प्रतिक्रिया गुरुवार शाम को आई. घटना की निंदा महज़ दिखावटी लग रही थी और इसके लिए भारत को दोषी ठहराया जा रहा था, क्योंकि उसने शेख हसीना को सार्वजनिक भाषण देने से नहीं रोका.
बांग्लादेश सरकार के पहले बयान में कहा गया, “जुलाई के विद्रोह के खिलाफ भारत से भगोड़ी शेख हसीना द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों ने लोगों में गहरा गुस्सा पैदा किया है, जो इस घटना में सामने आया है.”
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भी भारत से कहा है कि वह हसीना को अपनी धरती से “झूठे और मनगढ़ंत” बयान देने से रोके.
भारत ने ढाका में 5 फरवरी की घटना की निंदा की है, लेकिन अपने पड़ोसी के साथ रिश्तों को खराब किए बिना अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए उसे बहुत सावधान रहना होगा.
आम बांग्लादेशी और उपद्रवी
बांग्लादेश में आम लोगों के लिए कूटनीतिक मजबूरियां और वैचारिक टकराव बहुत मायने नहीं रखते. सबसे महत्वपूर्ण है हर दिन गुज़ारा करना.
महंगाई ने कई घरों में दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल बना दिया है. पिछले नवंबर में यह बढ़कर 11.38 प्रतिशत हो गई, जो पिछले 14 सालों में मुद्रास्फीति का दूसरा सबसे ऊंचा स्तर है. दिसंबर में यह आंकड़ा घटकर 10.89 प्रतिशत और फिर जनवरी में 9.94 प्रतिशत हो गया, लेकिन अंडे और चीनी जैसी दैनिक ज़रूरतें कई लोगों की पहुंच से बाहर हैं.
ढाका में एक परिचित के अनुसार, अंडे की कीमत 135 टका प्रति दर्जन है, जो कि 11.25 टका प्रति पीस है. चीनी 135 से 140 टका प्रति किलो, सोयाबीन तेल 190 टका प्रति लीटर और सरसों का तेल 230 टका प्रति लीटर है. चावल की कीमत 60 टका प्रति किलो से कम नहीं है और आलू 20 टका प्रति किलो है.
तो, धानमंडी 32 में तोड़फोड़ करने वाली भीड़ में कौन लोग थे? धानमंडी 32 के मलबे के ऊपर से भीड़ द्वारा चरमपंथी समूह हिज्ब उत-तहरीर (जो कई देशों में प्रतिबंधित है), साथ ही आईएसआईएस और यहां तक कि पाकिस्तान के झंडे लहराने की चौंकाने वाली खबरें हैं.
आस-पास के इलाकों में बड़े-बड़े स्पीकरों पर मुन्नी बदनाम हुई जैसे बॉलीवुड गाने बज रहे थे, जिस पर युवा बेतहाशा नाच रहे थे. अगली सुबह, एक महिला जो मौके पर आई और तोड़फोड़ पर हैरानी जताई, उसके साथ सबसे बुरे तरीके से दुर्व्यवहार किया गया; अगर कुछ युवा और एक अखबार के फोटोग्राफर ने उन्हें सुरक्षित नहीं पहुंचाया होता तो और भी बुरा हो सकता था. इस घटना का वीडियो, जो अब वायरल हो गया है, परेशान करने वाला है और कुछ समय पहले अफगानिस्तान की असहज याद दिलाता है.
बांग्लादेशी कौन हैं जो अपने देश को शर्मसार कर रहे हैं?
आखिर यह बांग्लादेश किसका है?
समाधान क्या है?
स्थिति यह सवाल उठाती है कि ढाका में कौन प्रभारी है? क्या यह मुहम्मद यूनुस है? क्या यह भेदभाव विरोधी छात्र समूह है जिसने शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने में मदद की? जमात? या पाकिस्तान इसके लिए जिम्मेदार है?
आखिरी संभावना भारत के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि ढाका ने इस्लामाबाद के साथ जिस तरह से दोस्ताना व्यवहार किया है. बांग्लादेश ने पाकिस्तानी मालवाहक जहाजों के लिए अपने बंदरगाहों तक पहुंच प्रदान की है, इस्लामाबाद से सीधी उड़ानें प्रस्तावित हैं और हाल ही में आईएसआई के एक वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल ने कथित तौर पर ढाका का दौरा किया.
इस स्थिति का समाधान क्या हो सकता है? पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनाव. चुनाव में जितनी देरी होगी, 5 फरवरी जैसी घटनाओं की संभावना उतनी ही अधिक होगी. अगर बांग्लादेश विफल राष्ट्र के रूप में लेबल किए जाने की त्रासदी से बचना चाहता है तो वह ऐसा नहीं कर सकता.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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