एक सवाल जो हवा में तैर रहा है, वह है कि शी जिनपिंग के बाद क्या होगा. इस प्रश्न का उत्तर देना केवल उनकी ओर से पद छोड़ने की इच्छा की कमी को जिम्मेदार ठहराने से कहीं अधिक जटिल है. शी की शक्ति को इकट्ठा करने के बारे में मीडिया नैरेटिव इस बात को भूल जाती है कि महासचिव के रूप में पद छोड़ना नियंत्रण छोड़ने जितना आसान नहीं हो सकता है.
चीनी इतिहास राजवंशों के उत्थान और पतन से भरा पड़ा है, जो अक्सर उत्तराधिकारी खोजने में विफलता के कारण होता है. पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना के बाद से, उत्तराधिकार का मुद्दा हमेशा नाटकीय रहा है, जिसके कारण कई बार लोगों को पद से हटाया गया है – पूर्व बड़े नेता डेंग जियाओपिंग को दो बार हटाया गया.
चीन में सत्ता की हनक काफी है; पिछले राजवंशों को तब नुकसान उठाना पड़ा था जब सत्तारूढ़ नेता सत्ता के सुचारु परिवर्तन को सुनिश्चित करने में विफल रहे. आने वाले वर्षों में शी को इतिहास का सटीक महत्त्व महसूस होगा.
चुन हान वोंग ने अपनी नई किताब पार्टी ऑफ वन: द राइज ऑफ शी जिनपिंग एंड चाइनाज सुपरपावर फ्यूचर में लिखा है, “शी के लिए, यह जाना-बूझा एक रहस्य है. बहुत कम लोग, अगर कोई है, और शायद खुद शी भी नहीं जानते हैं कि वह कितने समय तक सत्ता में रहना चाहते हैं.”
डेंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के भीतर पावर शेयरिंग को मैनेज करने के लिए ‘कलेक्टिव लीडरशिप’ को स्थापित किया, लेकिन उन्होंने अपने शिष्य झाओ ज़ियांग को हटा दिया. कलेक्टिव लीडरशिप एक ऐसा मॉडल था जो यह सुनिश्चित करता था कि पोलित ब्यूरो स्थायी समिति के अन्य सदस्य महासचिव की शक्ति की जांच कर सकें. शी ने इस कलेक्टिव लीडरशिप को ख़त्म कर दिया और इसकी जगह एक पर्सनैलिटी कल्ट को बढ़ावा दिया जो कि अब ब्यूरोक्रेसी को संचालित करती है.
कलेक्टिव लीडरशिप मॉडल के बावजूद, पिछले नेताओं ने अपनी शक्तियों का उपयोग अपने अधिकार को निर्धारित सीमा से आगे बढ़ाने के लिए किया है.
70 वर्ष की आयु सीमा के कारण पूर्व चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन को 2002 में महासचिव का पद छोड़ना पड़ा. लेकिन जियांग अपने सहयोगियों को पोलित ब्यूरो स्थायी समिति में स्थापित करने और केंद्रीय सैन्य आयोग के प्रभारी बने रहने में कामयाब रहे, विली वो-लैप लैम ने अपनी क्लासिक पुस्तक, शी जिनपिंग के युग में चीनी राजनीति: रेनेसां, रिफॉर्म या रेट्रोग्रेशन?
जियांग ने अपने कार्यकाल के बाद भी संस्थाओं पर अपना दबदबा कायम रखने के लिए अपने उत्तराधिकारियों को प्रमोट करते हुए संस्थाओं पर अपनी पकड़ को बनाए रखा. शी संभावित रूप से जियांग द्वारा हासिल की गई उपलब्धि को पाने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन शी के वक्त की परिस्थितियां – शक्ति का अति केंद्रीकरण – बहुत अलग हैं. इसीलिए सत्ता संघर्ष की संभावना बढ़ती है.
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चीन का ऐतिहासिक सत्ता संघर्ष
कुछ चीनी इतिहासकार, जैसे कि जेम्स फर्ग्यूसन और रोज़िटा डेलिओस, तर्क देते हैं कि सत्ता परिवर्तन एक समस्या है जो काफी समय से चली आ रही है.
किंग राजवंश युग के दौरान कई उत्तराधिकार प्रथाओं को अपनाने की कोशिश की गई. चीन में मांचू और मंगोल राजवंशों ने उत्तराधिकारी को सिंहासन के लिए प्रतिस्पर्धा करने देने की प्रथा का पालन किया – कभी-कभी एक-दूसरे के खून का प्यासा बनकर भी. जुर्चेन नेता नूरहासी, जिन्होंने आगे चलकर किंग राजवंश की स्थापना की, उन्होंने उत्तराधिकार का प्रश्न अपने बेटों पर छोड़ दिया, जिन्हें शाही सिंहासन के लिए एक-दूसरे के बीच लड़ना होगा. उत्तराधिकारी चुनने की जुरचेन की पद्धति के कारण खूनी युद्ध हुए जब तक कि एक नेता संघर्ष करके सिंहासन तक नहीं पहुंच गया.
हान शासकों ने सफल होने के लिए अपनी संतान में सबसे बड़े को चुनना पसंद किया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कई कमज़ोर शासक बने. किंग सम्राटों ने एक गुप्त चयन प्रक्रिया विकसित करके हान और मांचू लोगों की प्रथा को मिलाने की कोशिश की.
योंगझेंग सम्राट ने समस्या का समाधान ढूंढ लिया. उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का नाम एक गुप्त मतपेटी में छोड़ दिया जिसे उनकी मृत्यु के बाद खोला जाएगा. गुप्त प्रक्रिया के माध्यम से चुना गया उत्तराधिकारी क़ियानलोंग सम्राट था, जो अपने दादा, कांग्शी सम्राट के प्रति श्रद्धा के कारण सिंहासन छोड़ने के बावजूद वास्तविक शक्ति के साथ चीन का सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाला राजा बन गया.
हम यह नहीं कह सकते कि चीन का लंबा इतिहास आज सीसीपी को प्रभावित नहीं करता है. कहा जाता है कि शी इतिहास से सबक लेते हैं और चीनी दार्शनिक हान फ़ेई की विधि-कानून और शासन कला के अन्य दर्शनों के शौकीन हैं.
योंगझेंग की तरह, शी भी अपने संभावित उत्तराधिकारी के नामों पर विचार कर रहे होंगे, लेकिन घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बदलती जमीन के कारण उन्हें आने वाले वर्षों में नामों पर फिर से विचार करना पड़ेगा.
शी की एकमात्र सगी संतान हार्वर्ड से पढ़ी उनकी बेटी शी मिंग्ज़ है, और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि वह उसे अपनी जगह पर स्थापित करने वाले हैं. चीनी आभिजात्य राजनीति की दुनिया में एक महिला नेता का अस्तित्व बने रह पाना कठिन है, और इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि शी अपनी बेटी को इस भूमिका के लिए तैयार करके व्यक्तिगत तानाशाही स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं.
कैसा होगा शी का सहयोगी?
शी के लिए उत्तराधिकारी चुनना आसान काम नहीं होगा. पद छोड़ने के बाद उन्हें अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी को ढूंढना होगा.
माओत्से तुंग के दौरान और उसके बाद देखे गए खूनी सत्ता संघर्ष से बचने के लिए शुरू की गई डेंग के सुरक्षा घेरे को कलेक्टिव लीडरशिप के ज़रिए कुछ हद तक टाला जा सकता था.
यदि कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी सामने नहीं आता है तो पोलित ब्यूरो स्थायी समिति में शी के सहयोगी संभवतः किसी नेता का समर्थन करने के लिए समूह बनाना शुरू कर देंगे. इस रस्साकशी से पैदा होने वाली अंदरूनी लड़ाई अगले पांच से दस वर्षों में भड़क सकती है, लेकिन यह निश्चित रूप से कई लोगों को उनकी कुर्सी से दूर रखेगी.
शी अपने शासनकाल से परे अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध एक सहयोगी की तलाश करेंगे. शी के पिता, शी झोंगक्सुन को माओ ने हटा दिया था, और उस युग के दौरान शी के संघर्षों ने उनकी पसंद के बारे में बताया.
ताइवान जलडमरूमध्य में संभावित संकट पर ध्यान देने वाले वैश्विक दर्शक अक्सर उस आंतरिक उथल-पुथल को भूल जाते हैं जिसने चीनी इतिहास को तब प्रभावित किया जब भी सत्ता परिवर्तन गलत हुआ. दुनिया आने वाले वर्षों में शी से दूसरे नेता को बागडोर सौंपने के परिणामस्वरूप होने वाली राजनीतिक उथल-पुथल पर समान रूप से ध्यान देना चाहेगी.
शी के लिए चीनी राजनीति की सीढ़ियां चढ़ना आसान हो सकता है, लेकिन पर्सनैलिटी कल्ट से हटना आसान नहीं होगा. आख़िरकार, चीनी इतिहास के ज्वार ने कई शासकों को बहा दिया है.
(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीनी मीडिया पत्रकार थे. वह वर्तमान में ताइपे में स्थित MOFA ताइवान फेलो हैं और उनका ट्विटर हैंडल @aadilbrar है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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