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Sunday, 10 November, 2024
होममत-विमतहोली, ईद, कुरान और इस्लाम खतरे में हैं — क्या पाकिस्तान इसलिए बना था?

होली, ईद, कुरान और इस्लाम खतरे में हैं — क्या पाकिस्तान इसलिए बना था?

होली पर एक सोशल मीडिया पोस्ट देश की नींव को कमज़ोर करने, इस्लाम को खतरे में डालने और सदियों पुराने सवाल को सामने लाने के लिए काफी था — क्या पाकिस्तान इसलिए बना था?

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विडंबना तो यह है कि जिस सरज़मीं से होली की शुरुआत हुई, वही अपनी समृद्ध विरासत से मुखालफत करने की कोशिश कर रही है. उतनी ही विडंबना यह है कि जो देश दुनिया को इस्लामोफोबिया पर सबक सिखाना चाहता है, वह अपने ही अहमदी नागरिकों को ईद-अल-अधा मनाने से रोक रहा है.

मानो यह काफी नहीं है कि पाकिस्तानी राज्य ने घोषणा की है कि अहमदी “गैर-मुस्लिम” हैं, उन्हें उत्पीड़न के आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है. अब यह एक रिवाज़ बन गया है कि हर ईद-अल-अधा पर अहमदियों की ईद की नमाज़ अदा करने और जानवरों की कुर्बानी करने की आज़ादी को लेकर विवाद शुरू हो जाता है.

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) जैसे इस्लामी समूह और राजनीतिक दल बार एसोसिएशन के साथ साझेदारी करते हैं और अहमदियों को उनके इबादतगाहों के अंदर ईद की नमाज़ अदा करने से रोकने के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. अगर परिवार अपने घर की चारदीवारी के भीतर भी किसी बकरे की कुर्बानी करने के बारे में सोचते हैं तो उन्हें ईशनिंदा के आरोप में फंसाने की धमकी दी जाती है. एक पुलिस अधिकारी ने एक मस्जिद में घोषणा की कि जो भी अहमदी ईद की रस्में निभाना चाहता है, उसे पहले इस्लाम कबूल करना होगा. पड़ोसियों को ईद पर उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने का काम सौंपा गया है.

पिछले महीने कराची के 77-वर्षीय एक अहमदी वकील को अपने नाम में सरनेम “सैयद” का उपयोग करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. एक महीना जेल में बिताने के बाद उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन वकील को 30 साल पुराने मामले में ईशनिंदा कानून के तहत तुरंत फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. उनका अपराध “अस्सलामु अलैकुम” कहना था. इस आरोप में 13 साल की जेल की सजा हो सकती है.

हालांकि, विभाजन से पहले ऐसा नहीं था, तब अहमदी सुन्नियों या शियाओं की तरह ही मुस्लिम थे. कम से कम पाकिस्तान की सीमा के बाहर अब भी यही स्थिति है.


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आसान टारगेट

पाकिस्तान में छात्रों के लिए होली का त्योहार वर्जित है. इस बात पर गौर फरमाया जाए कि होली की शुरुआत मुल्तान से हुई थी.

पिछले हफ्ते कायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी इस्लामाबाद के स्टूडेंट्स के कैंपस में होली मनाते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए. यह उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था. छात्रों को पश्तून और बलूच पारंपरिक नृत्य अत्तान और चाप करते भी देखा गया.

लेकिन राज्य और इस्लाम के ठेकेदारों को कैंपस में होली खेलने वाले पाकिस्तानी छात्रों से ज्यादा कोई चीज़ उत्तेजित नहीं करती. रंगों की एक झलक से ही उनकी आंखें दुखने लगती हैं और हंसी और आनंद रातों की नींद हराम करने का एक नुस्खा है.

टीएलपी प्रमुख साद रिज़वी ने कहा, “पाकिस्तान इसलिए नहीं बनाया गया था कि आप यहां होली मना सकें. जिन लोगों ने ऐसा किया उन्हें शर्म से डूब जाना चाहिए.”

उच्च शिक्षा आयोग (एचईसी) के कार्यकारी निदेशक भी उतने ही गुस्से में थे, जिन्होंने अफसोस जताया कि एक होली पार्टी ने “चिंता पैदा की और देश की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव डाला”.

दिलचस्प बात यह है कि, “होली के हिंदू त्योहार को मनाने में प्रदर्शित उत्साह” ने कुख्यात जामिया हफ्सा मदरसे के छात्रों द्वारा एक पुलिस अधिकारी को अपनी लाठियों से पीटने और उनके प्रिंसिपल द्वारा पुलिस अधिकारियों को धमकी देने की तुलना में अधिक चिंता और आक्रोश पैदा किया कि वह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की मदद पुलिस बल पर आत्मघाती बमों से हमला करेंगे.

निःसंदेह यह सब और उससे कहीं अधिक ‘फायदेमंद’ तरीके से उस देश पर प्रभाव डालता है जो रंगों से चिढ़ता है.

जब झूठे आरोपों, अफवाहों और यहां तक कि ईशनिंदा के सपने को लेकर परिसर में सहपाठियों द्वारा छात्रों की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है, तो पाकिस्तान की छवि खराब नहीं होती. जब छात्र ईशनिंदा के आधार पर शिक्षकों की हत्या करते हैं तो इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. उनका ‘अपराध’ मिश्रित पुरुष-महिला कॉलेज पार्टी आयोजित करने से लेकर टीएलपी धरने में भाग लेने वाले छात्रों को कम उपस्थिति के बारे में बताने तक हो सकता है.

यहां तक कि अगर आप इंटरनेट की गहराइयों में भी खोजबीन करें, तो भी आपको इनमें से किसी भी घटना की निंदा करते हुए एचईसी के किसी नौकरशाह का लंबा भावनात्मक पत्र नहीं मिलेगा. किसी ने फुलब्राइट विद्वान और प्रोफेसर जुनैद हाफिज़ के लिए पत्र नहीं लिखा है, जो ईशनिंदा के आरोप में मौत की सज़ा पर हैं.

इस साल, पंजाब यूनिवर्सिटी में एक होली कार्यक्रम में छात्र संगठन इस्लामी ज़मीयत-ए-तलाबा के सदस्यों द्वारा 15 हिंदू छात्रों पर हमला किया गया था. आईजेटी ने इसके लिए कराची यूनिवर्सिटी में हिंदू छात्रों के साथ भी दुर्व्यवहार किया और उनकी पिटाई की. राजनीतिक दल ज़मीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता राशिद सूमरो को हमले से नहीं बल्कि होली के जश्न से झटका लगा है. उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे इस्लाम का प्रवेश द्वार सिंध नई दिल्ली बन गया है.

उसी निर्वाचन क्षेत्र को पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहम्मद रिज़वान की धर्मनिरपेक्ष संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदल पथ पर नमाज़ अदा करते हुए तस्वीर से अत्यधिक खुशी मिलती है. या जब भारत के नए संसद भवन में कुरान सुन रहे हों, लेकिन घर पर अन्य धर्मों को स्वीकार करने से अस्तित्व का संकट पैदा हो जाता है.


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एक कमज़ोर बुनियाद

हालांकि, ये कोई नई समस्या नहीं है. इन हमलों से प्रधानमंत्री भी नहीं बचे हैं.

मौलवियों के अनुसार 2017 में होली और दिवाली समारोहों में पीएम नवाज़ शरीफ की उपस्थिति ने “पाकिस्तान की वैचारिक नींव” को हिला दिया. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया है.

जब शरीफ ने अहमदी पूजा स्थलों पर 2010 के आतंकवादी हमले की निंदा की और समुदाय को मुसलमानों का भाई और पाकिस्तान के लिए संपत्ति कहा, तो राजनीतिक और धार्मिक समूहों ने इसे पाप माना. ज़मीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने कहा कि “उन्हें अपने बयान के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से माफी मांगनी चाहिए”.

इस बार, होली पर एक सोशल मीडिया पोस्ट देश की नींव को कमज़ोर करने, इस्लाम को खतरे में डालने और सदियों पुराने सवाल को सामने लाने के लिए पर्याप्त था – क्या पाकिस्तान इस लिए बना था?

जो कुछ भी निर्धारित धार्मिक संरचना से बाहर है वो इस सवाल में ‘इस’ का स्थान ले सकता है. जश्न मनाने वालों को क्रिसमस, दिवाली या होली की शुभकामनाएं देने से लेकर हमले के शिकार लोगों के साथ एकजुटता दिखाने तक.

ऐसा ही होता है जब पाकिस्तान अपने 76 साल के इतिहास से परे देखने से इनकार कर देता है. शायद अब तालिबान से अलग सबक लेने का समय आ गया है जो अब पर्यटकों के लिए बामियान बुद्ध के खंडहरों का प्रचार कर रहे हैं जिन पर उन्होंने 2001 में बमबारी की थी.

(नायला इनायत पाकिस्तान की फ्रीलांस पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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