2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाता उत्साहित नहीं हैं, या जैसा कि उत्तर भारत में कहा जाता है – “ठंडें” हैं. हालांकि, मौसम बहुत गर्म है और चुनाव का मौसम बहुत लंबा है. मुख्यधारा का मीडिया एक कृत्रिम ऑर्केस्ट्रा दिखा रहा है, लेकिन शहरों और गांवों में मूड थकान और उदासीनता वाला है.
कोई हैरानी नहीं कि चुनाव मंत्री – माफ कीजिएगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि एक उदासीन मतदाता को प्रेरित करने का एकमात्र तरीका – जो अब “अबकी बार 400 पार” या “घर घर मोदी” का नारा नहीं लगा रहा है – सामूहिक ध्यान भटकाने के हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है.
वे कड़े लहज़े में डर की राजनीति कर रहे हैं. एक दिन वे घोषणा करते हैं कि कांग्रेस का घोषणापत्र मुस्लिम लीग जैसा है. अगले दिन वे भविष्यवक्ता की भूमिका निभाते हैं और घोषणा करते हैं कि कांग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीन लेगी और तीसरे दिन, वे चेतावनी देते हैं कि कांग्रेस सभी की संपत्ति मुसलमानों में बांट देगी.
फिर भी, 10 साल से सत्ता में रही सरकार अपने रिकॉर्ड पर मौन साधे हुए है. पिछले दो कार्यकाल में उसने क्या किया है, इस बारे में बात करने से वह साफ इनकार करती है.
आमतौर पर, इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद, लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के प्रदर्शन और उनकी सरकार की सफलताओं और असफलताओं पर जनमत संग्रह होना चाहिए, लेकिन अब तक, चुनाव मंत्री – माफ कीजिएगा, प्रधानमंत्री केवल पिछली कांग्रेस सरकारों की विफलताओं का ही बखान कर रहे हैं. मोदी हमें अपनी सरकार की उपलब्धियों या उनकी कमी के बारे में नहीं बताएंगे.
तो, शायद ऐसा करना मेरी नैतिक ज़िम्मेदारी है.
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नोटबंदी, चीन, मौतें
सबसे पहले, नोटबंदी, मोदी सरकार की प्रमुख घोषणा. 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे, मोदी अचानक टीवी स्क्रीन पर आए और घोषणा की कि आधी रात से 500 और 1,000 रुपये के सभी नोट अवैध हो जाएंगे. चार घंटे में प्रचलन में मौजूद 86 प्रतिशत मुद्रा बेकार हो गई. इसका उद्देश्य काले धन से लड़ना था, लेकिन अराजकता, निराशा और त्रासदियां शुरू हो गईं.
बैंकों के बाहर लंबी कतारें लग गईं. कई छोटे उद्यमों को बंद करना पड़ा क्योंकि उनके पास अपने मज़दूरों को देने के लिए पैसे नहीं थे. अर्थशास्त्री अरुण कुमार के अनुसार, इस (2016) साल की वृद्धि दर में एक प्रतिशत की कमी आई.
और अंदाज़ा लगाइए क्या? अवैध धन फिर से बाज़ार में आ गया है. आयकर विभाग नोट बरामद करने के लिए लगातार छापेमारी कर रहा है. 2023 में आयकर विभाग ने कहा कि उसने नई दिल्ली और हरियाणा में व्यापारिक समूहों पर छापे मारकर 150 करोड़ रुपये नकद बरामद किए हैं. तमिलनाडु में चिट फंड और रेशमी साड़ी व्यापारियों पर छापे में 250 करोड़ रुपये नकद मिले. मौटे तौर पर, नोटबंदी असफल रही.
लाखों लोगों को बिना किसी कारण के अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं. अगर नोटबंदी मोदी सरकार की शानदार उपलब्धियों में से एक है, तो वह 8 नवंबर को ‘नोटबंदी’ दिवस क्यों नहीं मनाती? इसके बजाय, मोदी 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” ज़रूर मनाते हैं.
कोविड-19 के दौरान मोदी सरकार नींद में थी. हमारे पास अभी भी सटीक संख्या नहीं है कि कितने लोगों की जान गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि भारत में 2020 और 2021 के बीच कोविड के कारण लगभग 47 लाख लोगों की मौत हुईं — केंद्र सरकार द्वारा बताए गए आधिकारिक आंकड़ों से लगभग 10 गुना अधिक.
मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने कहा कि महामारी के दौरान भारत में मौतों की संख्या कम बताई गई है और यह आधिकारिक आंकड़ों से छह से आठ गुना अधिक है. मोदी सरकार ने WHO की कड़ी निंदा की, लेकिन जनता को यह बताने से इनकार कर दिया कि मृत्यु के आंकड़े असल में कितने हैं और किस पद्धति से मृत्यु दर के आंकड़ों की गणना की गई है.
जैसे ही महामारी फैलनी शुरू हुई, मार्च 2020 में संसद का सत्र आयोजित किया गया. उसी महीने, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा दिया गया. अचानक, 24 मार्च 2020 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन, मोदी टीवी पर आए और केवल चार घंटे के नोटिस पर भारत के 130 करोड़ देशवासियों के सामने पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की. आवाजाही के सभी साधनों को क्रूरतापूर्वक बंद किया गया. सैकड़ों-हज़ारों हताश प्रवासी मज़दूर दूरदराज अपने घरों की ओर पैदल ही सड़कों पर निकल पड़े. कितने ही लोगों ने रास्ते में दम तोड़ दिया.
मई 2021 में जबकि कोविड-19 से मरने वालों की संख्या और संक्रमण अभी भी बढ़ रहे थे, सरकार ने हरिद्वार में कुंभ मेले की अनुमति दे दी. हिंदी भाषा के अखबार, दैनिक भास्कर ने गंगा के किनारे जलती हुई असंख्य लाशों और नदी में तैरती लाशों की दर्दनाक तस्वीरें प्रकाशित कीं. 22 जुलाई को अखबार के कई दफ्तरों पर आयकर विभाग ने छापे मारे.
मोदी ने अभी तक जनता के सामने रिपोर्ट कार्ड पेश नहीं किया है कि उनकी सरकार ने नोटबंदी, जल्दबाजी में लगाया गया और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और कोविड-19 और लॉकडाउन के दौरान हुए नुकसान की तिहरी मार से निपटने के लिए क्या किया है.
चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के बारे में भारतीय नागरिकों को भी ठीक से जानकारी नहीं दी जा रही है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मोदी की ‘झूला कूटनीति’ स्पष्ट रूप से बुरी तरह से गलत साबित हुई है. 2014 में मोदी ने साबरमती तट पर गुजराती शैली के झूले पर शी के साथ पोज़ दिया था.
2023 तक, चीन ने भारतीय क्षेत्र के 2,000 वर्ग किलोमीटर पर कब्ज़ा कर लिया. अब तक भारतीय और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच 21 दौर की बातचीत हो चुकी है.
15 जून 2020 को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हुई झड़पों के बाद, जिसमें 20 भारतीय जवान मारे गए थे, मोदी ने कहा: “न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है.”
लेकिन अगर भारत और चीन के बीच कोई क्षेत्रीय विवाद नहीं है, तो फिर इतने दौर की बातचीत क्यों हो रही है? चीन के साथ क्या गलत हुआ? मोदी हमें नहीं बताएंगे. वास्तव में, मोदी ने उस देश का नाम लेने की हिमाकत तक नहीं की.
मोदी ने हमें यह भी नहीं बताया कि पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते अचानक इतने खराब क्यों हो गए. दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री अचानक पाकिस्तान पहुंच गए. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को गले लगाया और हाथ में हाथ डालकर चले. मोदी ने लाहौर में शरीफ के आलीशान घर का दौरा भी किया. अगर पाकिस्तान ने भारत को सीमा पार आतंकी हमलों पर ठोस आश्वासन नहीं दिया था, तो मोदी शरीफ की पोती की शादी में क्यों शामिल हुए? एक साल बाद 2016 में आतंकवादियों ने उरी हमला किया और भारत ने फिर से पाकिस्तान को “आतंकवादी देश” कहना शुरू कर दिया.
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नया सपना बुनना
मोदी ने हाल ही में दावा किया कि “केंद्र द्वारा समय पर हस्तक्षेप ने मणिपुर को बचा लिया”. सच में? मणिपुर में एक साल से गृह युद्ध चल रहा है. जातीय हिंसा में 200 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और 70,000 से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. प्रधानमंत्री ने एक बार भी राहत शिविरों का दौरा क्यों नहीं किया? मणिपुर पर संसदीय बहस की अनुमति देने के लिए विपक्ष को केंद्र पर अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी क्यों देनी पड़ी? मणिपुर में महिलाओं को नग्न करके घुमाए जाने के भयावह वीडियो के बाद केंद्र ने अपनी चुप्पी क्यों तोड़ी? यह कहना कि केंद्र ने मणिपुर को “बचाया” है, सरासर झूठ है.
मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन 2020-2021 के बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन दिखाते हैं कि ऐसा नहीं हुआ है. सरकार ने 2015 में स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया था और दिसंबर 2023 तक सिर्फ मदुरै परियोजना पूरी हो पाई.
गोवा के पणजी में जो एक प्रस्तावित स्मार्ट सिटी है, आपको सिर्फ खोदी हुई सड़कें और क्रेन ही दिखाई देती हैं. केंद्र सरकार 22,814 करोड़ रुपये की 400 परियोजनाओं के लिए 2023 की समय सीमा को पूरा करने में विफल रही है.
आज भारत मानव विकास सूचकांक में 134वें स्थान पर है और वैश्विक भूख सूचकांक में 111वें स्थान पर है. भारत में मात्र 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत संपत्ति है. द वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन, जिसका शीर्षक है Income and Wealth Inequality in India: The Rise of the Billionaire Raj के अनुसार, भारत में वर्तमान आय असमानता ब्रिटिश राज के दौरान की तुलना में अधिक खराब है.
देश में 25 वर्ष से कम आयु के लगभग 42 प्रतिशत ग्रेजुएट बेरोज़गार हैं. अमेरिका में अवैध प्रवासियों का तीसरा सबसे बड़ा समूह भारतीय हैं. आठवीं कक्षा के बच्चों को स्कूलों में दूसरी कक्षा की किताबें पढ़ने में मुश्किल होती है. 30 प्रतिशत से अधिक बच्चे अभी भी कुपोषण के कारण बौनेपन से पीड़ित हैं.
इसके अलावा, केंद्र सरकार ने 100 लाख करोड़ रुपये का चौंकाने वाला कर्ज़ जमा कर लिया है, जो पिछली 14 सरकारों के कुल कर्ज़ से दो गुना ज़्यादा है. मोदी सरकार भारत को कर्ज़ के जाल में धकेल रही है.
मोदी जनता को इनमें से किसी भी चीज़ के बारे में नहीं बताएंगे. इसके बजाय, वे एक नया सपना बुनते रहेंगे. 2014 में “अच्छे दिन” आने थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 2019 में “नया भारत” आने वाला था, लेकिन वो भी नहीं हुआ. अब, हमें 2047 की ओर देखने और “अमृत काल” की उम्मीद करने के लिए कहा जा रहा है. सत्ता विरोधी भावना को दूर करने के लिए मोदी हर चुनावी साल में एक नया सपना दिखाते हैं.
चुनाव मंत्री – माफ कीजिएगा, प्रधानमंत्री सच्चाई से वाबस्ता करना पसंद नहीं करते. उन्हें बॉलीवुड की कल्पनाएं, भ्रम के बुलबुले और साफ-सुथरे माहौल में सज धज कर फोटो खिंचवाना पसंद है. मोदी को काल्पनिक दुनिया में घूमना पसंद है, जिसमें वे स्कूबा डाइविंग करते हैं, गुफाओं में ध्यान लगाते हैं, हाथी की सवारी करते हैं और पानी के अंदर योग करते हैं – एक मल्टीमीडिया पैंटोमाइम जिसे शांत करने और सम्मोहित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. यही कारण है कि चुनावों के दौरान, पलायनवादी मोदी को मतदाताओं को विचलित करने के लिए मंगलसूत्र और मुसलमानों और विपक्ष-आपका-पैसा-ले-जाएगा की ज़रूरत होती है क्योंकि सच्चाई यह है कि मंगलसूत्र नहीं छीने जा रहे हैं, बल्कि नौकरियां, आजीविका और आय छीनी जा रही है.
(लेखिका अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य हैं. उनका एक्स हैंडल @sagarikaghose है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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