समस्या यह थी कि देश भर से बड़ी संख्या में जम्मू पहुँच चुके कार्यकर्ताओं को श्रीनगर जाने से कैसे रोका जाए और बिना श्रीनगर गए नाराज़ कार्यकर्ताओं को वापिस घरों को कैसे भेजा जाए
स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाषणशैली के सभी प्रशंसक रहे हैं ।आम जन के साथ बड़ी सुगमता के साथ वे संवाद स्थापित कर लेते थे।ऐसा ही एक वाक़या ।
जनवरी 1992– आतंकवादग्रस्त जम्मू कश्मीर में प्रशासन के लिए ज़बरदस्त तनाव भरे दिन थे ।भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित ‘एकता यात्रा’ 25 जनवरी 1992 को जम्मू पहुँच चुकी थी ।पार्टी के तमाम बड़े नेताओं सहित देश भर से लगभग एक लाख कार्यकर्ता ‘एकता यात्रा’ जम्मू आ चुके थे ।श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक में अगले दिन यानी 26 जनवरी को मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में तिरंगा फहराने ‘एकता यात्रा’ को जम्मू से निकलना था ।
जम्मू में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में ज़बरदस्त जोश था ।आज के मुक़ाबले उन दिनों जम्मू एक छोटा शहर था ।बड़ी संख्या में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए कार्यकर्ताओं के कारण जम्मू के बाज़ारों में ख़ूब रौनक़ थी ।
मगर दूसरी तरफ़ प्रशासन (उस समय जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू था) अजीब कश्मकश में था ।’एकता यात्रा’ के साथ बड़ी संख्या में जम्मू पहुँच चुके कार्यकर्ताओं को संभालना,उनकी सुरक्षा आदि को लेकर प्रशासन चिंतित था ।
प्रशासन को डर था कि मुरली मनोहर जोशी के साथ इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता अगर आतंकवादग्रस्त कश्मीर घाटी में दाख़िल होते हैं तो क़ानून व व्यवस्था के लिए बड़ा ख़तरा पैदा हो सकता है । उस समय घाटी के हालात बहुत ख़राब थे,आए दिन आतंकवादी कोई न कोई बड़ी वारदात कर रहे थे ।
आख़िर जैसी की आशंका थी आतंकवादियों ने 25 जनवरी को एक बड़ी घटना को अंजाम दे दिया ।25 जनवरी 1992 को श्रीनगर में जम्मू कश्मीर पुलिस प्रमुख के कार्यालय में एक ज़ोरदार बम विस्फोट हुआ जिसमें तत्कालीन
पुलिस प्रमुख जे एन सक्सेना सहित पाँच बड़े पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए । यह अधिकारी ‘एकता यात्रा’ को लेकर किए जा रहे प्रबंधों की ही समीक्षा कर रहे थे ।
इस विस्फोट से न सिर्फ़ जम्मू कश्मीर बल्कि पूरा देश काँप गया । घायल अधिकारियों के लिए दुआएँ की जाने लगी ।
भारतीय जनता पार्टी ने भी हालात पर मंथन किया व ‘एकता यात्रा’ के कार्यक्रम में बदलाव को लेकर पार्टी के अंदर चर्चा शुरू हो गई ।
मगर समस्या यह थी कि देश भर से बड़ी संख्या में जम्मू पहुँच चुके कार्यकर्ताओं को श्रीनगर जाने से कैसे रोका जाए और बिना श्रीनगर गए नाराज़ कार्यकर्ताओं को वापिस घरों को कैसे भेजा जाए ।
हालाँकि पार्टी की तरफ़ से औपचारिक रूप से कुछ कहा नहीं जा रहा था मगर माहौल में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी कि 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक में झंडा फहराने अकेले मुरली मनोहर जोशी ही जाएँगे ।
टीवी और सोशल मीडिया का ज़माना नहीं था । सब एक दूसरे से पूछ रहे थे । कुछ कार्यकर्ता अख़बारों के दफ़्तरों के चक्कर लगा रहे थे मगर क्या होने वाला है यह किसी को पता नहीं था ।
सभी को इंतज़ार था उसी शाम जम्मू के ऐतिहासिक परेड ग्राउंड में होने वाली जनसभा का ।मैं उस समय जम्मू कश्मीर में ‘जनसत्ता’ का संवाददाता था । मुझे याद है 25 जनवरी 1992 की ठंड से कंपकंपाती जम्मू की वो शाम जब जम्मू के परेड ग्राउंड में जनसभा शुरू हुई । उतरप्रदेश,बिहार,हरियाणा,पश्चिम बंगाल,ओडि़शा व दक्षिण के राज्यों से आए भाजपा कार्यकर्ता जम्मू की सर्दी से वाक़िफ़ नहीं थे और अपने साथ अधिक संख्या में गर्म कपड़े नहीं लाए थे ।
आख़िर सभा शुरू हुई सबसे पहले प्रदेश भाजपा के क़द्दावर नेता चमन लाल गुप्ता बोले । अभी कुछ ही मिनट हुए थे की कार्यकर्ताओं ने शोर मचा दिया । कार्यकर्ता अगले दिन का कार्यक्रम जानना चाहते थे । गुप्ता को बीच में ही भाषण छोड़ना पड़ा ।स्वर्गीय प्रमोद महाजन सहित कुछ और नेता भी बोले पर शोर जारी रहा । वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को भी भारी शोर का सामना करना पड़ा । शोर के चलते दोनों बड़े नेताओं को भी अपना भाषण जल्दी जल्दी ख़त्म करना पड़ा । कोई भी नेता कार्यकर्ताओं को शांत नहीं करवा सका । नारेबाज़ी और शोर शराबा जारी रहा ।
कार्यकर्ताओं की नाराज़गी को भाँपते हुए आख़िर अटल बिहारी वाजपेयी ने माइक संभाला । वाजपेयी न केवल स्थिति की गंभीरता को भाँप चुके थे बल्कि यह भी देख चुके थे कि जम्मू की कंपकंपाती सर्दी में देश भर से आए कार्यकर्ता कैसे काँप रहे हैं । यह कमाल वाजपेयी के पास ही था ।
मुझे आज भी अच्छी तरह उनके भाषण का शुरूआती हिस्सा याद है । महत्वपूर्ण बात यह रही कि जैसे ही उन्होंने भाषण शुरू किया खचाखच भरे हुए परेड ग्राउंड में सन्नाटा जैसा पसर गया ।
बिना कोई भूमिका बाँधे उन्होंने बोलना शुरू किया “ठंड बड़ी है,स्वेटर नहीं लाए हैं। जम्मू कश्मीर आएँ हैं पर गर्म कपड़े नहीं लाए हैं।” फिर एकदम से अपनी आवाज़ में थोड़ी कठोरता लाते हुए बोले “जम्मू कश्मीर आना हो तो गर्म कपड़े लेकर आना चाहिए ।”
“कल जोशी जी श्रीनगर के लाल चौक में राष्ट्रीय ध्वज फहराएँगे । मैं नहीं जा रहा-आप भी नहीं जा रहे ।आप वैष्णों देवी के दर्शनों के लिए जाएँ । मैं जम्मू में जोशी जी के श्रीनगर से लौटने का इंतज़ार करूँगा । ”वाजपेयी जी के इतना कहने पर कुछ अावाज़े उभरी,हल्का शोर किसी कोने से सुनाई दिया पर उन्होंने अपना भाषण जारी रखा । ”आज श्रीनगर में हमारे पाँच अधिकारियों पर कायरतापूर्ण ढंग से हमला किया गया । आप उनके लिए प्रार्थना करें । माँ के दरबार में माथा टेके ।हमें सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाना है।”
लगभग एक घंटे तक अटल बिहारी वाजपेयी बोलते रहे । जो लोग पहले किसी को सुनने को तैयार नहीं थे चुपचाप उन्हें सुनते रहे । और जनसभा समाप्त होते ही उनके कहे अनुसार बहुत सारे लोग शांति के साथ माता वैष्णों देवी के दर्शनों के लिए निकल गए । उनके शब्दों और भाषण में ऐसी ताक़त थी ।
पाठकों की याददाश्त ताज़ा करने के लिए बता दें कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘एकता यात्रा’ के प्रभारी थे । 11 दिसम्बर 1991 को कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा 25 जनवरी 1992 को जम्मू पहुँची थी । बाद में 26 जनवरी 1992 को एक विशेष हेलीकाप्टर से मुरली मनोहर जोशी को श्रीनगर ले जाया गया । उनके साथ नरेन्द्र मोदी भी थे ।
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं । लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं ।)