scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतजब मोरारजी देसाई ने कहा था- 'अभी तो मैंने नौजवानों जितने जन्मदिन ही मनाये हैं'

जब मोरारजी देसाई ने कहा था- ‘अभी तो मैंने नौजवानों जितने जन्मदिन ही मनाये हैं’

मोरारजी के आईने में देखें तो कह सकते हैं कि 29 फरवरी को जन्मे लोग कड़ी मेहनत करने वाले, अपनी धुन के धनी, मेधावी, दृढ़निश्चयी, देशसेवी और सच्चे तो साथ ही अपनी जिदों को लेकर अड़ियल भी होते हैं.

Text Size:

ग्रेगोरियन कैलेंडर में 29 फरवरी की तारीख इस मायने में साल की दूसरी तारीखों से अलग होती है कि यह हर साल नहीं बल्कि हर चौथे साल आती है- चार से पूरी तरह विभाजित होने वाले सन् में. इसके पीछे एक खगोलीय कारण है. यह कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन, पांच घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड लगते हैं. उसके इस एक चक्कर की अवधि ही एक सौरवर्ष होती है, लेकिन सुविधा के लिहाज से आम सौरवर्ष 365 दिन के ही बनाये गये हैं. बाकी अवधि हर चौथे साल लगभग 24 घंटे यानी एक दिन में बदल जाती है तो उसे उस साल की फरवरी में जोड़ दिया जाता है.

इस जोड़ के फलस्वरूप फरवरी 28 के बजाय 29 दिन का हो जाती है, साल के कुल 365 दिन के बजाए 366 हो जाते हैं और उसे अधिवर्ष (लीप इयर) कहा जाता है. सर्वथा खगोलीय कारणों से किये गये इस काल निर्धारण से समय के साथ दुनिया के विभिन्न देशों में अनेक रोचक सामाजिक व सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ गई हैं. इनके कारण 29 फरवरी को पैदा होने वाले लोगों को लीपिंग और लीपर कहकर अलग से रेखांकित किया जाता है.

कहीं लीप इयर को उल्लास का अवसर मानकर उसकी खुशी मनाने के लिए सार्वजनिक छुट्टी की मांग की जाती है तो कहीं इसे अशुभ करार दिया जाता है. इटली में मान्यता है कि लीप इयर में महिलाओं का बरताव बदल जाता है तो मिस्र में अनेक युगल इस वर्ष में शादी से परहेज करते हैं. डेनमार्क में लीप इयर में कोई पुरुष किसी महिला को ठुकराता है तो उसे उसको 12 जोड़े ग्लव्स देने पड़ते हैं.

एक मान्यता यह भी है कि 29 फरवरी को पैदा होने वाले बच्चे पराक्रम, अध्यवसाय, अध्ययन और आविष्कार की दृष्टि से विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न और अद्भुत हुआ करते हैं. इसका फिलहाल कोई सर्वस्वीकार्य वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस दिन जन्मी कई शख्सियतों का योगदान इस मान्यता को बल प्रदान करता है.


यह भी पढ़ें: धर्मनिरपेक्षता की उद्घोषणा पहली बार भारत की सड़कों पर नारों के रूप में गूंज रही है


मिसाल के तौर पर 1792 में 29 फरवरी को जन्मे भ्रूण विज्ञानी कार्ल अर्नेस्ट वाॅन वेयर ने 1827 में स्तनधारी प्राणियों के अंडाणु की खोज कर दुनिया से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. उन्होंने उसे ऊतकों की परतों से भ्रूण के विकास के बारे में भी बताया. इसी तरह आधुनिक पनडुब्बी के जनक आयरिश अमेरिकी वैज्ञानिक जाॅन फिलिप हालैंड भी 1840 में 29 फरवरी को ही पैदा हुए थे. 1898 में उन्होंने पानी के अन्दर संचालित अमेरिका का पहला हालैंड नामक जलयान बनाया था, जबकि 1860 में हरमन होल्लेरिथ ने इसी दिन सारणी मशीन का आविष्कार किया.

अपने देश की बात करें तो 1977 में सत्ता में आई जनता पार्टी की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जन्म भी 1896 में गुजरात के भदेली नामक गांव में, जो अब बुलसर जिले में स्थित है, 29 फरवरी को ही हुआ था. उनके अलावा अभिनेत्री वर्षा उसगांवकार, डैनिस फैरिना जारूल, केन फोरे, शॉल विलियम्स, फिलिस फ्रेलिस जैसे सैलिब्रिटियों का जन्म दिन भी 29 फरवरी ही है.

मोरारजी के आईने में देखें तो कह सकते हैं कि 29 फरवरी को जन्मे लोग कड़ी मेहनत करने वाले, अपनी धुन के धनी, मेधावी, दृढ़निश्चयी, देशसेवी और सच्चे तो साथ ही अपनी जिदों को लेकर अड़ियल भी होते हैं.

इसे यों समझ सकते हैं कि 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया देश की आजादी का संघर्ष अपने मध्य में था, मोरारजी ने ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में विश्वास खोया तो सरकारी नौकरी छोड़कर उसमें भाग लेने के निश्चय में कोई असमंजस नहीं किया. उनके अनुसार ‘यह एक कठिन निर्णय था लेकिन मैंने महसूस किया कि यह देश की आजादी का सवाल था. परिवार से संबंधित समस्याएं बाद में आती हैं और देश पहले आता है.’

फिलहाल, उनके नाम उनके जन्मदिन से जुडे़ कई रोचक प्रसंग दर्ज हैं. अपने राजनीतिक जीवन में लम्बे उतार चढ़ाव देखने के बाद 24 मार्च, 1977 को उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला तब वो 81 वर्ष के थे. एक अवसर पर इसे लेकर पत्रकारों ने उनसे पूछा कि उनकी ज्यादा उम्र के कारण कहीं उन्हें प्रधानमंत्री पद के दायित्वों के निर्वहन में असुविधा तो नहीं होती, उनका जवाब था- नहीं भाई, इसका तो सवाल ही नहीं उठता. अभी मैं बूढ़ा हुआ ही कहां हूं? मैंने तो देश के नौजवानों जितने ही जन्मदिन मनाये हैं. कुल जमा बीस या इक्कीस. क्योंकि मेरा जन्मदिन हर साल नहीं आता.’

हालांकि इस हर चौथे साल के चक्कर में वे प्रधानमंत्री रहते अपना जन्मदिन नहीं ही मना सके थे, लेकिन 1964 और 1968 में दो बार वित्तमंत्री के तौर पर उन्होंने देश का बजट अपने जन्मदिन के अवसर पर ही पेश किया था. उनके नाम सबसे ज्यादा दस बार देश का बजट पेश करने का रिकॉर्ड भी है. बता दें कि तब फरवरी की पहली नहीं आखिरी तारीख को आम बजट पेश किया जाया करता था.

प्रधानमंत्री बनने से पहले से ही मोरारजी का मानना था कि जब तक गांवों और कस्बों में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं है, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नहीं है. देश के राज्यों के पुनर्गठन के बाद वे 14 नवंबर, 1956 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और 22 मार्च, 1958 से वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला तो आर्थिक योजना एवं वित्तीय प्रशासन से संबंधित मामलों पर अपनी उक्त सोच को ही कार्यान्वित किया.


यह भी पढ़ें: नरेंद्र मोदी के निशाने पर क्यों है नेहरू-गांधी परिवार


रक्षा एवं विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने राजस्व को अधिक बढ़ाया, अपव्यय को कम किया एवं प्रशासन पर होने वाले सरकारी खर्च में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया. उन्होंने वित्तीय अनुशासन को लागू कर वित्तीय घाटे को अत्यंत निम्न स्तर पर रखा. उन्होंने समाज के उच्च वर्गों द्वारा किये जाने वाले फिजूलखर्च को प्रतिबंधित कर उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया.

कांग्रेस और उसके बाहर रहकर बिताये गये उनके लम्बे राजनीतिक जीवन में एक बड़ा मोड़ 1975 में आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोपी. 26 जून 1975 को देसाई को गिरफ्तार कर एकान्तवास में रखा गया था और लोकसभा चुनाव कराने के निर्णय की घोषणा से कुछ पहले 18 जनवरी, 1977 को मुक्त किया गया. उस चुनाव में देसाई गुजरात के सूरत निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए. बाद में उन्हें सर्वसम्मति से संसद में जनता पार्टी का नेता चुना गया एवं 24 मार्च, 1977 को उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.

प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने इच्छा जताई कि भारत के लोगों को इस हद तक निडर बनाया जाए कि देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वो सर्वोच्च पद पर ही आसीन क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती बता सके. उन्होंने बार-बार कहा कि कोई भी, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी देश के कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए और सभी को सच्चाई और विश्वास के अनुसार कर्म करना चाहिए.

प्रधानमंत्री रहते हुए चार नवम्बर, 1977 को एक विमान हादसे में वे तब बाल-बाल बचे थे, जब कुछ अन्य नेताओं के साथ वो विमान के जरिए पूर्वोत्तर के दौरे पर जा रहे थे. उनका टी.यू-124 पुष्पक विमान विमान असम में जोरहाट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया तो पायलटों ने उसको खेत में कुछ इस तरह उतारा कि सबसे ज्यादा नुकसान कॉकपिट को हुआ जबकि पीछे का हिस्सा बच गया, जिसमें मोरारजी सवार थे. वे विमान के मलबे से उठकर टहलते हुए सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए तो बोले थे ‘विपत्ति के समय भी परमात्मा ने मुझे अविचलित रखा. इस जीवनदान का एक ही अर्थ है कि मैं उसकी सृष्टि की सेवा के लिए पुनः खुद को समर्पित कर दूं.’

(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं, इस लेख में उनके विचार निजी हैं)

share & View comments