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Friday, 22 November, 2024
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कर्ज़, तेल और इमरान के लिए सऊदी की रॉयल जेट की फ्री सवारी की सौगात के बिना पाकिस्तान क्या है

पाकिस्तान को एक बिलियन डॉलर का सऊदी का कर्ज चुकाने को कहा गया था, जो उसने चीन से उधार लेकर चुका भी दिया. लेकिन कुरैशी ने इसे कोविड-19 के समय में अरब राष्ट्र के लिए इकोनॉमिक फेवर बता दिया.

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यदि पाकिस्तानी कूटनीति केवल अर्तुरुल ड्रामा सीरिज की तरह हो. निश्चित तौर पर विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी उस योद्धा की भूमिका नहीं निभा रहे जो बस एक तलवार के सहारे देशों को फतह कर सकता है. या उनके मामले में, शब्दों के साथ. कोई पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा से पूछे, जिन्हें सऊदी अरब मामले में कुरैशी के कारण खड़े हुए बखेड़े से निपटना है और बिगड़ी बात बनानी है.

सवाल कर्ज का है, तेल का है. और सऊदी के कर्ज और तेल के बिना पाकिस्तान क्या है? वैसे तो कश्मीर निश्चित तौर पर हमेशा से ही एक मसला है.

5 अगस्त 2020 को कश्मीर को हमेशा के लिए खो देने जैसे भावावेश में आकर कुरैशी ने सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) को धमकी दी थी कि अगर कश्मीर मसला मंत्री स्तर पर नहीं उठाया गया, तो पाकिस्तान सऊदी के ‘साथ या उसके बिना’ आगे बढ़ेगा. वह मलेशियाई-ईरानी-तुर्की मुस्लिम ब्लॉक की ओर इशारा कर रहे थे जो पिछले साल भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर को लेकर मुखर रहा है. उनका बयान भारत की आर्थिक स्थिति के कारण ओआईसी में कश्मीर को लेकर अपनी तरफ से कुछ न कर पाने के कारण एक साल में उपजी पाकिस्तानी हताशा का परिणाम था.

पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का सऊदी ऋण चुकाने को कहा गया था, जो उसने चीन से उधार लेकर दे दिया लेकिन इससे पहले कुरैशी ने इसे कोविड-19 महामारी की स्थिति में सऊदी अरब के लिए इकोनॉमिक फेवर बता दिया. क्या सच में? पाकिस्तान की तरफ से सऊदी अरब को धन दान किया जाना इस रेगिस्तानी साम्राज्य के लिए उसके बिना एक और इस्लामिक संगठन खड़ा करने से ज्यादा बड़ा अपमान है. और, सबसे ज्यादा बुरा क्या हुआ, पाकिस्तान में मुख्यधारा के सभी टीवी न्यूज चैनलों और उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने कुरैशी के इस बयान को निम्न स्तर का मानते हुए इसकी कड़ी आलोचना कर डाली.


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पाकिस्तान, इस्लामी उम्माह का नेता?

पाकिस्तान यह मुगालता पाले बैठा है कि वह इस्लामिक उम्माह का स्वयंभू नेता है क्योंकि यह एक परमाणु शक्ति है. पाकिस्तान को लगता है कि वह ईरान और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता कर सकता है या अमेरिका और ईरान के बीच बिगड़ी बातों को सुलझा सकता है या यमन में युद्ध समाप्त करा सकता है. लेकिन कैसे? जब आपकी खुद की जेब में फूटी कौड़ी नहीं है तब आप अपने घर की परवाह किए बिना दूसरों की चीजें कैसे सुधार सकते हैं.

लेकिन सऊदी अरब के खिलाफ कुरैशी के बड़बोलेपन के बाद क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के निजी जेट में मुफ्त सवारी पर विराम लग जाएगा? या फिर यह घटना भी पिछले साल मलेशिया में एक इस्लामिक संगठन का हिस्सा बनने की कोशिश के दौरान मरोड़ी गई बांह जैसी ही साबित होगी.

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या अन्य इस्लामी देश, जैसे तुर्की या मलेशिया, मुस्लिम राष्ट्रों के स्वयंभू नेता पाकिस्तान को लेकर उसी तरह का रवैया अपनाएंगे जैसा सऊदी अरब का था?


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पाकिस्तान-सऊदी संबंध

यह 2018 की ही बात है जब नकदी की कमी से जूझ रही इमरान खान सरकार को सऊदी अरब की तरफ से 6.2 बिलियन डॉलर का पैकेज देने का फैसला किया गया था. इसमें 3 बिलियन डॉलर का कर्ज और 3.2 बिलियन डॉलर की ऑयल क्रेडिट सुविधा शामिल थी. पिछले साल फरवरी में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की बहुप्रतीक्षित पाकिस्तान यात्रा के दौरान इन सौदों पर मुहर भी लग गई थी. अब, सऊदी अरब ने क्रेडिट सुविधा करार की अवधि समाप्त होने के बाद तेल की आपूर्ति रोक दी है.

दशकों से, पाकिस्तान आर्थिक रूप से सऊदी अरब पर निर्भर रहा है और वह इन संबंधों को मजबूती देने के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक मोर्चे का इस्तेमाल करता रहा है. फरवरी 2019 की यात्रा के दौरान जब इमरान-एमबीएस का ब्रोमांस एकदम चरम पर था, क्राउन प्रिंस को हवाई अड्डे से लाने के दौरान प्रधानमंत्री ने खुद गाड़ी चलाई थी. खान ने एमबीएस से कहा था कि वह पाकिस्तान में इतने लोकप्रिय हैं कि यहां चुनाव भी जीत सकते हैं. खुशकिस्मती से औपचारिकताओं में उलझे बिना क्राउन प्रिंस ने खुद को सऊदी अरब में पाकिस्तान का राजदूत घोषित किया. राष्ट्र की किस्मत पर विश्वास नहीं किया जा सकता. बाद में दोनों का घोड़ा-गाड़ी में साथ दिखना हर कुछ खुशनुमा होने की तस्वीर पेश कर रहा था. लेकिन उसके बाद… वास्तविक जीवन में खुशियां हमेशा के लिए नहीं होती हैं.

पाकिस्तान के जिन पत्रकारों ने मारे गए सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की तस्वीर अपने ट्विटर डिसप्ले पर लगाकर एकजुटता दिखाई थी, उन्हें शाही सऊदी मेहमान के खिलाफ एक सोशल मीडिया अभियान चलाने के लिए पाकिस्तानी एजेंसियां ढूंढ़ रही थीं. एक वो दिन थे. पाकिस्तान उस साम्राज्य का ऐसा अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता था. प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी थी: पाकिस्तान बेकरार था और सरकार को दिवालिया होने से बचाने के लिए सऊदी के कर्ज की जरूरत थी. खान ने 2018 में रियाद इन्वेस्टमेंट सम्मिट में हिस्सा लिया था, जबकि कई अन्य इससे किनारे हो गए थे.

हर देश पहले अपने खुद के राजनीतिक और आर्थिक हितों को देखता है लेकिन कुछ अजीब कारणों से पाकिस्तान को लगता है कि हर देश को ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान ‘ के हित को पहले रखना चाहिए.


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मुस्लिम अहम हैं लेकिन चीन में नहीं

इमरान खान और उनकी सरकार चीन में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर चुप रहती है. खान ने यह कहते हुए दूसरा रास्ता चुन लिया है: ‘सच कहूं तो मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं जानता हूं.’ उइगरों पर पाकिस्तान की चुप्पी का सीधा सा कारण है: चीन दुधारु गाय है, आप चीन को नाराज नहीं कर सकते. पाकिस्तान चीन का कर्जदार है इसलिए ‘मुस्लिमों का जीवन मायने रखता है’ का भावावेश यहां लागू नहीं होता. दुर्भाग्य से, मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर ऐसे ही अमल होता है.

इसी तरह, सऊदी अरब के आर्थिक हित भारत से जुड़े हैं. सऊदी के लिए भारत एक व्यवहारिक आर्थिक भागीदार है, न कि ऐसा देश जो बेलआउट पैकेज के लिए उस पर निर्भर हो. और यह कि सऊदी अरब का भारत में चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होना किसी भी तरह पाकिस्तान के लिए मददगार नहीं है. यही बात खाड़ी देशों पर भी लागू होती है, जैसे संयुक्त अरब अमीरात और कतर, जो पाकिस्तान को उदारतापूर्वक कर्ज देते हैं. लेकिन यह दावा कहीं भी खरा नहीं उतरता है कि इमरान खान कभी भीख नहीं मांगेंगे और इसके बजाए जान दे देना पसंद करेंगे क्योंकि पाकिस्तान ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए दरअसल ऐसा ही किया है. भिखारी बराबर के भागीदार नहीं हो सकते.

(लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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