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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतक्या है देश के लिए बेहतर – देसी मारुति सुजुकी या अंग्रेज़ी जैगुआर लैंड रोवर?

क्या है देश के लिए बेहतर – देसी मारुति सुजुकी या अंग्रेज़ी जैगुआर लैंड रोवर?

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नीति आयोग के उपाअध्यक्ष राजीव कुमार को कंपनी-स्वामित्व वाली अपनी टिप्पणी पर सही होने के लिए पूरे अंक। लेकिन मारुति-जैगुआर लैंड रोवर का उदाहरण पूरी कहानी नहीं है।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने दूसरे दिन कहा कि जब तक कोई कंपनी भारत की आर्थिक गतिविधियों में योगदान दे रही है और भारत में रोजगार तैयार कर रही है तब तक उन्हें इस बात की ज्यादा परवाह नहीं है कि कंपनी का मालिक कौन है। राष्ट्रवादी नजरिया रखने वाले स्वदेशी जागरण मंच द्वारा कुमार को तत्काल चुनौती दी गई। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस पर और मंथन किया जाना चाहिए।

A picture of TN Ninan, chairman of Business Standard Private Limited

दो उदाहरणों पर विचार करें – जैगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) और मारुति सुजुकी। इसमें से पहली को टाटा ने 2.5 बिलियन डालर में खरीदा था। इंग्लैंड और चीन में कंपनी के कारखाने हैं। शोध और विकास पर काफी सारा बजट ब्रिटेन में व्यय किया जाता है। कंपनी साल भर में करीब आधा-मिलियन इन महंगे वाहनों को बेचती है जिनमें से भारतीयों द्वारा बहुत ही कम खरीदे जाते हैं। इस कंपनी में बिक्री, रोजगार या तकनीकि किसी भी नजरिये से कुछ भी भारतीय नहीं है। लेकिन स्वामित्व लाभदायक हैः टाटा ने कंपनी के लिए जितना भुगतान किया था उसका 80 प्रतिशत वार्षिक कर पूर्व लाभ के रूप में प्राप्त होता है, जोकि एक सफल निवेश साबित हुआ

मारुति सुजुकी की कहानी इससे एकदम विपरीत है। कंपनी का बहुत सा अंश जापान सुजुकी मोटर्स के स्वामित्व में है। सालाना 1.7 मिलियन कारों का निर्माण होता है जो भारत में बिकती हैं या इनका निर्यात कर दिया जाता है। कंपनी के लगभग सारे कर्मचारी (स्टाफ) भारतीय हैं। मारुति कर के रूप में भारी रकम का भुगतान करती है और अपने विक्रेताओं तथा सर्विस स्टेशनों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न करती है।

दरअसल, कंपनी भारतीय बाजार में भी करीब उतना ही कमाती है जितना सुजुकी जापानी बाजार में कमाती है। यह सुजुकी के लिए एक सोने की खान है ठीक वैसे ही जैसे टाटा के लिए जैगुआर लैंड रोवर। इसी तरह, मारुतिके भारतीय निवेशकों ने भी काफी पैसा कमाया है – कंपनी का स्टॉक भी बाजार के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले स्टॉकों में से एक रहा है।

देश को किस पर अधिक ध्यान देना चाहिए – जेएलआर या मारुति? मेरे हिसाब से जेएलआर की अपेक्षा मारुति से देश को अधिक लाभ प्राप्त होता है। क्या हम हजारों रोजगारों, अरबों के कर राजस्व, वाहन कलपुर्जा उद्योग के विकास और कार निर्यात से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा (डॉलरों) देने वाली सुजुकी का नाम मारुती से अलग कर देंगे? अगर हम ऐसा करते हैं तो हम दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ होंगे। इसी तरह, क्या हम काफी बेहतर स्थिति में होते यदि जेएलआर भारत आधारित होती और इसके निर्माण के कारखाने भारत में होते तो हम चीन तथा अन्य देशों को बड़ी संख्या में कारें निर्यात करते, बदले में गुणवत्ता पूर्ण रोजगार और तकनीकि का विकास होता और हम वह लाभ छोड़ देते जो टाटा कंपनी अपने स्वामित्व से कमाती है? एक बार फिर यह साफ है कि इसमें भी कोई बुद्धिमानी वाली बात नहीं है, इस पूरे समीकरण में स्वामित्व का बहुत कम महत्व है।

श्री कुमार को इस बात पर रौशनी डालने का पूरा श्रेय जाता है । लेकिन उनको पता होना चाहिए कि यह पूरी कहानी नहीं है। हमें फ्लिपकार्ट पर भी विचार करना होगा, जिसने अभी कुछ साल पहले ही अपना मुख्यालय सिंगापुर में स्थानांतरित किया है, क्यूँकि उन्हें भारत में रिटेल संबंधित नियम प्रतिबंधक लगे। सिंगापुर ने उनको कम कर दरें, आसन वित्तीय सहायता और अन्य लाभ प्रदान किए। परिणाम स्वरुप , जब वॉलमार्ट ने पिछले महीने कंपनी खरीदी, तो भारत ने 16 अरब डॉलर के निवेश में थोड़ा सा निवेश देखा, हालांकि यह पूरा निवेश भारतीय बाजार के लिए था। यहाँ एक स्टार्ट-अप है जिसने शायद किसी अन्य के मुकाबले अधिक शेयरधारक मूल्य बनाया है, लेकिन वह भारतीय नहीं बना रह सका और इसलिए इसका पूरा मूल्य अधिकतर विदेशियों के पास चला गया। यदि व्यापार के नियम और इसके परिचालन माहौल फ्लिपकार्ट जैसे स्टार्ट-अप के लिए मित्रवत रहें तो देश बेहतर रहेगा?

और एयर इंडिया के बारे में क्या, जो मंच बेचने के खिलाफ है? पहला सवाल यह है कि, एयर इंडिया देश को किस कीमत का प्रस्ताव देगा? यह कहीं और का बनाया विमान उड़ाता है और ज्यादातर आयातित ईंधन का उपयोग करता है, यहां कोई घरेलू मूल्य संबंध नहीं है। ऑपरेशनल रूप से, व्यापार कम तेल की कीमतों के साथ काले रंग में मामूली रूप से रहा है और वित्तीय शुल्कों को छोड़कर। लेकिन हमेशा वित्त पोषण लागत होगी और तेल की कीमतें ऊपर और नीचे होती रहेंगी। तो यह कम से कम सरकारी स्वामित्व के तहत एक उज्वल भविष्य वाली एयरलाइन नहीं है। इसे अधिक उदार शर्तों पर बेचना करदाता को किस्मत का धनी महसूस कराएगा। यहाँ एक और मौका यह भी है कि एक और नया मालिक एयरलाइन के चारो ओर घूम सकता है। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की श्रेष्ठता के बारे में मंच और उसके दिनांकित विचारों को अनदेखा करना चाहिए और फिर से कोशिश करनी चाहिए।

बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष व्यवस्था द्वारा।

Read in English : What’s better for the country—India-based Maruti Suzuki or UK-based Jaguar Land Rover?

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