scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतमोदी से क्या गुर सीख सकते हैं मामाजी, महारानी और चावल वाले बाबा?

मोदी से क्या गुर सीख सकते हैं मामाजी, महारानी और चावल वाले बाबा?

भाजपा के मुख्यमंत्रियों वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह से नरेंद्र मोदी एक क्षेत्र में आगे हैं.

Text Size:

एक तरफ जहां राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव सर पर हैं तो वहीं महारानी, मामाजी और चायवाले बाबा बड़े ही कठिन समय से गुज़र रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी के तीनों मु​ख्यमंत्री और बिल्कुल अलग अंदाज वाले नेता —राजस्थान की वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के रमन सिंह— की छवि दांव पर लगी हुई है. साथ ही वे अपने-अपने प्रदेशों में सत्ता विरोधी लहर का सामना भी कर रहे हैं.

लेकिन प्रत्येक नेता एक ब्रांड है और उनके साथ जुड़े उपनाम भी हैं जो उनकी राजनीति का बखूबी से व्याख्या करते हैं.

महारानी

65 वर्षीया राजे की छवि ‘महारानी वाली सिर्फ इसलिए नहीं है कि वे राज घराने से ताल्लुक रखती हैं.

पहुंच से दूर, अत्यधिक आत्मविश्वास वाली और सबसे परे रहने वाली राजे की छवि ने उनको काफी फ़ायदा पहुंचाया है जहां राजनीति में ऐसे उपनाम नीरस ही माने जाते हैं. जहां एक तरफ बाकी के दोनों मुख्यमंत्री तीन बार के अपने शासन को कायम रखे हुए हैं, वसुंधरा को तो अपने एक ही कार्यकाल बचाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है.

देश के अधिकतम सफल नेताओं की राजनीति की एक निश्चित शैली होती है जो उनकी परिभाषा देती है और साथ ही साथ वोटरों से उनको जोड़ती भी है.

लेकिन राज्य में राजे की भारी अलोकप्रियता और एक जोशीली लड़ाई लड़ने तक में भी असमर्थता सिर्फ यही दर्शाती है कि लोगों में दूर दूर तक गूंजने वाली छवि को वे भुना नहीं पाई हैं.

यहां तक कि अपने पिछले शासनकाल के अंत तक भी वे इतनी ज़्यादा लोकप्रिय नहीं थीं. यह तो 2013 की मोदी लहर की बदौलत ही वे दोबारा जीत दर्ज कर पाईं.

पार्टी की राज्य ईकाई पर पकड़ उनकी शक्ति है. यहां तक कि सर्वशक्तिशाली भाजपा सुप्रीमो अमित शाह भी कई मौकों पर राजे को ही फैसला लेने देते हैं— उदाहरण के तौर पर राज्य के भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति और आगामी चुनावों में टिकटों के बंटवारे को लेकर बड़े फैसले उन्होंने ही लिए.

यह जानते हुए भी कि एक नया चेहरा राज्य की दशा में हुई क्षति की भरपाई करने में कुछ मदद करेगा, पार्टी अभी तक राजे का विकल्प ढूंढने के जोखिम नहीं उठा पाई है.

शिफॉन धारण करने वाली वसुंधरा राजे खादी धारण करने वाली मेनका गांधी, भारतीय नारी के लिबास वाली सुषमा स्वराज और भगवाधारी उमा भारती, इन सब के रूढ़िवादी स्टाइल से बिलकुल मेल नहीं खातीं.

न तो उनकी कोई छाप है, न ही कोई नीति और न ही कोई नारा. वोटरों से जुड़ने की बात तो छोड़िये, वे बदलते समय में भी खुद को ढाल नहीं पातीं.

बिलकुल महारानी की ही तरह, उनका एक दरबार है— पार्टी ईकाई. वोटरों से अलग थलग रहने के बावजूद पार्टी के कैडरों पर मजबूत पकड़ होना उन्हें एक विचित्र तरीके का मिक्स बनाता है.

मामाजी

59 वर्ष के शिवराज सिंह चौहान चाहे अपने तीन बार के शासनकाल को कायम रखने के सत्ताधारी लहर से जद्दोजहद क्यों न कर रहे हों, लेकिन उनके सबसे बड़े आलोचक भी उनकी लोकप्रियता का लोहा मानते हैं.

इन तीनों मुख्यमंत्रियों में चौहान सबसे ज़्यादा संघ से जुड़े हुए हैं और उनका आचरण भी संघ से काफी प्रभावित है.

लेकिन उनकी राजनीति की सबसे स्पष्ट व्याख्या तो उनका महिला वोटरों से जुड़ाव ही दर्शाता है. लाड़ली लक्ष्मी योजना, लड़कियों को सा​इकिल का आवंटन और कन्या विवाह जैसी पहल शुरू करने के कारण ही उनको मामाजी का उपनाम हासिल हुआ है.

किसानों के हितकारी वाली छवि होने के साथ-साथ, ओबीसी लीडर चौहान की राजनीति सामाजिक और चुनावी रूप से महत्त्वपूर्ण उनके निर्वाचन क्षेत्र से सीधा मेल खाती है, व्यंग्यात्मक रूप से तब जब राज्य के किसानों ने आसमान सिर पर उठा रखा है.

तेज़ तर्रार महारानी से अलग, चौहान पहुंच में आने वाले और धरती से जुड़े हुए मामाजी साबित हुए हैं, जो वोटरों के जुड़ाव का आनंद लेते हैं और उन पर कभी भी अभिमानी या अलगाववादी होने का आरोप नहीं लग सकता.

हितकारी बाबा

66 वर्ष के रमन सिंह भी अपने तीन बार के शासन को कायम रखने की रेस में शामिल हैं. सिंह के लचकदार और जीतने योग्य बनने का रहस्य तो पार्टी भी नहीं जान पाई है. पार्टी के काफी लोग उन्हें चुपचाप काम करने वाला ही बुलाते हैं.

सिंह की राजनीति भी चौहान की तरह परम्परावादी है— कल्याण केंद्रित और सबकी पहुंच में.

उनको यह उपनाम इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि उन्होंने अपनी स्कीमों के द्वारा गरीब परिवारों को 1-2 रुपये प्रति किलो की दर से चावल मुहैया करवाया था. सिंह ने भी विकासशील होने की धारणा को बराबर तवज्जो दी है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की ही तरह, छत्तीसगढ़ के सिंह भी एक शांत स्वभाव के नेता हैं जो इतनी जल्दी परेशान नहीं होते.

इन तीनों के ऊपर भ्रष्टाचार और वंशवाद के भी आरोप हैं, जो इन तीनों को कई मौकों पर एक कोने में ला खड़ा करते हैं.

… बनाम मोदी

68 वर्षीय मोदी से युवा होने के बावजूद, यह तीनों मुख्यमंत्री नए और बदले हुए वोटरों को अभी तक मोदी की भांति ढाल नहीं पाए हैं.

मोदी युवा लोगों की भाषा बोलने में सक्षम हुए हैं, उनकी आकांक्षाओं को समझ पाए हैं और अपने आपको उनका मसीहा वाली इमेज भी बना पाए हैं.

मोदी की तरह एक चमकदार आकर्षण न बना पाने वाले राजे, चौहान और सिंह शायद ही अबतक उनके जैसे किसी कौशल के उस्ताद बन पाए हों.

लगभग पांच साल पहले, यह चारों नेता बराबर थे, अपने राज्यों तक सीमित. लेकिन फिर, मोदीजी ने महारानी, मामाजी और चावल वाले बाबाजी को मात दे ही दी.

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

share & View comments