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Wednesday, 25 December, 2024
होममत-विमतआक्रामकता, हिंदुत्व पॉलिटिक्स की नींव में छिपा है BJP की ‘मोदी लहर’ का सच, विपक्ष के पास क्या है इसकी काट

आक्रामकता, हिंदुत्व पॉलिटिक्स की नींव में छिपा है BJP की ‘मोदी लहर’ का सच, विपक्ष के पास क्या है इसकी काट

भाजपा के आलाकमान - अमित शाह, नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ आदि भ्रष्टाचार, जातिवाद, गुंडागर्दी आदि मुद्दों पर एक रणनीति के तहत अखिलेश यादव को चारों तरफ़ से राजनीतिक घेराबंदी करने का प्रयास कर रहे हैं.

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भाजपा की स्थापना 6 अप्रैल 1980 में हुई थी. यह वही दौर था, जब मंडल कमीशन ने 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े वर्ग यानि देश की लगभग आधी आबादी को सामाजिक न्याय देने का सुझाव दिया था. हालांकि, सॉफ्ट हिंदुत्वा की राह पर चलने वाली कांग्रेस ने कमंडल के डर से एक दशक तक मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का राजनीतिक जोखिम नही उठाया, जिसके कारण पिछड़ा वर्ग ने कांग्रेस से सामाजिक न्याय की उम्मीद लगाना बंद कर दिया.

एक दशक बाद 1990 में सत्ता परिवर्तन हुआ तथा जनता दल की सरकार बनी. जनता के मूड को भांपते हुए प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने का फैसला किया, जिससे वीपी सिंह सरकार का सहयोगी दल भाजपा को चुनावी खतरा महसूस हुआ और हिन्दू तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए भाजपा ने धार्मिक और राजनीतिक ‘रथ यात्रा’ के माध्यम से मंडल कमीशन के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया. आपको यह बताते चलें कि राम रथ यात्रा एक राजनीतिक और धार्मिक रैली थी, जो सितंबर से अक्टूबर 1990 तक चली थी.

सत्ता की चाबी को हथियाने के लिए भाजपा ने अयोध्या विवाद को बढ़ा-चढ़ा कर सुनियोजित व आक्रामक तरीके से पेश किया, जिसके फलस्वरूप उसे मुस्लिम विरोधी भावना को लामबंद करने में सफलता भी मिली.

सामाजिक न्याय बनाम आक्रामक हिंदुत्व की राह

भाजपा और उसके फ्रंटल संगठनों ने हिन्दू तुष्टीकरण की राजनीतिक डगर पर चलते हुए धार्मिक धुर्वीकरण के बल पर लोकतंत्र के मंदिर में जगह बनाने के लिए एक आक्रामक राजनीति की नींव डाली. भाजपा अपने राजनीतिक प्रयोग में सफल भी रही. उदाहरण स्वरूप, भारत में जब भी हिन्दू और मुस्लिम समाज के बीच दंगे हुए, उसका सीधा लाभ भाजपा को मिलता दिखाई दिया.


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योगी आदित्यनाथ की छवि

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले पांच वर्षों से अखिलेश यादव, राहुल गांधी, ओवैसी, आदि नेताओं पर काफ़ी आक्रामक रहे हैं. संसद भवन आंसू छलकने वाले योगी आदित्यनाथ अब यह कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि ‘10 मार्च के बाद ये पूरी गरमी शांत करवा देंगे’. इसके साथ ही विकास की बात करते हुए वे अचानक हिन्दू बनाम मुस्लिम, कब्रिस्तान, श्मशान और पाकिस्तान पर बात करने लगते हैं. असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए संवैधानिक व कानूनी प्रक्रिया के इतर ‘ठोक देने’ की बात दोहराते नजर आते हैं. हाल ही में ‘यह चुनाव 80 बनाम 20 का है’ का भड़काऊ बयान देकर उन्होंने हिन्दू मतदाताओं के धुर्वीकरण करने का प्रयास भी किया. ऐसे भड़काऊ बयानों से हिंसा को बढ़ावा मिलता है. ओवैसी पर हुए हमले को इस तरह के बयानों की एक बानगी कहा जा सकता है.

अखिलेश यादव की छवि

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बड़े सधे हुए लहजे में योगी आदित्यनाथ की बातों का प्रत्युत्तर भी देते रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि अखिलेश यादव की बातों को तिल का ताड़ बनाने के लिए बीजेपी की आईटी सेल से लेकर #गोदी_मीडिया तक पीछे पड़ी रहती है. अखिलेश यादव द्वारा दिए गए पिछले कुछ महीनों के साक्षात्कार का गहराई से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि आज वे अपना पुराना नरम रवैया छोड़कर भाजपा पर आक्रामक तरीके से प्रहार करने के साथ ही सत्ता के प्रति नतमस्तक रहने वाले पत्रकारों पर भी तंज कसते नजर आ रहे हैं. जिसे सोशल मीडिया पर वायरल होते देखा जा सकता है.

जहां एक तरफ़ योगी आदित्यनाथ पर दर्जनों मुकदमें हैं. वहीं अखिलेश यादव के ऊपर अभी तक किसी प्रकार के गंभीर मुकदमें नही हैं. वे अब समाजवादी पार्टी के सुप्रीम लीडर भी बनकर उभर चुके हैं. वर्तमान में आजमगढ़ से सांसद होने बाद भी इस बार करहल से यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र भरे हैं. यह क्षेत्र मैनपुरी लोकसभा सीट में आती है, जहां से समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव मौजूदा सांसद हैं. करहल का अखिलेश यादव के परिवार का पुराना रिश्ता रहा है, क्योंकि यहीं से ही उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी तथा वहां कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया था.

चुनावी जुगलबंदी और खींचतान

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रियंका गांधी इस बार यूपी विधानसभा के चुनाव में दमदार तरीके से दस्तक दे चुकी हैं और कांग्रेस के परंपरागत दलित वोटर पर वे भरपूर निशाना साध रही हैं. 1990 के दशक के बाद कांग्रेस का जनाधार यूपी में दिन-प्रतिदिन घटता गया. हालांकि, पिछले कई चुनावों में बसपा भी लड़खड़ाती दिखाई दे रही है. बसपा के कमजोर होने से आज यूपी का चुनाव भी भाजपा बनाम सपा ही नजर आ रहा है. प्रियंका गांधी और चंद्रशेखर का यूपी में आगाज तथा पिछले तीन-चार वर्षों से काफ़ी सक्रिय होना बहुजन समाज पार्टी के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा है. ऐसे में मुस्लिम वोटर तथा एंटी-इनकम्बेंसी (सत्ता-विरोधी) वोटर के पास सिर्फ सपा ही एक मात्र विकल्प नजर आ रही है, जिसका फायदा वर्तमान चुनाव में अखिलेश यादव को मिल सकता है.

भाजपा की चुनावी घेरेबंदी

इस विधानसभा के चुनाव में अब भाजपा अपना मुख्य प्रतिद्वंदी सपा को ही मानकर चल रही है. इसीलिए भाजपा के आलाकमान – अमित शाह, नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ आदि भ्रष्टाचार, जातिवाद, गुंडागर्दी आदि मुद्दों पर एक रणनीति के तहत अखिलेश यादव को चारों तरफ़ से राजनीतिक घेराबंदी करने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि, अखिलेश यादव भी गठबंधन के नेताओं के साथ उतनी ही मुस्तैदी के साथ सत्ता पक्ष को जबाब देते नजर आ रहे हैं तथा सुशासन और विकास के दावों को नेस्तनाबूत करते रहते हैं. उदाहरण स्वरूप, योगी आदित्यनाथ के ‘गर्मी शांत करवाने’ वाले बयान पर अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘गर्मी खत्म हुई तो हम सब मर जाएंगे. अगर गर्म खून नही बहेगा तो हम सब जिंदा कैसे रहेंगे. अखिलेश यादव का कहना है कि योगी आदित्यनाथ इस तरह का बयान पहले भी देते आए हैं, जिस पर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए.

आरोप-प्रत्यारोप का राजनीतिक सिलसिला

अखिलेश यादव इस बार भाजपा पर आक्रामक होने के साथ ही #गोदी_मीडिया पर भी प्रश्नवाचक चिह्न लगाते हुए तंज कसते नजर आ रहे हैं. ऐसे वीडियो को सोशल पर बहुत बार देखा जा रहा है. वे यह इल्जाम भी लगाते दिखते हैं कि इस बार मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा यूपी में विधानसभा चुनाव को सपा बनाम भाजपा ध्रुवीकृत करने का प्रयास किया जा रहा है.
इस संदर्भ में हाल ही में एक वायरल वीडियो किसान नेता राकेश टिकैत का भी सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, जिसमें राकेश टिकैत एक टीवी एंकर को फटकार लगाते हुए बैकग्राउंड दृश्य को बदलने के लिए कह रहे हैं. राकेश टिकैत का कहना था कि प्रतिष्ठित मीडिया घराना मंदिर-मस्जिद दिखाने के बजाय स्कूल और अस्पताल की फोटो क्यों नही दिखाते हैं. इस संदर्भ में सांसद में ओवैसी ने कहा कि आज ‘दो भारत है’: एक मोहब्बत का भारत है और दूसरा ‘नफरत का भारत बन रहा है. आज इन दो भारत की समझने की जरूरत है’.

राजनीतिक अफ़साने तथा जमीनी हकीकत

सुल्तानपुर जिले के टंडवा गांव के रहने वाले दुर्गा प्रसाद यादव कहते हैं कि ‘उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा इस समय हिन्दू-तुष्टीकरण तथा सामाजिक समीकरणों को साधते हुए पिछले चुनाव की भांति गैर-जाटव दलित तथा गैर-यादव पिछड़ा जैसे भ्रामक नैरेटिव फ़ैलाने की नाकाम कोशिश की जा रही है तथा अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के किले को ध्वस्त करने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राह पर चलते हुए खालिस्तानी किसान, पाकिस्तान, मुसलमान जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही है, जिसके कारण आज मुस्लिम मतदाता सत्ता के खिलाफ वोट करने के लिए तैयार है.’

कई ओपिनियन सर्वे में अधिकांश मुस्लिम आबादी आज सपा की तरफ़ झुकती हुई नजर आ रही है, क्योंकि इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस और बसपा काफ़ी कमजोर लग रही है तथा ऐसे में सपा ही एकमात्र विकल्प बनती जा रही है. हालांकि, सपा के शासनकाल में पीडीएस का डिजिटलीकरण नहीं होने से राशन साल में तीन से चार बार ही मिल पाता था. लेकिन आज गरीबों और किसानों को नकदी, राशन, तेल और नमक आदि समय पर मिल जाता है. इस संदर्भ में सुल्तानपुर जिले के रामनारायण बताते हैं कि, ‘नरेगा, सांड, सामाजिक अन्याय से गरीब परेशान है तथा जितने मूल्य का सरकार राशन और तेल देती है, उससे ज्यादा गैस, डीजल, पेट्रोल और ऊपर से आवारा मवेशियों से नुकसान हो जाता है.’


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दलित मतदाताओं का रुख

कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए दलित मतदाताओं को आकर्षित करने में कोई कसर नही छोड़ रही हैं. उदाहरण स्वरूप, हाल ही में आगरा में जब एक वाल्मीकि समाज के नवयुवक की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हुई थी तो प्रियंका गांधी तत्काल उनके घर गई थीं. इसी तरह, प्रयागराज में फूलचंद पासी के परिवार से भी मिलने में प्रिंयका ने तत्परता दिखाई. जिसके माध्यम से वे दलितों के मध्य उभरते हुए नए नेतृत्व को कांग्रेस की तरफ़ झुकने के लिए एक बड़ा संदेश देने का प्रयास दिया था. प्रियंका गांधी ने मृतक परिवार के परिजनों के साथ अपनी फोटो को ट्विटर हैंडल पर शेयर करते हुए लिखीं, ‘मैं समता की लड़ाई के साथ हूं. मैं देश के संविधान के साथ हूं. मैं दलितों-वंचितों पर जुल्म के खिलाफ, न्याय की आवाज के साथ हूं.’ इसी तरह वे कई बार चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से भी मिलीं.

इसलिए जहां एक तरफ़, मायावती ने आगरा में हुए जनसैलाब रैली में सत्ता पक्ष से ज्यादा कांग्रेस पर आक्रामक दिखीं, क्योंकि उन्हें अब यह डर सता रहा है कि कहीं बसपा का परंपरागत दलित वोट कांग्रेस में न शिफ्ट हो जाए. वहीं दूसरी तरफ़, आज मायावाती के सामने चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ जैसे युवा नेता की राजनीतिक चुनौती भी मजबूत है. राजनीतिक मामलों के जानकार लोग भी अब कयास लगाना शुरू कर चुके हैं कि आने वाले चुनाव में बसपा का वोट शेयर और भी नीचे जा सकता है.

हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश में पंचायती चुनावों में सपा को बहुमत मिला था, जिससे अखिलेश यादव के प्रति सत्ता पक्ष अधिक आक्रामक हुआ है और अपना प्रमुख प्रतिद्वंदी अखिलेश यादव को ही मानना शुरू कर चुका है.

निष्कर्ष

आज मीडिया के कई चैनल ऐसे हैं जो सिर्फ दिन-रात चारणों की भांति सत्ता के गुणगान में लगे रहते हैं. ऐसे लोगों के संदर्भ में गीतकार नीरज लिखते हैं कि ‘समय ने जब भी अंधेरों से दोस्ती की है, जला के अपना ही घर, हमने रौशनी की है, सबूत हैं मेरे घर में धुंए के ये धब्बे, कभी यहां पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है’. एंडीटीवी के वरिष्ट एंकर एवं पत्रकार रवीश कुमार ने अपनी पुस्तक ‘बोलना ही है: लोकतंत्र, संस्कृति, और राष्ट्र के बारे में’ में लिखते हैं कि ‘आज का मीडिया बिक गया है तथा वह ‘गोदी मीडिया’ बन गया है. ऐसा कभी नही था कि मीडिया ने सत्ता पक्ष का साथ न दिया हो, हर समय दिया था. किन्तु रात्रि के अंधेरे की तरह ही सत्ता के साथ रहा. मगर आज की मीडिया खुल्लम-खुल्ला सरकार की नुमाइन्दगी करता है. मीडिया/टेलीवीजन में बैठा हुआ एंकर बड़े डकैत के गिरोह से पकड़कर लाया गया महसूस होता है. डकैतों के फिर भी कुछ मानदंड हुआ करते थे, लेकिन इनका तो कोई मानदंड ही नही है’.

हालांकि, मान्यवर कांशीराम ने इन विपरीत परिस्थितिओं को बहुत पहले भांप लिया था. जिसे वे अपनी पुस्तक ‘चमचा-युग’ में लिखते हैं कि मीडिया के एंकरों से लेकर बहुजन नेताओं तक सत्ता के सामने ‘चमचा’ बनकर सदैव चरण-बंदगी करते रहे हैं. बहुजनों के साथ बुद्धिजनों को इसका अध्ययन जरूर करना चाहिए, क्योंकि अपनी कमियों को छिपाने के लिए सिर्फ मीडिया को ही दोषी ठहरा देना भी ठीक नही होगा.

आज दलित-पिछड़े और जनजाति वर्ग के सैकड़ों सांसद संसद भवन में मौजूद हैं तथा विधानसभा में भी उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. लेकिन 13 पॉइंट रोस्टर के समय किसी ने भी विरोध प्रकट नही किया. सबकी आंख पर पट्टी बंधी हुई थी. शायद वे डर रहे थे कि कहीं ऐसा न हो कि वे अपने जाति/समाज के प्रतिनिधित्व के लिए दो बातें बोल दें और उनके आका नाराज होकर अगली बार टिकट देने से मना कर दें. इस तरह के नेताओं को कांशीराम ‘चमचा’ कहकर पुकारते थे.
आज व्यक्तिगत हित व राजनैतिक एजेंडे को सर्वोपरि रखते हुए कई मीडिया चैनल हर घटना को अल्ट्रा-नेशनलिस्ट फ्रेमवर्क में रखकर राजनीतिक नफा-नुकसान के साथ अपनी बात रखने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं. सत्ताधारी पार्टी का इन मीडिया घरानों को शह प्राप्त होती है. जिसके कारण देश में मॉब-लिंचिंग, दलित विरोधी अत्याचार, एनएफएस जैसी घिनौनी असामाजिक घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा सकती है. आज ‘आंदोलनजीवी’ व ‘एंटी-नेशनल’ कहकर किसी का दमन किया जा सकता है. इस संदर्भ में रवीश कुमार आगाह करते हुए कहते हैं कि ‘नेशनल सिलेबस से खुद को बचा लीजिये. हम सबको आत्मविश्वास से भरा हुआ नागरिक होना चाहिए. सत्ता द्वारा सदैव असहाय व कमजोर बनाने का प्रयत्न किया जाता रहा है, जिसके परिणाम घातक सिद्ध हो सकते हैं.’

अखिलेश यादव के शासनकाल की अपेक्षा योगी आदित्यनाथ के काल में दलितों और मुसलमानों पर अधिक अत्याचार हुए हैं. हाथरस, उन्नाव, गोरखपुर जैसे भद्दे दाग होने के बाद भी #गोदी_मीडिया को रामराज्य नजर आता है. हालांकि, विपक्ष को भी समावेशी सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने के साथ #गोदी_मीडिया से बहुत अपेक्षा भी नही करनी चाहिए.

(लेखक हैदराबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग में डॉक्टरेट फेलो हैं. इन्हें भारतीय समाजशास्त्रीय परिषद द्वारा प्रतिष्ठित ‘प्रोफ़ेसर एम॰एन॰ श्रीनिवास पुरस्कार-2021’ तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा “इंस्टीटयूट ऑफ़ एमिनेंस अवार्ड-2021’ से भी नवाजा गया है.)


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