देश भर के समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर आज शाम से जिस बात पर चर्चा होगी वो पहले से ही स्पष्ट है- एग्ज़िट पोल. विभिन्न एजेंसियों द्वारा 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कराए गए सर्वे के आधार पर भविष्यवाणियां सबके सामने होंगी, और अगली सरकार बनाने वाली पार्टी या गठबंधन पर – और सबसे अहम भारत के अगले प्रधानमंत्री के बारे में – अनुमानों को लेकर दर्शक इन प्रसारणों से बंधे रहेंगे.
पर सभी एग्ज़िट पोल ये नहीं बताएंगे कि चार दिन बाद 23 मई को क्या तस्वीर उभरेगी, और संभव है शायद कोई ऐसा ना बता सके. यदि एग्ज़िट पोलों में खंडित जनादेश की बात सामने आती है, तो फिर अटकलबाज़ी के लिए तमाम परिस्थितियां मौजूद होंगी: भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह कोई और होगा; या फिर कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार जिसकी कमान ‘महागठबंधन’ के किसी नेता के हाथों में होगी.
2014 और उससे पहले के एग्ज़िट पोल
मुझे लगता है अधिकांश एग्ज़िट पोल एक जैसी भविष्यवाणी करेंगे जैसा कि 2014 या 2009 और 2004 के चुनावों के समय देखने को मिला था. उससे पहले के चुनावों में भी कोई अलग स्थिति नहीं थी. मेरा अनुमान है कि आज सारे एग्ज़िट पोल इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की भविष्यवाणी करेंगे.
देखने वाली बात सिर्फ ये होगी कि 2019 के एग्ज़िट पोल 2014 के ढर्रे पर रहते हैं या 2004 के समान – दोनों ही मौकों पर लगभग सारी रायशुमारियों में भाजपा को सर्वाधिक सीटें मिलने की बात कही गई थी. पर, गौर करने वाली बात ये है कि कैसे 2004 में भाजपा की आसान जीत की भविष्याणी गलत साबित हुई थी. कांग्रेस को दूसरे नंबर पर बताया जा रहा था, पर जब परिणाम सामने आए तो स्थिति इसके उलट थी.
एसी नील्सन के सर्वे ने 2004 के चुनावों में भाजपा को 190-210 और कांग्रेस को 95-105 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की थी. पर आखिरकार खंडित जनादेश का परिणाम सामने आया, जिसमें 145 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, जबकि भाजपा को उससे सात कम यानि 138 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. उस चुनाव में सारे एग्ज़िट पोल्स के औसत अनुमान में भाजपा की अगुआई वाले एनडीए गठबंधन को 255 सीटें दी जा रही थी, जबकि असल में एनडीए को 187 सीटें ही मिल पाईं. कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए गठबंधन के लिए सारे एग्ज़िट पोल्स का औसत अनुमान 183 सीटों का था, पर उसे असल में 219 सीटें मिलीं. इस तरह, कांग्रेस की सरकार बनी थी, ना कि एग्ज़िट पोल्स में आगे रही भाजपा की.
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दूसरा विकल्प आज एग्ज़िट पोल्स के 2014 के ढर्रे पर निकलने का हो सकता है, जब अधिकांश सर्वे में विजेता–भाजपा – की सही भविष्यवाणी की गई थी, पर भाजपा की जीत के स्तर का अनुमान बहुत कम सर्वे में दिख पाया था.
मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार विभिन्न एग्ज़िट पोल्स के बीच कहीं अधिक सामंजस्य और एकरूपता देखने को मिलेगी. मैं समझता हूं अधिकतर एग्ज़िट पोल भाजपा को सर्वाधिक सीटें देंगे; सिर्फ सीटों की संख्या पर मतभेद दिखेगा. कुछेक एग्ज़िट पोल हर पार्टी के लिए संभावित सीटों की सटीक संख्या की भविष्यवाणी कर सकते हैं; जबकि अन्य सीटों की संख्या को न्यूनतम और अधिकतम के दायरे में पेश करेंगे, जिनमें से कुछेक ‘ऐहतियातन’ अधिक सीटों का अनुमान पेश करेंगे.
बात सिर्फ ‘सैंपल साइज़’ की नहीं है
मेरे लिए देखने की बात ये होगी: क्या कम-से-कम कुछेक एग्ज़िट पोल सही तरीके से एग्ज़िट पोल कराने की कसौटी पर खरा उतर पाते हैं? या वे महज अनुमान ही रहेंगे? उनके द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को कितनी गंभीरता से लिया जा सकता है?
हालांकि ये बात भी सही है कि ना तो एग्ज़िट पोल्स के अनुमानों को सिरे से खारिज किया जा सकता है, और ना ही उनमें से सभी को बिना किसी संशय के स्वीकार किया जा सकता है. यदि आप चिकित्सा क्षेत्र का उदाहरण लें तो डॉक्टरों में कुछ अच्छे और कुछ उतने अच्छे नहीं होते हैं. पर बुनियादी कौशल को लेकर उनमें समानता होती है. एग्ज़िट पोल्स को भी दर्शकों को कम-से-कम वोट शेयर संबंधी अनुमान ज़रूर देने चाहिए.
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जब वोटिंग खत्म होने के तुरंत बाद चुनावी भविष्यवाणी जारी की जाती हैं तो ये मान लिया जाता है कि मतदाताओं का इंटरव्यू किया गया होगा और उनसे पूछा गया होगा कि उन्होंने किसी पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है. ये सवाल वोट शेयर का अनुमान लगाने के लिए पूछा जाता है, और मिलने वाले जवाबों के आधार पर पार्टी विशेष को मिलने वाली सीटों की संख्या या उम्मीदवार विशेष की जीत का अनुमान लगाया जाता है. यही है सही प्रक्रिया और एग्जिट पोल इसी तरीके से किया जाना चाहिए, यदि अभी ऐसा ना किया जाता हो.
मैं समझता हूं कि सैंपल साइज़ (इंटरव्यू में शामिल लोगों की संख्या) के साथ ही सीटों की संख्या का अनुमान लगाने की विधि का भी थोड़ा ब्यौरा दिया जाए, तो दर्शक भले ही एग्ज़िट पोलों की सटीकता का निष्कर्ष नहीं निकाल पाएं, पर वो उनकी विश्वसनीयता पर अपनी राय बनाने में ज़रूर सक्षम हो पाएंगे. सर्वे करने वाली एजेंसियों और उन्हें दिखाने वाले टीवी चैनलों से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे दर्शकों को वोट शेयर का अनुमान भी बताएंगे, और यदि संभव हो तो कुछ अतिरिक्त ब्यौरे भी साझा करेंगे.
अफसोस है कि दर्शकों को एग्ज़िट पोलों में सीटों की संख्या का अनुमान तय करने की विधि के बारे जानकारी दिए जाने की संभावना नहीं के बराबर है, पर संभव है उन्हें ‘सैंपल साइज़’ के दूसरों से बड़ा होने के बारे में विभिन्न चैनलों के दावे देखने को मिले.
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एक समाचार चैनल अपने एग्ज़िट पोल में सात लाख से ज़्यादा मतदाताओं की राय शामिल किए जाने का दावा प्रसारित करना शुरू भी कर चुका है. आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि कोई अन्य चैनल एग्ज़िट पोल के लिए इससे भी बड़े सैंपल साइज़ का दावा करे. सैंपल साइज़ को देख कर ही हम निश्चयपूर्वक ये राय बना सकते हैं कि किसी एजेंसी ने विश्वसनीय एग्ज़िट पोल किया है या नहीं.
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(लेखक एक प्रोफेसर और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज़ (सीएसडीएस) के निदेशक हैं. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी विचार हैं.)