हरिद्वार मातृ सदन के स्वामी आत्मबोधानंद एक बार फिर अनशन पर बैठ गए है. कारण है, गंगा पर किए गए सरकारी वादों का पूरा ना होना. जिस समय मातृसदन के साधु प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जीडी अग्रवाल की मांगों और उन मांगों पर सरकारी दावों – वादों की याद दिला रहे थे उस समय तक प्रधानमंत्री चमोली हादसे पर दुख जता चुके थे और विकास की नई इबारत लिखने के लिए अफगानिस्तान के साथ शहतूत एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर रहे थे.
इस शहतूत एग्रीमेंट को थोड़ा जान लीजिए. भारत 29 करोड़ डॉलर की मदद से 113 मीटर ऊंचा बांध काबुल नदी पर बनाएगा. यह बांध काबुल शहर को पीने का पानी और सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराएगा. इस बांध से बीस लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा. लेकिन यह इतना ही नहीं है निर्माण होने जा रहे इस बांध की नींव में एक विचार और है जिसका जिक्र इस एग्रीमेंट में नहीं है, जिसे अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भारत का ‘गिफ्ट ऑफ वाटर’ कहकर स्वीकार किया है.
काबुल नदी हिंदुकुश पर्वत से निकलकर सात सौ किलोमीटर का सफर तय करती है. इसके बाद यह जलालाबाद होते हुए खैबर दर्रे से पाकिस्तान में प्रवेश करती है और पेशावर से गुजरकर इस्लामाबाद के पास सिंधु नदी में मिल जाती है.
सिंधु को इंडस भी कहा जाता है. इंडस वही नदी है जो भारत से बहकर पाकिस्तान जाती है और जिसका पानी बंद करने की धमकी हम पाकिस्तान को देते ही रहते है. इंडस पर बन रही सिंचाई और बैकवाटर स्टोर करने वाली परियोजनाएं उसी विचार का हिस्सा है कि पाकिस्तान का पानी बंद कर उसे उसकी औकात दिखाई जाए.
शहतूत बांध के पीछे भी यही सोच काम कर रही है. यानी दोनों ओर से पाकिस्तान के पानी पर नियंत्रण रखा जाए. यही कारण है कि शहतूत बांध का विरोध पाकिस्तान और ईरान में तेजी से हो रहा है.
अब यदि आप सोचते है कि भारत देश की एकमात्र समस्या पाकिस्तान है और ‘पानी बम’ से उसे काबू किया जा सकता है एक नजर अपने से ऊपर मौजूद देश पर यानी चीन पर डालिए. चीन ने इसी तरह की कई बांध परियोजनाएं (शहतूत और इंडस से कई गुना बड़ी) ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक धाराओं पर निर्माणाधीन है.
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जीवन दायिनी बनी हथियार
गलवान घाटी में चल रहे तनाव के बीच गलवान नदी के पानी को रोके जाने की कई तस्वीरे सामने आई थी. जिसका मतलब है चीन जब चाहे भारत के एक बड़े हिस्से में तबाही बरपा सकता है. सारी दुनिया में ऊपर मौजूद देश अपने से नीचे वाले देश के हिस्से के जल पर कब्जा करना चाहता है और नदी को हथियार की तरह उपयोग करने की कोशिश करता है.
असम में बैमोसम आने वाली बाढ़ के पीछे भी चीन का हाथ होने की आशंका है क्योंकि वह ब्रह्मपुत्र के बहाव के आंकड़े देने में अक्सर आनाकानी करता रहा है.
सत्ता का नदी विचार बताता है कि चमोली कोई सबक नहीं बल्कि एक परीक्षण था जिसका मौका एवलांच ने मुहैया करा दिया. एक साथ तेजी से आए मलबे ने दो सौ से ज्यादा मजदूरों को लील लिया. चमोली से कई गुना ज्यादा बड़ा हादसा था केदारनाथ और केदारनाथ से बहुत बड़ा होगा मानवनिर्मित हादसा. सोचिए जब कभी चीन भारत पर या भारत पाकिस्तान पर या पाकिस्तान ईरान पर बड़ी मात्रा में एक साथ पानी छोड़ेगा तो क्या होगा ?
एक नजर उन तथ्यों पर भी डाल लेते है जिनकी जरूरत हमें हादसों के समय चर्चा के लिए पड़ती है.
भारत में 4 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर यानी 12.6% जमीन ऐसी है जहां भूस्खलन का खतरा बढ़ा है. यूके के शेफील्ड विश्वविद्यालय की स्टडी में 2004 से 2016 के बीच दुनिया के 5031 बड़े भूस्खलन में 829 भारत में आए.
विशेषज्ञों के अनुसार हिमालय पर बढ़ते तापमान की वजह से 8000 ग्लेशियल झीलों में से 200 के करीब खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी हैं.
केदारनाथ हादसे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था, कमेटी ने अपनी सिफारिशों में साफ तौर पर कहा था कि 2500 मीटर की ऊंचाई वाले हिमालयी भाग पैराग्लेशियल जोन में आते हैं. यहां का भूभाग कालांतर में पीछे खिसके ग्लेशियरों के शेष मलबे से बना है. यह अभी भी कच्चा है और इस क्षेत्र में पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण घातक है. उन्होने हिमालय में अर्ली वार्निंग सिस्टम की व्यवस्था तुरंत लागू करने के लिए कहा था.
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हादसे होते रहेंगे विकास होता रहेगा
ऊपर लिखे सभी तथ्यों से राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अच्छी तरह अवगत है लेकिन चमोली हादसे में उनका बयान महत्वपूर्ण है. जिसका लब्बोलुआब यह कि, मजदूरों की मौत का दुख है लेकिन विकास को रोका नहीं जा सकता. इस बयान में मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद और उन जैसे नदी प्रेमियों के लिए खुला संदेश है कि लोकतंत्र के शोर में मौन तपस्या टिक नहीं पाएगी. गंगा के लिए अपने तीन ऋषियों की बलि दे चुका मातृ सदन भी समझ रहा है तपस्या लंबी चलेगी. 24 फरवरी से जारी इस तपस्या की मांगे वहीं है जो जीडी अग्रवाल के अनशन की थी, अनशन करते हुए ही उनकी मौत हुई.
उन चार मांगों को देख लिजिए जिन्हें सरकार आज भी पूरा नहीं कर पा रही.
1. संसद गंगा जी के लिये एक एक्ट पास करे. इसका ड्राफ्ट जस्टिस गिरिधर मालवीय की देखरेख में बनाया गया था.
2. अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरन्त निरस्त करना. (बन चुके बांधों को तोड़ने के लिए उन्होंने नहीं कहा)
3. गंगा तट पर जंगल काटने और रेत खनन पर रोक लगाई जाए, इसके लिए नियम तय किए जाए, विशेष रुप से हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में.
4. एक गंगा-भक्त परिषद बनाई जाए जिसमें समाज और सरकार से जुड़े सदस्य शामिल हों. गंगा से जुड़े सभी विषयों पर इसका मत निर्णायक माना जाए.
गंगा और काबुल जैसी सभी महान नदियों को स्रोत हिमालय ही है . और हिमालय का भारतीय द्वार यानी हरिद्वार कुंभ की तैयारी में व्यस्त है. लाखों लोग आएंगे डुबकी लगाएंगे और चले जाएगें किसी को यह खबर भी नहीं होगी कि हिमालय का ऊपरी हिस्सा करवट ले रहा है और वहीं हरिद्वार में गंगा किनारे कोई संत तपस्या कर रहा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)
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