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Friday, 22 November, 2024
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क्या मायने रखती है मोदी द्वारा इमरान खान को की गई फोन कॉल?

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फोटो अवसर के लिए इस्लामाबाद के सार्क शिखर सम्मेलन में इमरान खान के बगल में खड़े नरेंद्र मोदीका दृश्य किसी राजनयिक तख्तापलट से कम नहीं होंगे।

पाकिस्तान के इमरान खान को एक फोन कॉल करके, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वह गुण प्रदर्शित कर दिया जिससे शक्तिशाली नेता बने होते हैं। 10 महीने से भी कम समय में फिर से चुनाव का दावा करने के लिए मोदी ने पाकिस्तान के साथ शांति का दाँव खेला है।

पाकिस्तान के आमने सामने ‘ईंट का जवाब पत्थर से’ जैसी मूर्खतापूर्ण बात, आँख के बदले आँख और 2016 के सर्जिकल हमलों से दिया गया एक सबक, और आर. के. सिंह जैसे भाजपा मंत्रियों द्वारा इमरान खान के बारे में सभी व्यंगपूर्ण टिप्पणियाँ एक ही झटके में ताक पर रख दी गईं।

समझने में कोई गलती न करें। यह 2015 का एक पुनर्चक्रण है जब प्रधानमंत्री मोदी ने तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पोती की शादी में भाग लेने के लिए लाहौर की हाई-प्रोफ़ाइल यात्रा की थी।

शायद आप कह सकते हैं कि इस इशारे के साथ, प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह दिखना चाहते हैं,लेकिन अगर यह सच होता तो यह उपमहाद्वीप के लिए शानदार होता। लेकिन अभी तक हम वहाँ नहीं पहुँचे हैं, उसके आस-पास भी नहीं हैं।

सबसे पहले, यह सिर्फ एक फोन कॉल है। दूसरा, मोदी ने कश्मीर, सभी के लिए एक आवश्यक घटक जिस पर पाकिस्तान प्रभुत्व की उम्मीद लगाए है, समझौते का कोई भी संकेत नहीं किया है। असल में, उन्होंने अपनी गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले कर कुछ अलग ही किया है, जिससे संकटग्रस्त राज्य में संकट और अधिक हो गया है।
अप्रिय होते हुए हम इसे स्वीकार करते हैं की मोदी पाकिस्तान के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री को कॉल करके चार चीज़ों को अंजाम दे रहे हैं, वह पिछले हफ्ते इमरान की शुरुआती टिप्पणी का जवाब दे रहे हैं कि यदि “भारत ने शांति और सुलह की दिशा में एक कदम उठाया, तो वह दो कदम उठाएँगे।”

मोदी एक क़दम उठा चुके हैं। अब, इमरान की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते हैं।

दूसरा, मोदी अपने फोन कॉल के माध्यम से संकेत दे रहे हैं कि वह पाकिस्तानी विरोधी ट्रोल्स को कुछ हद तक रोकना चाहते हैं। (मुस्लिम विरोधी ट्रोल्स जारी रहेंगे क्योंकि अगर कुछ भी गलत हो जाता है तो यही बचाव करेंगे) इससे यह भी पता चलता है कि क़रार के रास्ते में आने वाले किसी व्यक्ति को भी वे सहन नहीं करेंगे जो कि इतिहास में ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाए जिनसे शांति स्थापित करने में कोई भूमिका निभाई थी।

अटल बिहारी वाजपेयी भी ऐसा नहीं कर सकते थे। मोदी ने अपना दाव खेला है। क्या वह सफल होंगे?

तीसरा, प्रधानमंत्री यह इशारा कर रहे हैं कि वह समझते हैं कि विश्व नेता होने का क्या मतलब है। मोदी, कम से कम 1990 के दशक के मध्य में, आई. के. गुजराल (वास्तव में, गुजराल इतनी यात्रा किया करते थे कि मीडिया हेडलाइंसों ने कहना शुरू कर दिया था कि ‘वेलकम बैक प्रधानमंत्री जी’ ) के समय से देखा जाए तो, सबसे अधिक दौरा करने वाले प्रधानमंत्री रहे हैं।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि प्रधानमंत्री, जिनकी राजनीतिक सूझबूझ जापानी ारितसुगु चाकू की तरह तेजतर्रार है, ने कई विदेशी नेताओं से यह इशारा समझ लिया होगा की वह चाहते हैं की प्रधानमंत्री अपने पड़ोसी के साथ देश के संबंधो को सही करें।

भारत नियमित रूप से अपने स्वयं के झगड़ालू पड़ोसियों द्वारा विवादों में घिरा रहकर,बिग बॉयज़ क्लबट्रम्प-पुतिन-मोर्केल-मई-शिन्जो आबे गठबंधन(और कुछ महिलाएं भी)का हिस्सा बनने के लिएकैसे उत्सुक हो सकता है। अगर मोदी जी को चीन के “शुभचिन्तक” पाकिस्तान का पथ-प्रदर्शन करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है, तो भारत कैसे चीनको, जो विश्व की नंबर वनताकत होने का आकांक्षी है,नीचा दिखाने का दावा कर सकती है।

चौथा, प्रधानमंत्री अपने फोन कॉल में इमरान सेकह रहे हैं कि अब सब चीज़ सम्भव हैं और, यहां तक कि वह सार्क शिखर सम्मेलन के लिए इस्लामाबाद आने के लिए भी तैयार हैं,जिसका आयोजन वर्ष समाप्त होने से पहले किया जाएगा।
फोटो अवसर के लिएइमरानके बगल में खड़े मोदी के फोटो-सेशन के बारे में विचार करिए।यदि यह स्टेरॉयड के साथ शानदार कूट-नीति के तुल्य नहीं है,तो मुझे नहीं पता कि यह क्या है।

बेशक, यही कारण है कि यह एक बड़ा प्रलोभन है। अगर भारत सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेता है, तो इसे फिर से दूसरे वर्ष के लिए स्थगित कर दिया जाएगा। नियम यह है कि अगर एक देश किसी कारणवश इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले पाता है तो शिखर सम्मेलन का आयोजन नहीं किया जा सकता है।

फोटो अवसर के लिए इमरानके बगल में खड़े मोदी के बारे में विचार करिए। यदि यह स्टेरॉयड के साथ शानदार कूट-नीति के तुल्य नहीं है,तो मुझे नहीं पता कि यह क्या है।

हालांकि सुबह फोन कॉल के बाद,एक गहरी सास लेने की ज़रूरत है।यह स्पष्ट है कि मोदी की कॉल पूरी समझ-बूझ से तैयार करके की थी, कि इमरान के पास”मिलिस्टब्लिशमेंट” (सैन्यप्रतिष्ठान) का बहुत बड़ा समर्थन है,सैन्य और खुफिया एजेंसियों को पाकिस्तान मेंप्यार से बुलाया जाता है।

इमरान ऐसा नहीं कर पाते, जैसा इन्होंने किया है, अगर इनके पास वास्तविक लोकप्रियता न होती। तथ्य यह है कि इन्होंने पंजाब प्रांत में भी अविश्वसनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है,नवाज शरीफ-शेहबाज शरीफ के पीएमएल-एन की तुलना में इनके पासकेवल कुछ सीटें ही कम रहीं।

यह सच हो सकता है कि शेहबाज, जो जेल में अपने भाई और भतीजी के साथ कड़ी टक्कर देने के खयाली पाव पका रहे थे,ने सेना के सामने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया।पीएमएल-एन आज नेतृत्वविहीन है, और यह दिखता है।
मोदी सरकार ने स्पष्ट किया है कि इमरान एक सम्मानित व्यक्ति है। आने वाले हफ्तों और महीनों में,एक नई पहल – शायदकुछ वीजा और व्यापारिक लेन-देन को फिर से खोलनेकी संभावना है।चूंकि सेना को किसी भी भारत-संबंधित नीति को समझना चाहिए,क्योंकि अगर इमरान धोखा देता है तो उन्हें हार मानना पड़ेगा।

बड़ा सवाल यह है, जो हमेशा ही रहा है कि कश्मीर का क्या होगा। मोदी और इमरान इस 71 वर्षीय गुत्थी को कैसे सुलझा पाएंगे?

लेकिन हम कुछ जादा आगे का सोच रहे हैं। अभी, उपमहाद्वीप में शांति के लिए मोदी के बातों का अनुष्ठन करना महत्वपूर्ण है। चिंता करने वाला समय ज़रूर आएगा।आज का दिन उस व्यक्ति के नाम, जो दिल्ली के दिल, लोक कल्याण मार्ग में रहता है।

Read in English: What does Narendra Modi’s phone call to Imran Khan really mean

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