2019 में अगर मोदी नहीं तो फिर कौन? अधिकांश सामाजिक बैठकों का यह एक ऐसा अहम सवाल है जिसके कई जवाब हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा दूसरा विकल्प क्या है? यह एक ऐसा अहम सवाल है जो आजकल अलग-अलग विचार रखने वाले लगभग हर शहरी समूह में छाया हुआ है। मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं, प्रगतिविरोधी विचारों और बढ़ते धार्मिक कट्टरवाद के बारे में सवाल करने वाले उदारवादियों को टीना कारक (टीआईएनए – देअर इज नो अल्टरनेटिव) या “कोई और विकल्प नहीं है”, का सामना करना पड़ता है।
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हाल ही के महीनों में इस तरह के विचारों का आदान-प्रदान करने वाली सामाजिक सभाओं के बारे में जानने के लिए मैंने एक सामाजिक परीक्षण शुरू किया। यहाँ पर कुछ दिलचस्प तरीके दिए गए हैं जिनमें टीना-मोदी से जुड़े सवालों का जवाब दिया गया है।
एक तरफ टीना एक यथार्थ प्रश्न है जिसे वास्तव में एक उत्तर की तलाश है, लेकिन साथ ही साथ यह एक आडम्बरी प्रश्न भी है, जिसे पूछने और चुप कराने की खातिर पूछा जाता है। और तर्क को विराम देने एक लिए यह एक प्रभावी कारक है।
इस प्रश्न के कई संस्करण हैं, जैसे :-
क्या आपको वास्तव में लगता है कि राहुल गाँधी एक विकल्प हैं? क्या गुजरे समय का गाँधी-नेहरू का वंश 21वीं सदी के भारत की समस्याओं का समाधान हो सकता है? क्या एक बोझिल अर्थव्यवस्था के लिए एक खिचड़ी जैसा गठबंधन सही है? अगर मोदी नहीं तो फिर और कौन?
जेम्स क्रैबट्री की पुस्तक द बिलियनियर राज से भी टीना सवालों के एक नए संस्करण को उद्धृत किया जा रहा है।
बिजनेस इतिहासकार गुरूचरण दास पुस्तक में कहते हैं कि 2014 में मोदी को वोट न देना, वोट देने से बड़ा जोखिम था।
टीना प्रश्न के बाद अक्सर गहरी सांस और अजीब सी चुप्पी सामने आती है जो बताती है कि सब कुछ तो ठीक नहीं है।
लेकिन कुछ लोग इसका जवाब देते हैं।
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ठेठ कांग्रेसी समर्थक
अगर भाजपा का विरोध करने वाला कांग्रेस का समर्थक है तो वह टीना का विरोध करने के लिए एक वीरता भरा लेकिन हताशा भरा प्रयास करेगा। वह राहुल गांधी की ईमानदारी की बात करेगा – वह तर्क देगा कि ‘वह एक सभ्य व्यक्ति’ हैं।
कुछ लोग कांग्रेस पार्टी के 80 के दशक के पुराने अनुभव और समावेशन के नारे, “सरकार चलाना आता है, पूरे देश से नाता है”, के साथ त्वरित प्रतिक्रिया भी देंगे।
और कुछ लोग यह तर्क भी देगें कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को मजबूत होना चाहिए क्योंकि एक मजबूत विपक्ष एक स्वस्थ लोकतंत्र की कुंजी है।
एक जवाबी प्रश्न
एक व्यक्ति ने टीना फैक्टर को बुद्धिसंगत करके मोदी समर्थकों को परेशान करने की कोशिश की थी। यह वही है जो उदारवादी करते हैं – दुर्भाग्य से, हर चीज को बुद्धिसंगत करना।
उन्होंने एक भटकाने वाला जवाबी प्रश्न पूछा, क्या आप जानते हैं कि “कोई और विकल्प नहीं है” वाक्य किसने बनाया था?
चूंकि उत्तर कोई भी नहीं जानता था इसलिए वह उन्हें ज्ञान देने लगे। 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश दार्शनिक हर्बर्ट स्पेंसर अक्सर “कोई और विकल्प नहीं है” के साथ जवाब देते थे जब आलोचक उनसे लोकतंत्र और पूंजीवाद की खामियों पर प्रश्न पूछते थे। उन्होंने समझाया, बाद में 1980 के दशक में ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर द्वारा प्रसिद्द राजनीति में अपने आर्थिक निर्णयों के बचाव के लिए टीना फैक्टर अपनाया गया था।
फिर यह चर्चा निर्बाध रूप से मोदी से ब्रिटेन, थैचर से थेरेसा मे और फिर ब्रेक्सिट पर पहुँच गयी।
टीना कारक पराजित हो सकता है और हुआ है |
एक प्रोफेसर ने राजनीतिक इतिहास का एक उदहारण पेश किया कि आत्मतुष्टि स्वास्थ्यकर नहीं है और लोकतंत्र हमेशा एक विकल्प मुहैया कराता है।
जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में चुनाव की घोषणा की, तो वह अति-आत्मविश्वास से भरी हुई थीं।
उनके प्रतिद्वंदी जेल में थे। लोगों ने कहा कि आपातकाल के भयानक अतिवाद के बाद भी उनका कोई विकल्प नहीं था। लेकिन फिर भी वह हार गई थीं।
बाद में जब उनके बेटे राजीव गांधी बोफोर्स भ्रष्टाचार घोटाले और पार्टी में चल रहे असंतोष से घिरे थे, तब सर्वेक्षक प्रणय राय ने 1988 में इंडिया टुडे पत्रिका के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण आयोजित किया।
इंडिया टुडे ने लिखा, “चुनाव का संदेश सरल और सीधा है: एक खंडित विपक्ष के कारण, कांग्रेस (I) और राजीव गांधी का कोई और विकल्प नहीं है (टीना)।
यह बिल्कुल मोदी और 2019 की तरह लगता है। बेशक, रॉय ने इसे बेहद गलत आँका और कांग्रेस पार्टी हार गई।
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‘विकल्प’ शब्द की व्याख्या
एक कार्यकर्ता ने कहा, “जिस समय आप टीना के साथ मोदी की मेरी आलोचना का जवाब देते हैं तो आप स्वीकार करते हैं कि आप जो भी कहते हैं वह दोषपूर्ण है। यदि आप केवल इसलिए एक नेता का समर्थन कर रहे हैं कि विकल्प बदतर या अस्तित्वहीन है तो इसका मतलब यह है कि आप कह रहे हैं कि आप नेता की खामियों को अनदेखा कर रहे हैं।”
यह एक राजनीतिक समझौते की स्वीकृति है, न कि एक स्वतंत्र और बाधामुक्त राजनीतिक चयन का प्रदर्शन। तो क्या वे किसी मजबूरी के चलते मोदी का समर्थन कर रहे हैं?
मोदी समर्थकों ने कहा, “हाँ, क्या करें।”
यदि ऐसा है, तो फिर मोदी समर्थक किस चीज को अनदेखा कर रहे हैं। वे अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा की खातिर धार्मिक चरमपंथी राजनीति को नजरअंदाज करने को राजी हैं।
कार्यकर्ता ने कहा, “इसका मतलब है कि आप धार्मिक कट्टरवाद के साथ जीने के इच्छुक हैं। आप उसी प्रकृति के हैं जिसे आपने अनदेखा करने का फैसला किया है। इससे आपके नेता की खामियों से ज्यादा आपकी खामियों का पता चलता है।”
इसके बाद उन्होंने आगे बताया कि वह भ्रष्टाचार में रहना पसंद करतीं न कि मॉब लिंचिंग और घृणास्पद धार्मिक कट्टरता के दैनिक प्रदर्शन में।
नागरिक विकल्प
अब तक का सबसे अच्छा जवाब, जो मैंने सुना है, यह है कि, “विकल्प हम हैं। लोकतंत्र में, हम और आप जैसे लोग विकल्प हैं न कि कोई नेता। अपनी व्यक्तिगत राजनीति को सही रखें, जातिवाद तथा धार्मिक मतभेद से दूर रहें, और जब आप इसका सामना करें तो अन्याय, भेदभाव का समर्थन न करें। सवाल करते रहें। अपने नैतिक दायरे को बरकरार रखें। अपने नैतिक दायरे को परिभाषित और तय करने के लिए किसी नेता का इंतजार न करें।
लेखक के इस जबाव ने मोदी समर्थकों से भी हामी भरवाई है।
Read in English : What do Modi haters say when confronted with the TINA factor?