याद कीजिए फरवरी का वो दिन जब गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग में 59 कार सेवक मारे गए थे. तत्कालीन भाजपा सरकार ने मृतको की शव यात्रा अहमदाबाद की सड़कों से निकाली थी. मंशा थी भावना और क्रोध का ज्वार पैदा करना. हिंदुओ की साज़िशन हत्या की गयी, ये भावना दिलो दिमाग़ में बैठाई गयी. उसका असर कुछ समय बाद गुजरात में हुए साम्प्रदायिक ध्रुविकरण के रूप में देखा गया. पश्चिम बंगाल में हर दिन हालात बिगड़ रहे हैं, न केवल भाजपा और तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हों रही हैं, दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ राज्य के चिकित्सक भी हड़ताल पर चले गए हैं. और इस हड़ताल के मायने भी राजनीतिक ही बताए जा रहे हैं.
भावना का ज्वार कितना मज़बूत राजनीतिक हथियार है यह सब जानते हैं. हिंदी विरोध की भावना ज़ोर कैसा होता है ये दक्षिण भारत में, विशेषकर तमिलनाडू में देखा गया. अब यही भावना पश्चिम बंगाल में भड़काई जा रही है. भाजपा का संदेश है की राज्य की तृणमूल सरकार उनको राजनीति नहीं करने दे रही. उसके कार्यकर्ता तृणमूल की हिंसा का शिकार हो रहे हैं. कितने कार्यकर्ता मारे गए उसकी गिनती दोनों पक्षों की अलग-अलग है. पर ये बात प्रसारित कर दी गई है कि राज्य में हालात काबू से बाहर है. ममता बनर्जी सरकार अक्षम दिखाई पड़ रही है. यही नहीं दीदी के कई वीडियो वायरल कराए जा रहे हैं जिसमें ममता को गुस्सैल दिखाने की कोशिश की जा रही है.
और यहां भी गोधरा की तरह भाजपा मारे गए कार्यकर्ताओं की शवयात्रा निकाल रही है. मकसद यहां भी राजनीतिक ही है – अपनी ज़मीन को भावनाओं के बल पर मज़बूत करना. लोकसभा के चुनाव के पहले से राज्य में हिंसा की खबरें लगातार आ रहीं है. अब राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने गृह मत्री और प्रधानमंत्री से राज्य की स्थिति पर चर्चा की तो राजनीतिक हलकों में ये बात आग की तरह फैली की राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश शुरू हो गई है. हालांकि भाजपा ने इस संभावना से इंकार किया. वहीं ममता बनर्जी ने अपने तेवर दिखाते हुए चेतावनी जी की 2021 में राज्य विधानसभा चुनाव उनकी पार्टी ही जीतेगी और कहा कि याद रखा जाना चाहिए कि एक घायल शेरनी कितनी खतरनाक होती है.
यह भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल: अब आगे क्या होने वाला है?
भाजपा के बुधवार को राज्य में पुलिस मुख्यालय लाल बाजार पर कूच के अभियान में पुलिस से भाजपा कार्यकर्ताओं की भिड़ंत के बाद गुरुवार को राज्य के कानून व्यवस्था को सुचारु करने और राजनीतिक हिंसा पर लगाम लगाने के लिए राज्यपाल ने राज्य में बैठक बुला ली है जिसमें त्रिणमूल कांग्रेस, भाजपा, सीपीआईएम और कांग्रेस के प्रतिनिधियों को बुलाया गया है.
जिस तरह से राज्यपाल सक्रिय हुए हैं उसे त्रिणमूल सरकार पर दबाव बनाने के रूप में देखा जा रहा है. एक तो राज्य सरकार पर राष्ट्रपति शासन की तलवार लटकती रहेगी, वहीं राज्य सरकार की कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा कर न केवल राज्य सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है बल्कि राज्य की नौकरशाही और पुलिस प्रशासन को संकेत दिया जा रहा है कि अगर वे ‘स्वतंत्र’ रूप से काम नहीं करते हैं तो 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल भी सकती है और सत्ता में किसी और दल के आने का क्या मतलब होगा वो उन्हें समझ आयेगा.
कानून व्यवस्था राज्य के तहत आता है ऐसे में ममता सरकार इस दबाव को दखल के रूप में देख रही हैं और केंद्र से उसके रिश्ते इस कदर बिगड़ चुके हैं कि इसे वर्किंग रिलेशनशिप कहना भी अतिश्योक्ति होगी. एक घायल शेरनी अपने का ब्यूरोक्रेट्स से पूरा साथ चाहती है. बंगाल पुलिस प्रमुख और अन्य अधिकारी चुनावी माहौल में जिस तरह ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठे थे उसका भी संदेश साफ था कि वहां का पुलिस प्रशासन उनके कहने पर चलता है और उसकी पहली प्रतिबद्धता ममता सरकार के प्रति है चाहे नौकरी के नियम कुछ भी कहते हों.
यह भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल में लाल और केसरिया का मिलन क्या गुल खिलाएगा
बंगाल की राजनीतिक रंगभूमि में राम नाम पर बवाल हो या फिर बंगाल की अस्मिता का ईश्वर चंद्र विद्यासागर रूपी प्रतिमान पर हक जताने का सवाल हो, यहां के इतिहास की तरह भी वर्तमान में रक्त रंजित राजनीति का दबदबा बना हुआ है. और विधान सभा चुनाव तक भाजपा- त्रिणमूल के बीच ये हाई वोलटेज वाकयुद्ध और सड़को पर आर पार की कथा अभी चलने वाली है.