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Sunday, 3 November, 2024
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हमने अपने पाठकों से पूछा कि वो दिप्रिंट को क्यों पसंद करते हैं, उन्होंने हमें यह बताया

कुल 12 सवाल थे, सीधे-सादे और दो-टूक जिससे यह जानना था कि क्या दिप्रिंट की दिशा सही है? इसके पाठक कौन हैं? वो दिप्रिंट में क्या पढ़ते हैं? वे उसकी सामग्री से कितना संतुष्ट हैं?

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हम पत्रकारों को कई बार अपने पाठकों से ईर्ष्या होती है. हम उन्हें जितना जानते हैं उससे बेहतर वो हमें जानते हैं. वो कई पत्रकारों को उनकी बाइलाइन देख पहचान लेते हैं. वो हममें से कइयों की फोटो भी लगा सकते हैं क्योंकि अक्सर हमारे फोटोग्राफर किसी रिपोर्ट वगैरह के दौरान हमारे साथ होते हैं या वो हमें यूट्यूब, सोशल मीडिया पर देख सकते हैं और पोडकास्ट पर सुन सकते हैं.

पाठक हमारे काम के जरिए हमारी पेशेवर जिंदगी के बारे में भी काफी कुछ जान लेते हैं. मसलन, हम किन विषयों पर लिखते हैं? किन लोगों से मिलते? और बात करते हैं. यहां तक कि हम क्या सोचते हैं- जैसे, आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों या आर्यन खान केस पर हमारी राय-क्योंकि ज्यादा से ज्यादा पत्रकार अब अपना नजरिया लेखों में जाहिर करते हैं या सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं और हम तमाम तरह के विषयों पर अपनी राय जाहिर करने से हिचकते भी नहीं हैं.

दूसरी तरफ, हम अपने पाठकों-श्रोताओं से अपेक्षाकृत अपरिचित-से होते हैं. वो हमारे काम टिप्पणी कर सकते हैं या कुछ सोशल मीडिया पर (हमारी तरह) सक्रिय हैं लेकिन ज्यादातर अंधेरे में होते हैं. हमें चुपचाप देखते, पढ़ते या सुनते हुए.
हम चकित हैं कि वे कौन हैं.

गूगल और यूट्यूब एनालिटिक्स से हमें पाठकों-श्रोताओं के बारे में अमूल्य जानकारी मिलती है लेकिन पिछले चार साल से दिप्रिंट उन लोगों के बारे में लगातार जिज्ञासु बना रहा है जो वेबसाइट देखते हैं, पढ़ने की कोशिश करते हैं और हमारी पत्रकारिता का समर्थन करते हैं. आखिर इतना प्रचुर मीडिया कंटेंट उपलब्ध है तो वे दिप्रिंट की ओर क्यों आते हैं?

सितंबर 2021 में हमने अपने पाठकों की पसंद और नापसंद की तलाश शुरू की. 10 और 20 सितंबर के बीच एक ऑनलाइन पाठक सर्वे किया गया. उस वक्त मैंने आप सबसे सर्वे के नतीजे साझा करने का वादा किया था तो यह लेख उसी के बारे में है.

सर्वेक्षण की बात

आपने हमें क्या कुछ बतलाया, यह बताने के पहले आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने सर्वे में वक्त निकाल कर हिस्सा लिया. लोग हमारी उम्मीद से ज्यादा आगे आए और हमें मूल्यवान जानकारी दे गए.

सर्वेक्षण के नतीजों से अब मैं दिप्रिंट के पाठकों को जानने के काबिल हूं. हां, दिप्रिंट को महिलाओं से ज्यादा पुरुष पढ़ते हैं लेकिन सभी समाचार पाठकों के बारे में यही सच्चाई है. वो अपने मध्य बीस वर्ष से चालिस वर्ष के पार की उम्र के सूट-टाइ में कॉरपोरेट-अफसरशाही वाले या जींस और टी-शर्ट में छात्र होते हैं. कई बार उनमें प्रोफेसराना तेवर होते हैं तो कभी वे हमारी तरह पत्रकार की भूमिका में होते हैं लेकिन वे वही हैं जिनकी उंगलियां हमेशा अपने आइफोन/एन्ड्रायड और दुनिया की नब्ज पर होती हैं. पाठक महोदय आपका स्वागत है.

यह भी कि दिप्रिंट का फोकस राजनीति, राजकाज और सामरिक-रणनीतिक मामलों पर ज्यादा है. हमारा पाठक अच्छा पढ़ा-लिखा और देश-दुनिया के बारे में जागरूक और सतर्क है. यह दिप्रिंट के लिए प्रतिष्ठा की बात और चुनौती दोनों है.

हमारा कंटेंट जरूर जानकारियों से भरपूर, गहरा और उच्च स्तर का होगा जो ऐसे पाठकों को संतुष्ट करता है.
सर्वे पर लौटते हैं. यह दो हिस्सों में है. दिप्रिंट को वेबसाइट और सोशल मीडिया पर प्रोमो के माध्यम से या इसके दैनिक और साप्ताहिक न्यूज़लेटर्स के जरिए देखा-पढ़ा जा सकता है. इसके अलावा, कई सोशल मीडिया सर्वे के सवाल भी थे जो सर्वेक्षण के सकल दायरे का ही अंदाजा दे रहे थे. मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना था.

और गजब! यह कितना कामयाब रहा. करीब 1.35 लाख से अधिक जवाब मिले. ज्यादातर प्रतिक्रिया सोशल मीडिया सर्वे सवालों के आए. मगर करीब 4,000 लोगों ने पूरे सर्वेक्षण के जवाब दिए. बेशक, यह नमूना आकार काफी सम्मानजनक है.

कुल 12 सवाल थे, सीधे-सादे और दो-टूक जिससे यह जानना था कि क्या दिप्रिंट की दिशा सही है? इसके पाठक कौन हैं? वो दिप्रिंट में क्या पढ़ते हैं? वे उसकी सामग्री से कितना संतुष्ट हैं? और सबसे खास कि वे हमसे और क्या चाहते हैं?

हां, वे काफी कुछ चाहते हैं. जो हो रहा है.

लेकिन आइए पहले जानने की कोशिश करें कि क्यों पाठक दिप्रिंट पढ़ते हैं.


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आपने हमें क्या बताया

हमारी खबरें लोग क्यों पढ़ते हैं? पाठक सर्वेक्षण के मुताबिक, एक बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर पाठक (करीब 80 प्रतिशत) दिप्रिंट की पत्रकारिता में भरोसा करते हैं. हां, हम स्वीकार करते हैं कि एक वर्ग ऐसा भी जो ऐसा नहीं मानता. मुझे कुछ पाठकों की शिकायत मिली है कि दिप्रिंट ‘पक्षपाती’ है-लेकिन यह ऐसे दौर में हैरान करने वाला नहीं है जब देश भर में गहरी होती सांप्रदायिक, सामाजिक और आर्थिक खाइयों की वजह से भारी राजनैतिक ध्रुवीकरण का दौर है और मीडिया विभिन्न विचारधाराओं के समर्थन में बुरी तरह बंटा हुआ है.

कंटेंट के मामले में सर्वे से हमें पता चलता है कि पाठक दिप्रिंट में सबसे ज्यादा राजनीति और राजकाज, कूटनीति और सामरिक मामलों की खबरें और नजरिया पढ़ते हैं. पाठकों का कहना है कि वो ऐसे मामलों में अपनी पकड़ बढ़ाना चाहते हैं. एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के कॉलम ‘कट द क्लटर’ और ‘नेशनल इंटरेस्ट’ के साथ-साथ मत-विमत और आर्टिकल्स, एक्सप्लेनर बहुत-सारे पाठकों का ध्यान खींचते हैं. शायद, इसलिए कि ये सभी ज्ञान की कटगरी में हैं जिसे हमारे पाठक तवज्जो देते हैं.

स्वास्थ्य, विज्ञान, शिक्षा, अपराध और न्याय जैसे विषय भी ‘ज्यादा पढ़े जाने वाले’ की सूची में हैं.

हालांकि, पाठकों को और ज्यादा की तलाश है. ‘हम आपका अनुभव कैसे बढ़ा सकते हैं?’ और ‘हमें और क्या करना चाहिए?’ जैसे हमारे सवालों के जवाब फौरन और दो-टूक आए. एक स्तर पर बात तकनीकी और डिजाइन जैसे मसलों की थी जिनसे वे संतुष्ट नहीं थे. मसलन, मोबाइल ऐप लॉन्च करें, विज्ञाापन मुक्त कंटेंट दें, साफ-सुथरी वेब डिजाइन दें, बेहतर क्वालिटी के वीडियो और पोडकास्ट दें, साइट की स्पीड बढ़ाएं, वगैरह-वगैरह.

कुछ ने शिकायत की कि दिप्रिंट पर्याप्त डिजिटल नहीं है यानी ऑनलाइन अखबार की तरह ही ज्यादा लगता है इसलिए ज्यादा ग्राफिक, ऑडियो और वीडियो कंटेंट मुहैया कराया जाए.

दिप्रिंट को इसके प्रति सकारात्मक रुख की दरकार है क्योंकि अच्छी-खासी संख्या में लोगों ने ‘डिजिटल’ अनुभव से असंतोष जाहिर किया लेकिन जो ऐप की मांग कर रहे थे उन्हें फिलहाल इंतजार करना होगा. दिप्रिंट की ऐप लांच करने  की अभी कोई योजना नहीं है. हालांकि, लंबी योजनाओं में तो हमेशा बना हुआ है.

संपादकीय पक्ष में, अर्थव्यवस्था, कारोबार, टेक्नोलॉजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, खेल, चीन समेत उसके क्षेत्र, विदेशों में आप्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों की ज्यादा खबरों की मांग है. उसके अलावा, रोजाना वीडियो/ऑडियो न्यूज बुलेटिन, गहरा विश्लेषण, खोजी खबरों और ग्राउंड रिपोर्ट की भी ज्यादा मांग है. यकीनन, इन सब पर गौर किया जाएगा.

वैसे, दिप्रिंट में पहले ही ग्राउंट रिपोर्टिंग पर काफी जोर है और खेल का कवरेज भी बढ़ाया गया है. हाल में दुबई में टी-20 विश्व कप क्रिकेट और इंडियन प्रीमियर लीग के दौरान रोजाना खबरें, डेटा या मुकाबले से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट की गई.

इसके साथ, मुझे संपादकों से पता चला है कि आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था, कारोबार और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे विषयों की कवरेज बढ़ाई जाएगी. दिप्रिंट अपनी टीम में खास विषयों के विशेषज्ञ रिपोर्टरों को शामिल करने पर जोर दे रहा है.

बेहद लोकप्रिय ‘कट द क्लटर’ जैसे और ज्यादा शो और एक ज्ञान खंड की ख्वाहिश के मायने हैं कि अनेक छात्रों, आइएएस-आइपीएस बनने को आतुर लड़के-लड़कियों का रुझान दिप्रिंट की ओर बढ़ेगा. फिर, हमें इन पर भी गौर करने की दरकार है.

एक लगातार मांग और जिस बारे में मुझे रिडर्स एडिटर मेल पर भी एक पत्र मिला यह थी कि लेखों में ‘कमेंट’ सेक्शन दोबारा खोला जाए. गर्मियों में दिप्रिंट ने इसे वापस ले लिया था क्योंकि पत्रकारों को कई बार व्यक्तिगत स्तर पर गाली-गलौज जैसे ट्रॉलर की भरमार हो चली थी. दिप्रिंट आलोचनाओं का स्वागत करता है मगर गाली-गलौज तो ठीक नहीं.

इससे पाठकों ने काफी नाखुशी जाहिर की. उनका मानना है कि उन्हें कोई लेख पढक़र फौरन प्रतिक्रया देने का हक है. इसलिए ‘कमेंट’ सेक्शन को दोबारा शुरू करने की भारी मांग है लेकिन बड़े पैमाने पर खराब मैसेज के कारण फिलहाल इसपर रोक लगाई गई है.

हालांकि, हर तरह की फीडबैक रिडर्स एडिटर, यूट्यब या सोशल मीडिया पर जरूर भेजें.

हम आपकी सुन रहे हैं

दिप्रिंट के मामले में दूसरी बात खुशखबरी जैसी है. तकरीबन 25 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो कंटेंट के लिए भुगतान करने को तैयार हैं. अभी तक दिप्रिंट मुफ्त है लेकिन एकमात्र स्वतंत्र, टिकाऊ वित्तीय मॉडल यही है कि लोग जो पढ़ें, देखें या सुनें उसका भुगतान करें. यही डिजिटल पोर्टलों की सबसे बड़ी दिक्कत बनी हुई है क्योंकि पाठक ऑनलाइन कंटेंट के लिए भुगतान करने में हिचकते हैं. वजह यह है कि ढेर सारी ‘मुफ्त’ खबरें उपलब्ध हैं.

इसलिए हमारे एक-चौथाई पाठक भी कहते हैं कि वो कुछ भुगतान करेंगे तो यह बड़ी उपलब्धि है.

पाठक सर्वेक्षण असलियत का महत्वपूर्ण आईना है. इससे टीम दिप्रिंट को दिलासा मिला कि शुरुआत अच्छी है लेकिन पाठक इसमें काफी सुधार चाहते हैं. इससे कंटेंट, डिजाइन, उपलब्धता और पाठकों की रुचि के बारे में मूल्यवान सलाह हासिल हुई.

हालांकि, इसके मायने जो भी हों, दिप्रिंट को अपने पाठकों की जरूर सुननी चाहिए और उन विचारों पर अमल करना चाहिए जो वेबसइट के संपादकीय दायरे सही और करने योग्य हों. बदलाव के लिए तैयारी की मिसाल शुरू किए गए नए वीडियो कंटेंट हैं ‘क्वॉर्टर मास्टर’, ‘वर्ल्ड 360’, और जलवायु परिवर्तन पर वीडियो.

उम्मीद है कि यह बेहतरी की दिशा में शुरुआत है.

शैलजा बाजपई दिप्रिंट की रीडर्स एडिटर हैं. कृपया अपने विचार और शिकायत readers.editor@theprint.in पर लिखें

(यह लेख अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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