राम की कहानी मध्यकालीन एशिया काफी जानी-पहचानी, मध्य एशिया के शासकों और कवियों द्वारा पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के दूर-दूर तक फैले द्वीपसमूहों में सबसे प्रसिद्ध, लोगों द्वारा आत्मसात की गई कहानियों में से एक है. यह जहां भी गई, नई संस्कृतियों, नई भाषाओं से समृद्ध हुई. वर्तमान इंडोनेशिया के द्वीपों में, राम कथा अपने सबसे रचनात्मक और प्रभावशाली संस्करणों में विकसित हुई, जिसे सूफी प्रचारकों और धर्मनिष्ठ मुसलमानों ने शाही दरबारों और जीवंत लोकप्रिय रंगमंच दोनों में विकसित किया.
स्थानीय भाषा में रामायण
9वीं या 10वीं शताब्दी में जावा द्वीप पर, एक अज्ञात कवि ने अपनी उत्कृष्ट कृति: रामायण काकाविन पूरी की. वह एक ऐसी दुनिया में रहते थे जो कई सदियों से ‘वैश्वीकृत’ थी. जावा की अदालतें बंगाल की अदालतों से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई थीं, और वर्तमान गुजरात और श्रीलंका तक के व्यापारी और भिक्षु द्वीप पर रहते थे. यह कवि हिंद महासागर की दुनिया में प्रचलित संस्कृत ग्रंथों से अच्छी तरह परिचित था, जिसमें भट्टिकाव्य भी शामिल था, जो परिष्कृत समकालीन संस्कृत में रामायण का पुनर्कथन था, जिसमें भाषा की व्याकरणिक विशेषताओं का पूरा उपयोग किया गया था.
जैसा कि उनके मध्यकालीन भारतीय समकालीनों ने किया था, इस कवि ने रामायण का उपयोग अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए किया. संस्कृत के बजाय, उन्होंने पुरानी जावानीज़ (जावा की पुरानी भाषा) में लिखा, जो अपने समय की बौद्धिक संस्कृति से में लेखन की परंपरा से अलग लिखना था.
जैसा कि इतिहासकार मालिनी सरन और राजनयिक विनोद खन्ना ने द रामायण इन इंडोनेशिया में लिखा है, कवि ने अपनी कथा के पहले भाग के लिए भट्टिकाव्य का अनुसरण किया लेकिन चरित्र-चित्रण, भावनात्मक गहराई और संवाद के मामले में कई प्रयोग किए.
उन्होंने इस पर जावानीज़ सांस्कृतिक विचारों का भी मिश्रण किया, जिसका सारांश सरन ने अपने पेपर ‘द रामायण इन इंडोनेशिया: अल्टरनेटिव टेलिंग्स’ में दिया है. 9वीं शताब्दी में, माना जाता था कि प्लेसेंटा (गर्भनाल) में जादुई शक्तियां हैं; इस प्रकार, सीता स्वयंबर में भंग किए गए या तोड़े गए धनुष के बारे में माना जाता है कि वह उनकी गर्भनाल का ही जादुई अवतार था. विभीषण की पुत्री त्रिजटा काकाविन में एक प्रमुख पात्र है. वह सीता के प्रति उदारतापूर्ण भावना रखने वाली थी – इतनी वफादार कि जब राम अपनी पत्नी की वफादारी पर सवाल उठाते हैं तो राम भक्त होते हुए भी उसे यह बात पसंद नहीं आती.
वाल्मिकी रामायण में, राम जब विभीषण को लंका की राजगद्दी देते हैं तो उनके पास कहने के लिए बहुत कम शब्द होते हैं. हालांकि, काकाविन में राम राजसत्ता के बारे में एक ज़बरदस्त प्रवचन देते हैं, जिसे सदियों बाद भी जावा में उद्धृत किया जाता है और दोहराया जाता है. राम की घोषणा है कि राजा के शरीर में आठ देवता होते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक गुण का प्रतिनिधित्व करता है जिसका उसे पालन करना चाहिए: इंद्र की बारिश की तरह उदारता; यम के समान दुष्टों को दण्ड देना; चंद्रमा की चमक की तरह अच्छे लोगों को शीतलता प्रदान करने वाला.
यह इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि जावानीज़ साहित्यकारों ने 9वीं शताब्दी में राज धर्म के बारे में किस तरह की कल्पना की थी. लेकिन यह राम कथा के कई प्रचलित पहलुओं में से केवल एक था, जिस पर अनेकानेक मध्ययुगीन कवियों और गायकों ने भी प्रसन्नता के साथ लिखा और गाया. लेकिन उनकी रचनाएं केवल इसी काल खंड तक सीमित नहीं हैं बल्कि आने वाले कई शताब्दियों तक इन पर लिखा गया.
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मुस्लिम रामायण
7वीं शताब्दी में मोहम्मद के जन्म से पहले भी पश्चिम एशियाई व्यापारी और नाविक जावा में सक्रिय थे, लेकिन इस्लाम वहां कई शताब्दियों बाद, 13वीं शताब्दी में पहुंचा. यह सवाल कि इंडोनेशियाई इस्लाम का प्रसार कहां से हुआ, और कैसे पूरा द्वीपसमूह बड़े पैमाने पर बिना हिंसक संघर्ष के इस्लाम को मानने लगा, यह एक पेचीदा सवाल है और एक अलग कॉलम का हकदार है.
इतिहासकार कैरोल केर्स्टन का तर्क है कि इंडोनेशिया में इस्लाम के इतिहास में हालांकि द्वीपों का एक समृद्ध हिंदू-बौद्ध इतिहास था, व्यापक हिंद महासागर मुस्लिम समुदाय में शामिल होने से संभवतः उन्हें उनके सबसे खतरनाक प्रतिद्वंद्वियों – अंगकोर और सियाम के मुख्य भूमि साम्राज्यों के खिलाफ सुरक्षा देने की पेशकश की गई हो. अरबी इतिहास से पता चलता है कि अरब प्रायद्वीप के हद्रामुत क्षेत्र में स्थापित सूफी लोगों में कुछ जावानीज़ सदस्य भी थे. हद्रामुत व्यापारी प्रवासी ने इन क्षेत्रों के बीच शिक्षकों और ग्रंथों के आदान-प्रदान में मदद की होगी, जिनके बीच एक समृद्ध संबंध था.
16वीं शताब्दी तक, सुमात्रा, मलय प्रायद्वीप और जावा के शासकों ने इस्लाम धर्म अपना लिया था. हिकायत और सेजराह के नाम से जाने-जाने वाले राज्य इतिहास में हिंदू और बौद्ध उपाधियों और चिह्नों के साथ इस्लामिक उपाधियां भी दिखने लगी थीं. उदाहरण के लिए, मलक्का के दरबार द्वारा नियुक्त सेजराह मलयु में, इसके शासक वंश को इस्कंदर (इस्लामी रूप में सिकंदर महान) और राजा चुलान (राजेंद्र चोल) का वंशज बताया गया है.
जैसा कि इंडोलॉजिस्ट एस सिंगारवेलु ने ‘द राम स्टोरी इन द मलय ट्रेडिशन’ में लिखा है, मलक्का सुल्तानों ने भी पुरानी परंपरा को ध्यान में रखते हुए जो कि राजा राम के साथ जुड़ी हुई थी कि उन्होंने लक्ष्मण को अपना सेनापति नियुक्त किया था, अपने एडमिरलों और जनरलों को “लक्ष्मण” की उपाधि दी.
सरन और खन्ना ने इंडोनेशिया में रामायण में उत्तरी जावा के डेमक की एक परंपरा का दावा किया है कि उसके सुल्तान ने अपने धर्म परिवर्तन पर पुराने ग्रंथों को जलाने का आदेश दिया था. हालांकि, वे दिखाते हैं कि यह बयानबाज़ी जावानीज़ अदालतों (और कई अन्य किंवदंतियों) के वास्तविक साहित्यिक साक्ष्यों से अस्वीकृत है. यहां 18वीं सदी के जावानीज़ उलेमा का एक उद्धरण है, जो उस समय के धार्मिक बहसों का दस्तावेजीकरण करने वाले एक पाठ, सेराट कैबोलेक में दर्ज है: “कावी [मध्ययुगीन काव्य] कार्यों का सार कई रूपकों में व्यक्त किया गया है, जिससे रहस्यमय ज्ञान की सर्वोत्कृष्टता का पता लगाया जा सकता है और महारथ हासिल की जा सकती है… ये, कावी में राम की किताबों की तरह, सूफीवाद पर किताबें हैं. जावानीज़ मन में, एक कट्टर मुस्लिम होने और राम का आदर करने के बीच कोई विरोधाभास नहीं था. दरअसल, 9वीं सदी की रामायण काकाविन से राजसत्ता पर राम के प्रवचन मातरम के प्रारंभिक आधुनिक दरबार, जैसे सेरत राम, के ग्रंथों में दिखाई देता है.
प्रोफेसर सिंगारवेलु द्वारा अध्ययन किए गए हिकायत सेरी राम नामक महाकाव्य में राम कथा का विशेष रूप से जीवंत पुनर्कथन दिखाई देता है. इसकी शुरुआत रावण की मूल कहानी से होती है, जिसे बारह साल की उम्र में अपने साथियों को धमकाने के कारण एक द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था. पैगंबर एडम उनसे मिलने गए और अल्लाह से प्रार्थना की, जिन्होंने तब रावण को प्रभुत्व प्रदान किया. कुछ संस्करणों में, सिंगारवेलु लिखते हैं, अल्लाह ने ब्रह्मा का स्थान ले लिया है, और दशरथ को आदम का परपोता माना जाता है, इस प्रकार राम को जावा के इस्लामी इतिहास में एकीकृत किया गया है – अब वह भगवान नहीं हैं, लेकिन फिर भी अनुकरणीय व्यक्ति हैं.
16वीं और 17वीं शताब्दी तक, इंडोनेशियाई मौखिक परंपराओं में राम कथा के प्रत्येक चरित्र को विकसित कर लिया गया था, जिससे उन्हें जादुई शक्तियां मिल गईं और आकस्मिक प्रलोभन व अन्य षडयंत्रों से जुड़ी पिछली कहानियों को इससे जोड़ दिया गया. ये अभी भी हिकायत में संरक्षित हैं, और इतने मनोरंजक हैं कि मेरा सुझाव है कि पाठक इन्हें स्वयं देखें. मेरे पसंदीदा एपिसोड में से एक: हनुमान रावण के शयनकक्ष में घुसते हैं और राक्षसराज के बाल उसकी पत्नी के बालों से बांध देते हैं. फिर वह एक संदेश वहां छोड़ देते हैं कि यह गांठ तभी खुलेगी जब रावण की पत्नी उसे पीटेगी, फिर रावण की पत्नी ऐसा ही करती है. जावानीज़ मुस्लिम इतिहास में दर्ज यह शरारत भरी कहानी यह दिखाती है कि कई बड़े और छोटे, कई रचनाकारों ने राम के इतिहास को बुनने में अपना योगदान दिया है.
(अनिरुद्ध कनिसेट्टि एक पब्लिक हिस्टोरियन हैं. वह लॉर्ड्स ऑफ द डेक्कन के लेखक हैं, जो मध्ययुगीन दक्षिण भारत का एक नया इतिहास है, और इकोज़ ऑफ इंडिया और युद्ध पॉडकास्ट की मेजबानी करते हैं. उनका एक्स हैंडल @AKanisetti है. उनके द्वारा व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
यह लेख ‘थिंकिंग मेडिवल’ सीरीज़ का एक हिस्सा है जो भारत की मध्ययुगीन संस्कृति, राजनीति और इतिहास पर गहराई से प्रकाश डालता है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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