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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतन्यूज़ीलैंड में दुनिया की नंबर-एक टेस्ट टीम की शर्मनाक हार का ‘विराट’ फ़ैक्टर

न्यूज़ीलैंड में दुनिया की नंबर-एक टेस्ट टीम की शर्मनाक हार का ‘विराट’ फ़ैक्टर

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में विराट कोहली ने जो कद हासिल किया था उसके बाद उनके बारे में कोई आलोचनात्मक नहीं होता था. लेकिन अब विराट कोहली की फॉर्म पर बात करनी होगी.

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क्राइस्टचर्च टेस्ट में भारत को सात विकेट से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. पहली पारी में 242 रन बनाने वाली भारतीय टीम दूसरी पारी में 124 रन ही बना पाई. पहली पारी में 63 ओवर बल्लेबाज़ी करने वाली टीम दूसरी पारी में 46 ओवर में ही सिमट गई. जीत के लिए 132 रनों का लक्ष्य कीवियों ने 3 विकेट खोकर हासिल कर लिया. तीन दिन में ही टेस्ट मैच खत्म हो गया. इससे पहले वाले टेस्ट मैच में भारत 10 विकेट के बड़े अंतर से हारा था. आप लाख संयम बरतना चाहें लेकिन इसे शर्मनाक प्रदर्शन ही कहा जाएगा.

पिछले दो-ढाई साल में भारतीय टीम के प्रदर्शन के साथ शर्मनाक जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं हुए. ये बात खेल के तीनों फ़ॉर्मेट पर लागू होती है. बीच-बीच में यहं-वहां हार का सामना करना भी पड़ा तो क्रिकेट फैंस और मीडिया ने आलोचना नहीं की. उस तरह के एक भी कड़े शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया जैसा क़रीब एक दशक पहले होता था. यहां तक कि 2019 विश्वकप के सेमीफ़ाइनल में सिर्फ़ 240 रनों का लक्ष्य हासिल न कर पाने को भी क्रिकेट फैंस ने सह लिया. ऐसा नहीं था कि क्रिकेट फैंस अपने खिलाड़ियों पर कोई एहसान कर रहे थे बल्कि सच ये है कि उन्हें समझ आ रहा था कि ये नए ज़माने की टीम है.

टीम इंडिया बदली तो फैंस भी बदले

पिछले करीब तीन साल में क्रिकेट फैंस ये समझ रहे थे कि ये टीम वापसी करना जानती है. ये विदेशी पिचों पर भी जीत हासिल करना जानती है. इसके बल्लेबाज अपने पूर्ववर्ती खिलाड़ियों की तरह शॉर्ट पिच गेंद से नहीं डरते. इसके गेंदबाज़ अब हर मैच में बीच विकेट लेने की क़ाबिलियत रखते हैं. इन्हीं खूबियों की बदौलत टीम इंडिया सभी फ़ॉर्मेट में विश्व क्रिकेट की सबसे मज़बूत टीमों में गिनी जा रही थी. ठीक यही स्थिति टीम के कप्तान विराट कोहली की भी थी. वो रन मशीन थे, हर पिच पर रन बना रहे थे, मुश्किल परिस्थितियों में फ़्रंट से लीड करते थे. लिहाज़ा कड़ी आलोचना का सामना उन्हें भी नहीं करना पड़ा. कभी-कभार उनकी कप्तानी पर सवाल उठे लेकिन बतौर बल्लेबाज़ उनका प्रदर्शन ऐसा होता था कि सवाल करने वाले भी इधर उधर बग़लें झांकते दिखते थे.


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अब 2020 में ये दोनों प्रतिमाएं ध्वस्त हुई हैं. न्यूज़ीलैंड ने वनडे सीरीज़ में भारत को 3-0 से पटखनी दी और दोनों टेस्ट मैच में भी बड़े अंतर से हराया. इस दौरे पर ना तो टीम इंडिया अपनी साख के मुताबिक़ खेली और ना ही उसके कप्तान विराट कोहली.

विराट की फॉर्म पर बात करना ज़रूरी है

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में विराट कोहली ने जो कद हासिल किया था उसके बाद उनके बारे में कोई आलोचनात्मक नहीं होता था. लेकिन अब विराट कोहली की फॉर्म पर बात करनी होगी. वो अपने करियर के तीसरे सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं. पिछली 22 अंतर्राष्ट्रीय पारियों में उन्होंने शतक नहीं लगाया है. इससे पहले ये स्थिति 2011 और 2014 में भी आई थी. 2011 में वो 24 पारियों में शतक के बिना रहे थे. 2014 में वो 25 पारियों में शतक के बिना रहे थे. लेकिन 2011, 2014 और 2020 में बहुत बड़ा फर्क है. 2011 में विराट कोहली टेस्ट टीम में अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगे थे. 2014 में वो टीम में अपनी जगह तो पक्की कर चुके थे लेकिन उन पर कप्तानी की जिम्मेदारी नहीं थी. 2020 में कहानी बिल्कुल अलग है. अब टीम इंडिया की बल्लेबाज़ी विराट कोहली के इर्द गिर्द रहती है. सलामी बल्लेबाजों की नई जोड़ी की नाकामी के बाद कोहली की बल्लेबाजी का विराट स्तंभ लड़खड़ाया तो भारतीय क्रिकेट में भूचाल आया.

विराट कोहली ने दुनिया के हर देश में रन बनाए हैं. हर मैदान में रन बनाए हैं. बड़े से बड़े गेंदबाज के खिलाफ रन बनाए हैं. लेकिन आज न्यूज़ीलैंड के गेंदबाज ट्रेंट बोल्ट को कहने का मौका मिल गया कि विराट को परेशानी में देखकर अच्छा लगता है. नाकामी भारत के दूसरे बल्लेबाजों की भी है लेकिन विराट कप्तान हैं.

बतौर बल्लेबाज विराट की काबिलयत और उनके तमाम रिकॉर्ड्स को जानने के बाद भी इन बातों से आंख मूंदना ठीक नहीं है. भूलना नहीं चाहिए कि इस टेस्ट मैच के शुरू होने से पहले तक विराट कोहली दुनिया के नंबर एक टेस्ट बल्लेबाज थे. वो एक ऐसी टीम की कमान संभाल रहे हैं जो विश्व टेस्ट चैंपियनशिप शुरू होने के बाद से अभी तक अपराजेय थी. लेकिन न्यूज़ीलैंड के दौरे ने इस साख को चोट पहुंचाई. पहले टेस्ट में नाकाम बल्लेबाजी के बाद वो आईसीसी रैकिंग में दूसरी पायदान पर फिसल गए. उनकी टीम का मिशन 120 पूरी तरह फेल हो गया. सीरीज शुरू होने से पहले विराट कोहली ने खुद ही कहा था कि तमाम मुश्किलों के बाद भी उनकी टीम की निगाहें इसी बात पर हैं कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के 120 अंक इस सीरीज से इकट्ठे किए जाएं. जो नहीं हो पाया.

दरअसल, ये सारी स्थिति मेडिकल साइंस के ‘मल्टी ऑर्गन फेल्योर’ जैसी है. जहां पहले शरीर का एक हिस्सा काम करना बंद करता है. जिसके बाद और भी हिस्से एक एक करके काम करना बंद कर देते हैं. आप एक हिस्से को ठीक करें तो दूसरा बिगड़ने लगता है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि एक हिस्से को ठीक करने के लिए जिन दवाईयों की जरूरत होती है वही दवाई दूसरे हिस्से को नुकसान पहुंचा रही होती है. टीम इंडिया के हालात इस टेस्ट सीरीज में ऐसे ही दिखाई दिए. विराट कोहली नहीं चल रहे थे तो कोई नहीं चला. पुजारा और रहाणे जैसे भरोसेमंद बल्लेबाज नहीं चले. सलामी बल्लेबाजों की जोड़ी नहीं चली. दूसरे टेस्ट मैच की पहली पारी को छोड़ दें तो गेंदबाज नहीं चले. कुल मिलाकर कुछ नहीं चला. जिसके केंद्र में विराट कोहली की नाकामी है.

(शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं. पिछले करीब दो दशक में उन्होंने विश्व कप से लेकर ओलंपिक तक कवर किया है. फिलहाल स्वतंत्र लेखन करते हैं)

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