मुकदमे / मामले का परिणाम प्राप्त करने में पीड़ितों की मदद के लिए भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को अमेरिका के पीड़ित व्यक्ति प्रभाव बयान को देखने की जरूरत है।
शायद अब तक आपको मालूम हो गया होगा कि छोटी लड़कियां हमेशा छोटी नहीं रहती हैं। इस साल की शुरुआत में अमेरिका के प्रसिद्ध जिमनास्टिक कोच लैरी नासर से एक महिला ने कहा कि “वे उन मजबूत महिलाओं के रूप में विकसित होती हैं जो आपकी दुनिया तबाह करने के लिए लौटती हैं।”
नासर को पहले भी उन लड़कियों का यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराया गया था जिन्हें वह प्रशिक्षण दे रहे थे। लेकिन इससे पहले कि अदालत यह तय कर पाती कि वह कितने साल जेल में बिताएंगे, अदालत ने उनके 156 पीड़िताओं को अदालत में उनके (नासर) के खिलाफ बोलने का मौका दिया।
एक पीड़िता ने अपने अनुभव के बारे में बताया, “मैं वहां गयी और मैंने उसकी आँखों में देखा, मुझे पता था कि जो भी हुआ था उसके बारे में मुझे बहुत कुछ कहना था, मैं उसे विवश करने जा रही थी कि वह मुझे देखे और सुने। ऐसा लगा कि मैं नियंत्रण में थी … उसने मुझे देखा। वास्तव में, मेरे बयान के दौरान वह रोया।”
‘पीड़ित प्रभाव बयान’ अमेरिका में आपराधिक न्याय प्रणाली का हिस्सा हैं। पीड़ित इसे लिखित में भेज सकता है या अदालत में पढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, स्टैनफोर्ड में 23 वर्षीय पीड़िता का प्रभाव बयान था, जो वायरल हो गया था।
न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि दिखाई भी पड़ना चाहिए। न्याय को नज़र में लाने के लिए पीड़ित प्रभाव बयान से मदद मिलती है। यह सिर्फ पीड़ितों के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी उपयोगी है। यह लोगों को सही और गलत की पहचान करने में मदद करता है और उन्हें गंभीर अपराधों के कारण पैदा हुए भावनात्मक आघात को याद दिलाता है।
भारत में जघन्य अपराधों के लिए न्याय पर सार्वजनिक बहस के दो पक्ष हैं। एक मौत की सजा मांगता है, क्योंकि इससे कम दण्ड न्याय नहीं होगा। दूसरे पक्ष का कहना है कि बदला लेना न्याय नहीं है। लेकिन न्याय है क्या?
दोषसिद्धि ही न्याय है
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 2006 में बिहार में सात लोगों के परिवार की हत्या करने वाले व्यक्ति की दया याचिका खारिज कर दी है। सरकार ने बाल बलात्कार को मौत की सजा के रूप में दंडनीय बनाने के लिए कानून में संशोधन किया है और उच्चतम न्यायालय जल्द ही फैसला करेगा कि क्या निर्भया के हत्यारों और बलात्कारियों को फांसी दी जाए।
कुछ लोगों का कहना है कि पीड़ितों को आगे बढ़ने में सक्षम बनाने के लिए अपराधी को मौत की सजा मिलना जरूरी है, लेकिन मामला यह नहीं है। एक अपराधी की फांसी से किसी परिवार को अपने प्रियजन को खोने का शोक कम नहीं होगा।
पीड़ितों को मामले के फैसले (निपटारे) की जरूरत है और फैसला होने का प्रारंभिक बिंदु केवल दोषसिद्धि है।
असुमल सिरुमलानी हरपलानी उर्फ संत श्री आसाराम जी बापू को हाल ही में 2013 में जोधपुर में अपने आश्रम में 16 वर्षीय लड़की से बलात्कार करने का दोषी पाया गया था।
अब 21 वर्ष की हो चुकी लड़की और उसके परिवार का कहना है कि जब आसाराम को दोषी ठहराया गया था तो पहली बार उन्हें अच्छी नींद आई थी। लड़की के पिता ने कहा, “इस प्रकरण ने बेटी की पढ़ाई में बाधा डाली है, जिसे वह एक बार फिर से शुरू कर सकती है … हम चाहेंगे कि वह अपना क्षेत्र चुने और वह जितनी शिक्षा प्राप्त करना चाहती है उतनी शिक्षा प्राप्त करने में हम उसकी मदद करेंगे।”
आसाराम पूरे साढ़े चार सालों के लिए जेल में थे। उनका जेल में रहना न्याय नहीं था। न्याय तब हुआ जब अदालत ने कहा, हाँ, वह अपराध के दोषी थे।
सज़ा के बारे में सभी बहसों में, हम भूल जाते हैं कि दण्ड केवल दोषसिद्धि के बाद ही दिया जाता है। आरोपी को दोषी ठहराए जाने के बाद, अदालतें सजा के बारे में एक और सुनवाई करती हैं।
दण्ड का महत्व है, लेकिन पीड़ितों के लिए दोषसिद्धि स्वयं महत्वपूर्ण है। जब पीड़ित को महसूस होता है कि उसने अपराधी का दोष साबित कर दिया है और उसके विरुद्ध सभी निंदा और झूठ को एक निष्पक्ष प्राधिकारी द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो वह सच्चाई का क्षण होता है।
जब एक दोषी पक्ष दण्ड के बिना छूट जाता है, तो यह एक गंभीर अन्याय है। 2002 के मामले में कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से जब मायाबेन कोदनानी को बरी कर दिया गया था, तो यह मृतक के परिवारों को सांत्वना नहीं देगा कि कोदनानी ने जेल में कई वर्ष बिताए। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित नहीं हो सका कि उन्होंने हिंसा को उकसाया था। फिर किसने किया? यह अन्याय है। दोषसिद्धि होने से न्याय का आधा उद्देश्य पूरा हो जाता है।
2016 में, बलात्कार के 4 मामलों में से केवल 1 मामले में ही दोषसिद्धि हो सकी। दोषसिद्धि की दर बेहतर होनी चाहिए। जब सुनवाइयां वर्षों तक चलती हैं, तो वे पीड़ितों को आघात पहुँचाती हैं। पता चलता है कि एक अंतहीन कानूनी प्रक्रिया के बाद भी आरोपी को बिना दण्ड दिए छोड़ दिया जाता है, इसीलिए ज्यादातर महिलाएं यौन अपराधों की रिपोर्ट नहीं करती हैं।
बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों पर सार्वजनिक चर्चाओं को दोषसिद्धि पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। जब अभियुक्त को दोषी भी न ठहराया जा सके, तो कानून की पुस्तकों में लिखी गई कड़ी सजा का क्या फायदा है?
आगे बढ़ना न्याय है
मनु शर्मा को जेसिका लाल द्वारा शराब न परोसे जाने मात्र की वजह से मनु शर्मा ने जेसिका लाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिसमें मनु शर्मा को न्याय दिलाने के लिए सार्वजनिक आंदोलन हुआ। 15 साल जेल में बिताए जाने के बाद, जेसिका की बहन सबरीना लाल ने कहा कि उन्हें उनकी रिहाई पर कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, “यह माफ करने और आगे बढ़ने के लिए एक संशुद्धि की तरह होगा। मुझे भी अपने जीवन में आगे बढ़ने की जरूरत है।”
अगर अपराधी को दोषी नहीं ठहराया जाता है, तो पीड़ित और उनके परिवार कभी भी आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। पीड़ित और उनके परिवार आगे बढ़ने में तभी सक्षम हो सकते हैं यदि उन्हें लगता है कि गलत को गलत कहा गया है और इसे उचित सजा देकर सही किया गया है। यही कारण है कि सजा के रूप मृत्युदंड की ही आवश्यकता नहीं है। कई साल बीतने के बाद, शायद पीड़ित और उनके परिवार आगे बढ़ने में सक्षम हो जाते हैं। यही कारण है कि सबरीना लाल को लगता है कि उनकी बहन की मौत का अध्याय, एक परिवर्तित मनु शर्मा के जेल से बाहर निकलने पर समाप्त हो जाने की जरूरत है। वह फिर से अपना नाम नहीं सुनना चाहतीं।
पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए इस तरह के फैसले होने में सालों लगते हैं। मृत्युदंड से वह हासिल नहीं किया जा सकता जो तेज न्याय प्रक्रिया, दोषसिद्धि की उच्च दर और पीड़ित प्रभाव बयान से किया जा सकता है।
Read in English : Victim impact statements can achieve what death penalty can’t