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Wednesday, 24 April, 2024
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क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ पर अमेरिका-भारत की पहल: आगे का रास्ता

इस लेख में iCET पर दोनों देशों के अधिकारियों, उद्योपतियों, टेक्नोलॉजिस्ट, फंड मैनेजरों, आंत्रप्रेन्योर्स और शिक्षाविदों के साथ हुई कार्नेगी इंडिया की अनौपचारिक चर्चा की महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है.

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31 जनवरी, 2023 को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ के लिए वॉशिंगटन, डीसी में पहली औपचारिक बातचीत में हिस्सा लिया. डोभाल ने अपने अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन के साथ iCET पर चर्चा की. मई 2022 में टोक्यो में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच हुई बैठक के बाद पहली बार iCET का जिक्र किया गया था. यह भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) के नेतृत्व में एक अनूठी पहल है और दोनों संगठनों के बीच और भीतर अनौपचारिक चर्चा के बाद निकला है.

इसका उद्देश्य क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ में “साझेदारी का विस्तार करना” है. इसका मकसद तकनीकी सहयोग पर चल रहे प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए एक समन्वय सेतु की तरह काम करना है, साथ ही उद्देश्य की एक नई समझ को बढ़ावा देना है. यह निश्चित है कि ऐसा करने में सहयोग के नए रास्ते भी सामने आएंगे. वॉशिंगटन, डीसी में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के पहले कार्नेगी इंडिया ने दोनों देशों के अधिकारियों, उद्योगपतियों, टेक्नोलॉजिस्ट्स, फंड मैनेजरों, आंत्रप्रेन्योर्स, शिक्षाविदों और अन्य लोगों के साथ चर्चा की.

यह लेख इन चर्चाओं की कुछ बेहद महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान खींचता है, और इन बातों को सहयोग के लिए 5 वर्गों में बांटा गया है. इसमें iCET को चलाने वाले प्रशासनिक तंत्र पर सुझाव शामिल हैं—प्रक्रियाएं, दोनों देशों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान और इनोवेशन इकोसिस्टम को आपस में जोड़ने के लिए ज़्यादा कोशिशें करने के व्यावहारिक सुझाव, और तीन क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग पर विशिष्ट सुझाव: क्वांटम टेक्नोलॉजीज़, सेमीकंडक्टर्स, और कमर्शियल स्पेस. यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि iCET की प्राथमिकताओं के बारे में कोई सार्वजनिक संदर्भ नहीं जारी किया गया है. हम नीचे जिन चीज़ों पर बात कर रहे हैं, वह अनौपचारिक चर्चाओं से निकले विचारों का जमावड़ा है.


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प्रशासनिक प्रक्रियाएं

यह तथ्य खास है कि NSCS और NSC इस प्रक्रिया का नेतृत्व कर रहे हैं. कुछ मामलों में, NSCS के लिए यह शासन कला का नया क्षेत्र है. iCET एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिए त्वरित धुरी, इंडस्ट्री तक लगातार पहुंच, विचारधारा, सरकार में आंतरिक प्रबंधन, और यहां तक कि सामंजस्य की आवश्यकता होगी. तकनीकी कूटनीति और शासन कला के लिए अपेक्षाकृत नए फॉर्मूले को मज़बूत बनाने के लिए नीचे दिए गए कार्य-बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:

(1) iCET एडवाइजरी काउंसिल (परामर्श परिषद): वैसे तो iCET को संभालने के लिए NSC और NSCS सबसे अच्छी स्थिति में हैं, एक परामर्श परिषद (एडवाइजरी काउंसिल) या संचालन समिति (स्टीयरिंग कमिटी) की शुरुआत इस प्रक्रिया को सहारा देने के लिए महत्वपूर्ण होगी. इस काउंसिल में दोनों देशों के उद्योग प्रतिनिधियों, टेक्नोलॉजिस्ट, परोपकारी, शिक्षाविदों और विचारकों को शामिल किया जाना चाहिए. iCET काउंसिल को हर महीने, वर्चुअली, मिलना चाहिए. इसके अलावा, इसे एक ऐसी बॉडी के रूप में काम करना चाहिए जिस तक दोनों देशों के अधिकारी पहुंच सकें.

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(2) नियमित उच्च-स्तरीय बैठकें: हर साल, iCET को एक उच्च-स्तरीय बैठक करनी चाहिए, एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर और एक उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर. ये बैठक हासिल किए जा सकने वाले कार्य-बिंदुओं की स्पष्ट समझ के साथ नतीजे लाने के मकसद से होनी चाहिए.

(3) अपेक्षाओं का प्रबंधन: iCET पर काम कर रहे नीति निर्माताओं को सहयोग के चार से पांच महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए जो iCET का समर्थन करने वाले प्रशासनिक प्रयासों को आगे बढ़ाएं. इन प्रयासों को सहयोग के क्षेत्रों की लंबी सूची से छांटकर अलग करना महत्वपूर्ण होगा.

(4) निगरानी तंत्र: NSC और NSCS के अंदर, शुरू से ही एक सिस्टम तैयार किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रभाव को हर स्तर पर रिकॉर्ड किया जा रहा है. NSCS में उप सचिव या निदेशक के स्तर पर और NSC में निदेशक स्तर पर एक इम्पैक्ट ऑफिसर को iCET के ढांचे की निगरानी में शामिल किया जाना चाहिए.

(5) फ्रेंड्स ऑफ iCET ट्रैक 1.5 डायलॉग्स: दोनों देशों में पहुंच रखने वाले और टेक्नोलॉजी रिसर्च पर फोकस रखने वाले थिंक टैक और उद्योग परिषद नए विचारों को बढ़ावा देने और समाधान खोजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. अमेरिका और भारत दोनों में सालाना फ्रेंड्स ऑफ iCET ट्रैक 1.5 डायलॉग्स शुरू करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

रिसर्च और इनोवेशन इकोसिस्टम

(1) ट्रैकिंग इनीशिएटिव: ऊपर जिन इम्पैक्ट ऑफिसरों का जिक्र किया गया है, उन्हें विभिन्न मंत्रालयों और एजेंसियों में इमर्जिंग टेक्नोलॉजी की परियोजनाओं की प्रगति पर नज़र रखने के लिए एक सिस्टम तैयार करना चाहिए. यह अभ्यास दोनों देशों के आपसी रिसर्च और इनोवेशन इकोसिस्टम को ट्रैक करने और इसकी कमियों का पता लगाने में मदद करेगा.

(2) iCET फेलोशिप और कनेक्टर फंड: दोनों पक्षों में सरकारों को रिसर्च-फंडिंग वाली संस्थाओं और समाजसेवियों को iCET फंड में पूंजी डालने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिसका उपयोग (i) iCET फेलोशिप को फाइनेंस करने के लिए किया जा सके जहां पेशेवर, इनोवेटर्स और एडवांस्ड पीएचडी छात्रों को विश्वविद्यालय, प्रयोगशालाओं और एक-दूसरे के देशों की कंपनियों में हर साल तीन से छह महीने बिताने के लिए आर्थिक मदद की जा सके, और (ii) एक iCET कनेक्टर फंड तैयार करने में होना चाहिए, जो दोनों देशों के इकोसिस्टम को जोड़ने वाले उपायों को सपोर्ट करने के हिसाब से तैयार किया गया हो. iCET फंड का उद्देश्य हैकेथॉन, वैचारिक कार्यशालाओं, और जोड़ने वाली अन्य पहलों की आर्थिक मदद करने का होना चाहिए, जो ट्रैक करने योग्य इनोवेशन कॉरिडोर बनाने में मदद कर सके.

(3) रेगुलेटरी सैंडबॉक्स: यह बात बिलकुल साफ़ है कि दोनों देशों में प्रौद्योगिकी के अलग-अलग क्षेत्रों में रेगुलेटरी आर्किटेक्चर को बेहतर ढंग से समझने की ज़रूरत है—निजी और गैर-निजी डेटा के ट्रीटमेंट से लेकर जैव प्रौद्योगिकी में बदलाव से लेकर व्यावसायिक अंतरिक्ष कानून को विकसित करने तक और सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में निवेश तक. एक द्विपक्षीय रेगुलेटरी सैंडबॉक्स- मुख्य स्टेकहोल्डरों के साथ नियंत्रित वातावरण में नियमों का परीक्षण करना- दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ाने और इंसेंटिव स्कीमों के समन्वय में महत्वपूर्ण हो सकता है.

क्वांटम टेक्नोलॉजी

क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका और भारत दोनों ने बड़ी पूंजी लगाई है. हालांकि, iCET संवाद ने नोट किया कि अलग—अलग क्षेत्रों में क्वांटम टेक्नोलॉजी के विभाजन को देखने के बजाय, यह महत्वपूर्ण है कि, क्वांटम इंडस्ट्री को शिक्षण समुदाय और उद्योग की साझेदारी के माध्यम से विकसित किया जाए. ये साझेदारियां अब तक की गई किसी साझेदारी से ज़्यादा व्यापक होनी चाहिए.

(1) भारत को सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों में निवेश की आवश्यकता: ऐसा होने के लिए, देश को सिर्फ अपनी सॉफ्टवेयर क्षमताएं विकसित करने पर नहीं, बल्कि अपनी हार्डवेयर क्षमताओं के निर्माण पर भी ध्यान देना चाहिए. यह क्वांटम टेक्नोलॉजी के लिए एक तेज़, स्थायी इकोसिस्टम के निर्माण में मदद करेगा. इसके लिए, क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में शिक्षा-उद्योग सहयोग को जारी रखना महत्वपूर्ण है.

(2) एक मजबूत क्वांटम इकोसिस्टम का निर्माण: भारत और अमेरिका के बीच सहयोग इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है. आईआईटी मद्रास जैसे जैसे शोध संस्थान क्वांटम कम्युनिकेशन और क्वांटम कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में पहले से ही महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं, और आईबीएम क्वांटम कम्प्यूटिंग नेटवर्क में शामिल होने से, उनके पास उद्योग विशेषज्ञों और संसाधनों तक बड़ी पहुंच हो गई है. इसके अलावा, क्वांटम कम्युनिकेशंस और क्वांटम कम्प्यूटिंग में निवेश करने वाले अमेरिका और भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों को अपना पाठ्यक्रम साझा करने की ज़रूरत है, ताकि दोनों देशों के शोध छात्र और विद्यार्थी इस सामग्री से परिचित हो सकें. इससे भी आवाजाही आसान होगी.

सेमीकंडक्टर्स

सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री शायद दुनिया के सबसे जटिल उद्योगों में से एक है. पूरी दुनिया में फैली इसकी सप्लाई चेन के पेचीदा रूप से लेकर लीडिंग-एज चिप्स मैन्युफैक्चरिंग की जटिल प्रकृति तक, कई देशों के लिए इस उद्योग में घुसना कठिन बना हुआ है. कार्नेगी इंडिया के iCET संवाद में प्रतिभागियों ने भारत की हाल ही में जारी हुई सेमीकंडक्टर नीतियों को सुधारने के लिए कुछ उपायों की वकालत की.

(1) सेमीकंडक्टर प्लांट निर्माण के लिए दूसरी कंपनियों का समूह: इस बात पर ध्यान दिया गया कि सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए सिर्फ फैब्रिकेशन प्लांट की ज़रूरत नहीं होती बल्कि इकोसिस्टम के दूसरे कई हिस्सों पर एक साथ ध्यान देने की ज़रूरत है, जैसे कच्चा माल, पानी की लगातार सप्लाई, और कंपोनेंट सप्लायर्स. इसलिए, एक सफल इकोसिस्टम को ऐसी सहायक कंपनियां विकसित करनी होंगी जो एक फैब्रिकेशन प्लांट की ज़रूरतों को पूरी कर सके.

(2) सेमीकंडक्टर उद्योगों के लिए ज्वॉइंट रोडमैप: भारत को अगले दो से तीन सालों में आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर एसेंबली एंड टेस्ट (OSAT) और सिस्टम इन पैकेज (SIPs) जैसे विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए. इसे आसान बनाने के लिए भारत और अमेरिका के बीच निजी क्षेत्रों के ज़रिए सहयोग सबसे अच्छा तरीका है. इसके अलावा, वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच चिप्स के लिए निवेश नीति/इंसेंटिव योजना का साथ-साथ होना फ्रेंड-शोरिंग (सहयोगी देशों से कच्चा माल या तैयार माल लेने की नीति) को मज़बूत करने की दिशा में बड़ी शुरुआत हो सकती है. हालांकि, इन प्रयासों के लिए एक समय सीमा तय करना महत्वपूर्ण है.

(3) भारत में प्रतिभा का लाभ कैसे उठाया जा सकता है: भारत में हार्डवेयर निर्माण को संभव करने के लिए प्रतिभा की उपलब्धता एक मुख्य कारक है. भारत अगर ग्लोबल सप्लाई चेन प्रोवाइडर के तौर पर भरोसा जमा सके तो वह अपनी मानव पूंजी का लाभ उठा सकता है. इसके लिए, देश को क्वालिटी कंट्रोल, वेरिफिकेशन के तरीकों, और मैन्युफैक्चरिंग में पारदर्शिता पर ज़ोर देना होगा.

(4) भारत का दूसरे देशों के साथ व्यापार संबंध: व्यापक पारितंत्र के घटक, जैसे कि सप्लाई चेन और इंफ्रास्ट्रक्चर के बजाय सिर्फ सेमीकंडक्टर निर्माण के बारे में सोच पर केंद्रित रहना भारत के लिए एक गलत कदम होगा. एक्सपोर्ट वाले मॉडल के साथ-साथ घरेलू मांग का ध्यान रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

व्यावसायिक अंतरिक्ष सेवा

कॉमर्शियल स्पेस यानी अंतरिक्ष सेवाओं में व्यापारिक संभावनाएं अभी भू-राजनीतिक स्पर्धा का क्षेत्र नहीं है, लेकिन दुनिया भर के देश इस तथ्य को मान रहे हैं कि अंतरिक्ष क्षमताएं होना आर्थिक मोर्चे पर वर्चस्व बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है. व्यावसायिक गतिविधियों के साथ भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र आगे बढ़ रहा है, क्योंकि यहां की नई अंतरिक्ष सेवा कंपनियां पैसे जुटाने और ग्लोबल साझेदारी में बेहतर कर रही हैं. iCET संवाद में भागीदारों ने इस हिसाब से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की गति को बनाए रखने के लिए कुछ बिंदुओं पर जोर दिया है और इस बात पर भी विचार किया है कि व्यावसायिक अंतरिक्ष सेवा क्षेत्र में अमेरिका के साथ कोई संभावित सहयोग क्या आकार ले सकता है.

(1) सरकार के अलावा भी सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत: वैसे तो भारत और अमेरिका के बीच सिविल स्पेस के क्षेत्र में सहयोग का इतिहास रहा है, लेकिन कॉमर्शियल स्पेस में निजी उद्यमों की भागीदारी वाले संबंधों के बिना दोनों देशों का संबंध पूरा नहीं होता. इसे कॉमर्शियल स्पेस में सरकार से बिज़नेस और बिज़नेस से बिज़नेस साझेदारियों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है. ऐसा ही एक क्षेत्र अंतरिक्ष से जुड़ी जागरुकता का हो सकता है, जिसमें कक्षा में अंतरिक्ष पिंडों पर अनिवार्य रूप से नज़र बनाए रखना होता है. यह देखते हुए कि अमेरिका लंबे समय से अंतरिक्ष गतिविधियों की स्थिरता का समर्थक रहा है, यह सहयोग के लिए एक अच्छा शुरुआती बिंदु होगा, क्योंकि गिनी-चुनी भारतीय कंपनियां ही हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में मजबूत क्षमताएं विकसित की हैं.

(2) कॉमर्शियल स्पेस कंपनियों और ITAR बीच जटिल संबंध: भारत-अमेरिका के बीच एक सफल साझेदारी के लिए, वॉशिंगटन को एक्सपोर्ट कंट्रोल के उपायों में ढील देने पर विचार करना होगा. इसलिए, दोनों देशों के बीच इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशंस (ITAR) और एक्सपोर्ट एडमिनिस्ट्रेशन रेगुलेशन (EAR) पर अधिक संवाद और सहयोग की आवश्यकता है. यह सुझाव दिया गया था कि ITAR के अधीन टेक ट्रांसफर को लेकर क्या किया जा सकता है, इसकी संभावना तलाशने के लिए, कम से कम शुरुआत में, क्वॉड अपने आप में एक अच्छा मंच हो सकता है. इसके बाद किसी भी सीख को iCET में शामिल किया जा सकता है.

(3) भारतीय कंपनियों के लिए फंडिंग की कमी: अमेरिकी कंपनियों के विपरीत, उनके भारतीय समकक्षों को सरकारी पूंजी हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. स्पेस कंपनियों के ऊंचे वैल्युएशन से दिखता है कि क्रिटिकल और इमर्जिंग स्पेस टेक्नोलॉजी के लिए ज़रूरी रिस्क कैपिटल मौजूद था. हालांकि, निवेशक सवाल पूछ रहे हैं कि आमदनी के साथ निवेश को कैसे संतुलित किया जा सकता है? इसके अतिरिक्त, भारत-अमेरिका साझेदारी में शायद स्मॉल बिज़नेस इनोवेशन रिसर्च और स्मॉल बिज़नेस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर प्रोग्राम का इस्तेमाल करके, विदेशी कंपनियों के लिए कुछ बदलाव किए जा सकते हैं. सहयोग और उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाने के प्रयासों को नई गति दी जा सकती है. भारत और अमेरिका साथ मिलकर प्रोजेक्ट्स की पहचान और फंडिंग कर सकते हैं, समाज और शिक्षाविदों के साथ सहयोग कर सकते हैं, और ITAR और EAR दोनों पर सूचनाओं का आदान-प्रदान आसान बना सकते हैं. ऐसी उम्मीद है कि भारत अमेरिका के साथ वैसा ही व्यावसायिक अंतरिक्ष सहयोग स्थापित कर सकता है जैसा वॉशिंगटन ने टोक्यो के साथ किया है.

निष्कर्ष

iCET अमेरिका और भारत के बीच शुरू किए गए सबसे इनोवेटिव प्रशासनिक अभ्यासों में से एक है. यह उम्मीद से भरा है. स्पष्ट परिणाम देने, मौजूदा प्रयासों को और तेज़ करने, और साथ मिलकर इसे रेगुलेट करने वाली नई तकनीकों और प्रशासनिक आर्किटेक्चर का निर्माण करने का हर अवसर इसमें मौजूद है. इसे हासिल करने के लिए, 31 जनवरी 2023 को हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर जैसे संवाद महत्वपूर्ण हैं. आशा है कि भारत और अमेरिका दोनों सहयोग के प्राथमिक क्षेत्रों में स्पष्टता लाने में सक्षम होंगे. वैसे ही, उस प्रशासनिक ढांचे पर अधिक से अधिक ध्यान देना महत्वपूर्ण है जो सरकार के भीतर और बाहर iCET को आकार देता है, प्रेरित करता है और आगे बढ़ाता है.

लेखक के विचार निजी हैं. यह लेख कार्नेगी इंडिया में पहले पब्लिश हो चुका है.


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