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Sunday, 22 December, 2024
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यूक्रेन में शहरों में होगा भीषण युद्ध, रूस का प्लान बी और सेना का सबसे बुरा नाईटमेयर

जब हमला शुरू हुआ, तब दोनों पक्ष अलग-अलग कारणों से हैरान हुए. रूस ने यूक्रेनी शहरों को कमजोर करना शुरू कर दिया है और उन पर किसी भी समय कब्जा कर सकता है.

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1945 के बाद पहली बार कोई बड़ी जंग लड़ रही रूसी सेना के लिए यूक्रेन के प्रमुख शहरों- 30 लाख की आबादी वाले कीव, 10.4 लाख की आबादी वाले खारकीव, 4 लाख की आबादी वाले मारिउपोल और 3 लाख की आबादी वाले खेर्सोन- पर कब्जा करके अपने राजनीतिक तथा सामरिक लक्ष्यों को हासिल करना 28 फरवरी तक एक बड़ी चुनौती बन गई. ‘चौंकाने वाली दहशत पैदा कर’ कीव पर कब्जा करने का उसका ‘प्लान-ए’ विफल हो चुका है और 96 घंटे के बाद अब वह प्लान-बी के तहत सोची-समझी कार्रवाई करने के लिए फिर से एकजुट हो रही है. रूसी सेना अब कीव, खारकीव, मारिउपोल और खेर्सोन (ताजा खबरों के अनुसार इस पर कब्जा हो गया है) पर जोरदार हमला करने जा रही है.

दुनिया भर के सैन्य इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं कि बड़े शहरों में चली हिंसक जंग ने उन्हें मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया और बड़ी तादाद में लोग मारे गए, जिनकी वजह से युद्धों/अभियानों की दिशा बदल गई. रूसी सेना को ऐसी जंग का अनुभव है. द्वितीय विश्वयुद्ध में उसने मॉस्को, लेनिनग्राद और स्टालिनग्राद की जिस संकल्प के साथ रक्षा की थी (और जिसमें लाखों लोग मारे गए थे) उसने युद्ध के रुख को बदल दिया और बर्लिन में जर्मनी की अंतिम हार हुई, जो अपने आप में एक प्रमुख शहरी लड़ाई थी.

संयोग से, 1941 में 7 जुलाई से 26 सितंबर तक कीव शहर और आस-पास के इलाके में लड़ी गई बड़ी जंग में 7 लाख से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी थी.

यहां मैं यूक्रेन के शहरों में जारी जंग की प्रतिद्वंद्वी रणनीतियों, मौजूदा स्थिति और संभावित नतीजों का विश्लेषण करने की कोशिश कर रहा हूं.

रूसी रणनीति

रूस के राजनीतिक लक्ष्य दो बातों से निर्धारित हुए हैं. एक तो ‘नाटो’ (उत्तर एटलांटिक संधि संगठन) के विस्तार और उसमें यूक्रेन को भी शामिल करने के इरादों के संभावित नतीजों की आशंका के कारण, दूसरे, पुनःसंयोजनवाद के कारण क्योंकि इसके तहत रूस यूक्रेन को स्वतंत्र राष्ट्र न मान कर उसे अपनी सभ्यतागत संस्कृति का हिस्सा मानता है. उसका अल्पकालिक लक्ष्य यूक्रेन में रूस समर्थक सरकार स्थापित करने के लिए सत्ता परिवर्तन करना है और उसका दीर्घकालिक लक्ष्य यूक्रेन को रूस या नव-रूसी संघ का हिस्सा बनाना है.

रूस का सैन्य लक्ष्य यूक्रेन की सेना को हथियार डालने पर मजबूर करना, बर्बाद करना और कालांतर में वहां सत्ता परिवर्तन का रास्ता साफ करके पूर्व देश को अपने काबू में करने का अपना दीर्घकालिक लक्ष्य हासिल करना है. शुरू में उसकी सामरिक रणनीति उत्तर, पूरब और दक्षिण से पूरे वेग से बहुआयामी हमला करना थी ताकि कीव, खारकीव, मारिउपोल और खेर्सोन को अलग-थलग करना और उन पर कब्जा करना था. मकसद यूक्रेन को मनोवैज्ञानिक राजनीतिक/सामरिक रूप से इस तरह तबाह करना था कि वह समर्पण के लिए मजबूर हो जाए.

रूस का प्लान-ए यह था कि कीव और खारकीव पर एयर और लैंड से इस कदर अभियान चलाया जाए कि यूक्रेन 72 से 96 घंटे के अंदर परास्त हो जाए. उसका इरादा यह था कि मिसाइल, ड्रोन आदि से जोरदार हमले करके और साइबर तथा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीक का इस्तेमाल करके एयर सुपेरिओरिटी में उसका वर्चस्व स्थापित हो जाए और यूक्रेन की सैन्य तैयारियों तथा ताकत को अधिकतम नुकसान पहुंचाया जाए. मुख्य निशाना कीव को बनाया गया ताकि हेलिबोर्न/हवाई परिवहन संचालन के माध्यम से अभियान चलाकर उसे कब्जे में किया जा सके.

स्पेशल/ हेलबोर्न सेना को कीव के आस-पास हवाई अड्डे के कब्जे में करना था ताकि हवाई ऑपरेशन में सुविधा हो. मेकनाइज्ड फोर्स को कई मोर्चों पर दबाव बनाते हुए आगे बढ़ना था, कीव पर कब्जा करने के लिए प्रतिरोध की अनदेखी करते हुए पूरे ऑपरेशन में तालमेल बिठाया जा सके.

कीव, खारकीव, मारिउपोल और खेर्सोन को अलग-थलग करने, कब्जे में करने के लिए इसी तरह के ऑपरेशन किए गए जिनमें सेना को हवाई मार्ग से या थल मार्ग से पहुंचाया गया. पूरे प्लान का दारोमदार ‘चौंकाने वाली दहशत’ की रणनीतिक पर था ताकि यूक्रेनी सेना 72-96 घंटे मनोवैज्ञानिक रूप से इस कदर टूट जाए कि वह शहरों की रक्षा करने के लिए फिर ताकत जुटा सके इससे पहले ही उन पर कब्जा कर लिया जाए.

अगर प्लान-ए आंशिक रूप से ही सफल हुआ तो बीमा के रूप में प्लान-बी था, जिसके अनुसार यूक्रेनी शहरों पर कब्जा करके पूरे देश पर अपना नियंत्रण बनाने के लिए सेना को पूरी तरह तैयार करने के बाद अधिक व्यवस्थित तरीके से ऑपरेशन चलाना था. मेरे ख्याल से, रूसी सेना की क्षमता के मद्देनजर ये सैन्य योजनाएं दुरुस्त थीं.


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यूक्रेन की रणनीति

यूक्रेन का राजनीतिक लक्ष्य सीधा-सा था- अपनी संप्रभुता और क्षेत्र को संरक्षित करना, और बदतर स्थितियों में भी लोगों को गुरिल्ला युद्ध के लिए तैयार रखना.

रूस के साथ 2,295 किलोमीटर लंबी सरहद और 2,782 किमी के समुद्रतट को देखते हुए यूक्रेन की भूमि की रक्षा एक ‘कंटिन्यूअस फ्रंट’ के रूप में करना व्यावहारिक नहीं है. 2014 से, इस देश का ज़ोर डोनबास क्षेत्र के डोनेत्स्क तथा लुहांस्क के अलग हुए ‘रिपब्लिक’ को ‘सीमा’ पर तैनात करने पर रहा है. रूस और यूक्रेन की सैन्य क्षमता में भारी अंतर है. यूक्रेन की सेना करीब 2.45 लाख सैनिकों वाली है, जिनमें 2.2 लाख रिजर्व में हैं. सबके लिए 1-3 साल की अनिवार्य सैनिक सेवा के कारण ऐसे प्रशिक्षित स्त्री-पुरुषों की बड़ी तादाद मौजूद है जो नियमित सैनिकों की कमी पूरी कर सकते हैं और छापामार युद्ध में भाग ले सकते हैं.

इसके मद्देनजर, यूक्रेन की तार्किक सैन्य रणनीति यह होती कि बड़े शहरों को घेराबंदी के लिए तैयार किया जाता, रूस को प्रमुख मार्गों से आगे बढ़ने से रोकने के लिए मोबाइल लड़ाई लड़ी जाती, मेकनाइज्ड फोर्स को उनके लॉजिस्टिक्स से काट कर अलग-थलग किया जाता और शहरों में लड़ाई लड़ने की तैयारी की जाती. अंतिम उपाय जनयुद्ध के लिए तैयार रहना है.

ऑपरेशन्स की प्रगति

जब हमला शुरू हुआ, तब दोनों पक्ष अलग-अलग कारणों से हैरान हुए. यूक्रेन रूस के हमले के पैमाने (खासकर कीव पर) को लेकर हैरान था. मेरे ख्याल से, यूक्रेन यह उम्मीद कर रहा था कि 2014 में क्रीमिया/ डोनबास में किए गए सीमित ऑपरेशन की तरह की कार्रवाई होगी इसलिए वह इस तरह के जोरदार हमले के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की थी. रूस यूक्रेनी सेना और जनता की राष्ट्रभक्ति और संकल्प तथा जबर्दस्त प्रतिरोध को लेकर हैरान था. रूसी सेना की क्षमता से कम प्रदर्शन ने खुद रूस को और पूरी दुनिया को झटका दिया. इसकी वजह स्पष्ट थी. रूसी सेना 1945 के बाद अब कोई पारंपरिक युद्ध में उतरी थी. अनिवार्य सैनिक सेवा से तैयार हुई सेना का प्रशिक्षण अपेक्षित स्टार का नहीं है. इसकी सख्त कमांड-ऐंड-कंट्रोल टैक्टिक्स आधुनिक युद्ध और प्लान-ए जैसे ओपरेशन्स के उपयुक्त नहीं है.

रूस का हवाई/मिसाइल/ड्रोन अभियान और साइबर/इलेक्ट्रॉनिक युद्ध अभियान को आधी-अधूरी सफलता मिली. 72 घंटों के बाद, इसने एयर सुपेरियरिटी हासिल कर ली थी, लेकिन यह अपने महत्वपूर्ण हेलिबोर्न/हवाई परिवहन संचालन की सफलता सुनिश्चित नहीं कर सका. उसकी मोबाइल सेना 72 घंटे में शहरों में पहुंच गई मगर स्पेशल फोर्स के साथ तालमेल करके वह उसे आगे बढ़ाने में नाकाम रही. रूसी लॉजिस्टिक्स तेजी से आगे बढ़ती सेना का सामना नहीं कर सकी, इसलिए पूरी तैयारी करने के लिए मजबूरन विराम लेना पड़ा.

इस बीच यूक्रेनी सेना हवाई/मिसाइल/ड्रोन अभियान का सामना नहीं कर सकी थी. वे पलटवार करने के साथ हेलिबोर्न/हवाई परिवहन संचालन को विफल करने के लिए तत्पर थे. हमले के पैमाने और रूसी युद्ध क्षमता की श्रेष्ठता से हैरान होने के कारण रूसी सेना को आगे बढ़ने की रफ्तार पर लगाम नहीं लगाई जा सकी. लेकिन रूसी सेना के इंतजाम को नुकसान पहुंचाया गया. यूक्रेन के बड़े शहर रक्षा के लिए तैयार नहीं थे, न उनकी किलाबंदी की गई थी. लेकिन जवाबी कार्रवाई तेजी से की गई और दूसरी जगहों से सेना को जनता की मिलिशिया के साथ शहरों की रक्षा के लिए रवाना किया गया.

3 मार्च तक रूसी सेना फिर से एकजुट हो गई थी और उसने कीव, खारकीव, मारीउपोल को अलगथलग करके खेर्सोन पर कब्जा कर लिया था. अब शहरों में जंग की और ब्लैक सी/ अज्होव सागर तट तथा नाइपर नदी के पूरब के इलाके को नियंत्रण में लेने की तैयारी हो चुकी है.

शहरों के लिए जंग

अतीत में, किसी सेना के लिए सबसे कड़ी परीक्षा अच्छी तरह से सुरक्षित, बड़ी आबादी वाले किसी शहर से निपटने की हुआ करती थी. शहरी क्षेत्र की रक्षा एक केंद्र वाले वृतों के घेरे बनाकर की जाती है जिनमें किलेबंद इमारतों और गलियों में दुश्मन का सफाया किया जाता है. टैंकों और इन्फैन्ट्री कंबैट वाहनों की आवाजाही गलियों में सीमित हो जाती है और उन्हें आसानी से रोका जा सकता है. शहरी युद्ध मुख्यतः थलसेना द्वारा इमारत-दर-इमारत, कमरा-दर-कमरा लड़ा जाता है. गिराई गई इमारतों के मलबे बचाव में मदद करते हैं. इसलिए सेना इमारतों से भरे इलाकों में लड़ने से बचने की कोशिश करती है.

लेकिन एक बार जब हमलावर का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व अपनी, दुश्मन की और जनता की बड़े पैमाने पर मौतों को मंजूर करने का सख्त फैसला कर लेता है तब आधुनिक आग्नेयास्त्र शहरी युद्ध को आसान बना देते हैं. दीर्घकालिक राजनीतिक मकसद के मद्देनजर प्लान-ए न्यूनतम मौतों का लक्ष्य रखकर तैयार किया गया था. प्लान-ब के मुताबिक लड़ाई में नागरिकों की न्यूनतम मौत हो, इसके लिए निशाने पर सटीक मार करने वाले अस्त्रों का उपयोग करने का फैसला किया गया है. लेकिन व्लादीमीर पुतिन किसी भी कीमत पर सफलता चाहते हैं.

दुर्भाग्य से, बड़े यूक्रेनी शहर अपनी रक्षा के लिए तैयार नहीं किए गए थे. सेना अपर्याप्त है. हमलावर पर जवाबी हमला करने के लिए शहरों के बाहर कोई रिजर्व फोर्स नहीं हैं. बचाव करने वालों के पास तोपें कम हैं और छोटे हथियारों तथा कच्चे विस्फोटकों का ही सहारा है.

जब तक आप यह सब पढ़ रहे होंगे, हवाई, मिसाइल, ड्रोन और तोपों के अभूतपूर्व हमलों से शहरों को व्यवस्थित तरीके से कमजोर  किया जाना शुरू हो गया होगा . निशाने पर सटीक मार करने वाले, क्लस्टर, वैक्यूम, थर्मोबेरिक अस्त्रों का जाम कर इस्तेमाल होगा. मेरी संवेदनाएं बहादुर यूक्रेनी लोगों के साथ हैं लेकिन वक़्त का इंतज़ार कर रही हैं कि कीव, खारकीव, और मारीउपोल भी जल्दी ही शिकस्त कबूल कर लेंगे.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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