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Saturday, 23 November, 2024
होममत-विमतउद्धव ठाकरे अब महाराष्ट्र में ‘रोलआउट रोलबैक’ का अपना बेतुका नाटक बंद करें

उद्धव ठाकरे अब महाराष्ट्र में ‘रोलआउट रोलबैक’ का अपना बेतुका नाटक बंद करें

महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के घटक दल आपसी असंगतता के कारण असंतुष्ट हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि एक साथ उनका कोई भविष्य नहीं है.

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महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी सरकार ने समय-समय पर दिखाया है कि कैसे यह एक अव्यवस्थित, अस्थिर, अकुशल, ढुलमुल और एक रोलआउट-रोलबैक प्रशासन का नायाब नमूना है, जिसका एकमात्र उद्देश्य है लोगों की मुश्किलों की कीमत पर सत्ता में बने रहना. ढुलमुल रवैया निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की हद दर्जे की निष्क्रियता या सीधे शब्दों में कहें तो प्रशासनिक दखल की उनकी अक्षमता का नतीजा है.

अराजकता की पराकाष्ठा

जरा गौर करें : मुंबई पुलिस में 10 डीसीपी के स्थानांतरण का आदेश जारी होने के महज तीन दिन बाद इसे मुख्यमंत्री के इशारे पर रद्द कर दिया गया. यह शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), जिसके पास गृह विभाग है, के बीच आपसी खींचतान का नतीजा नजर आया. कुछ रिपोर्ट में इसके पीछे शिवसेना की आंतरिक राजनीति की भूमिका बताते हुए कहा गया कि मुख्यमंत्री ठाकरे शिवसेना के स्थानीय नेताओं के इस दबाव में थे कि उच्च पदों पर पोस्टिंग का अधिकार राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों के पास सुनिश्चित हो न कि किसी अन्य पार्टी के लोगों के पास. अंतत: गठबंधन के भीतर के मतभेदों को दूर करने के लिए मातोश्री का एक और दौरा करने के लिए 79 वर्षीय एनसीपी प्रमुख शरद पवार की जरूरत पड़ी.

पुलिस विभाग में आंतरिक फेरबदल का फैसला वापस लेने के कारण जो भी रहे हों, इसने एक बार फिर साबित कर दिया कि शासन कभी भी ठाकरे सरकार के लिए प्राथमिकता नहीं रहा, बेवजह की रस्साकशी ऐसे समय में मुख्यमंत्री के एजेंडे पर हावी है जबकि राज्य कोरोनोवायरस के हमले से जूझ रहा है.

यह रोलआउट-रोलबैक राजनीति महाराष्ट्र में पूरे कोविड संकट के दौरान नजर आती रही है जो सिर्फ आम लोगों की मुश्किलें बढ़ा रही है.

जून के अंत में मुंबई पुलिस ने एक ‘यात्रा आदेश’ लागू कर दिया जिसके तहत लोगों के नौकरी या चिकित्सा जरूरतों को छोड़कर, घर से 2 किलोमीटर से ज्यादा दूर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. सरकार की तरफ से अनलॉक 1 के दौरान इस तरह का कोई कदम उठाना अप्रत्याशित था, खासकर यह देखते हुए कि उसने पहले जैसा सांकेतिक लॉकडाउन किया था. राज्य सरकार के फरमान का नतीजा लोगों के उत्पीड़न के तौर पर सामने आया. मात्र दो दिन में 6000 वाहन जब्त कर लिए गए और इस नियम के कारण पूरी मुंबई में बड़े पैमाने पर यातायात अस्तव्यस्त हो गया. इस आदेश की वापसी से पहले, एक बार फिर शरद पवार को मुख्यमंत्री से सवाल-जवाब करना पड़ा.

ठाकरे की बेतुकी पटकथा में एक और विचित्र घटनाक्रम सामने आया, जब राज्य सरकार ने बिना किसी स्पष्ट आवश्यकता के 1.37 करोड़ रुपये की लागत वाली छह लग्जरी कारों की खरीद को मंजूरी दे दी. वह भी तब, जब राज्य सरकार ने अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए खुले तौर पर उधार लिया है.

मुसीबत में सहयोगी

उद्धव ठाकरे एक तुनकमिजाज राजनेता हैं. भाजपा को इसका अहसास पिछले अक्टूबर में चुनाव परिणाम के बाद तब हुआ जब उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के फोन उठाने बंद कर दिए, इस तरह से एक बेहतरीन सहभागिता खत्म हो गई जिसकी शुरुआत 1980 के दशक के अंत में बाल ठाकरे और प्रमोद महाजन ने की थी.

अब, उद्धव ठाकरे के खिलाफ कांग्रेस और एनसीपी में एक ही राग है- उनसे मिल पाना दूभर है. ठाकरे को अपने घर से खास लगाव है, वह दफ्तर नहीं जाते हैं और महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सहयोगियों से बात करने में भी वह कोई विश्वास नहीं रखते हैं.

शिवसेना ने गठबंधन सरकार की आलोचना के लिए अपने मुखपत्र सामना में कांग्रेस पर हमला बोला, कांग्रेस की तुलना उसने एक पुरानी खाट से की, जो बेवजह चरमराती रहती है. कांग्रेस ने तब से फिलहाल तो चुप्पी साध ली है, शायद वह नाराजगी से उबल रही है और अपमान का बदला लेने के लिए सही समय का इंतजार कर रही है.

हालांकि, शिवसेना को उसकी जगह दिखाने में एनसीपी ज्यादा आक्रामक रही है. 4 जुलाई को, शिवसेना के पांच कॉरपोरेटर अहमदनगर जिले में उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार की मौजूदगी में एनसीपी में शामिल हुए. फिर शिवसेना ने एनसीपी की बांह मरोड़ी और इन कॉरपोरेटर की वापसी सुनिश्चित की, यह तो गठबंधन में आंतरिक मतभेदों की अंतहीन गाथा में सिर्फ एक और अध्याय है. अब देखना होगा कि अजीत पवार इस ताजे अपमान पर क्या जवाब देते हैं.

मुंबई में सत्ता के गलियारों में यह बात जगजाहिर है कि अजीत पवार के लिए निष्क्रिय ठाकरे को अपने नेता के तौर पर पचा पाना मुश्किल हो रहा है. हर बार जब भी अजीत पवार की बेचैनी बढ़ी, सीनियर पवार उन पर भारी पड़े. लेकिन शिवसेना और एनसीपी के बीच लगातार बढ़ता टकराव बताता है कि चीजें अब हाथ से निकल रही हैं.

तीन पार्टियों के इस तरह खुले वैरभाव के बीच, एक-दूसरे को अपमानित करने और फिर ‘सब ठीक है’ का दिखावा करने के लिए असामान्य रूप से मोटी चमड़ी वाला होना पड़ता है. लेकिन फिर भी, अपनी असीम सत्ता लोलुपता और सीमित क्षमताओं के कारण, उद्धव ठाकरे के पास और कोई विकल्प नहीं है.

पूर्व मुख्यमंत्री फैक्टर

मौजूदा समय में एक अस्वीकार्य शासन के रूप के महाराष्ट्र जो खामियाजा भुगत रहा है, उसमें लोगों के लिए ठाकरे के पूर्ववर्ती देवेंद्र फडणवीस की सक्रियता से तुलना करना लाजिमी है. फडणवीस पिछले कुछ हफ्तों से गाहे-बगाहे राज्य का व्यापक दौरा करते रहे हैं, वह राज्य सरकार में मतभेदों के कारण परेशान लोगों से मिल रहे हैं. चक्रवात निसर्ग आने के पांच दिन के अंदर ही फडणवीस सबसे बुरी तरह प्रभावित कोंकण पहुंच गए, नुकसान का जायजा लिया और राहत शिविरों में लोगों से मिले. तत्काल बाद, उन्होंने मुख्यमंत्री को विस्तृत नोट सौंपा जिसमें और मदद की जरूरत दर्शायी गई थी. मुख्यमंत्री ठाकरे ने अपनी तरफ से कभी प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने की जहमत नहीं उठाई.

कोविड-19 के खिलाफ महाराष्ट्र की जंग में एक सबसे बड़ी नाकामी अस्पतालों में घोर कुप्रबंधन की रही. मुंबई के केईएम अस्पताल और सायन अस्पताल के वार्ड में मरीजों के पास ही लाशें पड़ी होने के वीडियो सामने आ चुके हैं. मुख्यमंत्री ने कभी भी किसी अस्पताल का दौरा करने या चिकित्सा कर्मियों से मिलने की जहमत नहीं उठाई. राज्य सरकार का पूरा जोर निरर्थक विशाल क्वारंटाइन सेंटर बनाने पर था, जिसमें से तमाम खाली पड़े हैं.

दूसरी ओर, वास्तविक चुनौती ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर और आईसीयू बेड की अनुपलब्धता की थी, जिसके कारण एक महीने पहले तक बड़ी संख्या में मौतें हुईं. राज्य सरकार ने एक आउटसोर्स मॉडल अपना रखा है- खुद भागीदारी और बारीकियों पर नजर रखने के बजाये हर बात के लिए नौकरशाहों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.


यह भी पढ़ें : शिवसेना बागी से शासक बनी और ठाकरे चमक रहे हैं, लेकिन पार्टी को कोई भी राजनीतिक लाभ नहीं हुआ


आमतौर पर घर में डेरा डाले रहने वाली ठाकरे की शैली के विपरीत फडणवीस सक्रिय और सहज उपलब्ध हैं. पूर्व सीएम ने पूरे महाराष्ट्र के अस्पतालों और क्वारंटाइन सेंटरों का दौरा किया है, चाहे वह पुणे, अमरावती हो या कोंकण. इन सभी जगहों पर उन्होंने सरकारी अधिकारियों की दिक्कतों को समझने के लिए उनके साथ व्यापक बैठकें कीं और अपनी तरफ से सुझाव दिए. उन्होंने निजी तौर पर महाराष्ट्र के दूरदराज वाले इलाकों में स्थित क्वारंटाइन सेंटर जाकर मुआयना किया, कई बार खुद अपनी सेहत को खतरे में डालकर.

परस्पर असंगतता

महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के घटक दल आपसी असंगतता के कारण असंतुष्ट हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि एक साथ उनका कोई भविष्य नहीं है. एनसीपी में कई को पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ न जाने का अफसोस है. शिवसेना और कांग्रेस के भी कुछ नेताओं को लगता है कि उनका राजनीतिक कैरियर इस गैर-नैसर्गिक, मजबूरी के गठबंधन के कारण खतरे में पड़ गया है, और फिर से मतदाताओं का सामना करने के लिए बेचैन हैं.

जहां तक भाजपा की बात है, तो पार्टी किसी भी फिर से चुनाव के लिए तैयार है. पिछली सरकार में भाजपा के प्रदर्शन के बलबूते पार्टी ने उन 70 फीसदी सीटों को बहाल रखा जिन पर 2019 के विधानसभा चुनाव में खड़ी हुई. ठाकरे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की निष्क्रियता और बार-बार लोगों के साथ विश्वासघात खुद ही अगले चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी सुनिश्चित करेगा.

दीवार पर लिखी इबारत साफ और सुस्पष्ट है. उद्धव ठाकरे को अपने निहित हितों के लिए महाराष्ट्र को मुसीबत में नहीं डालना चाहिए.

(स्तंभकार एक लेखक और भाजपा के नेशनल मीडिया पैनलिस्ट हैं. विचार उनके निजी है)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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