scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतकांग्रेस का चिंतन- PK नहीं, बल्कि पिछड़ों आदिवासियों, महिलाओं के साथ मिलकर जीतेंगे

कांग्रेस का चिंतन- PK नहीं, बल्कि पिछड़ों आदिवासियों, महिलाओं के साथ मिलकर जीतेंगे

गांधी परिवार जो कुछ टुकड़ों-टुकड़ों में करता रहा वह अब निरंतर किया जाएगा, प्रशांत किशोर पार्टियों को चुनाव जिताते होंगे लेकिन कांग्रेस ने अपने बूते जीतने का फैसला किया .

Text Size:

आखिर बिसात बिछाई गई और उदयपुर में आयोजित नव संकल्प चिंतन शिविर में रविवार को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व जब इसके इर्दगिर्द जमा हो गया तब एक तरह से इतिहास की प्रतिध्वनि भी सुनाई दी. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसारा ने उदयपुर की पहाड़ियों में ताज अरावली रिज़ॉर्ट में जमा हुए जोशीले पार्टी योद्धाओं के स्वागत और आराम में कोई कसर नहीं बाकी नहीं रखी.

चिंतन शिविर में सब कुछ हुआ— पार्टी की मौजूदा हालत की जायजा लेने से लेकर अतीत के गौरवपूर्ण और गंभीर मौकों की याद करने तक; वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विषैली छाया से लड़ने के संकल्प से लेकर हमारे वैचारिक आधारों के गंभीर विश्लेषण तक, जिन्हें फर्जी चमत्कारों के पैरोकारों के हाथों कमजोर किया गया है; छीजते राष्ट्रीय विमर्श को मजबूत करने की प्रतिबद्धता घोषित करने से लेकर सच्चे भारतीय लोकतन्त्र की खातिर पार्टी में नयी जान फूंकने के लिए अपना जीवन फिर से समर्पित करने तक.

उम्मीद भरी शुरुआत

चिंतन शिविर में भाग लेने वालों का सावधानी से चयन किया गया. उनका चुनाव मुख्यतः इस आधार पर किया गया कि वे संगठन और सरकार में क्या ज़िम्मेदारी संभाल चुके हैं और बेहतर दौर में उन्होंने कुछ सदाबहार प्रतिभा का परिचय दिया. शिविर में, वरिष्ठ नेताओं के साथ बेशक युवा और उत्साही कार्यकर्ताओं की प्रभावशाली जमात भी थी. वरिष्ठ नेता वे, जो पहले भी कई शिविरों में भाग ले चुके हैं और चुनौतीपूर्ण घड़ियों में पार्टी का नेतृत्व करके उसे चुनावों में बढ़त दिला चुके हैं. शिविर में शामिल प्रतिनिधियों को संगठन, राजनीति, अर्थनीति, कृषि, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण, और युवा मामलों के आधार पर छह समूहों में बांटा गया था.

इन सभी समूहों का कांग्रेस के लिए पारंपरिक महत्व तो है ही, शिविर में पहली बार ओबीसी, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जातियों और जनजातियों से संबंधित विभागों को समेकित एवं समन्वित प्रयास करते हुए देखा गया. इन चार वर्गों के साथ महिलाओं, खासकर उपरोक्त चार वर्गों की महिलाओं से हमारे समाज का एक बहुसंख्यक वर्ग बनता है. पहले, वे अपने-अपने खांचे में सिमटी रहती थीं और कभीकभार नाइंसाफी के खिलाफ सामूहिक संघर्ष के लिए एकजुट हुआ करती थीं. लेकिन इस बार, सशक्तिकरण की खातिर चारों विभागों की सांगठनिक एकता ने उल्लेखनीय, सकारात्मक आकांक्षाओं को उभार दिया है. इस पहलू पर ज़ोर डाला गया तो यह पार्टी की चुनावी तकदीर बदल दे सकता है.

ये समुदाय 2014 से पहले कांग्रेस के मजबूत समर्थक थे लेकिन वे बाद में कई कारणों से क्षेत्रीय दलों या भाजपा की ओर मुड़ गए. इस बदलाव पर विचार करते हुए हमने अधिकारों को पूरा करने और इसके साथ ही इन चार समूहों में राजनीतिक नेतृत्व की पहचान करने औए उसे मजबूत करने के स्पष्ट रास्ते की पहचान की.

नेतृत्व का विकास करना तो सतत चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन इस योजना को कांग्रेस कार्यसमिति में में भारी समर्थन मिला, जिसने सामाजिक न्याय सलाहकार परिषद के प्रस्ताव को मंजूरी दी ताकि अध्यक्ष को पिछड़े वर्गों तथा वंचित सामाजिक समूहों में उभरते मुद्दों और पहलुओं से अवगत रखा जा सके.


यह भी पढ़ें : परिसीमन दिखाता है कि कश्मीर चुनौती के सामने भारतीय लोकतंत्र कैसे संघर्ष कर रहा है


अब कामचलाऊ काम नहीं

यह तेज संवाद का, और मुख्यधारा के मीडिया से निरंतर उपेक्षित होने का दौर है. आज का मीडिया दबाव में है और अविश्वास को परे रखने को राजी है. इसलिए, मीडिया, प्रचार, सोशल मीडिया, डाटा मिलान जैसे अलग-अलग हलक़ों का साथ लेकर चलना जरूरी हो गया है. कार्यसमिति ने पार्टी के सार्वजनिक प्रचार के दृश्य और वाचिक आयामों को दुरुस्त करने के लिए इस पर तुरंत सहमति दी. अधिक प्रभावी उपस्थिती के साथ हमें चुनाव प्रबंधन को बेहतर बनाने पर भी ध्यान देना होगा.

लोग यह न सोचें कि हमने चुनाव प्रबंधन की आंतरिक व्यवस्था की जो पेशकश प्रशांत किशोर ने की उसकी उपेक्षा करके एक सुनहरा मौका गंवा दिया, इसलिए कार्यसमिति ने मौके की मांग पर साहसिक पहल करते हुए चुनाव प्रबंधन विभाग की स्थापना करने का फैसला किया. यह हम टुकड़ों में करते आए हैं और हर बार नये खिलाड़ियों के साथ. यह कामचलाऊ रवैया का संकेत देता था. लेकिन अब यह पेशेवर तरीके से निरंतर किया जाएगा. अगर पीके पार्टियों को चुनाव जिताने का दावा कर सकते हैं, तो हमने खुद को ही चुनाव जीतने के लायक बनाने का फैसला किया है. बेशक हम पेशेवर सलाह लेते रहेंगे लेकिन विचार-विमर्श में उत्साही भागीदारियों से साफ था कि राजनीति हमारा अपना क्षेत्र बना रहेगा.

धर्म के नाम पर मतदाताओं का बार-बार ध्रुवीकरण करने वाली भाजपा से निबटने को लेकर अगर कोई आत्म संदेह था था, तो वह दूर कर दिया गया. कांग्रेस देशभर में यात्राओं के आयोजन से जनता के बीच फिर से लौटेगी. गांधी जयंती पर शुरू होने वाली कश्मीर से कन्याकुमारी की ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा प्रतिकार का मुख्य प्रतीक होगा. शिविर के 400 से ज्यादा प्रतिनिधियों के दिलों में गूंजता ‘भारत जोड़ो’ नारा देशभर में हरेक घर में ‘भारत छोड़ो’ वाली राष्ट्रीय भावना का संचार करेगा. यह साफ तौर पर राजनीतिक राष्ट्रवाद और कांग्रेस के ऊंचे नैतिक आदर्श के बीच एक संघर्ष होगा. जैसा कि राहुल गांधी ने कहा, ‘भारत के लोगों के बीच संवाद’ तुरंत और अभी शुरू होना चाहिए. उदयपुर घोषणा ने पार्टी के, जिसे सोनिया गांधी ने अपना ‘(विस्तृत) परिवार’ कहा, अंदर और देशभर में पूर्ण संवाद की शुरुआत कर दी है. सोनिया ने “हम होंगे कामयाब’ के वादे और संकल्प के साथ समापन किया.

नये क्षितिज की ओर

संदेश के विस्तार के साथ पार्टी ढांचा और प्रबंधन में सुधार की कोशिश में तुरंत जुट जाएगी, जिसमें पार्टी अध्यक्ष को शीघ्र सूचनाएं देने के लिए कार्यसमिति के टास्क फोर्स ‘सामाजिक न्याय सलाहकार परिषद की नियुक्ति, विभिन्न खाली पदों पर नियुक्तियां, और महिलाओं के लिए 33 फीसदी तथा एसटी, एससी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों के लिए 20 फीसदी आरक्षण को लागू करने जैसे कदम शामिल होंगे. ये कदम जोरदार तरीके से रेखांकित कर देंगे कि हमारी कहनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता और यह कि आज के अर्धसत्य और फर्जी खबरों के जमाने में भी हम सच्चाई पर चलते हैं. कुछ लोग हमें महत्वाकांक्षी समझ सकते हैं, और सचमुच हम महत्वाकांक्षी हैं.

युवा बनाम अनुभवी का मसला भी बेशक उभरा. शिविर में शामिल प्रतिनिधियों की जनसांख्यिकीय तस्वीर बेशक आधुनिक भारत की वास्तविकताओं की स्पष्ट पुष्टि कर रही थी, फिर भी संगठन को युवा स्वरूप देने की काफी वकालत की गई. वरिष्ठ सदस्यों ने इस पर सहमति जाहिर की और सभी पदों पर नियुक्ति में और चुनाव के लिए टिकट देने में 50 फीसदी कोटा 50 साल की उम्र से नीचे वालों के लिए तय करके बीच का रास्ता चुना गया.

जहां तक वरिष्ठ सदस्यों की बात है, हम भविष्य की खातिर संघर्ष करने के लिए जीते हैं, न कि एक और मौका पाने का संघर्ष करने के लिए जीते हैं. इसलिए, हमने अपनी जो नजरें 2024 पर टिकाई हैं, हममें से कुछ उस मंजिल तक धीरे-धीरे चल कर और कुछ दौड़ कर पहुंचेंगे. माराथन के लिए सिटी बज चुकी है.

(सलमान खुर्शीद कांग्रेस नेता, वरिष्ठ वकील और लेखक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @salman7khurshid है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : म्यांमार में ‘आपराधिक’ राज्य-व्यवस्था उभर रही है और चीन इसमें मदद कर रहा है


share & View comments