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Saturday, 16 November, 2024
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दो यात्राएं, दो पार्टियां, एक विफलता- कांग्रेस, AAP की योजनाएं साफ दिखाती हैं कि क्यों संभव नहीं विपक्षी एकता

3,570 किलोमीटर लंबी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का उद्देश्य गांधी परिवार के उत्तराधिकारी को खबरों में बनाये रखना है.

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दो राजनीतिक नेताओं, कांग्रेस के राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, की दो यात्राएं गलत समय पर निकाली गईं और पूरी तरह से अनियोजित लगती हैं. कांग्रेस पार्टी की यात्रा तो पार्टी में आये इस्तीफों के दौर और बढ़ते अंदरूनी असंतोष की बिना सोची-समझी प्रतिक्रिया के रूप में अधिक प्रतीत होती है. राहुल गांधी के नेतृत्व, इसके दौरान मिली चुनावी हार और पार्टी के भविष्य के प्रति उनकी पूर्ण उदासीनता की कड़ी आलोचना हुई है. यहां तक कि कुछ लोगों द्वारा व्यंग्य के साथ यह भी कहा जाता है कि वह भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बेहतरीन चुनाव प्रचारक हैं. हाल ही में पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से निकला राजनीतिक संदेश तो शायद कमर तोड़ देने वाला आघात बनकर आया लगता है

राहुल गांधी की यह यात्रा उस तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी से शुरू हुई है जहां कांग्रेस ने साल 1967 के बाद से ही सत्ता में नहीं है. संयोग से, तमिलनाडु में कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम ने श्रीपेरंबुदूर सीट से चुनाव जीता था. राहुल गांधी द्वारा यहीं से अपनी यात्रा शुरू करना समझ में आता. एक तरफ कांग्रेस का राजनैतिक कार्यबल इस राज्य में बहुत तेजी से समाप्त हो गया है, वहीं भाजपा के पास इस राज्य के द्रविड़ दलों में मौजूद दिग्गजों के विकल्प के रूप में स्वीकार्य राज्य स्तर का कोई भी नेता नहीं है. फिर भी, कन्याकुमारी उन कुछ गिनीं-चुनी सीटों में से थी, जिन्हें भाजपा जीतने में सफल रही. कन्याकुमारी से राहुल की यात्रा की शुरुआत का एकमात्र कारण ‘कन्याकुमारी से कश्मीर’ वाला नारा है, जिसमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के संदेश की गूंज सुनाई देती है.

राहुल की यात्रा का विषय ‘एक अखंड भारत’ के विचार को फिर से मजबूत बनाने वाला बताया जा रहा है. 150 दिनों से अधिक समय तक चलने वाली यह 3,570 किलोमीटर लंबी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ गांधी परिवार के उत्तराधिकारी को खबरों में बनाये रखने के उद्देश्य से आयोजित की गयी प्रतीत होती है, ताकि उनकी इस आलोचना को शांत किया जा सके कि कांग्रेस को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा नहीं चलाया जा सकता है जिसे राजनीति के प्रति उदासीन माना जाता है लेकिन फिर भी वह सिर्फ अपनी अधिकारसंपन्न पात्रता के आधार पर पार्टी के शीर्ष पर है.


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कांग्रेस अपनी यात्रा की और बेहतर योजना बनाए

यह यात्रा कांग्रेस को साल 2024 के चुनाव में अच्छी संख्या में सीटें जीतने में किस हद तक मदद करेगी, इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है. यह यात्रा निश्चित रूप से भीड़ खींचेगी, यदि सभी पड़ावों पर नहीं तो कम से कम कुछ स्थानों पर जरूर. लेकिन जनता की याददाश्त बहुत कम समय वाली होती है. इसके अलावा, कांग्रेस के पास कोई नेता या कैडर (कार्यकर्ता समूह) नहीं है जो इस भीड़ को वोट में बदलने में सक्षम हो. पार्टी अपने चुनावी युद्ध कक्ष में थोड़ा और समय बिता सकती थी और इस यात्रा के हर पहलू की और अच्छे से रणनीति बना सकती थी. स्पष्ट रूप से ऐसा कुछ नहीं हुआ.

कांग्रेस को तत्काल अपने शीर्ष पद पर गांधी परिवार से इतर एक ऐसे नेता की जरूरत है जो एकदम नई तरह से शुरुआत कर सके और जिसे 2014 के बाद से हुए चुनावों में सिलिसिलेवार रूप से मिली हार का अपमान न झेलना पड़ा हो. कई नेताओं के द्वारा एक समान विषय के साथ शुरू की कई यात्राओं ने शायद अधिक रुचि को आकर्षित किया होता और सामूहिक नेतृत्व की भावना पर रोशनी डाली होती. लेकिन पार्टी का ‘प्रथम परिवार’ स्पष्ट रूप से पार्टी और उसके खजाने पर अपनी पकड़ ढीली करने को तैयार नहीं है. नतीजतन, 150 दिनों के बाद, यह मानते हुए कि यह यात्रा तब तक निर्बाध रूप से जारी रहेगी, पार्टी वापस वहीं पहुंच जाएगी जहां वह पहले थी; या यह भी संभव है कि इससे कुछ नेता और कम हो जाएं.

मेक इंडिया नंबर 1

आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी हरियाणा के हिसार स्थित अपने जन्मस्थान से ‘मेक इंडिया नंबर 1’ यात्रा शुरू की है. लेकिन उनकी यात्रा इस मायने में अलग लगती है कि इसे बीच-बीच में छोटे-छोटे अल्पविराम (ब्रेक) लेकर निकाले जाने की उम्मीद है. इसका अंतिम गंतव्य अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि यह हिमाचल प्रदेश या गुजरात, या फिर दोनों, हो सकते हैं जहां इस साल चुनाव होने हैं. इसलिए, इस यात्रा का उद्देश्य ‘मेक इंडिया नंबर 1’ की घोषणा से बहुत हट के है.

दिल्ली में मिली लगातार दो जीतों और पंजाब में भाग्यवश मिली जीत केजरीवाल की इस यात्रा के प्रमुख करक प्रतीत होते हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार, जिन्होंने हाल ही में भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया था, केजरीवाल की इस यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिए वहां मौजूद थे. यह संदेह के दायरे में कि क्या वह आप को बिहार में चुनाव लड़ने देंगे या फिर उसके साथ जनता दल (यूनाइटेड) का किसी तरह का गठजोड़ भी करेंगे. जद(यू), टीएमसी और द्रमुक जैसे गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी दल अन्य सभी दलों को अपने-अपने राज्यों में पहुंच से बाहर रखना चाहते हैं और फिर भी विपक्षी दलों का एक महागठबंधन बनाने का सपना देखते हैं. इन पार्टियों के पास कुछ विशेष क्षेत्रों में समर्थन वाले हलके हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी जीत होती है और राज्य में इनकी सरकारें बनती हैं. लेकिन इन पार्टियों में से कोई भी भाजपा के विकल्प के रूप में विकसित होने के आस-पास भी नहीं हैं.

विडंबनावश यह धारणा अभी भी कायम है कि गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता के नेतृत्व में कांग्रेस का एक नया अवतार शायद भाजपा की लगातार जीत के क्रम से बच सकता है और 2024 में उसके खिलाफ लड़ाई की एक झलक पेश कर सकता है. लेकिन दो पार्टियों, जो एक-दूसरे के विरोधी हैं और चुनावी जोड़-गणित के एक ही हिस्से के लिए संघर्ष कर रही हैं, द्वारा निकाली जा रहीं दो यात्राएं परस्पर विरोधी उद्देश्यों के साथ काम करेंगी. यह न केवल उनके उद्देश्यों को धूलधूसरित करेगा, बल्कि विपक्षी दलों के महागठबंधन, जो किसी मृगतृष्णा की तरह हर चुनाव से पहले प्रकट हो जाता है, को खड़ा करने के सभी प्रयासों को भी प्रारम्भिक चरण में ही विफल कर देगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक ‘आर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrichari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


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