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Friday, 22 November, 2024
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ट्रंप या बाइडेन– भारत के लिए कौन बेहतर है, इसका जवाब एक 14 वर्ष पुराने सपने में है

सीएए, कश्मीर और जलवायु परिवर्तन पर मुखर रहे डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बाइडेन का भारत संबंधी रुख डोनाल्ड ट्रंप से बिल्कुल अलग रहा है.

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अनेक भारतीयों के मन में ये सवाल उमड़ रहा है कि अमेरिका में जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए ठीक रहेगा या डोनल्ड ट्रंप का दूसरे कार्यकाल के चुना जाना.

आइए देखें कि पिछले दो दशकों के दौरान जो बाइडेन का भारत के प्रति क्या रुख रहा है.

दिसंबर 2006 में रीडिफ इंडिया अब्रॉड को दिए इंटरव्यू में बाइडेन ने कहा था, ‘मेरा सपना है कि 2020 में दुनिया के सर्वाधिक निकटता से जुड़े दो राष्ट्र भारत और अमेरिका होंगे.’ उन दिनों वह सीनेट की विदेश मामलों की समिति (एसएफआरसी) के वरिष्ठतम डेमोक्रेट सदस्य थे और उसके अगले महीने जनवरी 2007 में समिति के प्रमुख का कार्यभार ग्रहण करने वाले थे क्योंकि नवंबर 2006 के चुनाव में सीनेट डेमोक्रेट के नियंत्रण में आ गया था.

इसके ठीक पहले बाइडेन ने समिति के तत्कालीन अध्यक्ष रिपब्लिकन सीनेटर रिचर्ड लुगार के साथ मिलकर 85-12 के अंतर से उस प्रस्ताव को पारित कराया था जिसमें भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए वार्ताएं जारी रखने की अनुमति दी गई थी. आखिरकार अक्टूबर 2008 में उस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. बीच की दो वर्षों की अवधि में दोनों ही देशों में समझौते की राह में कई चुनौतियां आईं और बाइडेन समझौते के लिए दृढ़ता से सीनेट में, खासकर विरोध में खड़े अपनी खुद की पार्टी के सदस्यों का, समर्थन जुटाते रहे. समझौते को लेकर आशंकित सीनेटरों की जमात में तब बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन भी शामिल थे, जो परमाणु अप्रसार लॉबी की चिंताओं से प्रभावित थे. इससे पूर्व सएफआरसी का अध्यक्ष रहने के दौरान बाइडेन ने अगस्त 2001 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को पत्र लिखकर भारत के खिलाफ उन आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग की थी, जो कि मई 1998 के भारतीय परमाणु परीक्षणों के बाद से जारी थे.


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अमेरिकी उपराष्ट्रपति के रूप में भारत यात्रा के दौरान, 24 जुलाई 2013 को मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में अपने संबोधन में बाइडेन ने राष्ट्रपति ओबामा की बात को दोहराया था कि वह भारत-अमेरिका संबंधों को ‘भावी सदी को परिभाषित करने वाली साझेदारी’ के रूप में देखते हैं. पिछले महीने भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम में, राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार ने कहा कि वह ‘भारत के साथ खड़े रहेंगे’ और बाइडेन प्रशासन भारत के सम्मुख ‘उसके क्षेत्र में और सीमाओं पर मौजूद खतरों’ से निपटेगा, तथा किसी भी प्रकार के आतंकवाद, सीमा पार या अन्यथा को सहन नहीं करेगा.

बाइडेन का दृष्टिकोण

बाइडेन इस समय अमेरिका के अधिकांश राष्ट्रव्यापी सर्वे में प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार पर 7-10 प्रतिशत की बढ़त बनाए हुए हैं, हालांकि नजदीकी मुकाबले वाले कई राज्यों में उनकी बढ़त थोड़ी कम है. बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि 29 सितंबर से 22 अक्टूबर तक होने वाले तीन प्रेसिडेंशियल बहसों में दोनों उम्मीदवारों का प्रदर्शन कैसा रहता है. उल्लेखनीय है कि 2016 में हिलेरी क्लिंटन लगातार आगे चल रही थीं, 19 अक्टूबर 2016 को तीसरी बहस में डोनल्ड ट्रंप के खिलाफ उनका प्रदर्शन भी बढ़िया रहा था, लेकिन उसके बाद अचानक परिस्थितियां बदल गईं और चुनाव में प्राप्त कुल मतों में 3 प्रतिशत की बढ़त लेने के बावजूद निर्वाचक मंडल के मुकाबले में वह पीछे छूट गईं. उस चुनाव में आमतौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी समर्थक रुझान रखने वाले मिशिगन, विस्कांसिन और पेन्सिल्वेनिया जैसे राज्यों की जनता ने ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ के नारे और भूमंडलीकरण में खोए रोजगार को वापस अमेरिका लाने के वादे में भरोसा जताया.

इसीलिए बाइडेन की जीत भी पक्की तो नहीं, लेकिन संभव ज़रूर कही जा सकती है.

फॉरेन अफेयर्स पत्रिका के मार्च/अप्रैल अंक में बाइडेन ने लिखा था कि पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका को दोबारा शामिल करना और प्रमुख कार्बन उत्सर्जक राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाना राष्ट्रपति के रूप में उनके आरंभिक फैसलों में शामिल रहेगा. उन्होंने 2050 तक अमेरिका को शून्य कार्बन उत्सर्जक राष्ट्र बनाने की दिशा में कार्य करने की प्रतिबद्धता भी जताई है.

भारत और अमेरिका ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते की दिशा में मिलकर काम किया था, जहां भारत ने फ्रांस के साथ अंतरराष्ट्रीय सोलर गठबंधन की पहल की थी. ट्रंप जलवायु परिवर्तन की बात को एक धोखा बता चुके हैं. जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का सामना कर रहे भारत को बाइडेन प्रशासन में ग्रीन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में साझेदारी के अवसर मिल सकेंगे जोकि कोविड के बाद की दुनिया में सप्लाई चेन संबंधी समझौतों का आधार साबित हो सकेगा.

बाइडेन ने ये भी कहा है कि उनके कार्यकाल के पहले वर्ष में अमेरिका ‘लोकतंत्र के लिए एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन करेगा.विभिन्न देशों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को मज़बूत करेगा. भ्रष्टाचार से लड़ाई में, निरंकुश सत्तावाद से रक्षा के लिए, और मानवाधिकारो को आगे बढ़ाने में’. उन्होंने इस प्रयास में सिविल सोसायटी तथा प्रौद्योगिकी एवं सोशल मीडिया कंपनियों समेत निजी सेक्टर को भी शामिल करने की बात की है.

भारत के लिए अवसर

भारत के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों ही होगा. एक स्तर पर यह तिब्बत, शिनजियांग और हांगकांग जैसे क्षेत्रों में चीन के निरंकुशतावादी कार्यों को निशाना बनाने का मंच साबित हो सकेगा. बाइडेन समेत अनेक अमेरिकी नेता बारंबार भारतीय लोकतंत्र और साझा मूल्यों को भारत-अमेरिका संबंधों की बुनियाद बताते हुए इसे चीन एवं हिंद-प्रशांत संबंधी रणनीतियों के संदर्भ में अहम करार दे चुके हैं.

हालांकि मुस्लिम-अमेरिकी समुदाय के लिए बाइडेन के चुनावी एजेंडे में कश्मीर में ‘सभी के अधिकारों’ की पुनर्बहाली का जिक्र है, जिसके अनुसार असहमति जताने पर रोक तथा इंटरनेट पर पाबंदी या उसे धीमा करने जैसे उपाय लोकतंत्र को कमजोर करते हैं. साथ ही, बाइडेन ‘असम में एनआरसी को लेकर निराशा’ व्यक्त कर चुके हैं और उन्होंने कहा था कि सीएए भारत की ‘लोकतंत्र की लंबी परंपरा तथा बहुजातीय एवं बहुधार्मिक लोकतंत्र को बरकरार रखने’ की उपलब्धि के अनुरूप नहीं है.

यह रवैया केवल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रगतिशील गुट के प्रभाव को ही प्रतिबिंबित नहीं करता है. विदेशी मामलों की अमेरिकी कांग्रेस की समिति के डेमोक्रेटिक अध्यक्ष और सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के वरिष्ठतम डेमोक्रेटिक सदस्य संयुक्त रूप से विदेश मंत्री माइक पोम्पियो को पत्र लिखकर भारत की नागरिकता संशोधन कानून पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. साथ ही, पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस और पार्टी के उभरते प्रगतिशील सांसदों में से एक प्रमिला जयपाल समेत कई भारतीय-अमेरिकी डेमोक्रेटों ने इन मुद्दों पर आलोचनात्मक रुख दिखाया है.


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हालांकि बाइडेन और उनके मुख्य विदेश नीति सलाहकार एंथनी ब्लिंकेन दोनों ने ही कहा है कि इन मुद्दों पर मतभेदों को मित्रों और साझेदारों के बीच होने वाले संवाद के ज़रिए निपटाने के प्रयास किए जाएंगे. वैसे, अमेरिका को खुद अपने यहां समुदाय विशेष के वोटरों को हतोस्ताहित करने, चुनाव क्षेत्रों के मनमाफिक पुनर्निर्धारण, अफ्रीकी-अमेरिकियों के खिलाफ हिंसा समेत अल्पसंख्यकों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सवालों का सामना करना पड़ रहा है.

रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेट

मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन पर लंबे समय से डेमोक्रेटिक पार्टी के सख्त रवैये के मद्देनज़र भारत में बहुतों के मन में ये दुविधा हो सकती है कि भारत के लिए डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति सही रहेगा या रिपब्लिकन.

इस बात को याद करना उपयोगी रहेगा कि 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने किया था, और उन्होंने भारत के खिलाफ युद्ध में चीन को शामिल करने के लिए गुप्त प्रयास भी किए थे. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को रिपब्लिकन राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन ने मजबूत किया था, जब अफगानिस्तान से सोवियत संघ को भगाने के वास्ते ‘उग्रवादी जिहाद’ के लिए उन्होंने आईएसआई के ज़रिए समर्थन और फंड की व्यवस्था की थी. भारत को पहले पंजाब में और फिर जम्मू कश्मीर में आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद का सामना करना पड़ा. दूसरी तरह डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1999 के कारगिल युद्ध में भारत का समर्थन किया, और 2000 में भारत की ऐतिहासिक यात्रा कर अमेरिका और भारत के बीच नए संबंधों की नींव रखी.

रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने असैनिक परमाणु सहयोग समझौते के ज़रिए दोनों देशों के रिश्तों को एक नई दिशा दी. लेकिन ये डेमोक्रेटिक ओबामा थे जो अपने कार्यकाल में दो बार भारत की यात्रा करने वाले प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति बने, जिनमें से एक मौका 2015 के गणतंत्र दिवस समारोहों का था. उन्होंने संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के भारत के दावे का समर्थन किया था और भारत को एक ‘प्रमुख रक्षा साझेदार’ करार दिया था. जबकि व्यापार मामलों में भारत के साथ असंगत व्यवहार करने और उसे तरजीही दर्जे (जीएसपी) के फायदों से वंचित करने का काम रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का है, हालांकि उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों के महत्व पर ज़ोर देने और भारत को अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी दिए जाने की अनुमति देने जैसे काम भी किए हैं. इसलिए स्पष्टतया अधिक महत्व इस बात का है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को किस भूराजनैतिक संदर्भ में रखा जाता है.

जो बाइडेन का सपना

ट्रंप के मुकाबले जो बाइडेन व्यापार और अन्य आर्थिक मुद्दों को बेहतर समझ सकेंगे, लेकिन अधिक सुधारों एवं खुलेपन की भी अपेक्षा करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत के आत्मनिर्भता पर ज़ोर देने के साथ-साथ भरोसेमंद साझेदार और वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा होने की बात की है. बाइडेन प्रशासन के एच1बी और फ़ैमिली वीज़ा मामले में, तथा अमेरिका में बिना कागजातों के रह रहे पांच लाख भारतीय मूल के लोगों की समस्याओं को लेकर भी अधिक उदार होने की अपेक्षा की जाती है.

जहां तक चीन की बात है, तो बाइडेन प्रशासन जलवायु परिवर्तन एवं व्यापार के क्षेत्रों में उसके साथ काम करने के साझा धरातल को ढूंढेगा, लेकिन आर्थिक एवं टेक्नोलॉजी संबंधी प्रतिद्वंद्विता और चीन की अनुचित व्यापार प्रथाओं को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा. बाइडेन ने 3 सितंबर को तिब्बत पर एक बयान जारी कर कहा था कि वह दलाई लामा से मुलाकात करेंगे (ट्रंप ने ऐसा नहीं किया है) और तिब्बत मामलों पर एक विशेष समन्वयक नियुक्त करेंगे.

मित्र राष्ट्रों और साझेदारों के साथ, तथा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के तहत काम करने के इरादे के मद्देनज़र बाइडेन प्रशासन वैश्विक मंच पर अधिक प्रभावशाली साबित हो सकता है. माना जाता है कि ट्रंप ने यूरोप और शेष विश्व में अमेरिका के प्रभाव को कम किया है. हाल ही में संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में ईरान पर हुए मतदान में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे मित्र राष्ट्रों समेत कुल 13 देशों ने अमेरिका का साथ नहीं दिया था.

ट्रंप और बाइडेन जहां व्यापार, जलवायु परिवर्तन एवं मानवाधिकारों के मुद्दे पर भिन्न विकल्प और चुनौतियां पेश करेंगे, वहीं पाकिस्तान एवं चीन पर उनकी नीतियों में समानता होगी.

वर्तमान परिस्थितियों में 2020 बाइडेन के सपनों का वर्ष नज़र आता है, खुद उनके लिए भी (वह 30 वर्षों से भी अधिक समय से राष्ट्रपति बनने की लालसा पाल रहे हैं), और भारत-अमेरिका संबंधों के लिए भी. देखते हैं कि ये सपना आगे कैसा स्वरूप ग्रहण करता है.

(लेखक अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके हैं और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ 9/11 के दौरान डीलिंग में शामिल थे. यह विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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