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शुक्रवार, 9 मई, 2025
होममत-विमतट्रंप गलतफहमी में हैं—ये कोई सदियों पुराना युद्ध नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ कार्रवाई है

ट्रंप गलतफहमी में हैं—ये कोई सदियों पुराना युद्ध नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ कार्रवाई है

भले ही ट्रंप को इस क्षेत्र के इतिहास की जानकारी न हो, लेकिन उनकी टिप्पणी कोई हंसी-मज़ाक वाली बात नहीं है. वे संक्षेप में बताते हैं कि पश्चिमी देश भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के तनाव को किस तरह देखते हैं.

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अधिकांश भारतीयों ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस दावे पर हंसकर टाल दिया कि भारत और पाकिस्तान “कई दशकों से, असल में अगर आप सोचें तो कई सदियों से” लड़ते आ रहे हैं…

क्या उन्हें नहीं पता कि एक सदी पहले पाकिस्तान था ही नहीं?

संभव है, ट्रंप इस क्षेत्र के इतिहास से वाकिफ न हों. लेकिन उनके ये बयान मजाक की बात नहीं हैं क्योंकि, दुर्भाग्यवश, ये हालिया भारत-पाक तनावों पर पश्चिमी प्रतिक्रिया को काफी हद तक समेट लेते हैं. अगर आप इस विषय पर पश्चिमी लेख पढ़ें, तो पाएंगे कि वे सारे लेख कश्मीर और इस बात पर केंद्रित हैं कि पाकिस्तान कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने से इनकार करता है. पहलगाम में हुए नागरिकों के नरसंहार को एक लंबे संघर्ष की बस एक और कड़ी की तरह देखा जाता है.

यह एक ऐसा नजरिया है जो शायद पाकिस्तान को अनुकूल लगता हो. लेकिन यह भारत की स्थिति को पूरी तरह से गलत ढंग से प्रस्तुत करता है और उस असली कारण को नजरअंदाज करता है जिसकी वजह से हमें पाकिस्तान पर हमले करने पड़े.

हमारी पाकिस्तान से समस्या एकदम सीधी है: आतंकवाद.

यह कश्मीर के बारे में नहीं है

आज का कोई भी कश्मीरी मुश्किल से ही यह सोचेगा कि राज्य का भविष्य आज के अस्थिर और बिखरते पाकिस्तान का हिस्सा बनने में है. और यह समस्या कोई ऐतिहासिक बोझ भी नहीं है. एक पखवाड़े पहले तक, अधिकांश भारतीयों की चेतना से पाकिस्तान लगभग पूरी तरह गायब हो चुका था. पाकिस्तान भले ही भारत और कश्मीर को लेकर ग्रस्त हो (जिसे वह अपना “शिरा” मानता है, अगर आप उनके सेना प्रमुख की बात मानें), लेकिन भारत 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था में अपनी जगह बनाने में इतना व्यस्त है कि उसे उस पड़ोसी की फिक्र करने की फुर्सत नहीं है जो आर्थिक संकटों से जूझ रहा है और जहां सैन्य आदेश पर हर पूर्व प्रधानमंत्री को जेल भेजना एक आम बात बन चुकी है.

हम सिर्फ इसलिए पाकिस्तान को लेकर चिंतित हैं क्योंकि वह एक ऐसा देश बन गया है जो आतंकवाद को बढ़ावा देता है और उन आतंकवादियों को संरक्षण देता है जो भारतीयों की हत्या करते हैं.

अगर आप पिछले 25 वर्षों पर नजर डालें, तो हम सिर्फ तब पाकिस्तान को लेकर चिंतित हुए हैं जब उसने भारत में आतंकवादी भेजे हैं ताकि वे हमारे लोगों को मार सकें. आईसी 814 विमान का खूनी अपहरण आईएसआई की एक साजिश थी, जिसका मकसद खूंखार आतंकवादियों को रिहा करवाना था, जिन्हें बाद में पाकिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह मिल गई. यहां तक कि अमेरिका भी इस बात से इनकार नहीं करता कि पाकिस्तान में आधारित आतंकी संगठनों ने 26/11 मुंबई हमलों को अंजाम दिया, जिनमें निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या की गई. यह भी स्पष्ट है कि पुलवामा नरसंहार पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादियों की करतूत था. और पहलगाम में जो हत्याएं हुईं, वे उन आतंकियों ने कीं जिन्हें पाकिस्तान ने प्रशिक्षण और हथियार दिए.

इस सबका कश्मीर विवाद से कोई लेना-देना नहीं है. जब पाकिस्तानी आतंकी मुंबई के लक्ज़री होटलों में बंधकों पर गोली चलाते हैं या रेलवे स्टेशन पर निर्दोष यात्रियों को मारते हैं, तो वह कश्मीरी नागरिकों को अन्य भारतीयों से अलग कैसे प्रभावित करता है?

यह सिर्फ भारतीयों की हत्या के लिए किया गया आतंकवाद है. दुनिया के अधिकांश बड़े आतंकी हमलों की तरह (जैसे 9/11), इसका मकसद सिर्फ घृणा और हत्या की प्यास से प्रेरित होता है. पहलगाम में हिंदू पर्यटकों की नृशंस हत्या से कौन सा राजनीतिक उद्देश्य हासिल होता है? जैसे ओसामा बिन लादेन ने 9/11 को अमेरिकी नागरिकों की हत्या के लिए जायज़ ठहराया—जो उसकी नजर में खुद में एक वांछनीय परिणाम था—वैसे ही पाकिस्तानी आतंकवादी अपने हमलों को सिर्फ भारतीयों की हत्या के तौर पर सही ठहराते हैं, जिसे वे एक लक्ष्य के रूप में देखते हैं. (क्या यह महज संयोग है कि न्यूयॉर्क में सामूहिक हत्या का जश्न मनाने के बाद बिन लादेन को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह मिली?)

भारत में कई बार 9/11 की घटनाएं हुईं और फिर भी…

भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव को देखने के दो तरीके हैं. आप इसे कश्मीर को लेकर जारी एक प्राचीन संघर्ष के रूप में देख सकते हैं — जैसा कि पाकिस्तान चाहता है कि दुनिया इसे देखे.

या फिर आप इसे वैसा देख सकते हैं जैसा यह वास्तव में है: भारत आतंकवाद से लड़ रहा है, उसके स्रोत तक जाकर और उसे खत्म करने की कोशिश कर रहा है.

एक बार जब आप इसे इस नजरिए से देखते हैं, तो भारत की प्रतिक्रियाएं बेहद संयमित लगती हैं, खासकर जब आप अमेरिका की प्रतिक्रियाओं से तुलना करते हैं. 9/11 के बाद, अमेरिका ने अफगान सरकार से बिन लादेन को सौंपने को कहा. जब अफगानों ने इनकार कर दिया, तो अमेरिका ने एक पूर्ण सैन्य आक्रमण शुरू किया और देश पर कब्जा कर लिया. तब से, जब भी अमेरिका को अपने नागरिकों या हितों पर खतरा दिखा, उसने बिना हिचकिचाए अन्य देशों की संप्रभुता का उल्लंघन किया—सैन्य हमले किए या ड्रोन के जरिए उन लोगों की हत्या की जिन्हें वह दुश्मन मानता है.

इसके विपरीत भारत की प्रतिक्रियाएं देखें. आईसी 814 के अपहरण के बाद, जब हमें उन आतंकवादियों का पीछा कर उन्हें खत्म करना चाहिए था जिन्हें भारत की जेलों से रिहा किया गया और फिर पाकिस्तान में शरण मिली, हमने कुछ नहीं किया. 26/11 के बाद, हमने अमेरिकियों की बात मान ली और प्रतिशोध नहीं लिया, जिससे यह संदेश गया कि भारत एक आसान निशाना है. पुलवामा के बाद, हमने एक सीमित हमला किया, जिसमें खुद पाकिस्तानियों ने माना कि शायद ही कोई मारा गया हो. और इस हफ्ते के हमले पहलगाम की प्रतिक्रिया में सावधानीपूर्वक तय किए गए थे, जो केवल आतंकी संगठनों को निशाना बनाते थे, किसी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने को नहीं छुआ गया.

सच्चाई यह है कि यह सीमित प्रतिक्रिया पर्याप्त नहीं होगी. पाकिस्तानी राज्य अपने आतंकी समूहों को फिर से सशस्त्र और संगठित करेगा. जैसा कि उनके रक्षा मंत्री ने स्काई न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में स्वीकार किया, पाकिस्तान का ऐसे समूहों को संगठित करने का लंबा इतिहास रहा है (हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान सिर्फ पश्चिम के “गंदे काम” एक प्रॉक्सी के रूप में कर रहा था.)

एक ही बार के हमले पाकिस्तान की आतंकी मशीनरी को खत्म करने या भारत के नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे. फिर भी भारत ने जिम्मेदारी से काम लिया है, केवल एक मापी और सीमित प्रतिक्रिया दी है—क्योंकि वह उस पूर्ण युद्ध से बचना चाहता है, जिसे पाकिस्तान परमाणु स्तर तक ले जाने की धमकी दे सकता है.

ट्रंप को इतिहास की शिक्षा की जरूरत है

हमारी समस्या यह है कि पश्चिमी दुनिया का एक बड़ा हिस्सा अब भी सतही व्याख्याओं और पुराने घिसे-पिटे में अटका हुआ है. हमारे लोगों को आतंकवाद से सुरक्षित रखने की हमारी लड़ाई को अब भी कश्मीर विवाद और पुराने प्रतिद्वंद्विता के चश्मे से देखा जा रहा है.

असलियत में, इसका इन सबसे बहुत कम लेना-देना है. यह आतंक के खिलाफ एक जंग है—न उससे ज़्यादा, न उससे कम. और हम यह लड़ाई कहीं ज़्यादा संयम और ज़िम्मेदारी से लड़ रहे हैं, जितना अमेरिका ने कभी दिखाया है.

तो शायद अब वक्त आ गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप कुछ इतिहास की कक्षाएं लें. सिर्फ हमारे इतिहास की नहीं, बल्कि अपने देश के इतिहास की भी—और यह समझें कि अमेरिका हर आतंकी हमले के जवाब में कितनी अधिक ताकत का इस्तेमाल करता है.

शायद इससे उन्हें समझने में मदद मिलेगी कि भारत किसका सामना कर रहा है—और हमने कितनी परिपक्वता से प्रतिक्रिया दी है.

(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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